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त्यौहारों के दौरान शांति एवं सुरक्षा व्यवस्था कायम रखने पुलिस ने निकाला फ्लैग मार्च
* पुलिस महानिरीक्षक शहडोल जोन अनुराग शर्मा ने किया फ्लैग मार्च का नेतृत्व
शहडोल।(www.radarnews.in) गणेशोत्सव एवं ईद मिलादुन्नबी पर्व के दौरान शांति एवं सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने हेतु शुक्रवार 13 सितंबर को शहडोल पुलिस द्वारा नगर में फ्लैग मार्च निकाला गया। इस फ्लैग मार्च का नेतृत्व पुलिस महानिरीक्षक अनुराग शर्मा, पुलिस उपमहानिरीक्षक सुश्री सविता सोहाने, कलेक्टर केदार सिंह एवं पुलिस अधीक्षक कुमार प्रतीक ने किया। जिसमें भारी संख्या में पुलिस बल एवं पुलिस वाहन शामिल रहे। उक्त फ्लैग मार्च परमठ से प्रारंभ होकर शहर के मुख्य चौराहों सिंधी बाजार, पुराना गांधी चौक, इंदिरा चौक आदि स्थानों से होते हुए नया गांधी चौक पर समाप्त हुआ।
फ्लैग मार्च का का मुख्य उद्देश्य, भयमुक्त वातावरण को मजबूत कर आमजन में सुरक्षा का भाव पैदा करना था। फ्लैग मार्च के दौरान जनमानस से शांतिपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण ढंग से उत्साहपूर्वक भयमुक्त होकर आगामी त्यौहार मनाने की अपील की गई। साथ ही इसके माध्यम से शांतिपूर्ण माहौल को खराब करने वाले आपराधिक असमाजिक तत्वों को कड़ाईपूर्वक चेतावनी दी गई। उक्त फ्लैग मार्च में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शहडोल अभिषेक दीवान, उप पु अ. राघवेन्द्र द्विवेदी, मुकेश दीक्षित, विकास पाण्डेय, रक्षित निरीक्षक दीपेन्द्र सिंह कुशवाह, थाना प्रभारी कोतवाली, सोहागपुर एवं पुलिस स्टाफ मौजूद रहे।
शासकीय पॉलीटेक्निक कॉलेज में प्रवेश का अंतिम अवसर, 15 सितंबर को संस्था स्तर पर होगी काउंसिलिंग
* प्राचार्य ने प्रवेश के इच्छुक छात्र-छात्राओं से ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने के बाद काउंसिलिंग में शामिल होने की अपील
पन्ना।(www.radarnews.in) अध्यक्ष काउंसिलिंग समिति तकनीकी शिक्षा द्वारा संस्था में पॉलीटेक्निक महाविद्यायल में रिक्त स्थानों पर प्रवेश के लिए संस्था स्तरीय काउंसिलिंग का आयोजन दिनांक 15 सितम्बर 2024 दिन रविवार को किया गया है। इसका ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन का कार्य दिनांक 15 सितम्बर 2024 को रात्रि 11:45 तक एमपी ऑनलाइन के माध्यम से कराया जा सकता है। पॉलिटेक्निक महाविद्यालय पन्ना के प्राचार्य डॉ. अरविंद कुमार त्रिपाठी ने जानकारी देते हुए बताया कि जिले में दो शासकीय पॉलीटेक्निक महाविद्यालय संचालित है, जिसमें पन्ना महाविद्यालय में चार ब्रांच क्रमशः कम्प्यूटर साइंस एण्ड इंजीनियरिंग, सिविल इंजीनियरिंग तथा मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्थान रिक्त है। इसी प्रकार जिले के दूसरे शासकीय पॉलीटेक्निक महाविद्यालय पवई में क्रमशः मैकेनिकल इंजीनियरिंग, कम्प्यूटर साइंस एण्ड इंजीनियरिंग, सिविल इंजीनियरिंग तथा इलेक्ट्रानिक्स एण्ड टेली कम्यूनिकेशन संचालित है। वर्तमान में इन सभी ब्रांच में सीट रिक्त है। दोनों ही पॉलीटेक्निक कॉलेज में योग्य एवं अनुभवी शिक्षकों के द्वारा अध्यापन कार्य कराया जाता है। दोनों संस्थाओं में विद्यार्थियों की सुविधा हेतु भी उपलब्ध हैं।
