शिवराज सरकार के इस भेदभाव पूर्ण फैसले से गैर अधिमान्य पत्रकारों में उपजा असंतोष !

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शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश।

*   सिर्फ अधिमान्य पत्रकार फ्रंट लाइन वर्कर घोषित, गैर अधिमान्य पत्रकार हुए नाराज़

*   सरकार के विभाजनकारी फैसले के खिलाफ सोशल मीडिया पर उठ रही आवाज

*   फील्ड रिपोर्टिंग करने वालों में 95 फीसदी से अधिक हैं गैर अधिमान्य पत्रकार

भोपाल।(www.radarnews.in) मध्य प्रदेश के अधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर की श्रेणी में शामिल किया गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कोरोना संक्रमण में वास्तविकता को जन-जन तक पहुँचाने वाले पत्रकार भी वास्तव में कोरोना वॉरियर्स हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि अधिमान्य पत्रकारों को भी फ्रंट लाइन वर्कर्स को दी जाने वाली सभी सुविधाओं का लाभ दिया जायेगा। सोमवार 3 मई प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर शिवराज सरकार के द्वारा लिए गए इस फैसले से गैर अधिमान्य पत्रकारों में निराशा और नाराज़गी साफ़ देखी जा रही है। गैर अधिमान्य पत्रकारों ने इस फैसले को भेदभाव पूर्ण एवं विभाजकारी बताते हुए अपने हक़ के लिए आवाज़ बुलंद की है।
सिर्फ अधिमान्य पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर्स का दर्जा दिए जाने की खबर आने के बाद से ही सोशल मीडिया पर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं लगातार आ रहीं वे अधिकांश असंतोषजनक हैं। गैर अधिमान्य पत्रकारों को जानबूझकर नजर अंदाज करते हुए लिए गए इस फैसले की चौतरफा कड़ी आलोचना हो रही है। वहीं इससे प्रभावित पत्रकार अपनी उपेक्षा से न सिर्फ आहत हैं बल्कि वे खुलकर अपनी नाखुशी जाहिर करते हुए तथ्यों के साथ बाजिव सवाल भी उठा रहे हैं।
एक अनुमान के मुताबिक मध्य प्रदेश के कुल पत्रकारों में बमुश्किल 2-3 फीसदी को ही इसका लाभ मिलेगा। इससे जाहिर है बहुसंख्यक पत्रकार गैर अधिमान्य हैं। एक सच्चाई यह भी है कि ग्राउण्ड रिपोर्टिंग/फील्ड में काम करने वाले पत्रकारों में भी 95 फीसदी से अधिक पत्रकार ऐसे हैं जिनके पास अधिमान्यता नहीं है। अर्थात ये वही पत्रकार हैं जोकि कोरोना वायरस संक्रमण की वैश्विक महामारी के इस भीषण संकट के दौर में अपनी जान हथेली पर रखकर सजग प्रहरी की भूमिका का बखूबी निर्वहन करते हुए जमीनी हालात को सामने लाने का काम पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं। साथ ही आम नागरिकों और प्रशासन के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी बने हुए हैं।
तमाम तथ्यों की जानकारी के बाद भी पत्रकारों की सुरक्षा की चिंता और उनके प्रति सहानुभूति के नाम सिर्फ अधिमान्यता प्राप्त गिनती के पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर घोषित करने का फैसला प्रदेश के सैंकड़ों पत्रकारों के साथ अन्याय करने जैसा है। शिवराज सरकार के इस कदम से गैर अधिमान्य पत्रकारों में हलचल बढ़ गई है, क्योंकि इसे वे अपने वजूद/पत्रकारिता को नकारे जाने के तौर पर देख रहे हैं।
शायद यही वजह है कि इस विवादित फैसले पर सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर असंतोष के स्वर बेहद तेजी और मुखरता से बुलंद हो रहे हैं। बहरहाल, यह मुद्दा मध्य प्रदेश के गैर अधिमान्य पत्रकारों को अपने हितों के लिए संगठित होकर संघर्ष करने के लिए प्रेरित कर रहा है। प्रदेश में वैसे तो पत्रकारों के तमाम संगठन है लेकिन इसके बाद भी पत्रकार असंगठित हैं। इसका एक बड़ा कारण तथाकथित पत्रकार संगठन पत्रकारों के हितों का संरक्षण करने में नाकाम रहे हैं।
पत्रकारों के संगठनों की आड़ में इनके मुखिया एक सूत्रीय एजेण्डे के तहत सरकारी सुविधाभोगी बनकर स्वयं के फीलगुड तक ही सीमित हो गए हैं। जाहिर है ऐसे संगठनों से पत्रकारों का मोह भंग हो चुका है।
प्रदेश सरकार के द्वारा गैर अधिमान्य पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर घोषित न करने से उनमें जिस तरह से तीव्र असंतोष और गहरी नाराजगी व्याप्त है उससे एक बात स्पष्ट है कि उनके लिए यह मसला किसी दर्जे/तमगे से ज्यादा अब स्वयं के अस्तित्व का सवाल बन चुका है। इन हालात में गैर अधिमान्य पत्रकार अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए क्या कदम उठाते आने वाले दिनों इस पर सबकी नजरें रहेंगी।

