कमलनाथ को पीसीसी अध्यक्ष बनाये जाने पर नेत्र शिविर का हुआ आयोजन

अजयगढ़ –  रडार न्यूज़  पूर्व कैबिनेट मंत्री कमलनाथ को मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाये जाने पर अजयगढ़ के कांग्रेसजनों ने सद्गुरू नेत्र चिकित्सालय जानकी कुंड चित्रकूट के तत्वाधान में एवं दिवंगत कांग्रेस नेता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. देवीदयाल पाठक स्मारक संस्थान के विशेष सहयोग से निःशुल्क नेत्र परीक्षण शिविर का आयोजन किया गया। शिविर में नेत्र रोगियों के नेत्रों का परीक्षण नेत्र सहायक विकास त्रिपाठी ने किया। मोतियाबिन्द से पीड़ित रोगियों को निःशुल्क वाहन द्वारा निःशुल्क आॅपरेशन के लिये जानकी कुण्ड नेत्र चिकित्सालय चित्रकूट भेजा गया। नेत्र रोगियों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. देवीदयाल स्मारक संस्थान के अध्यक्ष श्रीराम पाठक ने स्वल्पाहार करा कर रवाना किया। उन्होंने बताया कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने से पूरे प्रदेश के कांग्रेसजनों में उत्साह एवं हर्ष का संचार हुआ है। इस अवसर पर ब्लाॅक कांग्रेस अध्यक्ष राकेश गर्ग, रामेश्वर प्रसाद खरे, मोहम्मद महमूद, आशीष जड़िया, बंटी गोस्वामी, विक्की शिवहरे, देशराज पटेल सहित कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे।

निर्दयी पिता ने 3 माह की बच्ची को बेरहमी से मार डाला

मासूम के ऊपर पत्थर पटक हत्या की वारदात को दिया अंजाम

मां-बाप के विवाद की बली चढ़ी निर्दोष मासूम

पन्ना। बुन्देलखण्ड अंचल के पन्ना जिले के पवई थाना अंतर्गत एक3 माह की मासूम बच्ची की उसके ही पिता ने पत्थर पटककर बेरहमी से हत्या कर दी। इस स्तब्ध कर देने वाली वारदात के खुलासे  से यह सवाल उठ रहा है कि परिस्थितिया चाहे जैसी भी हो पर कोई पिता इतना भी बेरहम कैसे हो सकता है कि अपनी ही औलाद को कत्ल कर दे। पुलिस के अनुसार आरोपी रामनारायण लोधी निवासी ग्राम सथनिया और उसकी पत्नी के बीच लम्बे समय से जारी विवाद के चलते पत्नी और मासूम बच्ची से पीछा छुड़ाने के लिये निर्दयता की सारी हदें पार करते हुये पत्थर पटकर कर अपनी ही बेटी को मार डाला। पुलिस ने आरोपी पिता रामनारायण लोधी को गिरफ्तार करते हुये न्यायालय के आदेश पर उसे जेल भेज दिया है। मासूम बच्ची के बेरहमी से हत्या करने की यह वारदात   7 मई की है। प्राप्त जानकारी के अनुसार रामनारायण लोधी घटना दिनांक को ग्राम मुड़वारी निवासी अपने मामा गुलजारी लोधी के घर पर आया था। कुछ समय बाद उसकी पत्नी भूरी बाई अपनी मां को लेकर मुड़वारी पहुंच गई, जहां दोनों पति-पत्नी के बीच विवाद हो गया। भूरी बाई इस सबसे इतनी नाराज हुई कि अपनी तीन माह की दुधमुंही बच्ची को पति के पास छोड़कर वापिस घर लौट गई। इस घटनाक्रम के बाद रामनारायण लोधी की मनोदशा ऐसी हो गई कि वह अपनी बेटी और पत्नी से हमेशा के लिए पीछा छुड़ाने के लिए बेटी को मुड़वारी के पहाड़ ले गया। जहां उसने पत्थर पटक कर मासूम को मौत के घाट उतार दिया। अपने इस जघन्य अपराध को छिपाने के लिए रामनारायण ने झूंठी कहानी गढ़ते हुये बताया कि पहाड़ की चढ़ाई के दौरान पैर फिसलने से बच्ची उसके हांथ से छिटक कर पत्थर से टकराई जिससे उसकी मौत हो गई। रामनारायण की बातों पर संदेह होने के आधार पर पुलिस ने जब उसे हिरासत में लेकर सख्ती से पूंछतांछ की तो उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ हत्या का मामला पंजीबद्ध किया है।

आईपीएल सट्टा, सटोरिये के घर से नोट गिनने की मशीन जप्त पर कैश मिले सिर्फ27 हजार रूपये