प्राचार्य श्री त्रिपाठी ने तकनीकी शिक्षा अर्जित करने के इच्छुक छात्र-छात्राओं से अपील की है कि, चालू सत्र के लिए पॉलीटेक्निक महाविद्यायल में प्रवेश के अंतिम अवसर को अपने हाथ से न जाने दें। इसका लाभ उठाने के लिए बिना किसी देरी के एमपी ऑनलाइन के माध्यम से अपना रजिस्ट्रेशन कराएं और फिर संस्था स्तरीय काउंसलिंग में अनिवार्य रूप से शामिल होकर प्रवेश प्रक्रिया को पूर्ण करें। आपने बताया कि, पॉलीटेक्निक महाविद्यालय में प्रवेश से जुड़ी अधिक जानकारी हेतु विद्यार्थी पन्ना के लिए राकेश कुमार द्विवेदी से उनके मोबाइल नम्बर 9424350178 तथा प्रतिपाल सिंह 9340487909 पर संपर्क कर प्राप्त कर सकते हैं।
स्मृति शेष | सीताराम येचुरी : एक योद्धा और विचारक
(आलेख : अजॉय आशीर्वाद महाप्रशास्ता, अनुवाद : संजय पराते)
अगस्त 2003 में, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) – सीपीआई (एम) – के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी को उनकी पार्टी की छात्र शाखा, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) द्वारा नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया था।
खचाखच भरे हॉल की अगली सभी पंक्तियों को नव-प्रवेशित छात्रों ने भर दिया था, जहां येचुरी जल्द ही इस विषय पर बोलने वाले थे कि कैसे भारतीय जनता पार्टी की नीतियां न केवल अल्पसंख्यक समूहों को, बल्कि पूरे भारतीय मजदूर वर्ग को ही अपना निशाना बना रही है।
येचुरी लगभग अचानक ही प्रकट हुए, बिना किसी धूमधाम के, जो आमतौर पर किसी राष्ट्रीय नेता के साथ होता है, और उन्होंने तय समय से थोड़ा पीछे चलने के लिए माफ़ी मांगी। उन्होंने ऊपर से बटन खोले हुए सादे सफ़ेद शर्ट और बिना किसी खास सैंडल के साथ सिलवाया हुआ ट्राउज़र पहना हुआ था। कम्युनिस्ट नेताओं के बारे में कम जानकारी रखने वाले कई छात्रों के लिए, येचुरी का विनम्र और दोस्ताना व्यवहार उल्लेखनीय और साथ ही दिल को छूने वाला था।
बहरहाल, अपने भाषण के पाँच मिनट में ही उन्होंने पूरे हॉल को मंत्रमुग्ध कर दिया था- नए छात्र भाजपा सरकार की जन-विरोधी नीतियों के बारे में उनके बिंदुवार विवरण को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे, जिससे लगभग सभी लोग, यहाँ तक कि जो लोग उनकी पार्टी के आलोचक थे, भी आश्चर्यचकित और प्रेरित हो गए।
अपने 45 मिनट के भाषण में- जो कि मधुर, तथ्यपरक, त्रुटिहीन और तर्कपूर्ण था- उन्होंने सांप्रदायिकता और सरकार की उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (एलपीजी) नीतियों पर जटिल विचारों को सरलीकृत किया, जन-विरोधी नीतियों का मुकाबला करने के लिए वामपंथ को सबसे वैध राजनीतिक शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया और छात्रों के सामने ऐसे प्रश्न छोड़ गए, जिनका सामना उन्हें सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित विश्वविद्यालय में रहने के दौरान करना पड़ रहा था।
यह सब, एक साथ। जब येचुरी ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अपना भाषण समाप्त किया, तब तक वे न केवल अपनी, बल्कि देश में वामपंथ की राजनीतिक ताकत के रूप में स्थायी छाप छोड़ने में सफल हो चुके थे।
