पाठशाला में रूकवाई बारात, हैडमास्टर को मिला नोटिस

अजयगढ़। रडार न्यूज शैक्षणिक सत्र के दौरान स्कूल भवन एवं परिसर को किसी भी कार्यक्रम के आयोजन हेतु देना प्रतिबंधित है। बावजूद इसके कतिपय शिक्षक निहित स्वार्थों के चलते वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश की अवहेलना कर रहे हैं। पन्ना जिले की अजयगढ तहसील क्षेत्र के ग्राम सब्दुआ के शाला भवन में पिछले माह एक बारात ठहराने पर परियोजना समन्वयक जिला शिक्षा केन्द्र विष्णु त्रिपाठी ने संबंधित शालाओं को प्रधानाध्यापकों एवं जन शिक्षक सहित तीन लोगों को नोटिस जारी किये हैं। उल्लेखनीय है कि सब्दुआ ग्राम में शासकीय प्राथमिक एवं माध्यमिक शाला एक ही भवन एवं परिसर में संचालित है. लेकिन उक्त भवन को अक्सर बारातों के लिये आरक्षित कर दिया जाता है। जिससे बच्चों की कक्षाएं बाहर खुले आसमान के नीचे लगाने के अवाला कोई विकल्प नहीं होता। स्थानीय लोगों ने इसकी इस पर कई बार कड़ी आपत्ति जताई और शिकायत भी की गई, लेकिन जिम्मेदारों ने ध्यान नहीं दिया। बार-बार शिकायत मिलने पर 25 अप्रैल को बीआरसी अजयगढ़ ने शाला का निरीक्षण किया तो यह स्पष्ट हो गया कि शाला में बारात रूकती है और कक्षाएं बाहर लगती है। बीआरसी ने डीपीसी पन्ना को इस संबंध में सूचित किया और डीपीसी ने 2 मई को जन शिक्षा केन्द्र प्रभारी श्रीमति मधुरिमा राय सहित प्रधानाध्यापक प्राथमिक शाला नत्थू सिंह गौड एवं प्रधानाध्यापक माध्यमिक शाला मथुरा प्रसाद अहिरवार को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। नोटिस में स्पष्ट तौर पर कहा गया कि मध्यप्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग के निर्देशानुसर शैक्षणिक सत्र के दौरान शासकीय विद्यालयों के प्रांगण में वैवाहिक अथवा अन्य समारोह के लिये आयोजन की अनुमति नहीं है। इसके बाद भी सब्दुआ विद्यालय को वैवाहिक कार्यक्रम के लिये परिसर एवं बरामदे को दिया गया। शिक्षकों की इस मनमानी को डीपीसी ने सिविल सेवा आचरण नियम का उल्लंघन मानते हुए कार्यवाही संबंधितों से तीन दिवस के अंदर नोटिस का जबाव मांगा है। समय पर संतोषजनक जबाव नहीं देने की स्थिति में एक पक्षीय कार्रवाई करने की चेतावनी दी है।

उर्पाजन केन्द्रों में भीगा हजारों क्विंटल गेंहू

आंधी-तूफान के साथ आई बारिश ने खोली व्यवस्थाओं की पोल

पन्ना। रडार न्यूज भीषण आंधी तूफान के साथ हुई बेमौसम बारिश ने देश के कई हिस्सों में तबाही मचाने के साथ पन्ना में भी काफी क्षति पहुंचाई है। वर्तमान में गेंहू खरीदी के चलते जिले के सभी उर्पाजन केन्द्रों पर खुले आसमान के नीचे पडा हजारों क्विंटल गेंहू असमय हुई बारिश में तर-बतर हो गया। गेंहू की परिवहन व्यवस्था सही न होने के कारण बारिश में बरी तरह भीगे गेंहू के खराब होने की आशंका जताई जा रही है। जिला मुख्यालय पन्ना के नजदीक ग्राम लक्ष्मीपुर स्थित पर ही खुले आसमान के नीचे पडा 139 क्विंटल गेंहू बारिश की भेंट चढ़ गया। केन्द्र के लोगों ने बाहर पडे गेंहू को बचाने का पूरा प्रयास किया, लेकिन तेज बारिश के चलते गेंहू को खासा नुकसान हुआ। हालाकि केन्द्र के लोगों ने अनाज को ढ़कने के लिये भारी मशक्कत की। जिससे कुछ हद तक फसल को बचाया जा सका। लेकिन बारिश के बाद अनाज में नमी होने से भी फसल को नुकसान होने का खतरा बना हुआ। अब किसी तरह  केन्द्र में बचे हुए अनाज को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। विदित हो कि पूर्व में भी इसी तरह अचानक हुई बारिश से यहां खासा नुकसान हुआ था। बावजूद इसके यहां अनाज की सुरक्षा के लिये माकूल इंतेजाम नहीं किये गये।

गेंहू सुखाने, बंद की खरीदी

पन्ना, बारिश में गीला हुआ लक्ष्मीपुर मंडी का गेंहू.

लक्ष्मीपुर गेंहू खरीदी केन्द्र में उपस्थित मिले समिति सेवक नरेन्द्र कुमार तिवारी ने बताया कि शनिवार के दिन दोपहर 2 बजे तक खरीदी को स्थगित कर गेंहू को सुखाने का कार्य किया जायेगा। उन्होंने बताया कि आज दिन भर अनाज को सुखाने का कार्य किया गया, जिससे काफी हद तक नुकसान को कम किया जा सका। विदित हो कि बेमौसम बारिश से जहां शासन का खरीदा हुआ, अनाज बर्बाद हुआ, वहीं किसानों को भी इससे नुकसान हुआ है। कई स्थानों पर किसानों का खुले में रखा अनाज बारिश में भीग गया।

नहीं है सुरक्षा के पर्याप्त इंतेजाम

गौरतलब है कि जिले में अब पर्याए¢त मात्रा में वेयर हाउस उपलब्ध है। लेकिन गेंहू खरीदी केन्द्रों से वेयर हाउस तक अनाज को पहुंचाने की पर्याए¢त व्यवस्था नहीं है। जिससे अधिकांश दिन खरीदी केन्द्रों में ही अनाज पड़ा रहता है। इस तरह की बेमौसम आई मुसीबत से शासन को बड़ी हानि होती है। प्रशासन को इस ओर ध्यान देने चाहिये और प्रतिदिन अनाज को भण्डारण तक पहुंचाने की व्यवस्था कराई जानी चाहिये, ताकि इस तरह के नुकसान को रोका जा सके।