पुलिस ने 3 स्थानों पर छापामार कार्यवाई कर चार सटोरिया पकड़ाये

पन्ना। जिला मुख्यालय पन्ना में चरम पर चल रहे आईपीएल क्रिकेट सट्टा के खिलाफ पुलिस में तीन अलग-अलग स्थानों पर छापेमारी करते हुये चार सटोरियों को गिरफ्तार करने का दावा किया है। पकड़े गये आरोपियों से पुलिस ने 43500 रूपये, 8 नग मोबाईल फोन, 3 कलर टीव्ही आदि सामग्री बरामद की है। पकड़े गये सटोरियों में फिरोज खान पिता याकूब खान निवासी रानीबाग टगरा, आमिर खान पिता मुस्तफा निवासी रानीगंज मोहल्ला, फिरोज मंसूरी पिता नब्बी मंसूरी निवासी मठ्या तालाब के पास और नामी सटोरिया मुकेश मोदी पिता पुरूषोत्तम लाल मोदी शामिल हैं। पुलिस की छापामार कार्यवाही को लेकर नगर में आम चर्चा है कि यह सिर्फ खानापूर्ति के लिए की गई है। बड़े स्तर पर हाईटेक आईपीएल सट्टा खिला रहे प्रभावशाली सट्टोरियों के खिलाफ कोई कार्यवाही न होने से कोतवाली पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।  मजेदार बात यह है कि छापामार कार्यवाही में पकड़े गये नामी सटोरिया मुकेश मोदी के जैन मंदिर के पीछे रानीगंज मोहल्ला स्थित घर से नोट गिनने की मशीन तो मिली पर नगदी सिर्फ 27500 रूपये ही जप्त हुये हैं। इसके अलावा एक एलसीडी टीव्ही, डीटूएच सेटअप बॉक्स , 30 नग सट्टा पर्ची, एक मोबाईल फोन भी जप्त हुआ है। वहीं पन्ना के समीपी ग्राम टगरा में अपने घर से आईपीएल सट्टा खिलवा रहे फिरोज खान पिता याकूब खान से पुलिस ने 8400रूपये नगद, 3 मोबाईल फोन, एक कलर टीव्ही, सेटअप बॉक्स और एक कॉपी  जप्त की है, जिसमें क्रिकेट मैच की पारियों का हिसाब दर्ज होना बताया गया है। रानीगंज मोहल्ला में स्थित एक महिला के रिहायसी घर से आईपीएल क्रिकेट सट्टा खिला रहे आमिर पिता मुस्तफा खान एवं फिरोज मंसूरी के कब्जे से पुलिस ने तीन मोबाईल फोन, एक टीव्ही मय सेटअप बॉक्स ,  3600 रूपये नगद एवं दो रजिस्टर जप्त किये हैं जिनमें आईपीएल मैचों के सट्टे का हिसाब-किताब दर्ज है।

इन स्थानों से चल रहा सट्टा

हाईटेक आईपीएल सट्टा से जुड़े सूत्रों की मानें तो पन्ना शहर में करीब आधा दर्जन से अधिक स्थानों से बड़े पैमाने पर सट्टा खिलवाया जा रहा है। जिनमें गल्ला मंडी, किशोरगंज मोहल्ला चित्रगुप्त मंदिर के पास, आगरा मोहल्ला पुराना सुरेन्द्र सिंह चैराहा के पास, गुल्लायंची मोहल्ला में संचालित गद्दी मुख्य हैं। आईपीएल के प्रत्येक मैच में करीब से 10-15 लाख तक के दांव लग रहे हैं। क्रिकेट सट्टा खेलने वाले एडवांस राशि जमा करते हैं जिसके बाद वे गुप्त मोबाईल नंबर पर कॉल करके अपने दांव लगाते हैं।

आधी-अधूरी कार्यवाही

आईपीएल क्रिकेट के चालू सीजन में पुलिस ने पन्ना से पूर्व देवेन्द्रनगर में हाईटेक सट्टा के खिलाफ कार्यवाई को अंजाम देते हुये मुकेश जैन नामक सटोरिया को गिरफ्तार किया था। ऑनलाइन क्रिकेट सट्टा खिलाने वाले इस आरोपी के कब्जे से पुलिस ने एक60 पेज का एक रजिस्टर बरामद होने की जानकारी दी थी। जिसमें सट्टा खेलने वालों को ब्यौरा दर्ज होना बताया गया था। लेकिन देवेन्द्रनगर पुलिस ने आज तक सट्टा लगाने वालों के नाम सार्वजनिक नहीं किये हैं। यह भी नहीं बताया गया कि सटोरिया मुकेश जैन और पन्ना से पकड़े गये सट्टा खिलाने वालों के तार ऊपर किससे जुड़े हैं। इस गेम का बॉक्स कौन है। देवेन्द्रगनर और पन्ना की कार्यवाही में एक बात काॅमन है कि सटोरियों के मोबाईल में एक विशेष एप्लीकेशन डॉऊनलोड थी जिसमें सट्टा की बुकिंग की रिकार्डिंग और सट्टा का भाव पता चलता था। पन्ना पुलिस की मंशा यदि वाकई आईपीएल सट्टा पर प्रभावी अंकुश लगाने की है तो उसे सटोरियों से जप्त मोबाईल फोन, रजिस्टर आदि के ब्यौरों और आरोपियों से पूंछतांछ के आधार पर सट्टा लगाने वालों और इस गेम को संचालित करने वालों के नाम भी उजागर करने चाहिये

 

वनवासियों की मुश्किल हमारे अंत की शुरुआत !

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अनुसूचित जनजाति की समस्याएं और उनके समाधान की बात करने से पहले यह जानना जरूरी है कि ये हैं कौन? क्या कारण है कि इन्हें मुख्य समाज से अलग करके देखा जाता है?