जैसे ही वे किसी दूसरी मीटिंग के लिए कैंपस से बाहर निकले, उन्होंने अपने पीछे एक अस्त-व्यस्त हॉल भी छोड़ा, जिसमें छात्र नाटकीय ढंग से उनके भाषण पर विचारों का आदान-प्रदान कर रहे थे, उनके द्वारा उठाए गए कुछ विचारों पर बहस कर रहे थे और सबसे बढ़कर, खुद को राजनीतिक और दार्शनिक सवालों की दुनिया में डुबो रहे थे, जिनका कोई आसान जवाब नहीं था। उनका जेएनयू जीवन एक धमाके के साथ शुरू हुआ था।
येचुरी ने अपने पूरे जीवन में जेएनयू के छात्र की विशेषता को मूर्त रूप दिया- विचारशील, आलोचनात्मक, जिज्ञासु, एकजुटता और गठबंधन बनाने के लिए अटूट धैर्य के साथ। यहां तक कि जब वे अपनी पार्टी के महासचिव बनने के लिए आगे बढ़े, बहुस्तरीय राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक चिंताओं से जूझते रहे और यहां तक कि अपनी पार्टी की खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस लाने के लिए संघर्ष करते रहे – तब भी उनकी यह खासियत बनी रही।
72 वर्षीय येचुरी ने 12 सितंबर, 2024 को नई दिल्ली के एम्स में सांस संबंधी संक्रमण से लंबी लड़ाई के बाद अंतिम सांस ली। उन्हें भारत की ऐतिहासिक घटनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सबसे सुलभ और मिलनसार राजनीतिक नेताओं में से एक के रूप में जाना जाएगा।
साम्यवाद के प्रति आजीवन प्रतिबद्धता के बावजूद, उनके दरवाज़े हमेशा सभी राजनीतिक दलों के लोगों के लिए खुले रहते थे। उन्होंने अपनी राजनीतिक आभा को इतना छुपा कर रखा था कि आम लोग और यहाँ तक कि पत्रकार भी उनसे संपर्क करने में कभी नहीं हिचकिचाते थे, कभी-कभी तो उन्हें खुद भी असहजता का सामना करना पड़ता था।
येचुरी सत्तर के दशक की राजनीति की उपज थे, जिस समय भारत में सबसे ऊर्जावान छात्रों ने अपनी जगह बनाई। तेलुगु भाषी परिवार में जन्मे येचुरी अपने बचपन में ही भारत की जनसांख्यिकीय विविधता से परिचित हो गए थे। उनका बचपन उनके माता-पिता के साथ बीता था, जो सरकारी अधिकारी के रूप में काम करते थे।
वे प्रारम्भ से ही एक मेधावी छात्र रहे। उन्होंने अर्थशास्त्र का अध्ययन करने के लिए नई दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज और उसके बाद 1973 में जेएनयू में प्रवेश लिया। जेएनयू में उन्होंने महान प्रोफेसर कृष्ण भारद्वाज के अधीन अध्ययन किया। इसी विश्वविद्यालय में येचुरी और प्रकाश करात, जिनके बाद वे पार्टी के महासचिव बने, दोनों ने वामपंथी राजनीति में कदम रखा था। इस दौरान उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और मौजूदा असमानताओं के बारे में छात्रों की चिंताओं को लेकर अभियान चलाया और सरकार पर दबाव डाला।
आपातकाल हटने के बाद वे लगातार तीन बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। यहां उन्होंने करात और डीपी त्रिपाठी जैसे लोगों के साथ मिलकर नए खुले विश्वविद्यालय में वामपंथ की स्थिति मजबूत की।
आपातकाल के दौरान उनकी अस्थायी गिरफ्तारी ने उनकी पीएचडी पूरी करने की योजना को बाधित कर दिया, जिसके बाद वे पार्टी में पूर्णकालिक सदस्य बन गए और राष्ट्रीय स्तर पर एसएफआई का नेतृत्व किया। उनकी राष्ट्रीय भूमिका ने वास्तव में उन्हें अखिल भारतीय नेता के रूप में परिपक्व होने में मदद की; उन्होंने व्यापक रूप से यात्रा की, देश भर में विभिन्न छात्र आंदोलनों के साथ संबंध बनाए, आम मुद्दों पर एकजुटता बनाई और एसएफआई को एक विशाल छात्र संगठन बनने में मदद की।