जिले भर के वनकर्मी आज से हड़ताल पर

पन्ना। रडार न्यूज मध्यप्रदेश रेंजर एसोसिएशन एवं वन कर्मचारी संघ के संयुक्त अहृवान पर 19 सूत्रीय मांगों के लेकर जिले के समस्त वनकर्मी 5 मई से अनिश्चितकालीन हड़ताल जा रहे हैं।  अपनी लंबित मांगों पर शासन का ध्यान आकृष्ट कराने के लिये हड़ताली वनकर्मचारी शनिवार से डायमंड चौराहा जगात चौकी पन्ना में अनिश्चितकालीन धरना देंगे। जिसमें दक्षिण वनमण्डल पन्ना, उत्तर वनमण्डल पन्ना एवं पन्ना टाईगर रिजर्व पन्ना के 16 वन परिक्षेत्राधिकारी, 27 उप वनक्षेत्रपाल, 91 वनपाल, 410 वनरक्षक के अतिरिक्त 469 स्थायीकर्मी कुल 1013 अधिकारी/कर्मचारी शासन के विरूद्ध अपना आक्रोश दिखाते हुये लंबित मांगे पूर्ण कराने के लिये संघर्ष करेंगे। इस प्रकार पन्ना जिले के अंतर्गत कम वेतन पा रहे वन कर्मचारी एवं अधिकारी शासन से न्यायोचित वेतन-भत्ता, स्वास्थ्य सुविधा एवं 08 घण्टे की ड्यूटी के साथ-साथ उनके कर्तव्य क्षेत्र में होने वाली वनोपज हानि की वसूली रोकने के लिये अपनी मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर रहेगें। रेंजर एसोसिएशन के संभागीय एवं जिला अध्यक्ष शिशुपाल अहिरवार वन परिक्षेत्राधिकारी पवई एवं वन कर्मचारी संघ के जिला अध्यक्ष महीप रावत ने मीडिया से मुखातिब होते हुये बताया कि रेंजर को पुलिस के टी.आई., डिप्टीरेंजर को पुलिस के एस.आई. एवं वनरक्षक को पुलिस के हेडकांन्सटेबल के बराबर वेतन मिलना चाहिये। लेकिन शासन ने उनकी वेतन विसंगति को 2007 के बाद यथावत रखा है, जिसके फलस्वरूप वन कर्मचारी एवं अधिकारी रात दिन 24 घण्टे तपती गर्मी, बरसात एवं ठण्ड में अपनी सेवायें दे रहे है। लेकिन उनकी वेतन विसंगति को दूर नहीं किया जा रहा है।

दस्तार बंदी का कार्यक्रम आज

पन्ना। रडार न्यूज जामियां अर्बिया दारूल कुरान अंजुमन इस्मालिमयां मदरसा द्वारा आयोजित जलसा-ए-सीरतुन्न नबी सल्लाहो अलैही व सल्लम ‘‘दस्तार बंदी’’ 5 मई 2018 को नेशनल पब्लिक स्कूल पन्ना में किया जा रहा है। कार्यक्रम में अंजुमन मदरसा में हिफ्जे कुरान करने वाले बच्चों को सम्मानित करते हुए उन्हें हाफिज का खिताब दिया जायेगा। शहर काजी हाफिज मोईज्जोदीन ने बताया कि कार्यक्रम में बच्चों की हिम्मत अफजाई के लिये प्रोग्राम में शिरकत करने की गुजारिश की है।

पन्ना में हुआ रडार न्यूज़ हिंदी वेब पोर्टल का विमोचन

पन्ना। डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में आज पन्ना में राडार न्यूज़ हिंदी वेब पोर्टल का विमोचन किया गया। आज प्रेस स्वतंत्रता दिवस  के उपलक्ष्य पर 3 मई 2018 को रडार न्यूज़ डाॅट इन की शुरुआत की गई। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में डॉ वीरेंद्र कुमार व्यास विभागाध्यक्ष पत्रकारिता एवं जनसंचार महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय उपस्थित रहे। वहीं विशिष्ट अतिथि के रुप में सचिन कुमार जैैैन पूर्व सलाहकार सर्वोच्च्च न्यायालय एवं भोजन का अधिकार अभियान तथा विकास संवाद समिति भोपाल ने कार्यक्रम में शिरकत की। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रुप में राजीव शर्मा प्रोजेक्ट मैनेजर एनएमडीसी भी उपस्थित रहे कार्यक्रम की अध्यक्षता शिव अनुराग पटैरिया मध्य प्रदेश ब्यूरो लोकमत समाचार ने की। वेबसाइट के संचालक एवं संपादक सादिक खान ने वेबसाइट के संबंध में लोगों को बताया। इस अवसर पर मंचासीन सभी उपस्थित अतिथियों ने क्लिक कर वेबसाइट का शुभारंभ किया। वेबसाइट के शुभारंभ कार्यक्रम में शहर के गणमान्यय नागरिक पत्रकार गण उपस्थित रहे।