– जयराम शुक्ल

कभी-कभी दूसरे के हिस्से का श्रेय और सुख अनायास ही मिल जाता है. अवधेशप्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा के अनुसूचित जाति अध्ययन केंद्र के राष्ट्रीय सेमीनार में मुख्य वक्ता के रूप में यशस्वी व विद्वान, प्रशासक शरदचंद्र बेहार साहब को बोलना था. इस गर्मी और लगन की भीड़-भड़क्का में रायपुर से उनकी टिकट कन्फर्म नहीं हो पाई. आयोजकों ने 12 घंटे पहले रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए मेरा नाम तय कर लिया. एक पत्रकार के नाते जल-जंगल-जमीन और जन पर लिखना-पढ़ना मुझे हमेशा से भाता रहा है. बेहार साहब तो खैर बेहार साहब ही हैं. नौकरशाही के सर्वोच्च शिखर पर बैठकर कोई इतना भी संजीदा हो सकता है बेहार साहब इसके उदाहरण हैं, ईश्वर उन्हें शतायु दे. चीफ सेक्रेटरी रहते हुए भी वे कई सामाजिक आंदोलनों के प्रेरक रहे हैं. इस क्षेत्र में काम करने वाले बहुत से नौजवानों के वे आज भी ऊर्जा के श्रोता और मार्गदर्शक हैं. निश्चित ही जनजातियों की समस्याओं और उसके समाधान के रास्ते पर उनका वक्तव्य प्रभावपूर्ण होता. बहरहाल उनकी जगह मुझे खड़ा होना था सो मेरे लिए यह अलग अनुभूति और दायित्वबोध का विषय था.

वनवासियों पर मेरी समझ किताबों के जरिए नहीं बन पाई. इस समाज को आंखों से जितना देखा और उनके बीच जाकर जो जाना, बस उतना ही ज्ञान है, उससे ज्यादा कुछ नहीं. अलबत्ता अल्विन बारियर और वाल्टर जी ग्रिफिथ्स को पढ़ा है. दोनों ने ही मध्यभारत की जनजातियों पर विषद् और वैज्ञानिक अध्ययन किया है. स्वाभाविक तौर पर इन महापुरूषों के अध्ययन का आधार वैदिक काल की वह अरण्य संस्कृति नहीं रही, जिसमें यह समाज पला-बढ़ा और आज यहां तक पहुंचा, पढ़कर यही एक खोट महसूस हुआ. वारियर और ग्रिफिथ्स मेरे लिए महज एक विद्वान व अकादमिक सूचना संसाधन मात्र हैं. जो भी समझ बनी वह उनके बीच जाकर उनके हाल देखकर ही बनी. जाहिर है कि जनजातियों के मसले समझने का मेरा नजरिया एक पत्रकार का है और इस हिसाब से आप मुझे इस विषय के बारे सतही जानकार घोषित करने के लिए स्वतंत्र हैं. वक्तव्य से पहले मैंने छात्रों और शोधार्थियों को यही कैफियत दी.

अनुसूचित जनजाति की समस्याएं और उनके समाधान की बात करने से पहले यह जानना जरूरी है कि ये हैं कौन? क्या कारण है कि इन्हें मुख्य समाज से अलग करके देखा जाता है? इतिहासकारों ने इन्हें आदिवासी कहकर संबोधित किया. जैसा कि अर्थ से ही स्पष्ट है यहां के आदि निवासी. इससे यह स्वमेव ध्वनित होता है कि इनके अलावा जो भी हैं वे इस देश के आदि.. वासी नहीं हैं अन्यत्रवासी थे. इतिहासकारों की इसी स्थापना की पीठ पर आर्यों और अनार्यों की थ्योरी गढ़ी गई. यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा थी, वो इसलिए कि जिससे विशाल भारतीय समाज में इसे आधार बनाकर आगे विभेद पैदा किया जा सके. विभेद की ये कोशिशें हो भी रही हैं.. कभी महिषासुर महोत्सव के जरिए, कभी यह बताकर कि ये भारतीय सनातन समाज का हिस्सा ही हैं, इनका धर्म व इनकी मान्यताएं अलग हैं. राजनीतिक तुष्टीकरण इस मसले को और भी गंभीर बना देता है. मेरा मानना है कि इसे वनवासी समाज कहना ही सही और न्यायोचित होगा. इतिहास से आदिवासी शब्द सदा के लिए विलोपित कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि अंग्रेज और उनके वैचारिक वंशधरों ने आदिवासी शब्द ही सोची-समझी और दूरगामी परिणाम देने वाली साजिश के चलते गढ़ा था.

अब विचार करने की जरूरत है कि ये वनवासी ही क्यों रहे आए, जबकि अरण्य संस्कृति का विस्तार ग्राम्य और नागर संस्कृति तक हुआ. वनों से दूर एक नया समाज बना और वह आज उत्तरोत्तर आधुनिकता दौड़ में इतना आगे पहुंच गया कि इस धरती से भी दूर नए ग्रहों में बसने की सोचने लगा है. मेरा ऐसा मानना है कि आदिमयुग के बाद जब सभ्यताओं के विकास का क्रम शुरू हुआ.. मेधा का विकास द्रुतगति से होने लगा तो उस समाज में दो समानांतर वर्ग पनपे. उसका आधार और कुछ नहीं अपितु प्रवृत्ति और मनोवृत्ति थी. एक वर्ग में असुरक्षा बोध, भविष्य की चिंता और संग्रह की वृत्ति जन्मी. यह अन्वेषक और नवाचारी वर्ग था जो वन-प्रांतरों से अलग एक दूसरी दुनिया के बारे में सोचने लगा. दूसरा वर्ग यथास्थिति से ही संतुष्ट रहा. वह प्रकृति को ही आदि से अंत तक अपना पालक और आराध्य मानता रहा. इन दोनों वर्गों में क्रमशः दूरियां बढ़ती गईं. वनों से दूर मैदानी हिस्से में नदियों के किनारे सभ्यताएं फलने लगीं. संग्रह वृत्ति के साथ पूंजीवाद शुरू हुआ और जंगल के बाहर का यह समाज नए डगर पर चल पड़ा. उसकी बुद्धि और बाहुबल ने प्रकृति को ही अपनी पूंजी का संसाधन मान लिया. जो वनों में रह गए उन्होंने अपना भविष्य प्रकृति के ही हवाले छोड़ दिया. इस दृष्टि से देखें तो जो आज वनों में रह रहे हैं वो, और जो गांव व शहरों में बस्ते हैं वो, दोनों ही मूलत रूप से एक हैं. यह थोपी हुई थ्योरी है कि वे आदिवासी हैं और जो शेष हैं वे बाहर से आए हुए आक्रांता. वेद हमारी अरण्य संस्कृति की अमूल्य निधि हैं. इन्हें रचने में वनवासी समाज का भी उतना ही योगदान है.