आपातकाल के बाद के उत्साह के दौरान उनकी रचनात्मक भूमिका को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने देखा और उन्हें जल्द ही पार्टी की केंद्रीय समिति में शामिल कर लिया गया, जो पार्टी नेताओं द्वारा निर्णय लेने वाली प्रणाली में युवा प्रतिभा को शामिल करने के प्रयास का हिस्सा था।
येचुरी की राष्ट्रीय राजनीति में शुरुआत भी उस समय हुई, जब सीपीआई(एम) अपने आप को देश के अन्य हिस्सों में फैलाने के लिए गंभीर प्रयास कर रही थी। हालांकि वे प्रयास आधे-अधूरे ही रहे, लेकिन येचुरी सीपीआई(एम) की राष्ट्रीय राजनीति की चिंताओं और मुद्दों में पले-बढ़े नेता के रूप में उभरे। इसने उन्हें और करात को उस समय के अन्य युवा सीपीआई (एम) नेताओं से अलग कर दिया, जो केवल केरल और पश्चिम बंगाल जैसे पार्टी के गढ़ों में ही शामिल थे।
यह लगभग वही समय था l, जब येचुरी पूर्वी यूरोपीय देशों और अन्य ऐसे देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों की बैठकों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सीपीआई (एम) का प्रतिनिधित्व करने के लिए पार्टी से नामांकित हुए और उन्होंने अपनी पार्टी को विश्व राजनीति का हिस्सेदार बनाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस विविध अनुभव ने येचुरी को न केवल राष्ट्रीय मुद्दों के इर्द-गिर्द, बल्कि तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रमों के इर्द-गिर्द भी, अपनी राजनीतिक चिंताओं को व्यक्त करने में मदद की, जिससे वे उन दुर्लभ भारतीय राजनीतिक नेताओं में शामिल हो गए, जिन्हें विदेश नीति के मामलों की निश्चित समझ थी।
सोवियत संघ के पतन, बाबरी मस्जिद के विध्वंस और आसन्न दिवालियापन के बाद भारत सरकार को 90 के दशक की शुरुआत में एलपीजी (उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण) की नीतियों को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इससे भारत में वामपंथी आंदोलन को झटका लगा। यह लगभग वही समय था, जब सीपीआई (एम) नेतृत्व ने, जिसके येचुरी एक अभिन्न अंग थे, वास्तव में भाजपा को दूर रखने और भारतीय धर्मनिरपेक्षता के लिए एक मजबूत राजनीतिक आधार बनाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन बनाने के लिए हर संभव प्रयास किए।
तत्कालीन महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत के मार्गदर्शन में येचुरी एक ऐसे नेता के रूप में उभरे, जो न केवल राजनीतिक दलों, बल्कि विभिन्न नागरिक समाज समूहों के साथ मजबूत धर्मनिरपेक्ष गठबंधन बनाने के प्रयास में माकपा और अन्य दलों के बीच आसानी से एक पुल बन सकते थे।
गठबंधन की राजनीति में माहिर सुरजीत ने येचुरी को उस स्थिति में आने में मदद की, जहां वे अपना मित्रवत और सुलभ व्यवहार अपनाकर उन ताकतों के बीच पुल का निर्माण कर सके, जिनके एक साथ आने की कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
येचुरी एक उत्साही पाठक थे, हाजिर जवाबी में बेहद कुशल थे और पुराने हिंदी फ़िल्मी गीतों के भी बहुत बड़े प्रशंसक थे। उनके दोस्त आपको बताएंगे कि कैसे वे अस्सी के दशक से पहले के दशकों के लगभग सभी गीतों के गीतकारों और संगीतकारों को याद रखते थे और उनके पास हिंदी गीतों का एक विशाल संग्रह भी था। उन्होंने पार्टी की विभिन्न पत्रिकाओं के संपादक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान भी अपने व्यक्तित्व का यह पक्ष दिखाया था, जहाँ उन्होंने न केवल राजनीतिक लेख प्रकाशित किए, बल्कि उपन्यासकारों, कवियों और कलाकारों के साक्षात्कारों का भी प्रयोग किया।
जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने दीवार पत्रिकाओं की अवधारणा शुरू की, जिसमें अकादमिक और साहित्यिक पर्चे प्रकाशित किए गए। अपने अंतिम समय तक, उन्होंने कई प्रकाशनों के लिए लिखना बंद नहीं किया था, महत्वपूर्ण मामलों में तत्काल हस्तक्षेप किया और आमतौर पर गंभीर मुद्दों पर मजाकिया टिप्पणी या लेख के साथ माहौल को हल्का किया।
सांसद के रूप में उनका लगभग दो दशक का रिकार्ड न केवल एक प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट के रूप में, बल्कि एक कुशल वार्ताकार और हस्तक्षेपकर्ता के रूप में भी उनकी गंभीरता को दर्शाता है।
येचुरी के दूसरों के प्रति छोटे-छोटे इशारे भी उल्लेखनीय थे, जिससे उन्हें सभी राजनेताओं का सम्मान मिला। प्रभावी संचार पर उनका जोर इतना अधिक था कि उन्होंने बंगाली और मराठी जैसी क्षेत्रीय भाषाएँ भी सीखीं।
जीवन के अंतिम चरण में, करात के साथ उनकी प्रतिद्वंद्विता के बारे में बहुत कुछ कहा गया, जो पूरी तरह से झूठ नहीं था। लेकिन कोई भी पुराना सीपीआई (एम) पर्यवेक्षक आपको बताएगा कि इन दोनों नेताओं को नेतृत्व उस समय विरासत में मिला जब ज्योति बसु, ईएमएस नंबूदरीपाद और सुरजीत जैसे दिग्गज, जिन्होंने पार्टी को खड़ा किया था, या तो सेवानिवृत्त हो चुके थे या उनकी मृत्यु हो गई थी, जिससे पार्टी के भीतर एक बड़ा शून्य पैदा हो गया था।
करात को पार्टी के संगठन को बनाने की भूमिका विरासत में मिली, जबकि येचुरी भारत के संसदीय लोकतंत्र की जटिलताओं से निपटने के लिए पार्टी का चेहरा बनकर उभरे। दोनों की भूमिकाएँ अलग-अलग थीं, और वे एक-दूसरे के पूरक हो सकते थे, जैसा कि उन्होंने अपने जेएनयू जीवन में, अलग-अलग परिस्थितियों और संदर्भों में किया था। फिर भी, दोनों ने नब्बे के दशक में पार्टी के परिवर्तन के महत्वपूर्ण समय के दौरान पार्टी का प्रतिनिधित्व किया, और दोनों को सत्तर के दशक के जीवंत छात्र आंदोलन से राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरने का गौरव प्राप्त है।
पार्टी के महासचिव के रूप में येचुरी उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे, जो भाजपा के खिलाफ व्यापक गठबंधन में विश्वास करता था और संसदीय वामपंथी ताकत का नेतृत्व करने के अपने गैर-रूढ़िवादी दृष्टिकोण के प्रति निरंतर प्रतिबद्ध रहे।
ऐसा माना जाता है कि उन्होंने यूपीए-1 सरकार द्वारा सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एक साथ रखने के लिए एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कांग्रेस के साथ लगातार जुड़े रहने वाले व्यक्ति के रूप में, कहा जाता है कि उन्होंने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, आरटीआई, शिक्षा का अधिकार और भोजन का अधिकार जैसे महत्वपूर्ण कानून पारित करने के लिए काफी प्रभावित किया था।
येचुरी को हमेशा एक धीमे, लेकिन स्थिर योद्धा के रूप में याद किया जाएगा, जिन्होंने कट्टरवाद और वैश्वीकरण दोनों के खिलाफ डटकर मुकाबला किया और वे भारतीय राजनीति में उस समय एक मजबूत ताकत बन गए थे, जब सांप्रदायिक और लाभ-लोलुप ताकतों ने अभूतपूर्व तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