पहले उड़ते थे विमान, अब उड़ती है धूल

घोर उपेक्षा के चलते सकरिया हवाई पट्टी का अस्तित्व संकट में

स्टेट टाइम में हुआ था निर्माण

पायलट प्रशिक्षण केन्द्र बनाने के वादे निकले खोखले

पन्ना। रडार न्यूज रियासत काल में पन्ना की प्रसिद्धि दूर-दूर तक थी, यहां के राजाओं द्वारा विशेष रूप से बनवाये गये भव्य मंदिर, स्मारक, महल और झीलनुमा तालाब उस दौर में पन्ना को सुंदर शहर बनाते थे। स्टेट टाइम में पन्ना कितना विकसित और समृद्ध था, इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि जब अन्य शहरों में गिनती की बसें चला करतीं थी, तब पन्ना से दिल्ली के लिये डेकोरा विमान की नियमित सेवा संचालित थी। घने जंगलों और विंध्य पर्वत श्रंखला की गौद में बसे इस सुंदर शहर मित्र राजाओं एवं अंग्रेज अफसरों के भ्रमण को सुगम बनाने के लिये महाराज यादवेन्द्र सिंह ने पन्ना के नजदीक सकरिया में 1929 में विशाल हवाई पट्टी का निर्माण कराया था। इसे विडम्बना ही कहा जायेगा कि रियासत काल में जिस हवाई पट्टी पर विमान उतरते रहे हैं, आज वहां धूल के गुबार उड रहे हैं। सरकारों की घोर उपेक्षा से सकरिया हवाई पट्टा अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है। पन्ना से करीब 10 किलोमीटर दूर सतना मार्ग पर एनएच-39 के किनारे कई हेक्टेयर में फैली सकरिया हवाई पट्टी का अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है। समय के थपेड़ों की मार से ध्वस्त हो चुके एयरपोर्ट भवन और हवाई पट्टी के सपाट मैदान और कटीली झाड़ियों से पट चुका सपाट मैदान ही अब यहां शेष है। अपनी दुर्दशा पर आंसु बहा रही इस प्राचीन हवाई पट्टी के बारे में पन्ना की युवा पीढ़ी अनभिज्ञ है। इसकी बदहाली देखकर उन नाकारा जनप्रतिनिधियों को जी भरकर कोसने का मन होता है, जोकि कई सालों तक कभी हवाई पट्टी के शुरू होने तो कभी शासन द्वारा पायलट प्रशिक्षण केन्द्र के रूप में विकसित करने का सब्जबाग दिखाकर वोटों की फसल काटते रहे है। व्यवसायिक विमानन सेवाओं हेतु अथवा पायलट प्रशिक्षण केन्द्र के रूप में ऐतिहासिक सकरिया हवाई पट्टी को विकसित किया जाना, तो दूर स्थानीय जनप्रतिनिधि हवाई पट्टी की गौरवशाली विरासत को भी नहीं संभाल सके। सतना मार्ग पर राष्ट्रीय राजमार्ग 39 के किनारे सकरिया-बहेरा ग्राम के बीच स्थित हवाई पट्टी का नामोनिशान पूरी तरह मिट चुका है। इसका विस्तृत भू-भाग में खरपतवार, कटीली झाड़ियों और घास से पट चुका है। घोर उपेक्षा और बदहाली के चलते बर्बाद हो चुकी सकरिया हवाई पट्टी को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि वहां कभी सर्वसुविधा युक्त हवाई पट्टी रही है। बुजुर्ग यदि ना बतायें तो पन्ना की युवा पीढ़ी को इसके बारे में पता भी ना चले। पन्ना की राजसी वैभव, स्वर्णिम इतिहास और रियासत काल में पन्ना के विकास से जुड़ी इस महत्वपूर्ण धरोहर को संरक्षित करने अथवा समय के साथ इसे विकसित करने में जिम्मेदारों ने कोई रूचि नहीं ली। कतिपय उम्रदराज लोगों का मानना है कि सकरिया हवाई पट्टी को लेकर हमारे जनप्रतिनिधि यदि जरा भी संजीदा होते तो शायद खजुराहो में स्थित हवाई अड्डा सकरिया में होता। पन्ना के विकास को एक महत्वपूर्ण आयाम देने में सक्षम इस धरोहर को सहेजने में दिलचस्पी न लेने के लिए किसी एक जनप्रतिनिधि को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है। अपितु पन्ना विधानसभा क्षेत्र से अब तक जितने भी विधायक अथवा इस संसदीय क्षेत्र से जिस भी दल के सांसद निर्वाचित हुये वे सभी इस मामले में बराबर के दोषी है।

शिकार करने आते थे राजा-महाराजा

सकरिया हवाई पट्टी

सकरिया हवाई पट्टी के संबंध में पन्ना राज परिवार के वरिष्ठ सदस्य एवं पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह ने रडार न्यूज से अनौपचारिक चर्चा में बताया कि उनके दादा महाराजा यादवेन्द्र सिंह ने अपने साले जयपुर महाराजा मान सिंह के कहने पर इसका निर्माण कराया था। रियासत काल में और आजादी के शुरूआती कुछ दशकों तक सकरिया की हवाई पट्टी पूर्णतः विकसित रही है। श्री सिंह के अनुसार उन्हें अच्छी तरह याद है कि जब वे किशोर अवस्था में थे, तब पन्ना नरेश महाराज यादवेन्द्र सिंह के समय  मित्र अतिथि रियासतों के राजा-महाराजा बाघ का शिकार करने के लिये निजी विमान से सकरिया हवाई पट्टी पर उतरते थे। वे जब तक पन्ना में ठहरते थे तब तक सकरिया हवाई पट्टी में ही उनके विमान खड़े रहते थे। बकौल श्री सिंह सकरिया हवाई पट्टी उस दौर में काफी प्रसिद्ध थी क्योंकि उस समय आसपास इतनी वृहद और विकसित हवाई पट्टी कहीं नहीं थी। पन्ना से सांसद और विधायक रहे लोकेन्द्र सिंह सकरिया हवाई पट्टी की बदहाली को लेकर नाराज हैं। उनकी मांग है कि सकरिया हवाई पट्टी को पुर्न निर्माण कराकर यहां पायलेट ट्रेनिंग इंस्टीयूट प्रारंभ किया जाये।

पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह

विमान से ले गये थे बाघ

पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह ने सकरिया हवाई पट्टी की चर्चा के दौरान एक किस्सा सुनाते हुए बताया कि पन्ना नरेश यादवेन्द्र सिंह के साले जयपुर महाराजा मान सिंह एक बार बाघों का शिकार करने के लिये छोटे विमान से पन्ना आये। यहां के जंगलों में उनके द्वारा एक बाघ का शिकार किया गया। महाराजा मान सिंह मृत बाघ को निशानी के रूप में अपने महल जयपुर ले जाने के लिये एक बडा विमान बुलाया। उस दिन सकरिया की हवाई पट्टी से चंद मिनट के अंतर्राल में दो विमानों ने उडान भरी थी, जिसे देखने के लिये सैंकडों लोग जमा हुए थे। आप ने बताया कि बडे विमान में महाराजा मान सिंह के साथ पन्ना राज परिवार के सदस्य भी जयपुर गये थे।

मिढासन डायवर्सन में डूबे 33 करोड़

भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा पन्ना को पंजाब बनाने का सपना

25 से बढ़ाकर 64 करोड़ की लागत, 33 करोड़ खर्च करने के बाद निरस्त की योजना

पन्ना। राडर न्यूज सूखा की त्रासदी झेलने वाले बुंदेलखण्ड अंचल में सिंचाई योजनाओं पर पानी की तरह पैसा बहाया गया, लेकिन इससे कोई खास लाभ होता नहीं दिख रहा है। कारण  सिंचाई योजनाओं के निर्माण में व्यापक पैमाने पर धांधली होना है। अंचल के पन्ना जिले में सिंचाई का रकवा बढ़ाने के नाम पर हुआ भ्रष्टाचार किसी से छिपा नहीं है। पिछले कुछ सालों में यहां तकरीबन 1 अरब की लागत के सिंचाई जलाशयों के फूटकर बहने से पन्ना का जल संसाधन विभाग भ्रष्टाचार को लेकर प्रदेश व देश में काफी बदनाम हो चुका है। जीरो टाॅलरैंस का दम भरने वाली शिवराज सरकार की नाक के नीचे सरकारी धन को लूटकर तकनीकी अधिकारियों व ठेकेदारों भ्रष्ट गठबंधन ने अपनी तिजोरी भरने का काम किया है। मिढ़ासन डायवर्सन लघु सिंचाई योजना इसका एक उदाहरण मात्र है। 25 करोड़ की इस सिंचाई योजना की लागत अप्रत्याशित तरीके से बढ़ाकर 64 करोड़ की गई और फिर 33 करोड़ खर्च करने के बाद जिस तरह अचानक योजना को स्थगित कर दिया गया उससे कई सवाल उठ रहे हैं। इस सिंचाई योजना का काम करीब साल भर से बंद पडा है। 33 करोड खर्च करने के बाद योजना को अघोषित तौर पर निरस्त करने से शीर्ष तकनीकी अधिकारियों के फैसले से उनकी भूमिका भी सवालों के घेरे में हैं। योजना की पूर्व स्वीकृत लागत बढ़ाकर 64 करोड़ करने की स्वीकृति मिलना और योजना के कार्य को बीच में ही निरस्त किये जाने से इस महात्वकांक्षी प्रोजेक्ट में शुरूआती स्तर से ही व्यापक पैमाने पर घालमेल होने के साफ संकेत मिलते हैं।