वनवासियों के देवी-देवताओं और मान्यताओं पर भी विमर्श चलते रहते हैं. यह बात तो इतिहासकार भी मानते हैं कि शिव परिवार और हनुमानजी मूलतः अनार्यों के देवता हैं. वेदों में प्रकृति को ही देवता माना गया है. वैदिक देवता व्यक्त और व्यापक हैं. वे साक्षात हैं. वेदों में पंचभूतों को देवता माना गया है. वृक्ष, नदियां, पर्वत, पशुपक्षी सभी के प्रति दैवीय भाव है. वनवासियों के प्रायः सभी देवी-देवता प्रकृति का प्रतिनिधित्व करते हैं. वनवासियों के मंत्रोच्चार जोकि प्रायः आपदा-विपदा के समय या झाड़-फूंक के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं उनमें से प्रायः सभी में हनुमान जी या शंकर जी की दुहाई दी जाती है. शिव परिवार तो एक तरह से जैव विविधता और सह अस्तित्व का जीवंत प्रदर्श है, जिसे वनवासी समाज आज भी जीता है. शिव वनवासियों के आदिदेव हैं.

ग्राम्य व नागर संस्कृति के जनों ने तो काफी बाद में इनके अस्तित्व व महत्व को स्वीकार किया. डॉ. राममनोहर लोहिया वानरों को बंदर नहीं मानते, अपितु इन्हें मनुष्य ही मानते हैं जो वन में रहते थे. वानर से ऐसा शब्दबोध भी होता है, वन-नर= वानर. रामायण कथा वनवासियों के पराक्रम और अतुल्य सामर्थ्य की कथा है, जिसमें उन्होंने राम के नेतृत्व में पूंजीवाद, आतंकवाद के पोषक साम्राज्यवादी रावण को पराजित कर सोने की लंका को धूलधूसरित कर दिया. रामकथा यथार्थ में वनवासियों के मुक्ति संघर्ष और विजय की अमरकथा है. इस कथा के नायक ने स्वयं वनवासी बनना स्वीकारा और तमाम वनवासियों को अपने बराबरी में खड़ा करके समाज को समत्व की नई परिभाषा दी. सो इसलिए ये वनवासी सनातन से चले आ रहे भारतीय कुल परिवार के अभिन्न और अविभाज्य जन हैं. यदि कोई विभेद है तो वह है जीवन और विचार शैली का, परंपरा परिवेश और पर्यावास का. वो प्रकृति के साथ गूंथे हैं और ये प्रकृति को भी वस्तु संपदा की दृष्टि से देखते हैं. यह विभेद भी महत्व का है, क्योंकि यहीं से इनकी समस्याओं का समाधान सूझेगा.

औद्योगिकीकरण ने प्रकृति को संपदा का संसाधन मान लिया. वनवासियों की मुसीबत की शुरुआत यहीं से होती है. प्रकृति की नेमतें भी कभी-कभी उसकी दुश्मन बन जाती हैं. कस्तूरी मृगों के नाश का कारण बन गई और मणि उन सर्पों की, जिनके फन में यह शोभित होता. जंगल-वन प्रांतरों का रत्नगर्भा होना उसके नाश का कारण है. वनवासियों के समक्ष अपने अस्तित्व को बचाए रखने का संघर्ष है. पूरे देशभर के वनों से वनवासी जिन प्रमुख वजहों से बेदखल किए जा रहे हैं उनमें से पहली बड़ी वजह है खदानें. युगों से तने घने वनों की भूमि के गर्भ में जो खनिज संचित हैं, वह औद्योगिकीकरण के लिए चाहिए. उड़ीसा, झारखंड, बस्तर और मध्यप्रदेश के सिंगरौली इलाके में बड़ी संख्या में वनवासियों की बेदखली हुई और अभी भी बेदखली की योजना है, जहां आज दुनिया के विकसित देश अपने वन-पर्वत नदी झरने बचाने में लगे हैं, वहीं हमारी खुदगर्ज व्यवस्था इनके सत्यानाश पर आमादा है. वैज्ञानिकों ने इंडोनेशिया की मृत्यु की घोषणा कर दी है. वहां अत्याधिक खनन से धरती का भूगोल ही बदल गया है. प्राकृतिक विपदाओं के लिए आज वह सबसे सुभेद्य देशों में से एक है. भारत के नीति नियंताओं ने नेहरू युग से जो रफ्तार पकड़ी उसका एक्सीलेटर दबाए जा रहे हैं.

