खजुराहो लोकसभा क्षेत्र : टिकिट को लेकर दिग्गजों के बीच घमासान, ऊहापोह की स्थिति में फंसी भाजपा, कांग्रेस ने क्षेत्रीय प्रत्याशी घोषित कर बढ़ाई मुश्किल

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सांकेतिक फोटो।

* बदली परिस्थितियों में भाजपा के सामने अपने गढ़ को बचाने की चुनौती

* भाजपा प्रत्याशी के नाम के ऐलान पर टिकीं जनमानस की नजरें

* सपा-बसपा गठबंधन के चलते बन सकती है त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति

शादिक खान, खजुराहो/पन्ना। रडार न्यूज   भारतीय जनता पार्टी अपने मजबूत गढ़ खजुराहो संसदीय क्षेत्र में लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी चयन को लेकर असमंजस की स्थिति में है। शीर्ष स्तर पर कई दौर की बैठकों में विचार-विमर्श के बाद भी किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि खजुराहो से टिकिट को लेकर भाजपा के कई दिग्गज नेता कतार में हैं। अंतिम दौर में उम्मीदवार के रूप में अपने नाम का ऐलान कराने के लिए दावेदारों ने पूरी ताकत झोंक दी है। इस बीच कांग्रेस ने इस सीट को जीतने की रणनीति के तहत क्षेत्रीय प्रत्याशी का दाँव चलते हुए पूर्व छतरपुर राजघराने की महारानी कविता सिंह को प्रत्याशी घोषित कर बीजेपी के लिए उम्मीदवार के चयन को लेकर उसकी उलझन को बढ़ा दिया है। केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल नेताओं के समक्ष दुविधा यह है कि वे मौजूदा हालात में क्षेत्रीय प्रत्याशी के मुकाबले में क्षेत्रीय व्यक्ति को उतारें, जातिगत समीकरणों को साधें या फिर टिकिट वितरण में बड़े नेताओं की सिफारिशों को तवज्जो दें। फैसला लेते समय उसे यह भी सुनिश्चित करना है कि खजुराहो के गढ़ में पार्टी के कब्जे को बरकरार रखने में सक्षम तथा जीत की प्रबल सम्भवना वाले दावेदार को ही चुनावी समर में उतारा जाए। इसलिए बीजेपी की प्रदेश इकाई द्वारा भेजे गए दावेदारों के पैनल में शामिल प्रत्त्येक नाम पर गहन विचार-मंथन कर संभावित चुनौतियों और कसौटी पर उन्हें परखा जा रहा है।
उधर, पैनल और सर्वे के अलावा भी कई नामों पर विचार होने की चर्चाएं है। जिन दावेदारों के नाम प्रमुखता से लिए जा रहे उनमें पूर्व विधायक विजय बहादुर सिंह बुंदेला, ध्रुव प्रताप सिंह, पूर्व मंत्री ललिता यादव, जिला पंचायत अध्यक्ष पन्ना रविराज सिंह यादव, बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के पूर्व उपाध्यक्ष महेंद्र सिंह यादव, घासीराम पटेल, किसान नेता उमेश सोनी, विधायक संजय पाठक, जिला सहकारी बैंक पन्ना के पूर्व अध्यक्ष एवं फायर ब्रांड नेता संजय नगायच, समाजसेविका नंदिता पाठक, पूर्व विधायक गिरिराज किशोर पोद्दार, जिला पंचायत उपाध्यक्ष पन्ना माधवेंद्र सिंह, एडवोकेट विनोद तिवारी, रामऔतार पाठक बब्लू, जयप्रकाश चतुर्वेदी शामिल हैं। इसके अलावा खजुराहो के पूर्व सांसद स्वर्गीय जीतेन्द्र सिंह बुंदेला की पत्नी, अभिनेता राजा बुंदेला, पूर्व रीवा रियासत के महाराज पुष्पराज सिंह के नाम भी विचार की प्रक्रिया में आए हैं। कुल मिलाकर इतने नामों के बीच सबसे मजबूत और जिताऊ उम्मीदवार का चयन करना भारतीय जनता पार्टी के लिए आसान नहीं है।

कटनी कार्ड बन सकता है काट !

विदित हो कि मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल के खजुराहो संसदीय क्षेत्र का नया स्वरुप वर्ष 2004 में चुनाव के पूर्व हुए परिसीमन से अस्तित्व में आया है। वर्तमान में इसके अंतर्गत तीन जिले छतरपुर, पन्ना और कटनी के क्रमशः आठ विधानसभा क्षेत्र- चंदला, राजनगर, पन्ना, गुनौर, पवई, बहोरीबंद, मुड़वारा, विजराघगढ़ आते है। चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस ने जिस तरह कविता सिंह के नाम पर मुहर लगाकर क्षेत्रीय प्रत्याशी की मांग को पूरा करते जनभावनाओं को अपने पक्ष में करने का दाँव चला है, उसके मद्देनजर इसकी काट के तौर पन्ना या कटनी जिले के किसी सुयोग्य नेता को उम्मीदवार घोषित करने को लेकर बीजेपी को गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए। प्रत्याशी चयन में खजुराहो संसदीय क्षेत्र के जातिगत समीकरणों साधने की रणनीति भी भाजपा का मजबूत पक्ष साबित हो सकती है।
कांग्रेस प्रत्याशी कविता सिंह।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस प्रत्याशी कविता सिंह छतरपुर जिले की राजनगर सीट से आती हैं जहाँ से उनके पति विक्रम सिंह नातीराजा विधायक हैं। जबकि कविता सिंह का मायका पन्ना जिले के गुनौर विधानसभा क्षेत्र में स्थित है। इस तरह पन्ना व छतरपुर दोनों ही जिलों से उनके सीधे जुड़ाव और पूर्व राजपरिवार का सदस्य होने का आकर्षण तथा प्रभाव का सामना बीजेपी कैसे करती है, आगामी समय में यह देखना दिलचस्प होगा। महिला होने के नाते कांग्रेस प्रत्याशी को महिलाओं और युवाओं का अच्छा खासा समर्थन मिलने की बात कही जा रही है। भाजपा के अंदर कुछ लोग मानते कि इन परिस्थतियों में विजराघवगढ़ विधायक संजय पाठक को उम्मीदवार बनाना उचित निर्णय साबित हो सकता है। इससे कटनी जिले में भाजपा के पक्ष में जहाँ माहौल बनेगा वहीं संजय का युवाओं से जुड़ाव, उनकी हाईप्रोफाइल लाइफ स्टाइल, चुनाव लड़ने का तरीका भी कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। लोकप्रियता के मामले में भी वे कविता सिंह पर भारी पड़ेंगे। पर सवाल यह है कि प्रदेश में कांग्रेस की अल्पमत की सरकार होने के कारण सत्ता परिवर्तन की आस लगाए बैठी बीजेपी लोकसभा चुनाव में क्या अपने विधायक को उतारने का जोखिम मोल लेगी ? इसका जबाब समय आने पर ही पता चलेगा।