गलती छिपाने बढ़ाया बजट

पन्ना जिले की अमानगंज तहसील अंतर्गत करीब दर्जनभर गांवों की 1793 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित करने के लिए बनाई गई मिढ़ासन डायवर्सन लघु सिंचाई योजना को मध्यप्रदेश शासन जल संसाधन विभाग भोपाल द्वारा 30 अप्रैल 2011 को 24 करोड़ 97 लाख की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की गई।  स्थल की वास्तविकता से अनभिज्ञ तकनीकी अधिकारियों ने ए.सी. चैंबर में बैठकर रातों-रात सिंचाई योजना का डीपीआर तैयार करने से लेकर संपूर्ण स्वीकृत राशि निर्माण तथा भू-अर्जन पर व्यय कर दी। तब जाकर उन्हें अहसास हुआ कि निर्मित संरचना से सिंचाई होना संभव नहीं है। करीब 25 करोड़ की राशि के खर्च का औचित्य साबित करने और अपने पापों को छिपाने के लिए तकनीकी अधिकारियों ने एक बार फिर आंकड़ों का घालमेल करके योजना का पुनरीक्षित प्रस्ताव 62 करोड़ का तैयार कर भोपाल भेज दिया। पन्ना से वाया सागर होते हुये भोपाल तक सेटिंग के चलते औपचारिक परीक्षण के बगैर मिढ़ासन डायवर्सन सिंचाई योजना के पुनरीक्षित प्रस्तावनुसार कार्य की लागत एक ही झटके में 25 से बढ़ाकर 62 करोड़ किये जाने संबंधी प्रशासकीय स्वीकृति 25 मार्च 2017 को जारी कर दी गई। यहां गौर करने वाली बात यह है कि लागत बढ़कर ढाई गुना से अधिक होने पर भी मिढ़ासन सिंचाई योजना की पूर्व रूपांकित सिंचाई क्षमता 1793 हेक्टेयर में मामूली से वृद्धि के साथ 1886 हेक्टेयर हो गई अर्थात् सिंचाई योजना की पुनरीक्षित लागत के अनुपात में रूपांकित सिंचाई लागत की वृद्धि नाम मात्र की ही रही। इसको इस तरह भी समझा जा सकता हैं कि मिढ़ासन डायवर्सन सिंचाई योजना की पूर्व लागत 2497 लाख से 1793 हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचित होनी थी। लगभग 6 साल बाद वर्ष 2017 में इसकी लागत बढ़कर ढ़ाई गुना से अधिक 62 करोड़ 41 लाख रूपये हो गई। जबकि रूपांकित सिंचाई क्षमता मात्र 93 हेक्टेयर की वृद्धि के साथ 1886 हेक्टेयर के आंकड़े तक ही पहुंच पाई। बावजूद इसके अप्रत्याशित रूप से सिंचाई योजना की लागत बढ़ाकर 62 करोड़ करने की मंजूरी दे दी गई। सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करके कृषि के मामले में पन्ना को पंजाब बनाने का सब्जबाग दिखाकर सिंचाई योजनाओं के निर्माण में किस कदर अनिमित्ताएं की गई, मिढ़ासन सिंचाई योजना इसका एक नमूना मात्र है।

भ्रष्टाचार का स्मारक बनी योजना

इस योजना पर करीब 33 करोड़ 45 लाख की राशि भू-अर्जन तथा निर्माण कार्य पर खर्च करने के बाद मुख्य अभियंता धसान केन कछार जल संसाधन विभाग सागर ने इसे फिलहाल स्थगित कर दिया है। फलस्वरूप मिढ़ासन डायवर्सन योजना का कार्य साल भर से ठप्प पड़ा है। जल संसाधन विभाग के अंदरखाने इस फैसले को लेकर ऐसी चर्चा है कि 25 करोड़ खर्च होने के बाद निर्मित संरचना से सिंचाई हो पाना व्यवहारिक तौर पर संभव ही नहीं था। अगर 62 करोड़ भी खर्च कर दिये जाते तो भी खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाता। सालभर से आधी-अधूरी पड़ी मिढ़ासन डायवर्सन सिंचाई योजना जल संसाधन विभाग में विभिन्न स्तर पर हुये भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े का स्मारक बन चुकी है। इसकी गहन पड़ताल करने पर पता चलता है कि शासन-प्रशासन में जवाबदेही के आभाव में अंधेरगर्दी किस कदर हावी है।

जंगल के ‘‘हरे सोने‘‘ से होगी 30 करोड़ की कमाई

पन्ना को मिला 62 हजार मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहण का लक्ष्य