उड़ीसा में मेदांता को जिन वन पर्वतों को खदानों के लिए दिया गया था वे वनवासियों की पहचान और अस्तित्व के साथ जुड़े थे. लंबा संघर्ष चला. कई वनवासियों को अपने प्राणों की आहुति देनी ड़ी तब कहीं जाकर सुप्रीम कोर्ट के दखल से वे वन-पर्वत बच पाए. अपने सिंगरौली के साथ ऐसा नहीं हो सका. सिंगरौली में कोयला खदानों की श्रृंखला है. जैवविविधता से संपन्न वनों को खदानों के लिए बड़े औद्योगिक घरानों को दे दिया गया. उद्योगपतियों ने मुआवजे के मोहजाल में फंसाकर वनवासियों को नर्क में धकेलने का काम किया है. सिंगरौली विस्थापन का क्रूर व कुटिल मंडल है. इसी तर्ज में देश के अन्य हिस्सों में हो रहा है. संस्कृति और पहचान की बात करें तो जो खैरवार वनवासी कभी समूचे सिंगरौली में राज करते थे वे आज या तो भिखारी हैं या फिर महानगरों के स्लम में रहने वाले मजदूर. वनवासियों को बेदखल करने और कंगाल बनाने की कथा हर सौ कोस में मिल जाएगी. कहीं बड़े बाँधों के लिए बेदखल किया जा रहा है तो कहीं

नेशनल पार्क और अभयारण्यों के लिए. जंगल में जानवर की हिफाजत की चिंता है, मनुष्य की नहीं. वह मनुष्य जो युगों से जानवरों और प्रकृति के साथ सह अस्तित्व जीवन जी रहा था उसे आज जानवरों का दुश्मन करार कर दिया गया. जो राजे-रजवाड़ों ने बाघों व अन्य जानवरों का शिकार करके लाट साहबों की पद्वियां पाईं, आज उन्हीं के नुमाइंदे इस नीति के नियंता बने हुए हैं. जो वनवासियों को विकास का बाधक मानते हैं. समस्याओं का ओर-छोर नहीं, न ही कोई पारावार. योजनाएं वनवासियों के लिए बनती हैं पर कभी यह जानने की कोशिश नहीं होती कि वे खुद कैसा विकास चाहते हैं. थोपा हुआ विकास उन्हें विनाश की मझधार में ले जाकर छोड़ रहा है.

 वनवासियों की जीवनशैली परिवेश और उनकी दृष्टि को जाने बिना हम सही दिशा में नहीं बढ़ सकते. प्रकृति को लेकर जो उनका दृष्टिकोण है वही इस दुनिया को बचा सकता है. प्रकृति से हम उतना ही लें जितना फूल से भवरा, जितना गाय से बछड़ा. प्रकृति का वध करके विकास की सोचेंगे तो हमें इस सृष्टि में कहीं सहारा ढ़ूढे नहीं मिलेगा. इस शताब्दी के महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंस यह चेतावनी दे चुके हैं- हमारा हर कदम विनाश की ओर बढ़ रहा है. हमें आत्महंता प्रवृत्ति छोड़नी होगी या फिर किसी दूसरे ग्रह को खोजना होगा, जहां हम अपना डेरा जमा सकें, क्योंकि विकास की आत्मघाती रफ्तार तेज और तेज होती जा रही है. वनवासियों से हम जीने की जीवनदृष्टि ले सकते हैं पर अभी तो फिलहाल उन्हीं के अस्तित्व के सत्यानाश में लगे हुए हैं.

 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और टिप्पणीकार हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

आधार कार्ड पर सुनवाई पूरी, सुको ने सुरक्षित रखा फैसला

नई दिल्ली। राडार न्यूज़ 2016 के आधार कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई पूरी कर ली। पांच जजों की बेंच इन याचिकाओं पर अदालत फैसला बाद में सुनायेगी। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने करीब चार महीने के दौरान 38 दिन इन याचिकाओं पर सुनवाई की। गुरुवार को सभी संबंधित पक्षकारों को इस मामले में तत्काल अपनी लिखित दलीलें पेश करने का निर्देश दिया है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एके सिकरी, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल हैं। इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल और विभिन्न पक्षकारों की ओर से कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम, राकेश द्विवेदी, श्याम दीवान और अरविंद दातार सरीखे वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अपनी अपनी दलीलें पेश कीं। सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने आधार नंबरों के साथ मोबाइल फोन जोड़ने के निर्णय का बचाव करते हुए कहा कि यदि मोबाइल उपभोक्ताओं का सत्यापन नहीं किया जाता, तो उसे शीर्ष अदालत अवमानना के लिये जिम्मेदार ठहराती। हालांकि, न्यायालय ने कहा था कि सरकार ने उसके आदेश की गलत व्याख्या की और उसने मोबाइल उपभोक्ताओं के लिए आधार को अनिवार्य बनाने के लिए इसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश केएस पुत्तास्वामी और अन्य याचिकाकर्ताओं ने आधार की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे रखी है। शीर्ष अदालत सरकार की इस दलील से सहमत नहीं थी कि लोकसभा अध्यक्ष ने आधार विधेयक को सही मायने में धन विधेयक बताया था, क्योंकि यह समेकित कोष से मिलने वाले कोष से दी जा रही सब्सिडी से संबंधित है।