ओबीसी या ब्राह्मण चेहरा बनेगा चुनौती

क्षत्रिय समाज से आने वाली कविता सिंह के कांग्रेस प्रत्याशी घोषित होने के बाद खजुराहो लोकसभा सीट पर भाजपा के रणनीतिकारों द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग और ब्राह्मण दावेदारों के नामों पर नए सिरे से मंथन किया जा रहा है। दरअसल, इस सीट के जातिगत समीकरणों पर गौर करें तो ओबीसी मतदाताओं की तादाद सर्वाधिक है। करीब 50 फीसदी से अधिक होने के कारण ओबीसी वोटर यहाँ निर्णायक स्थिति में हैं। अनुसूचित जाति को छोड़ दें तो इसके बाद ब्राह्मण मतदाता भी अच्छी संख्या में हैं। अब देखना यह है कि बीजेपी अपने गढ़ को बचाने के लिए पूर्व राजपरिवार से आने वाली क्षत्रिय प्रत्याशी कविता सिंह के सामने क्या इसी समाज के किसी दावेदार को मुकाबले में उतारती है या फिर जातिगत तथा क्षेत्रीयता के फैक्टर को ध्यान में रखते हुए किसी स्वच्छ छवि के लोकप्रिय ओबीसी या ब्राह्मण चेहरे को कड़ी चुनौती के रूप में पेश करती है।
सांकेतिक मानचित्र।
जानकारों का मानना है कि प्रत्याशी चयन में बीजेपी ने यदि जरा भी चूक की तो इस अवसर का लाभ उठाकर समाजवादी पार्टी चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय संघर्ष में तब्दील कर सकती है। बताते चलें कि बसपा और सपा के बीच मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव को लेकर हुए गठबंधन के तहत खजुराहो संसदीय सीट समाजवादी पार्टी के खाते में आई है। अर्थात यहां समाजवादी पार्टी अपना प्रत्याशी उतारेगी जिसे बहुजन समाज पार्टी का समर्थन प्राप्त होगा। खजुराहो सीट का चुनावी इतिहास, हालिया विधानसभा चुनाव के परिणाम और भाजपा समर्थित मतदाताओं की तादाद को दृष्टिगत रखते हुए यहाँ बेशक भाजपा की स्थिति मजबूत जान पड़ती है। लेकिन, सिर्फ इसी आधार पर कोई खुशफहमी पालना बड़ी भूल होगी। दरअसल, इस चुनावी मुकाबले की तस्वीर तो भाजपा सहित अन्य पार्टियों के उम्मीदवार घोषित होने के बाद ही साफ़ होगी।

75 का फार्मूला फंसाएगा पेंच !

कुसुम सिंह मेहदेले ।
खजुराहो सीट से पूर्व मंत्री एवं भाजपा की कद्दावर नेत्री सुश्री कुसुम सिंह मेहदेले ने टिकिट की मांग की है। विधानसभा चुनाव में गलत तरीके से टिकिट काटे जाने से नाराज चल रहीं सुश्री मेहदेले लोकसभा चुनाव में सशक्त उम्मीदवार साबित हो सकती हैं। लेकिन, भाजपा का 75 पार का फार्मूला उनके आड़े आने की आशंका जताई जा रही है। योग्यता, जातिगत समीकरण और जनाधार के लिहाज मेहदेले का मुकाबला करना किसी भी स्थिति में विपक्षी दलों के लिए आसान नहीं होगा। पूर्व मंत्री कुसुम मेहदेले न सिर्फ खजुराहो लोकसभा क्षेत्र से भलीभांति परिचित है बल्कि अधिकांश मतदाता भी उन्हें बेहतर तरीके से जानते है। मालूम हो कि लोकसभा चुनाव-2019 में भाजपा ने अपने कई बुजुर्ग नेताओं के टिकिट काटे हैं। जिनमें लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और कलराज मिश्र आदि नेता शामिल है। हालाँकि इन सभी नेताओं की आयु 75 वर्ष से कहीं अधिक है। उधर, तीन माह पूर्व संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 75 वर्ष के फार्मूले को शिथिल कर कई उम्रदराज नेताओं को टिकिट दिए थे। बहरहाल, अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पूर्व मंत्री एवं पिछड़े वर्ग की कद्दावर नेत्री सुश्री कुसुम सिंह मेहदेले को बीजेपी लोकसभा का टिकिट देती है या फिर उम्र का पेंच फंसाकर उन्हें किनारे किया जाता है।