जिले की 32 वनोपज समितियों के तेंदूपत्ता की हुई अग्रिम नीलामी

पन्ना। रडार न्यूज जंगल का हरा सोना कहलाने वाले तेंदूपत्ता संग्रहण से इस बार पन्ना जिले को करीब 30 करोड़ का राजस्व मिलने का अनुमान है। वनोपज संघ भोपाल से जिले को वर्ष 2018 के लिए 62 हजार मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहण का टारगेट मिला है। जिसमें उत्तर वन मण्डल पन्ना के लिए तेंदूपत्ता संग्रहण हेतु 40500 मानक बोरा का लक्ष्य प्राप्त हुआ है। जबकि दक्षिण वन मण्डल के लए 21500 मानक बोरा का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। कई वर्ष बाद शासन द्वारा तेंदूपत्ता संग्रहण की दर 1250/- रूपये प्रति रूपये मानक बोरा से बढ़ाकर इस साल 2000/- रूपये प्रति मानक बोरा स्वीकृति की गई है। चुनावी वर्ष में संग्रहण दर में हुई भारी वृद्धि से संग्राहकों में खुशी की लहर देखी जा रही है। इसके अलावा संग्राहकों को शासन ने चप्पल, पानी की कुप्पी व महिलाओं के लिए साड़ी वितरित करने का भी ऐलान किया है। संग्रहण दर में हुए इजाफे और सामग्री वितरण के फलस्वरूप वन विभाग के अफसरों को इस साल तेंदूपत्ता का संग्रहण निर्धारित लक्ष्य से अधिक होने की उम्मीद है। लक्ष्य अनुसार तेंदूपत्ता संग्रहण की पूर्ति हेतु जिले के दोनों सामन्य वनमण्डलों ने कार्ययोजना तैयार कर प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों के माध्यम से आवश्यक तैयारियां शुरू कर दी हैं। उत्तर वनमण्डल के डीएफओ नरेश कुमार यादव से मिली जानकारी के अनुसार जिला वनोपज यूनियन मर्यादित उत्तर वनमण्डल के अंतर्गत आने वाली सभी 18 प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों के तेंदूपत्ता लाटों की बिक्री गत् वर्षों की तरह इस वर्ष भी अग्रिम निविदा में सम्पन्न हो चुकी है। इस बार भी उत्तर वनमण्डल के तेंदूपत्ता की खरीदी को लेकर इस व्यवसाय से जुड़े लोगों ने खासी दिलचस्पी दिखाई है। उत्तर वनमण्डल की दहलान चैकी समिति के तेंदूपत्ता को सर्वाधिक 5497/- रूपये मानक बोरा की दर से मेसर्स शाहा इंटरप्राईजेज कोलकाता ने खरीदा है। जबकि बनहरीकला समिति के तेंदूपत्ता को सबसे कम 2999/- रूपये प्रति मानक बोरा की दर पर मेसर्स शेषमनी दुबे रीवा मध्यप्रदेश ने क्रय किया है। दक्षिण वनमण्डल की डीएफओ एवं प्रबंध संचालक श्रीमती मीना मिश्रा ने बताया कि जिला यूनियन के अंतर्गत आने वाली 14 समितियों के लाटों की बिक्री अग्रिम निविदा में सम्पन्न हो चुकी है। उल्लेखनीय है कि इस बार दक्षिण वनमण्डल की अमानगंज बफरजोन समिति के तेंदूपत्ता को सर्वाधिक 6008/- रूपये प्रति मानक बोरा की दर पर मेसर्स शांति बीड़ी वक्र्स सतना मध्यप्रदेश ने खरीदा है। अग्रिम निविदा में नीलाम हुये लाटों में शाहनगर समिति के तेंदूपत्ता को सबसे कम 2599/- रूपये प्रति मानक बोरा के मूल्य पर मेसर्स भोला ट्रेडर्स टीकमगढ़ मध्यप्रदेश ने क्रय किया है।

मई में होगी तेंदूपत्ता की तुड़ाई

वनोपज संघ भोपाल के निर्देशानुसार शाखकर्तन सम्पन्न कराया जा चुका है। शाखकर्तन कार्य के अंतर्गत जंगल में तेंदूपत्ता के पेड़ों की झाड़ियों की कांटछांट की जाती है, ताकि बड़ी तादात में नई कोपलें फूटे और गुणवत्तायुक्त तेंदूपत्ता के उत्पादन में वृद्धि संभव हो सके। शाखकर्तन कार्य के 45 दिन बाद तेंदूपत्ता की तुड़ाई (संग्रहण) करने का प्रावधान है। जिसे दृष्टिगत् रखते हुए तेंदूपत्ता का संग्रहण लगभग मई माह के मध्य में प्रारंभ होने की संभावना जताई जा रही है। उत्तर वन मण्डल पन्ना के तेंदूपत्ता शाखा प्रभारी रमेश तिवारी का कहना है कि तेंदूपत्ता संग्रहण कार्य शुरू होना और लक्ष्यपूर्ति मौसम के मिजाज पर निर्भर है। आने वाले दिनों में यदि अच्छी धूप खिली और मौसम अनुकूल रहा तो बीड़ी बनाने के लिए गुणवत्तायुक्त तेंदूपत्ता के बम्फर उत्पादन की उम्मीद की जा सकती है। श्री तिवारी ने बताया कि वर्ष 2017 में तेंदूपत्ता संग्रहण से उत्तर वन मण्डल को करीब 16 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ था। वहीं दक्षिण वन मण्डल ने पिछले साल लगभग 12 करोड़ की कमाई की थी।

धारा – 144, नागरिक अधिकारों पर शिकंजा कसता प्रशासन

बिना किसी ठोस कारण के महीनेभर से लागू है निषेधाज्ञा

पन्ना। रडार न्यूज शांति का टापू कहलाने वाले पन्ना जिले में क्या अमन-चैन खतरे में है, या फिर यहां हालात बिगड़ने की आशंका है। यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि सम्पूर्ण जिले में पिछले कई दिनों से प्रतिबंधात्मक धारा – 144 लागू है। जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस कप्तान के अलावा यह कोई नहीं जानता कि अचानक ऐसी कौन सी मुश्किल आन पड़ी कि सम्पूर्ण जिले में निषेधाज्ञा लागू कर दी गई। जबकि पूर्व में ऐसी कोई घटना भी नहीं हुई, जिसके मंद्देनजर यह फैसला लेने की आवश्यकता पड़ी। कानूनी रूप से देखें तो प्रतिबंधात्मक धारा-144 लगाने का यही ठोस आधार है। पन्ना जिले में किसी तरह की कोई भी गंभीर परिस्थिति नहीं हुई, इसके बाद भी सीआरपीसी की धारा-144 को महीनेभर के लिए लागू किये जाने के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है। क्या किसी जिले में महीनेभर तक निषेधाज्ञा (धारा-144) लागू रहने से उस जिले की छवि धूमिल नहीं होती ? अन्य स्थानों पर रहने वाले लोगों के मन में इस फैसले से पन्ना और यहां के लोगों को लेकर नकारात्मक धारणा क्या नहीं बनेगी ? इससे पन्ना के लोगांे की आपसी समझ, व्यवहार, और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना और कानून के प्रति उनके सम्मान को लेकर क्या सवाल नहीं उठेगें ? लेकिन इन सब बातों की परवाह किसे है। सोशल मीडिया पर रातदिन ज्ञान बांटने वाले विद्वान भी बड़ी ही चतुराई के साथ अपने एजेण्डे को आगे बढ़ाने में लगे है। नेतागणों को तो एक-दूसरे को निपटाने की रणनीति बनाने या फिर उज्जवल भविष्य की शुभकानायें देकर कोरी नेतागिरी चमकाने से फुर्सत नहीं है। जनप्रतिनिधि अर्जुन की तरह टिकिट पर निशाना साधे हुए है। इसके अलावा उन्हें कुछ दिखाई और सुनाई नहीं दे रहा है। इन सबके बीच वह आम इंसान है, जोकि दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद करते और भ्रष्ट व्यवस्था में छोटे-छोटे कामों के लिए दर-दर भटक रहा है। उसे इस बात की खबर ही नहीं है, कि सत्ता लोभी सरकारें उस पर नियंत्रण पाने के लिए किस हद तक अलोकतांत्रिक तरीके अपना रही है। धारा-144 को महीनेभर तक सम्पूर्ण जिले में लागू करना इसकी एक बानगी मात्र है। विदित हो कि विशेष परिस्थितियों में हिंसात्मक अथवा विध्वंसक गतिविधियों को रोककर पुनः शांति एवं व्यवस्था स्थापित करने के लिए इस धारा को लागू किया जाता है। जिम्मेदारों को आगे आकर यह स्पष्ट करना चाहिए कि उनके द्वारा पन्ना में धारा-144 लागू करने का निर्णय आखिर किस आधार पर लिया गया है। बिना किसी उचित कारण के प्रतिबंधात्मक धारा लगाकर जिला प्रशासन कहीं नागरिक अधिकारों का अतिक्रमण नहीं कर रहा है, या फिर आम आदमी की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने की मंशा से ऐसा किया गया है। इस आशंका यदि जरा भी सच्चाई तो क्या यह तंत्र द्वारा सुनियोजित तरीके से जन के मूलभूत अधिकारों का हनन नहीं है ?