अब हिंदी पढ़ने वाले भी बन सकेंगे इंजीनियर

नई दिल्ली। राडार न्यूज़ हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए अच्छी खबर है, इंजीनियरिंग की पढाई अब अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी माध्यम से भी हो सकेगी। तकनीकी संस्थानों को इससे जुड़े कोर्सो को अब हिंदी माध्यम में पढ़ाने की भी स्वतंत्रता मिलेगी। सरकार ने इसे लेकर तकनीक संस्थानों को सहूलियत दी है। साथ ही इसे प्रोत्साहित करने के लिए इंजीनियरिंग से जुड़ी किताबों को हिंदी में तैयार करने की पहल भी की है। सरकार का मानना है कि इससे छात्रों में इंजीनियरिंग को लेकर रुझान और बढ़ेगा, क्योंकि अभी भाषाई दिक्कत के चलते बड़ी संख्या में छात्र इंजीनियरिंग की पढ़ाई से कतराते है।

एआईसीटीई से जुड़े किसी भी कोर्स को हिन्दी में पढ़ाने पर अब कोई प्रतिबंध नहीं है। कोई भी संस्थान हिंदी माध्यम में इसकी पढ़ाई करा सकते है; प्रो. अनिल सहत्रबुद्धे, अध्यक्ष, एआईसीटीई।

संस्थानों को मिलेगी अनुमति

इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी माध्यम में कराने की यह पहल अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने की है। हाल ही में सरकार ने भी इसे मंजूरी दी है। हालांकि संस्थानों पर इसे जबरन नहीं थोपा जाएगा, बल्कि वह अपनी मर्जी से अपने संस्थान में इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी और अंग्रेजी में से किसी भी माध्यम में कराने के लिए स्वतंत्र रहेंगे। एआईसीटीई का मानना है कि यह पहल काफी पहले होनी चाहिए थी, लेकिन इसकी राह में सबसे बड़ी बाधा पाठ्य पुस्तकों की कमी थी। जिसे अब दूर करने की कोशिश की जा रही है। इंजीनियरिंग से जुड़ी किताबों को हिंदी में तैयार करने वाले लेखकों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने इसी कड़ी में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम से जुड़ी किताबों को तैयार करने वाले लेखकों को पुरस्कृत भी किया है

इंजीनियरिंग का बढ़ेगा क्रेज़

माना जा रहा है कि सरकार की इस पहल से इंजीनियरिंग संस्थानों को उबारने में भी मदद मिलेगी, क्योंकि मौजूदा समय में देश में इंजीनियरिंग संस्थान बड़ी संख्या में सीटों के खाली रहने से बंद हो रहे है। गौरतलब है कि तकनीकी शिक्षा से जुड़े आईआईटी और इंजीनियरिंग कालेजों का संचालन एआईसीटीई के नियमों के तहत होता है। इन्हें अपने यहां संचालित होने वाले प्रत्येक कोर्स को एआईसीटीई से अनुमति लेनी जरूरी है।

पन्ना में पकड़ा गया आईपीएल का सट्टा

मैच की हर गेंद पर लग रहे थे लाखों के दांव

आन लाइन चल रहा था सट्टे का कारोबार

सट्टा खेलने वालों को भी क्या पकड़ेगी पुलिस

पन्ना। राडार न्यूज़  पन्ना जिले में लम्बे समय से चल रहा आनलाइन क्रिकेट सट्टे का कारोबार आईपीएल के आगाज के साथ और भी हाईटेक तथा व्यापक हो गया। इसका खुलासा मंगलवार शाम को देवेन्द्रनगर कस्बा में पुलिस द्वारा की गई छापामार कार्रवाई से हुआ है। मुखबिर की सूचना पर थाना पुलिस ने सतना रोड किनारे स्थित मुकेश जैन पिता महेश जैन के घर में दबिश देते हुए आॅनलाइन सट्टे का भांडा फोड किया है। इस मामले में पुलिस ने सटौरिये मुकेश जैन को तो मौके से गिरफ्तार कर लिया है, पर बडा सवाल यह है कि सट्टा लगाने वाले भी क्या पकड़े जायेंगे। इस कार्रवाही से कई हैरान करने वाली बातें सामने आईं हैं। जैसे कि सट्टेबाजों द्वारा मैंच की प्रत्येक गेंद पर दाव लगाने के लिये कई तरह के साप्टवेयर एवं मोबाइल एप्लीकेशन लांच की है। अब बिना मोबाइल पर फोन किये कि लाखों के सट्टे लगाये जा रहे हैं। इस मामले में पुलिस ने मुकेश जैन के घर से एक रंगीन टीव्ही, वीडियोकान डी टू एच डिजिटल सेट-अप बाक्स, हिसाब रजिस्टर, एक एमआई मोबाइल, 5 एटीएम कार्ड, दो चैक तथा 21500 रूपये नगद बरामद हुए हैं। पुलिस ने इस मामले पर आरोपी मुकेश जैन के खिलाफ देवेन्द्रनगर थाना में अपराध कायम किया है।

सार्वजनिक किए जायें सटौरियों के नाम

गौरतलब है कि पुलिस को सट्टेबाज मुकेश जैन के पास 60 पेज का जो हिसाब रजिस्टर मिला है। उसमें आईपीएल के पिछले करीब चालीस मैचों में प्रतिदिन लगाये गये लाखों के सट्टे का हिसाब-किताब दर्ज है। इस तरह की कार्रवाहियों में अब तक यही देखने में आया है कि पुलिस सट्टा खिलाने वालों को तो पकड़ती है, पर खेलने वालों पर कोई कार्रवाही नहीं की जाती। अब देखना यह है कि इस मामले में पकड़ गये सटौरिये को रिमाण्ड पर लेकर पुलिस सट्टा खेलने वालों तथा रजिस्टर के हिसाब-किताब में दर्ज सट्टेबाजों पर कार्रवाही करते हुए उनके नाम कब तक सार्वजनिक करती है।

