* पन्ना की ऐतिहासिक रथयात्रा कोरोना की पाबंदियों के बीच निकाली गई
* भगवान श्री जगन्नाथ स्वामी जी की बारात में शामिल नहीं हो पाए बाराती
* रथयात्रा मार्ग के घरों की छत पर खड़े होकर श्रद्धालुओं ने किए भगवान के दर्शन
* पन्ना राजघराने के युवराज ने पहली बार निभाई प्राचीन धार्मिक परम्पराएं
शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड अंचल अंतर्गत पन्ना नगर में प्रतिवर्ष निकलने वाले ऐतिहासिक रथयात्रा के मुख्य समारोह का आयोजन लगातार दूसरे साल कोरोना महामारी के प्रतिबंधों के साए में हुआ। आज शाम श्री जगदीश स्वामी मंदिर बड़ा दिवाला में पन्ना राजघराने के युवराज छत्रसाल सिंह जूदेव दिव्तीय ने परंपरानुसार आरती के पश्चात् भगवान को मंदिर के गर्भगृह से बाहर लाकर सम्मानपूर्वक उनके रथों में विराजमान कराया। युवराज ने चंवर डुलाने के बाद रथ को खींचकर ऐतिहासिक रथयात्रा महोत्सव का पूरे विधि-विधान के साथ शुभारंभ किया। इस अवसर पर मंदिर परिसर में मौजूद सशस्त्र पुलिस बल के द्वारा गार्ड ऑफ़ ऑनर देने के बाद भगवान श्री जगन्नाथ स्वामी जी की बारात राजसी वैभव और गाजे-बाजे के साथ नगर में निकाली गई। रथयात्रा में खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह, पन्ना जिले के प्रभारी मंत्री रामकिशोर नानों कावरे, महारानी जीतेश्वरी देवी, सतानंद गौतम, कलेक्टर संजय कुमार मिश्र, पुलिस अधीक्षक धर्मराज मीना मुख्य रूप से शामिल रहे।
भगवान की बारात में बारातियों के शामिल होने पर इस बार भी रोक लागू रही। रथयात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की उमड़ने वाली भीड़ पर रोक लगाने के लिए जिला दण्डाधिकारी एवं कलेक्टर पन्ना संजय कुमार मिश्रा ने धारा 144 के अंतर्गत पूर्व में नवीन प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किया था। इस स्थिति में रथयात्रा मार्ग के दोनों किनारों पर स्थित मकानों की छत पर और घर के दरवाजे पर खड़े होकर श्रद्धालुओं ने भगवान के दर्शन किए। रथों में सवार भगवान बलभद्र, भगवान जगन्नाथ स्वामी और बहन सुभद्रा की एक झलक पाने के लिए रथयात्रा मार्ग के मकानों की छतों पर श्रद्धालु कई घण्टे पूर्व से ही डटे रहे।
इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने पुष्प वर्षा कर अपनी खुशी का इजहार किया। रथयात्रा का पहला पहला पड़ाव लखूरन बाग़ में रहेगा। भगवान बलभद्र, बहन सुभद्रा के साथ यहीं रात्रि विश्राम करेंगे। मंगलवार 13 जुलाई की शाम भगवान रथ में सवार होकर भाई-बहन के साथ जनकपुर के लिए प्रस्थान करेंगे।
उल्लेखनीय है कि देश की तीन सबसे पुरानी व बड़ी रथयात्राओं में पन्ना की रथयात्रा भी शामिल है। ओडि़शा के जगन्नाथपुरी की तर्ज पर यहां आयोजित होने वाले इस भव्य धार्मिक समारोह में राजशी ठाट-बाट और वैभव की अद्भुत झलक देखने को मिलती है। रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ स्वामी की एक झलक पाने समूचे बुन्देलखण्ड क्षेत्र से हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुँचते रहे हैं । लेकिन पिछले कोरोना प्रतिबंधों के चलते यह दुर्लभ और भव्य नजारा इस साल भी पन्ना के बाहर के श्रद्धालुओं को देखने को नहीं मिला। पन्ना जिले के इस सबसे बड़े धार्मिक समारोह के दौरान यहां की अद्भुत और निराली छटा को देखने तथा भगवान जगन्नाथ स्वामी की एक झलक पाने के लिए समूचे बुन्देलखण्ड क्षेत्र से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते थे। लेकिन प्रतिबंधों के चलते उन्हें लगातार दूसरे साल इस सौभाग्य से वंचित होना पड़ा। मालुम हो कि पन्ना की यह ऐतिहासिक रथयात्रा लगभग 168 वर्ष पूर्व तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा किशोर सिंह द्वारा शुरू कराई गई थी, जो परम्परानुसार अनवरत् जारी है। इसके अलावा पन्ना जिले के पवई व सिमरिया क़स्बा में भी रथयात्रा निकाली गई।
पहली बार युवराज ने किया परंपराओं का निर्वाहन
पन्ना में निकलने वाली ऐतिहासिक रथयात्रा का शुभारंभ परंपरानुसार राजपरिवार के सदस्य के द्वारा किया जाता है। पन्ना राजघराने के महाराजा राघवेन्द्र सिंह जूदेव के अस्वस्थ होने के कारण दिल्ली में इलाजरत होने तथा कुछ माह पूर्व महाराज लोकेन्द्र जूदेव के देहावसान हो जाने से भगवान जगन्नाथ स्वामी जी मंदिर के महंत चिंतित और परेशान थे कि ऐसी स्थिति में रथयात्रा की परंपराओं का निर्वाहन कौन करेगा। पूर्वजों की इस गौरवशाली ऐतिहासिक परंपरा को कायम रखने के लिए महंतों के द्वारा दिए गए सुझाव को मानते हुए महारनी जीतेश्वरी देवी के द्वारा नाबालिग युवराज छत्रसाल सिंह जूदेव दिव्तीय से रथयात्रा महोत्सव की परम्पराओं का विधि-विधान के अनुसार निर्वाहन कराया गया।
उमस भरी भीषण गर्मी में राजसी पोशाक, साफा और बेशकीमती हीरों से जड़ा हार पहने 14 वर्षीय राजकुमार छत्रसाल सिंह जूदेव दिव्तीय पूरी तरह सहज नजर आए। उन्होंने राजसी गरिमा के साथ विनम्रतापूर्वक रथयात्रा महोत्सव की परंपराओं को जिस तरह परिपक्वता के साथ बखूबी निभाया उसकी सर्वत्र चर्चा हो रही है। संभवतः यह पहला अवसर है जब युवराज ने किसी सार्वजनिक/धार्मिक कार्यक्रम में पन्ना राजपरिवार का प्रतिनिधित्व किया है। उल्लेखनीय है कि बेशकीमती 52 बड़े हीरों के जिस हार को राजकुमार ने पहना था उसे महाराज रूद्र प्रताप जूदेव से लेकर पन्ना के सभी नरेश विशेष अवसरों पर पहनते रहे हैं।