क्या है धारा-144

न्यूज चैनलों और समाचार पत्रों में हम अक्सर ही यह सुनते – पढ़ते रहते है कि प्रशासन ने शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए सीआरपीसी की धारा-144 लगा दी है। कहीं भी, किसी भी शहर में हालात बिगड़ने की संभावना या फिर किसी बड़ी घटना के बाद धारा-144 लगाई जाती है। इस धारा को तत्काल प्रभाव से लागू करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट यानि जिलाधिकारी एक नोटिफिकेशन जारी करता है। जिस जगह भी यह धारा लगाई जाती है, वहां चार या उससे ज्यादा लोग इकट्ठे नहीं हो सकते। इस धारा के लागू होने के साथ उस स्थान पर हथियार लेकर आने-जाने पर भी रोक लग जाती है।

क्या है सजा का प्रावधान

सीआरपीसी की धारा-144 का उल्लंघन करने पर संबंधित व्यक्ति को पुलिस गिरफतार कर सकती है। उस व्यक्ति पर धारा-107 या धारा 151 के तहत् कार्यवाही की जा सकती है। इस मामले में अभियुक्त को एक साल कैद की सजा भी हो सकती है। वैसे यह जमानती अपराध है इसमें जमानत हो जाती है। निषेधाज्ञा के उल्लंघन में पुलिस सबंधित व्यक्ति को उठाकर किसी अन्य स्थान में भी पहुंचा सकती है और जिस इलाके में निषेधाज्ञा लगी हो, वहां आने नहीं देती है। निषेधाज्ञा के उल्लंघन पर पुलिस कई बार आईपीसी की धारा-188 (सरकारी आदेश का न मानना) के तहत् केश दर्ज करती है। ऐसे मामले में कैद और जुर्माना दोनों का प्रावधान है।

विरोध को दबाने का अस्त्र

पन्ना जिले में जिस तरह से वर्तमान में और पहले धारा-144 को लम्बे समय तक अकारण प्रभावशील रखा गया, उसे कुछ लोग इसके दुरूपयोग के तौर पर देख रहे है। आम आदमी पार्टी नेता पवन जैन का कहना है कि प्रदेश में आसन्न विधानसभा चुनाव को दृष्टिगत हुए विभिन्न कर्मचारी संगठन एवं विपक्षी दल व नागरिक संगठन अपनी मांगों को लेकर जिस तरह आवाज उठा रहे है, उससे प्रदेश सरकार अत्यंत ही भयभीत है। विरोध में उठते इन स्वरों को दबाने के लिए तथा जन असंतोष को किसी भी रूप में प्रदर्शित न होने देने के लिए ही धारा-144 को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए नागरिकों की स्वतंत्रता और लोकतांत्रितक अधिकारों को बुरी तरह कुचला जा रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता एवं आयोग मित्र सुदीप श्रीवास्तव का मानना है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों को सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से धरना-प्रदर्शन करने का अधिकार है। इन्हें जनभावना की अभिव्यक्ति के तौर पर देखा जाता है, लेकिन भ्रष्ट और निरंकुश सरकारें यह कभी नहीं चाहते की लोग अपना विरोध दर्ज करायें। इसलिए तरह-तरह के हथकण्डे अपनाकर सत्तासीन नागरिकों के अधिकारों को नियंत्रित करते रहते हैं।

किस खतरे का है अंदेशा

बुन्देलखण्ड अंचल के अतिपिछड़े पन्ना जिले के नागरिकों की शांतिप्रियता और सहनशीलता की मिशाल दी जाती है। यहां कभी इस तरह का बबाल नहीं होता है, कि जिससे शांति या कानून व्यवस्था खतरे में पड़ जाये। यहां के लोग इतने आत्मसंतोषी है, कि अपने हितों पर बार-बार कुठाराघात होने के बाद भी आंदोलित नहीं होते। शासन-प्रशासन की घोर उपेक्षा और तमाम समस्याओं से जूझते लोग शिकायत तो करते है, पर सड़कों पर कभी नहीं उतरते। शायद इन्हीं सब खूबियों के चलते पन्ना जिले को शांति का टापू कहा जाता है। महत्वपूर्ण सवाल यह है कि शांति के इस अभूतपूर्व महौल में प्रशासन को यहां किस तरह की घटना का अंदेशा है, जिसकी रोकथाम के लिए सम्पूर्ण जिले में महीनेभर तक धारा 144 लागू की गई है। जिला मजिस्ट्रेट को यह बताना चाहिए कि धारा-144 लगाने की वजह आखिर क्या है। क्योंकि सवाल पन्ना और यहां के लोगों की शांतिप्रिय छवि व नागरिक अधिकारों की स्वतंत्रता से जुड़ा है।

इनका कहना है….

मैंने अभी तक धारा 144 लागू होने वाला आदेश नहीं देखा कि किन कारणों से उक्त आदेश लागू किया गाय है। यद्यपि बिना न्यायोचित कारण के किसी भी तरह का प्रतिबंधक आदेश का लागू रहना असंवैधानिक तथा तर्कसंगत नहीं हैं।

एस. ऋतम खरे, अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली

मिशन-2018 : सियासी हितों के टकराव से दरकने लगे रिश्ते

पन्ना। रडार न्यूज मिशन 2018 की सियासी सरगर्मी बढ़ने के साथ पन्ना का राजनैतिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। यह समय संभवतः जिले के कुछ राजनैतिक परिवारों के लिए काफी कठिन और चुनौती पूर्ण है। कांग्रेस और भाजपा से सम्बद्ध कुछ राजनैतिक परिवारों के सदस्यों के बीच सियासी महत्वकांक्षा हिलोरे मार रही है, जिससे रिश्तों में दूरियां बढ़ने लगी है। सत्ता हांसिल करने या फिर उसे अपनों से बचाये रखने के लिए कुनबों के बीच संघर्ष नया नहीं है यह आदिकाल से चला आ रहा है। पन्ना जिले के राजनैतिक पटल पर पिछले कुछ समय जो कुछ चल रहा, उस पर यदि नजर दौड़ाये तो उन नेताओं के चेहरे आखों के सामने आने लगते है, जिनकी दावेदारी को घर में ही चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। बेशक विधानसभा चुनाव के लिए अभी कुछ महीने शेष लेकिन टिकिट को लेकर इन दोनों ही दलों में लाबिंग अभी से शुरू हो गई है। इससे बिगड़े रिश्तों के बीच कुछ दिलचस्प समीकरण भी बनते दिख रहे है।