(‘द वायर’ से साभार। अनुवादक छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)
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उल्टी-दस्त से चार आदिवासी बच्चों की मौत, डेढ़ दर्जन बीमार व्यक्तियों को स्वास्थ्य केंद्र में कराया भर्ती
* पन्ना जिले के पटोरी गांव में दूषित पानी और भोजन के उपयोग से बिगड़ी ग्रामीणों की हालत
* स्वास्थ्य विभाग की टीमों ने घर-घर सर्वेक्षण कर वितरित की आवश्यक दवाएं
* जल शुद्धिकरण के लिए पेयजल स्रोतों में ब्लीचिंग पाउडर और क्लोरिन की दवा डलवाई
पन्ना। (www.radarnews.in) मध्यप्रदेश के अति पिछड़े पन्ना जिले में मौसमी बीमारियों का कहर बीते कुछ माह से लगातार जारी है। जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पवई के नजदीकी गांव पटोरी की आदिवासी बस्ती में उल्टी-दस्त ने कोहराम मचाया है। बस्ती में तीन दिन के अंदर चार बच्चों ने उल्टी-दस्त के कारण दम तोड़ दिया। मृत बच्चों में तीन एक ही परिवार के है। जिनकी मौत बुधवार से लेकर गुरूवार के बीच महज़ कुछ घंटे के अंतराल में होने से जबरदस्त हड़कंप मचा है। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने गांव में घर-घर सर्वेक्षण कर करीब डेढ़ दर्जन बीमार व्यक्तियों को चिन्हित किया है, जिन्हें समुचित इलाज हेतु सीएचसी पवई में भर्ती कराया है। गंभीर रूप से बीमार 3 लोगों को बेहतर इलाज के लिए पन्ना जिला चिकित्सालय रेफर किया गया।
प्रभारी बीएमओ पवई डॉ. विवेक कुमार मेहोरिया ने पटोरी ग्राम की स्थिति पूरी अब तरह से नियंत्रण में होने का दावा किया है। आधा सैंकड़ा से भी कम घरों वाली आदिवासी बस्ती में एक ही माता-पिता के तीन बच्चों की अचानक मौत होने से खबर आने से हर कोई स्तब्ध है। कुछ लोग इस दुखद घटनाक्रम को डायरिया के प्रकोप के तौर पर देख रहे है तो वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो कि फूड प्वाइजनिंग की आशंका जता रहे है। बच्चों की मौत के वास्तविक कारणों का पता लगाने के लिए जांच जारी है। जिम्मेदार अधिकारी जांच उपरांत आधिकारिक तौर पर स्थिति स्पष्ट होने की बात कह रहे हैं।
गुरुवार को सुबह-सुबह पवई क्षेत्र के पटोरी ग्राम की आदिवासी बस्ती में कथित तौर पर उल्टी-दस्त से एक ही परिवार के तीन बच्चों की मौत होने की दुखद खबर आते ही लोग हैरान रह गए। आनन-फानन पवई बीएमओ विवेक कुमार के नेतृत्व पटोरी पहुंची स्वास्थ्य विभाग की ब्लॉक स्तरीय टीम को शोक संतृप्त परिजनों से पता चला कि मृत बच्चों ने तरोई की बासी सब्जी खाई हुई थी। पीड़ित माता-पिता मुन्नीलाल आदिवासी और हल्की बाई ने बताया कि बुधवार दोपहर से लेकर गुरुवार रात्रि के बीच अचानक उनके तीनों बच्चों को हाथ-पैर एवं शरीर में तेज दर्द की शिकायत हुई। और फिर दो बच्चों को सिर्फ एक बार उल्टी दस्त हुए थे। बेवश और लाचार माता-पिता की आँखों के सामने असहनीय दर्द एवं पीड़ा से तड़पते तीनों बच्चों की महज चंद घंटे के अंतराल में रहस्मय तरीके से सांसें थम गईं। मृत बच्चों में सीमा 6 वर्ष, उपासना 8 वर्ष और अशोक आदिवासी 15 वर्ष शामिल हैं।