सरकार के फैसले पर कौन-क्या बोला

सिर्फ अधिमान्य पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर घोषित करने के फैसले पर घिरी शिवराज सरकार की सोशल मीडिया पर कड़ी आलोचना हो रही है। इस मामले में सैंकड़ों की संख्या में पत्रकारों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उनमें से ट्विटर पर आईं कुछ चुनिंदा टिप्पणियों को आप यहां पढ़ सकते हैं –
प्रशांत मिश्रा ने ट्विटर हैंडल @pkshujalpur से मुख्यमंत्री कार्यालय (CMOMadhyaPradesh) को जवाब देते लिखा कि – जिन्हें अधिमान्यता का सरकारी तमगा नहीं मिला वे पत्रकार नहीं हैं क्या ? शिवराज जी का भेदभावपूर्ण निर्णय।”
अरुण साथी @arunsathi लिखते हैं- ईमानदारी से करना है तो सभी पत्रकारों के लिए करिये। नीतीश जी की तरह।”
कनिका अरोरा @KANIKAJOURNO ने अपने ट्वीट में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के फैसले पर आभार जताते हुए उनसे यह मांग भी की है, गैर अधिमान्य पत्रकारों को भी फ्रंट लाइन वर्कर घोषित किया जाए। कनिका लिखतीं हैं- मुख्यमंत्री जी का आभार और एक और गुहार, आपसे एक और निवेदन है कि सभी पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर घोषित कीजिये क्योंकि गैर अधिमान्य पत्रकार भी कोरोना काल में अपने कर्तव्य पथ पर अपनी जान जोखिम में डालकर पूरी शिद्दत से जुटे हैं।”
हर्ष बंशल @hbansal18 ने लिखा है- मामा जी, जो पत्रकार अधिमान्य नहीं है तो क्या वे सभी पत्रकार नहीं है??? जरा सोचिए अपने शब्दों को और पत्रकारिता क्षेत्र में कार्यरत सभी पत्रकारों को यह अधिकार दीजिए!!!
ट्विटर यूजर नीतेन्द्र झा @NitendraJha1 ने अपनी नाराजगी कुछ इस तरह जाहिर की है- बिना अधिमान्यता के कलम के सिपाही जान जोखिम में नहीं डालते क्या। पत्रकारिता में भी राजनीति। अंग्रेज चले गये लेकिन फूट डालो राज्य करो की नीति छोड़ गये। सभी पत्रकारों को फ्रंट लाईन वारियर्स घोषित होना चाहिए।”
विवेक अग्निहोत्री @VivekAgni1 ने अपना दुःख और पीड़ा जाहिर करते हुए लिखा- प्रदेश के लीडिंग मीडिया संस्थान के पत्रकार के रूप में संक्रमण का खतरा उठा कर हम भी फ्रंट लाइन में डटे हुए हैं, क्या सिर्फ अधिमान्यता नहीं होने के कारण प्रदेश सरकार हमें नकार देगी ? मा. मुख्यमंत्री जी, इस गंभीर आपदा में हमे यूं बेसहारा न छोड़ें हमारा भी हाथ थामें।”
शिव शंकर पाण्डेय @sonushive11 ने की मांग है कि- आदरणीय मुख्यमंत्री महोदय, आपके द्वारा अधिमान्य पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर मानने का निर्णय प्रशंसनीय है लेकिन अधिमान्य पत्रकार के साथ वे पत्रकार भी फील्ड में जान दांव पर लगाकर काम कर रहे है जो अधिमान्य नही है। कृपया उनको ध्यान में रख निर्णय लेने की कृपा करें।”
डेविड दास @David_Das_ ने तंज भरे अंदाज में अपनी प्रतिक्रिया में शिवराज सरकार को आगाह करते लिखा- वाह साहेब बढ़िया ऑफर है और देर से ही सही पर सराहनीय पर ऐसा करके आपकी कमियों को ये न उजागर करे ऐसा संभव नहीं आदरणीय अभी भी कई ऐसे सही पत्रकार जिंदा है जो हमें सत्य जरूर बताएंगे आपके ऑफर पर ये अपनी जिम्मेदारी छोड़ दे ये असम्भव।”