कांग्रेस के कुनबे इनके बीच कलह

जिले के तीनों विधानसभा क्षेत्रों में से पन्ना सीट से भाजपा और कांग्रेस में टिकिट के सर्वाधित दावेदार बताये जा रहे है। मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी ने कुछ समय पहले टिकिट को लेकर विधानसभावार आवेदन पत्र आमंत्रित किये थे, जिससे इसकी पुष्टी होती है। कांग्रेस में इस बार पन्ना विधानसभा सीट से छंगे राजा परिवार के तीन सदस्य दावेदार के रूप में सामने आये है। जिनमें जिला पंचायत पन्ना के सदस्य केशव प्रताप सिंह, इनके सगे छोटे भाई पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष उपेन्द्र प्रताप सिंह व चचेरे भाई ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह पूर्व सचिव मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी शामिल है। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष उपेन्द्र प्रताप का कहना है कि उनके दोनों बड़े भाई पार्टी के लिए योग्य उम्मीदवार नहीं हो सकते, क्योंकि उनका आम आदमी से कोई जुडाव नहीं है। उनकी दलील है कि बड़े भाई केशव प्रताप सिंह की पत्नी दिव्यारानी सिंह अध्यक्ष जिला कांग्रेस कमेटी पन्ना को वर्ष 2003 में कांग्रेस ने पवई विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया था। इस चुनाव में कांग्रेस को शर्मनाक हार झेलनी पड़ी थी, उन्हें गोड़वाना गणतंत्र पार्टी से भी कम वोट मिले थे। श्री सिंह का मानना है कि इसका मुख्य कारण उनके भैया-भाभी राजनीति में तो है लेकिन उनका दायरा बहुत ही सीमित है। गौरतलब है कि केशव प्रताप सिंह वर्तमान में पन्ना विधानसभा क्षेत्र के तराई अंचल से जिला पंचायत के सदस्य है। केशव प्रताप सिंह एवं उपेन्द्र प्रताप सिंह के चचेरे भाई ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह पिछले कुछ सालों से अजयगढ़ क्षेत्र में काफी सक्रिय है। वे इस बार भी मजबूती के साथ पन्ना सीट से टिकिट की दावेदारी कर रहे है। उपेन्द्र प्रताप का कहना है कि ज्ञानेन्द्र सिंह का अजयगढ़ क्षेत्र में खनन का कारोबार फैला है, इसलिए वे अजयगढ़ आते-जाते है। इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं कि क्षेत्र के लोगों से उनका जीवंत सम्पर्क है। मजेदार बात यह है कि उपेन्द्र प्रताप के भाई भी उनके जिला पंचायत अध्यक्ष पद से हटने के बाद से पार्टी और क्षेत्र में बिल्कुल भी सक्रीय न होने के आरोप लगाते हुए उन्हें सबसे कमजोर दावेदार मानते है।

महदेले की विरासत का किसका दावा मजबूत

शिवराज सरकार की वरिष्ठ मंत्री सुश्री कुसुम सिंह मेहदेले उम्र की 75वीं दहलीज पर खड़ीं है। भाजपा नेतृत्व ने पुराने फार्मूले के तहत् पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और सरताज सिंह की तरह मेहदेले को यदि आगामी विधानसभा चुनाव मंे टिकिट नहीं दिया तो उनकी राजनैतिक विरासत का उत्तराधिकारी कौन होगा। यह सवाल पिछले कुछ समय से जिले के सियासी हलकों में गूंज रहा है। 75 के फेर में फंसने के मद्देनजर मंत्री मेहदेले ने अपने अनुज भ्राता आशुतोष सिंह महदेले का नाम आगे बढ़ाया है। वे अपने करीबियों से भी आशुतोष को लेकर अपनी मंशा जाहिर कर चुकी है। मंत्री महदेले की राजनैतिक विरासत के आशुतोष स्वाभाविक उत्तराधिकारी है। क्योंकि मंत्री मेहदेले के करीब 4 दशक से अधिक के राजनैतिक सफर के दौरान आशुतोष छाया की तरह हर समय उनके साथ रहे है। इसके अलावा भाजपा में भी सक्रीय रहते हुए उन्होंने अहम संगठनात्मक जिम्मेदारियों का निर्वाहन किया है। लेकिन पिछले कुछ समय से जिस तरह मंत्री महदेले की भाभी नर्मदा मेहदेले और उनके पुत्र युवा नेता पार्थ मेहदेले का नाम बीच-बीच में उछल रहा है, उससे टिकिट के पहले परिवार के अंदर देवर-भाभी और भतीजे के बीच खींचतान की चर्चाओं को बल मिल रहा है। पिछले साल भोपाल से प्रकाशित एक अखबार में पार्थ महदेले का फोटो और नाम छपने के साथ पन्ना मंे प्रत्याशी को लेकर चल रहे विभिन्न सर्वे में आशुतोष महदेले के साथ उनके भतीजे का नाम शामिल होने से सफरबाग के अंदर सियासी हितों के टकराव को अनदेखा करना मुश्किल है। अच्छी बात यह है कि परिवार की प्रतिष्ठा और रिश्तों की मर्यादा को ध्यान रखते हुए महदेले परिवार के सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ कोई बात नहीं करते। चर्चा यह भी है कि 75 पार का नियम आगामी विधानसभा चुनाव में यदि शिथिल होता है तो जाहिर है कि भाजपा की ओर से मंत्री सुश्री कुसुम महदेले ही पुनः उम्मीदवार होगीं।

दीक्षित परिवार में भी टेंशन

पन्ना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के पूर्व प्रत्याशी रहे सुधाकर दीक्षित के परिवार में भी सबकुछ सामन्य नहीं है। दरअसल यहां भी टिकिट को लेकर उनके ज्येष्ठ पुत्र शशिकांत दीक्षित अध्यक्ष किसान कांग्रेस पन्ना और भतीजे श्रीकांत दीक्षित पप्पू महामंत्री जिला कांग्रेस कमेटी पन्ना के बीच टेंशन कम नहीं है। इसकी वजह विधानसभा चुनाव के ऐन पहले श्रीकांत दीक्षित की तेजी से बढ़ती सक्रीयता है। जिसने सरदार जी यानि शशिकांत को सकते में ला दिया है। श्रीकांत जहां अपने पिता स्वर्गीय भास्कर दीक्षित पूर्व अध्यक्ष जिला कांग्रेस कमेटी पन्ना की राजनैतिक विरासत को संभालने के लिए आतुर है। पेशे से खनन कारोबारी श्रीकांत ने हाल ही में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का सम्मान करने के बाद किसान मजदूर सम्मेलन के जरिये अघोषित शक्ति प्रदर्शन करके अपने अनुज समेत टिकिट के अन्य दावेदारों की चिंता में डाल दिया है। यह बात अलहदा है कि किसान सम्मेलन में श्रीकांत मंच से चुनाव न लड़ने का ऐलान कर चुके है। राजनीति की बिसात पर जिस तरह से एक के बाद एक दांव चल रहे है, उससे शायद ही किसी को उनके ऐलान पर भरोसा होगा। स्थानीय स्तर पर सोशल मीडिया में सुयोग्य दावेदार को लेकर चल रहे प्रयोजित आॅनलाईन सर्वे में श्रीकांत दीक्षित पप्पू का नाम आने से विरोधाभास पैदा हो रहा है। किसान नेता शशिकांत दीक्षित अपने चचेरे बड़े भाई श्रीकांत को प्रत्याशी बनाये के सवाल पर सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कहते, लेकिन इसारों में वे तीखे व्यंग करते हुए कहते है कि उम्मीदवार की आर्थिक हैसियत से उसकी लोकप्रियता का आंकलन करना गलत है।

मामा-भांजे में बढ़ी तकरार

मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी में हुए हालिया फेरबदल के बाद सांसद कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष बनने से पन्ना विधानसभा सीट से अजयगढ़ के जनपद अध्यक्ष भरतमिलन पाण्डेय की टिकिट को लेकर उम्मीदें बढ़ गई है। कमलनाथ के कैम्प से खुद को अकेला सिपाही बताने वाले भरतमिलन पाण्डेय पिछले कुछ समय से अपने सगे मामा सुखदेव मिश्रा की गतिविधियों को लेकर चिंतित है। कुछ समय पूर्व पन्ना के प्रवास पर आये विधायक जयवर्धन सिंह का अजयगढ़ में सुखदेव मिश्रा ने अपने निज निवास पर भव्य स्वागत किया था। इसके पहले प्रदेश कांग्रेस प्रभारी दीपक वाबरिया के पन्ना दौरे के समय भी श्री मिश्रा काफी सक्रीय रहे है। मामा-भांजे में पंचायत चुनाव के बाद से अदावत चल रही है। इस बीच अजयगढ़ के कांग्रेस नेता जिस तरह से सुखदेव मिश्रा के समर्थन में खुलकर आये है उससे भरतमिलन पाण्डेय की दावेदारी को घाटी के नीचे उनके घर से ही चुनौती मिलती दिख रही है।

वर्मा बंधुओं ने बढ़ाई सक्रियता

जिले की आरक्षित विधानसभा सीट गुनौर से टिकिट को लेकर पूर्व विधायक राजेश वर्मा की पिछले कुछ समय से सक्रीयता बढ़ गई है। विधानसभा क्षेत्र का नियमित रूप से दौरा करने और अपने स्तर पर जन समस्याओं का निराकरण कराने के साथ ही वे भाजपा संगठन की ओर से सौंपे जाने वाले दायित्वों का पूरी संजीदगी के साथ निर्वाहन करने में जुटे है। दूसरी तरफ कांग्रेस से उनके बड़े भाई सूर्यप्रकाश वर्मा ने भी गुनौर से कांग्रेस के टिकिट के लिए आवेदन किया है। जिला कांग्रेस कमेटी पन्ना कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे सूर्यप्रकाश को गुनौर विधानसभा का प्रभारी भी बनाया गया है। अमानगंज (गुनौर) सीट से भाजपा के विधायक रहे, स्वर्गीय गनेशी लाल वर्मा के दोनों पुत्र राजेश और सूर्यप्रकाश पिता की विरासत और अपने सम्पर्कों के भरोसे मिशन 2018 में सियासी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने में जुटे है। पिता के निधन के बाद से ही इन दोनों भाईयों के रिश्ते सामान्य नहीं है। आपसी बातचीत में वे एक-दूसरे के खिलाफ आरोप लगाते रहे है।

खुशीराम की खुशी हुई गायब

गुनौर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का सपना संजोये बैठे लुहरगांव के प्रजापति बंधु किसी परिचय के मोहताज नहीं है। खुशीराम प्रजापति कांग्रेस पार्टी में विगत 10 वर्षों से लगातार सक्रिय है। वहीं उनके छोटे भाई और पेशे से शिक्षक सीताराम प्रजापति को इस बार कांग्रेस से टिकिट के योग्य दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। पार्टी से टिकिट की ख्वाहिश खुशीराम भी रखते है। लेकिन छोटे भाई की लोकप्रियता और राजनैतिक सम्पर्क को दृष्टिगत रखते हुए उनकी खुशी संकोच के द्वंद में फंसी है। चुनावी समर के नजदीक आने के साथ ही खुशीराम की उलझन बढ़ती जा रही है। एक तरफ छोटा भाई सीताराम है तो दूसरी तरफ सियासी तमन्ना मचल रही है। दर्द ऐसा है जो छुपाया भी न जाये और बताया भी न जाये।

हिम्मत और रणमत में किसकी खुलेगी किस्मत

आरक्षित गुनौर विधानसभा सीट से इस बार भाजपा के एक और पूर्व विधायक काशी बागरी के बेटे हिम्मत बागरी और रणमत सिंह बागरी संजू क्रमशः कांग्रेस और भाजपा से टिकिट के दावेदार है। स्वर्गीय श्री बागरी के बड़े बेटे हिम्मत बागरी ने पिछले साल वर्ष 2017 में अप्रत्याशित निर्णय लेते हुए कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। हिम्मत की इस हिम्मत को हिमाकत के रूप में देख रहे उनके छोटे भाई रणमत खासे नाराज चल रहे है। पिता की राजनैतिक विरासत के उत्तराधिकार को लेकर दोनों भाईयों के बीच गहरे मतभेद उभरने से दूरियां काफी बढ़ चुकी है। चुनाव के करीब आने तक रिश्तों की खाई और गहरी होने के अंदेशे से इंकार नहीं किया जा सकता।

चाचा-भतीजे में भी टिकट की होड़

पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष भास्कार देव बुंदेला के परिवार में भी पन्ना विधानसभा से टिकट को लेकर अंदर ही अंदर खींचतान मची है। चुनाव से पहले बुंदेला परिवार में टिकट को लेकर चाचा-भजीते खुलकर आमने-सामने हैं। श्री बुंदेला के भतीजे युवा नेता मार्तण्ड देव बुंदेला भी टिकट मजबूत दावेदारों में शुमार हैं। मालूम हो कि मार्तण्ड देव बुदेला की पत्नि पन्ना जनपद की अध्यक्ष रहीं हैं। अन्य दावेदारों से पहले घर में ही चुनौती मिलने से वरिष्ट नेता भास्कार देव बुंदेला अपने लिये समर्थन जुटाने की कवायत तेज करते हुए दूसरे खेमांे से मेलजोल बढा रहे हैं। चाचा की इस रणनीति को भांपते हुए मार्तण्ड ने भी अपने लिये नये साथी तलाश कर लिये हैं। अब देखना यह है कि टिकट की दौड में चाचा भतीजे में से किसकी जीत होती है, या फिर कोई और बाजी मारता है।