गरीब आदिवासी परिवार के एक साथ तीन चिराग़ बुझने से हर कोई स्तब्ध और दुखी है। स्वास्थ्य विभाग की टीम के द्वारा आदिवासी बस्ती में घर-घर कराए गए सर्वेक्षण के दौरान तीन दिन पूर्व वहां अली आदिवासी के पुत्र अखलेश की मौत होने की भी जानकारी मिली है। कथित तौर पर अखिलेश आसपास के किसी नाले से मछली पकड़कर लाया था। जिसकी सब्जी खाने के बाद उसे उल्टी-दस्त की शिकायत हुई और फिर थोड़ी देर में उसकी मौत हो गई। वहीं गांव के कुछ लोगों का मानना है की बच्चों की मौत हैण्डपम्प का दूषित पानी पीने से हुई है।
बीमार व्यक्तियों का इलाज जारी
पटोरी गांव की आदिवासी बस्ती में सर्वेक्षण के दौरान बीमार पाए गए 15 लोगों को स्वास्थ्य विभाग की ब्लॉक स्तरीय कॉम्बेट टीम के द्वारा एम्बुलेंस से पवई लाकर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में भर्ती कराया गया है। जबकि गंभीर रूप से बीमार 3 व्यक्तियों को इलाज हेतु पन्ना जिला अस्पताल के लिए रेफर किया है। स्वास्थ्य केंद्र भर्ती कराए गए मरीजों में छोटे बच्चे, महिलाएं और पुरुष शामिल है। सभी का इलाज जारी है और उनकी हालत में सुधार होना बताया गया है। बीएमओ पवई ने बताया कि बच्चों की मौत की दुखद घटना की जानकारी मिलने पर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एसके त्रिपाठी ने पटोरी पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। इसके पूर्व सीएमएचओ के निर्देश पर शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर शैंकी अग्रवाल की अगुवाई में जिले से आई डॉक्टरों की टीम ने पटोरी के बीमार लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण कर आवश्यक उपचार प्रदान किया गया। बीमारी की रोकथाम के उद्देश्य से बस्ती के पेयजल स्रोतों के जल शुद्धिकरण हेतु ब्लीचिंग पाउडर और क्लोरीन की दवा डलवाई गई। साथ ही कम बीमार लोगों को आवश्यक दवाएं वितरित की गईं। चार बच्चों की मौत के वास्तविक कारणों का पता लगाने के लिए मुन्नीलाल आदिवासी के घर से भोजन तथा गांव के जल स्रोतों पानी के सैंपल लेकर परीक्षण हेतु लैब भेजा जा रहा है।
ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल
विदित होकि महज पखवाड़े भर के अंदर जिले में कथित तौर पर उल्टी-दस्त के कारण अब तक छह लोग समय काल-कवलित हो चुके हैं। इसी अवधि में करीब आधा दर्जन गांवों में सैंकड़ा भर लोगों के बीमार होने की जानकारी भी सामने आई है। पवई के ताजा घटनाक्रम से पूर्व अजयगढ़ तहसील के धरमपुर क्षेत्र अंतर्गत हरनामपुर ग्राम पंचायत में उल्टी-दस्त से दो लोगों की मौत होने का मामला प्रकाश में आया था। जिले के ग्रामीण अंचल में मौसमी बीमारियों के प्रकोप की बड़ी वजह स्थानीय स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बदहाल होना है। ग्रामीणों में जागरूकता के आभाव से भी बीमारियों को फैलने में मदद मिल रही है। ग्राम स्तर पर आशा कार्यकर्ता और उप स्वास्थ्य केन्द्र स्तर पर सीएचओ पदस्थ होने के बाद भी ग्रामीणों में बीमारियों से बचाव को लेकर जागरूकता का आभाव होने के साथ शासन की मंशानुरूप उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं का आपेक्षित लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तब है जबकि हर साल ग्राम स्तर पर आशा कार्यकर्ता और उप स्वास्थ्य केंद्रों के लिए बजट उपलब्ध कराने के साथ जरुरी दवाएं प्रदान करने और प्रचार-प्रसार पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं।