इसलिए नोटबंदी से ज्यादा जरूरी है पोर्नबंदी….!

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-साँच कहै ता..जयराम शुक्ल

अब यह बताने की जरूरत नहीं कि बलात्कार फिर हत्या जैसे अपराधों का सैलाब यकायक क्यों फूट पड़ा। जवाब है वर्जनाएं टूट गईं सबकुछ खुल्लमखुल्ला हो गया। पहले कैसेट्स में ब्लू फिल्में आईं,फिर ये कम्प्यूटर में घुसीं और अब इनकी जगह जेब के मोबाइल फोन में बन गई। बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि कुल नेट सामग्री में तीस फीसद पोर्न सामग्री। है। दो साल पहले मैक्स हास्पिटल ने स्कूली छात्रों के बीच सर्वे के बाद पाया कि 47 फीसद छात्र रोजाना पोर्न की बात करते हैं। नेट के सामान्य उपयोगकर्ता को प्रतिदिन कई बार पोर्न सामग्री से वास्ता पड़ता है। वजह प्रायः नब्बे फीसद समाचार व अन्य जानकारियों की साइट पोर्नसाईटस से लिंक रहती हैं या बीच में विज्ञापन घुसे रहते हैं। कई प्रतिष्ठित अखबारों पर यह आरोप लग चुका है कि वे यूजर्स, लाईक,हिट्स बढ़ाने के लिए पोर्न सामग्री का इस्तेमाल करते हैं। क्योंकि यूजर्स की संख्या के आधार पर ही विज्ञापन मिलते हैं। यानी कि वर्जनाओं को वैसे ही फूटने का मौका मिला जैसे कि बाढ़ में बाँध फूटते हैं। सारी नैतिकता इसके सैलाब में बह गई।

                        कमाल की बात यह कि साँस्कृतिक झंडाबरदारी करने वाली सरकार ने इस पर दृढ़ता नहीं दिखाई। इंदौर हाईकोर्ट के वकील कमलेश वासवानी की जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने 850 पोर्नसाईटस पर प्रतिबंध लगाने को कहा। सरकार ने दृढ़ता के साथ कार्रवाई शुरू तो की लेकिन जल्दी ही कदम पीछे खींच लिए। कथित प्रगतिशीलों और आधुनिकता वादियों ने इसे निजत्व पर हमला बताया और कहा कि इससे अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होता है। नेशनल क्राईम ब्यूरो के भयावह रिकॉर्ड के बाद भी सरकार ने आसानी से कदम पीछे खींच लिए। जनहित के अपने निर्णय पर वैसी नहीं डटी जैसी कि नोटबंदी में डट गई। तत्कालीन एटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष कहा-पोर्नसाईटस पर प्रतिबंध लगाने को लेकर समाज और संसद में व्यापक बहस की जरूरत है। सरकार की ओर से रोहतगी ने कहा कि जब प्रधानमंत्री डिजटलाजेशन की बात कर रहे हैं तब पोर्न को बैन करना संभव नहीं है। अभी सिर्फ चाईल्ड पोर्न पर पाबंदी है। प्रायः समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि यौनिक अपराधों की बढोत्तरी के पीछे पोर्नसाईटस हैं जो हर उम्र के लिए खुली हैं। गूगल ट्रेन्ड के मुताबिक पोर्न शब्द की खोज करने 10 शीर्ष देशों में एक भारत भी है। नैतिक श्रेष्ठता का दम भरने वाली सरकार को चाहिए कि इस मामले में चीन से सीख ले। चीन ने अश्लीलता के खिलाफ अभियान चलाते हुए 180000 ऑनलाइन प्रकाशन रोके। पोर्नसाईटस के खिलाफ कड़ी कार्वाइयां की। कैमरून जब इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री थे तब माइक्रोसॉफ्ट और गूगल को धमकाया था कि यदि पोर्नसाईटस पर लगाम नहीं लगाई तो उनका डेरा-डकूला देश से बाहर फेक देंगे। दुनिया के हर समझदार देश इस गंदी सड़ाँध के खिलाफ है एक सिवाय भारत के। तमाम घटनाओं के बाद भी कोई सबक नहीं ले रहा। आधुनिकता और प्रगतिवादी सिर्फ पोर्नसाईटस के मामले में ही सुने जाते हैं। अन्य मामलों में तो ये भोकते ही रह जाते हैं सरकार को जो करना होता है कर लेती है। कौन पता लगाए इसके पीछे क्या रहस्य है? समाज और नई पीढी को पतनशीलता से बचाना है तो नोटबंदी जैसी दृढ़ता के साथ ही टोटल पोर्नबंदी करनी होगी।

(लेख़क वरिष्ठ पत्रकार और टिप्पणीकार हैं)

(डिस्क्लेमर :- इस आलेख में व्यक्त किये गए विचार लेख़क के निजी विचार हैं)

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