अबकी बार 200 पार, चौथी बार भाजपा सरकार

रैपुरा पहुंचे भाजपा प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह ने दिया नारा

नव नियुक्त प्रदेशाध्यक्ष का कार्यकर्ताओं ने किया भव्य स्वागत

पन्ना। रडार न्यूज सांसद राकेश सिंह भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद पहली बार पन्ना जिले के पवई विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत सीमावर्ती रैपुरा कस्बा पहुंचे जहां उनका पार्टी पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं ने ढ़ोल-नगाड़े, आतिशबाजी से भव्य स्वागत किया। पूर्व मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह के नेतृत्व में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के स्वागत का सिलसिला उनके विशाल काफिले के पन्ना जिले की सीमा में प्रवेश करने के साथ शुरू हो गया। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार  रैपुरा में गोल्डन सिटी के समीप प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह ने नुक्कड़ सभा को संबोधित करते हुए मध्यप्रदेश में लगातार चौथी बार भाजपा की सरकार बनाकर इतिहास रचने का आह्वान करते हुए कार्यकर्ताओं से मिशन 2018 के लिये प्राण-प्रण से जुटने की बात कही। भाजपा कार्यकर्ताओं के उत्साह को बढ़ाते हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ‘‘अबकी बार 200 पार चौथी बार भाजपा सरकार’’ का नया नारा दिया।  इस अवसर पर श्री सिंह ने जोर देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने मध्यप्रदेश का तेजी से विकास किया है। प्रदेश के प्रत्येक व्यक्ति के कल्याण के लिये योजनाएं बनाकर प्राथमिकता से उसका लाभ दिलाया जा रहा है। आप ने दावा करते हुए कहा कि मध्यप्रदेश के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में खुशहाली लाने के लिये भाजपा सरकार ने पूरी ईमानदारी से काम किया है, इसलिए प्रदेश की जनता चौथी बार भाजपा को प्रचण्ड बहुमत से विजयी बनायेगी। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्वहीन पार्टी बन चुकी है। कांग्रेस के पास शिवराज सरकार के खिलाफ कोई मुद्दा नहीं है, इसलिये उसके नेता झूठे आरोप लगाकर लोगों को गुमराह करने की कोशिश करते हैं। इस अवसर पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह ने नुक्कड़ सभा में उपस्थित पार्टी कार्यकर्ताओं और क्षेत्रवासियों के हांथ उठवाकर उन्हें मध्यप्रदेश में पुनः रिकार्ड चौथी बार भाजपा की सरकार बनावाने का संकल्प दिलाया। उल्लेखनीय है कि नव नियुक्त प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के स्वागत को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं – पदाधिकारियों व क्षेत्रवासियों में खासा उत्साह देखा गया। प्रचण्ड धूप और उमस के बावजूद रैपुरा सहित विभिन्न ग्रामों में सैंकडों लोगों ने पार्टी अध्यक्ष का जोरदार स्वागत किया। करीब एक सैंकड़ा वाहनों के काफिले के साथ कटनी से सागर के लिये निकले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रैपुरा पहुँचने पर युवा कार्यकर्ताओं द्वारा मोटरसायकिल रैली निकाली गई। इस अवसर पर भाजपा प्रदेश महामंत्री बीडी शर्मा, प्रदेश मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह, बुविप्रा अध्यक्ष डा. रामकृष्ण कुसमरिया, भाजपा जिलाध्यक्ष सतानंद गौतम, प्रदेश कार्य समिति सदस्य किसान मोर्चा उमेश सोनी, सुधीर अग्रवाल, जिला पंचायत उपाध्यक्ष माधवेन्द्र सिंह परमार, जिला मंत्री महिला मोर्चा अर्चना सोनी, महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष आशा गुप्ता, श्रीमति रूप नगायच, आशीष तिवारी सहित बड़ी संख्या में जिले के भाजपा कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

लोकायुक्त पुलिस के जाल में फंसा डिप्टी रेंजर

शिकारियों को बचाने 10 हजार की रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार

चीतल के शिकार का प्रकरण दर्ज कर चल रहा था वसूली का खेल

पन्ना। रडार न्यूज पन्ना टाईगर रिजर्व की चंद्रनगर रेंज अंतर्गत पिछले महीने हुए चीतल के शिकार से जुड़े एक मामले में शिकारी और संदेहियों को बचाने के एवज में 10 हजार रूपये की रिश्वत लेते डिप्टी रेंजर बाबू सिंह चंदेल को लोकायुक्त पुलिस संगठन सागर की टीम ने रंगे हाथ गिरफ्तार किया है। लोकायुक्त पुलिस टीम ने इस ट्रेप कार्रवाई को महादेव कुशवाहा की शिकायत पर बुधवार की सुबह छतरपुर जिले के बमीठा के समीप नेशनल हाईवे किनारे स्थित बुन्देला ढ़ाबा में  अंजाम दिया। कार्यवाई की भनक लगते ही ढ़ाबा के बाहर बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो गये। पूर्व चर्चा अनुसार महादेव कुशवाहा ने ढ़ावा में बैठे बाबू सिंह चंदेल परिक्षेत्र सहायक भुसौर रेंज चंद्रनगर को जैसे ही 10 हजार रूपये की रिश्वत दी ठीक उसी समय लोकायुक्त पुलिस सागर के निरीक्षक बीएम दिवेदी और उनकी टीम ने दबिश देते हुए डिप्टी रेंजर को रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया। शिकायतकर्ता महादेव कुशवाहा ने बताया कि 10 अप्रैल 2018 को चीतल के शिकार मामले में दर्ज पीओआर (वन अपराध) में परिक्षेत्र सहायक भुसौर बाबू सिंह चंदेल सिंह ने उनके भाईयों रेखराज कुशवाहा और जुगला कुशवाहा के शामिल होने की जानकारी देते हुए इस प्रकरण को कमजोर करने और उन्हें बचाने के एवज में 10हजार रूपये की रिश्वत की मांग की गई। जिसकी लिखित शिकायत महादेव कुशवाहा निवासी दसईपुरा तहसील राजनगर जिला छतरपुर ने लोकायुक्त पुलिस अधीक्षक सागर से की थी। शिकायत की तस्दीक करने के बाद आज लोकायुक्त पुलिस टीम ने योजनाबद्ध तरीके से डिप्टी रेंजर को 10 हजार रूपये की रिश्वत लेते हुये रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया। इस पूरे मामले में गौर करने वाली बात यह है कि चीतल के शिकार मामले में एक मात्र व्यक्ति के विरूद्ध नामजद प्रकरण (पीओआर) पंजीबद्ध किया गया था। इस प्रकरण को बेहद गोपनीय रखते हुए डिप्टी रेंजर बाबू सिंह चंदेल ग्रामीणों को शिकार के मामले में फंसाने की धमकी देते हुए अवैध वसूली कर रहा था। सूत्रों की माने तो रेंज अफसर उमेश कुमार योगी को इसकी जानकारी थी। जिससे वन अपराध की आड़ में चल रहे अवैध वसूली के इस गोरखधंधे में डिप्टी रेंजर के अलावा वरिष्ठ अधिकारियों की संलिप्तता को लेकर सवाल उठ रहे है। पन्ना टाईगर रिजर्व के चालाक मैदानी अधिकारी प्रकरण दर्ज होने के महीनेभर बाद भी शिकारी का नाम उजागर करने पर उनके भागने की आशंका जताते हुए गिरफ्तारी मुश्किल होने का हवाला देकर कुछ भी बताने से बचते रहे है। शिकार के इस प्रकरण को अवैध वसूली का हथियार बनाने के लिए सुनियोजित तरीके से आरोपी का नाम गुप्त रखते हुए इतनी भी जानकारी नहीं दी जा रही थी कि प्रकरण में कुल कितने आरोपी है और उनमें से कितने नामजद व अज्ञात है।

इनका कहना है-

‘‘शिकार के इस प्रकरण को सिर्फ इसलिए गुप्त रखा गया क्योंकि उसमें शामिल एकमात्र नामजद आरोपी के फरार होने की आशंका थी। नामजद आरोपी को गिरफ्तार करने के बाद पूंछतांछ के आधार पर अन्य आरोपियों की धरपकड़ की कार्रवाई की जाती। शिकार के इस मामले में जांच अधिकारी कौन है, महीनेभर में कितने लोगों की गिरफ्तारी हुई मैं इस संबंध में कुछ नहीं बता सकता। पूरा मामला लोकायुक्त पुलिस को सौंपा जा चुका है।‘‘

-उमेश कुमार योगी, रेंजर चन्द्रनगर

महिला के गर्भाशय से निकला 3 किलो का ट्यूमर

डॉ. मीना नामदेव ने किया सफल ऑपरेशन

पन्ना। राडार न्यूज़ जिला चिकित्सालय पन्ना में पदस्थ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मीना नामदेव ने महिला का सफलतापूर्वक ऑपरेशन कर गर्भाशय से तकरीबन 3 किलो का टयूमर निकाला है।

सफल ऑपरेशन करने वाली डॉक्टर मीना नामदेव।

पिपरवाह निवासी छविरानी पति संत कुमार यादव ने अपनी पत्नि के पेट दर्द की समस्या को लेकर जब डॉक्टर मीना नामदेव को दिखाया तो जांच उपरांत डॉ मीना नामदेव ने बताया कि गर्भाशय में टयूमर है और उसको आपरेशन द्वारा निकालना पड़ेगा। पति की सहमति के बाद आज छविरानी का सफलतापूर्वक आपरेशन कर तीन किलो का टयूमर गर्भाशय से निकाला गया. आपेशन की बेहद जटिल प्रक्रिया में लगभग डेढ़ घंटे का समय लगा। यह पहला मामला है कि पन्ना जिला चिकित्सालय में इस प्रकार के आपेशन को सफलतापूर्वक पूरा किया गया है। डॉक्टर मीना नामदेव ने बताया कि जब मरीज को देखा तो उसकी हालत बेहद नाजुक थी, जांच उपरांत पता चला कि छविरानी के गर्भाशय में एक बड़ा सा टयूमर है तथा उसको निकाला जाना अति आवश्यक है. परिजनों की सहमति मिलने के बाद छविरानी का आपरेशन किया गया, जो पूरी तरह से सफल रहा. उन्होंने बताया कि मरीज अब खतरे से बाहर है. आपरेशन के दौरान निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ नीरज जैन, स्टाफ नर्स सपना साहू, माधुरी सिस्टर, ड्रेसर वहीद खान, वार्ड बॉय बहौरी लाल सहित पूरे स्टाफ का सहयोग रहा.