लोकसभा चुनाव | खजुराहो सीट पर दावेदारों की तादाद देखते हुए प्रत्याशी चयन में सतर्कता बरत रहीं पार्टियाँ, संगठन के फीडबैक और सर्वे रिपोर्ट के मंथन से तय होंगे भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार
* बदली हुई परिस्थतियों में भाजपा के सामने अपने गढ़ को बचाने की चुनौती
* सपा-बसपा गठबंधन में सपा कोटे में सीट जाने का कांग्रेस को मिल सकता है लाभ
शादिक खान (पन्ना), सत्येंद्र गौतम (कटनी)। रडार न्यूज लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है, किसी भी समय चुनाव की तारीखों का एलान हो सकता है। आमचुनाव को लेकर भारत निर्वाचन आयोग की तैयारियाँ तेजी से चल रही हैं, जिसे देखते हुए राजनैतिक दलों ने भी उम्मीदवारों के चयन की कवायद तेज कर दी है। मध्यप्रदेश में दोनों ही प्रमुख पार्टियों भाजपा और कांग्रेस की ओर से जीत की प्रबल संभावना वाले सुयोग्य उम्मीदवारों के चयन को लेकर जारी प्रक्रिया के तहत अपने मोर्चा, संगठन, विभाग और प्रकोष्ठों के पदाधिकारियों से रायशुमारी की है। विधायकों-पूर्व विधायकों एवं अन्य जनप्रतिनिधियों से भी नाम माँगे हैं। इस तरह विभिन्न स्तर से आने वाले नामों को छानकर प्रत्येक सीट पर संभावित प्रत्याशियों के नामों का पैनल तैयार कर प्रदेश से पार्टी हाईकमान को भेजा जा रहा है। उधर, दोनों ही पार्टियों की और से दावेदारों के नामों को लेकर अंदरूनी सर्वे भी कराए जा रहे है। जिसकी रिपोर्ट संबंधित एजेंसी द्वारा सीधे केन्द्रीय नेतृत्व को सौंपी जाएगी।
भारतीय जनता पार्टी ने संघ से भी उसकी पसंद पूँछी है। इन नामों पर मंथन करके दोनों ही पार्टियाँ सक्षम उम्मीदवारों पर दांव लगाएंगी। अंदरखाने की चर्चाओं को मानें तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशियों के चयन में प्रदेश के क्षत्रपों की अहम भूमिका रहेगी। जबकि भाजपा के उम्मीदवार अंदरूनी सर्वे रिपोर्ट से तय होंगे। दोनों ही प्रमुख दल सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के आधार पर उम्मीदवारों का चयन को तरजीह देते हुए प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से कुछ पर जहां पुराने चेहरों को फिर से चुनावी महासमर में उतार सकते हैं, तो कुछ सीटों पर नए चेहरों पर भी दांव लगाए जाने की बात कही जा रही है। पुराने चेहरों में वर्तमान एवं पूर्व सांसद से लेकर पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक बताए जा रहे हैं।
मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल की खजुराहो लोकसभा सीट की बात करें तो यहाँ कांग्रेस और भाजपा के खेमे में प्रत्याशी चयन को लेकर काफी खींचतान है। दरअसल, इसका कारण दावेदारों की तादाद ज्यादा होना है। दावेदारों के नामों पर मंथन करके दोनों ही पार्टियों की प्रदेश चुनाव समिति संभावित प्रत्याशियों के नामों का पैनल केन्द्रीय चुनाव समिति को भेज चुकी हैं। मिशन-2019 के लक्ष्य को हर हाल में प्राप्त करने के लिए भाजपा और कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार के चयन को लेकर विशेष सतर्कता बरती जा रही है। प्रदेश समिति से प्राप्त नामों और अन्य स्रोतों से आये नामों पर शीर्ष स्तर पर बैठकों में गहनतापूर्वक विचार-विमर्श किया जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि पार्टी की विचारधारा में आस्था रखने और आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सक्षम, स्वच्छ छवि तथा जीत की प्रबल संभावना वाले सुयोग्य दावेदार को दोनों ही पार्टियाँ संसदीय सीट से प्रत्याशी घोषित कर सकती हैं। संभवतः इस महीने के अंत तक प्रत्याशियों के नामों का ऐलान हो सकता है।
बीजेपी का मजबूत किला कहलाने वाली खजुराहो सीट पर इस बार पार्टी के सामने कई गंभीर चुनौतियाँ हैं। मसलन, प्रदेश में हुआ हालिया सत्ता परिवर्तन, बसपा-सपा गठबंधन से बने समीकरण, लगातार जीत के बाद भी अति पिछड़े इस इलाके को भाजपा सांसदों द्वारा केन्द्र से कोई महत्पूर्ण सौगात न दिला पाना और वर्तमान सांसद नागेन्द्र सिंह की निष्क्रियता चुनाव में भाजपा के लिए परेशानी का सबब साबित होगी। पार्टी के रणनीतिकारों को इसका भली-भाँति एहसास है। उल्लेखनीय है कि खजुराहो सीट के नए स्वरुप में अस्तित्व में आने के बाद यहाँ पर वर्ष 2009 में भाजपा-कांग्रेस के बीच अब तक का सबसे नजदीकी मुकाबला हुआ था। इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार राजा पटैरिया को भाजपा प्रत्याशी जीतेन्द्र सिंह ने करीब 27 हजार मतों के अंतर से पराजित किया था। वर्ष 2014 के चुनाव में कांग्रेस ने राजा पटैरिया को पुनः उम्मीदवार बनाया लेकिन मोदी लहर के चलते इस क्षेत्र के लोगों के लिए पूर्णतः अपरचित पूर्व मंत्री नागेंद्र सिंह करीब ढ़ाई लाख मतों के विशाल अंतर से चुनाव जीत गए। सांसद नागेन्द्र की निष्क्रियता ने इस क्षेत्र के लोगों को काफी निराश किया है। संसद में जहाँ वे अहम मुददों पर खामोश रहे वहीं चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र में उनकी उपस्थिति भी नगण्य बनी रही। हालिया विधानसभा चुनाव में सतना जिले की नागौद सीट से चुनाव जीते नागेन्द्र सिंह भी मानते हैं वे कि सांसद रहते हुए जनाकांक्षाओं की कसौटी खरे नहीं उतर सके। जिसका खामियाजा आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को भुगतना पड़ सकता है।
बहरहाल, तमाम चुनौतियों के बाबजूद पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों के आँकड़े भाजपा के इस किले को अभेद बनाते हैं। यह निष्कर्ष कांग्रेस के लिए चिंता का सबब है। चार माह पूर्व 2018 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव परिणामों पर गौर करें तो खजुराहो संसदीय क्षेत्र अंतर्गत आने वाली 8 विधानसभा सीटों में सिर्फ 2 सीटें (पन्ना जिले की गुनौर और छतरपुर जिले की राजनगर) ही कांग्रेस के पास है, शेष सभी सीटों पर भाजपा का कब्ज़ा है। फलस्वरूप भाजपा के अंदर यह सोच लगातार मजबूत हो रही है कि खजुराहो सीट से टिकिट मिलने का मतलब जीत की गारण्टी है। शायद यही वजह है कि इस बार लोकसभा के टिकिट के लिए भाजपा से डेढ़ दर्जन से अधिक दावेदार सामने आये हैं। वहीं कांग्रेस से दो दर्जन नेताओं ने टिकिट के लिए दावेदारी पेश की है।
ये हैं टिकिट के दावेदार
बीजेपी से पूर्व मंत्री सुश्री कुसुम सिंह महदेले, पूर्व विधायक विजय बहादुर सिंह बुंदेला, पूर्व विधायक गिरिराज किशोर पोद्दार, पूर्व विधायक ध्रुव प्रताप सिंह, पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह गुड्डू, किसान नेता उमेश सोनी, पन्ना भाजपा जिलाध्यक्ष सतानंद गौतम, घासीराम पटेल, एडवोकेट विनोद तिवारी, पीताम्बर टोपनानी, अश्विनी गौतम, पन्ना सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष संजय नगायच, सुधीर शर्मा, विनोद टिकरिया, रमेश शुक्ला, अनुपमा सिंह लोधी, जयप्रकाश चतुर्वेदी, देवीदीन दुबे, चमनलाल आनंद शामिल हैं। उधर, भाजपा के कुछ बड़े नेताओं की नज़र भी खजुराहो सीट पर है। जबकि कांग्रेस के दावेदारों में पूर्व मंत्री राजा पटैरिया, मुकेश नायक, रामकृष्ण कुसमरिया, पूर्व विधायक सौरभ सिंह, पूर्व विधायक श्रीकांत दुबे, मनोज त्रिवेदी, पदमा शुक्ला, चंद्रिका प्रसाद दिवेदी, नीरज सिंह, अनुराधा शेंडगे, धीरज तिवारी गुड्डू, गिरधारी लोधी, रावेन्द्र प्रताप सिंह, निरंजन पंजवानी, सुनील मिश्रा पूर्व विधायक, अजय अहिंसा, कविता सिंह, फिरोज खान, रविन्द्र शुक्ला, बृजेन्द्र मिश्रा उर्फ़ राजा भैया, मीना यादव, शारदा पाठक, भरत मिलन पाण्डेय, दिव्यारानी सिंह, वीरेन्द्र दिवेदी, राकेश जैन कक्का के नाम चर्चा में हैं। मजेदार बात यह है कि विजराघवगढ़ विधायक संजय पाठक को प्रत्याशी बनाए जाने की अटकलें भी दोनों ही पार्टियों में स्थानीय स्तर पर लगती रहती हैं। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की अल्पमत की सरकार और भाजपा तथा कांग्रेस के विधायकों की संख्या के करीबी अंतर को देखते हुए जानकारों को लगता है कि कोई भी पार्टी फिलहाल अपने विधायक को चुनावी रण में नहीं उतारेगी।
चुनावी विश्लेषकों की मानें तो भाजपा से पूर्व मंत्री सुश्री कुसुम सिंह महदेले, पूर्व विधायक विजय बहादुर सिंह बुंदेला, पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह गुड्डू, पूर्व विधायक गिरिराज किशोर पोद्दार, युवा नेता संजय नगायच और कांग्रेस से पूर्व मंत्री राजा पटैरिया, मुकेश नायक, रामकृष्ण कुसमरिया, पूर्व विधायक सौरभ सिंह, मनोज त्रिवेदी में से किसी के आमने-सामने होने पर चुनावी मुकाबला दिलचस्प हो सकता है। पूर्व मंत्री सुश्री कुसुम सिंह महदेले, पूर्व विधायक विजय बहादुर सिंह बुंदेला, पूर्व मंत्री राजा पटैरिया, मुकेश नायक, रामकृष्ण कुसमरिया ऐसे नाम जिनसे क्षेत्र के लोग परिचित हैं। हालाँकि रामकृष्ण कुसमरिया की समस्या यह है कि भाजपा में रहते हुए उन्हें इस क्षेत्र के लोगों ने कई बार सांसद चुना लेकिन वे जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। पिछले महीने ही कांग्रेस में शामिल हुए कुसमरिया को कांग्रेसी स्वीकार्य कर पाएंगे यह भी बड़ा सवाल है। उन्हें प्रत्याशी बनाये जाने की स्थिति में कांग्रेस नेतृत्व पर अपने वादे के विपरीत पैराशूट उम्मीदवार उतारने का तोहमत भी लग सकता है।
कांग्रेस में पूर्व मंत्री मुकेश नायक निश्चित ही बड़ा नाम है, लेकिन पवई और कटनी में उन्हें अपनी ही पार्टी के नेताओं का कड़ा विरोध झेलना पड़ सकता है। रहा सवाल पूर्व मंत्री राजा पटैरिया का तो उन्हें अवसर मिलने की स्थिति में लगातार दो चुनाव हारने के बाद भी क्षेत्र में सक्रियता बनाए रखने के फलस्वरूप मतदाताओं की सहानुभूति मिल सकती है। इनके पक्ष में एक बात यह भी है समूचे खजुराहो संसदीय क्षेत्र में गाँव-गाँव इनके अपने लोग है। क्षेत्र के मतदाता और पार्टी नेता-कार्यकर्ता भी इन्हें भलीभाँति जानते है। लेकिन, राजा पटैरिया की सबसे बड़ी परेशानी चुनावी प्रबंधन न कर पाना है जिसका नुकसान उन्हें पिछले चुनावों में हार के रूप में झेलना पड़ा है। खजुराहो संसदीय क्षेत्र में पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की निर्णायक स्थिति को देखते हुए भाजपा से पूर्व मंत्री सुश्री कुसुम सिंह महदेले मजबूत उम्मीदवार साबित हो सकती हैं। हालाँकि पूर्व विधायक विजय बहादुर सिंह बुंदेला, पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह गुड्डू, पूर्व विधायक गिरिराज किशोर पोद्दार और संजय नगायच को भी कमतर नहीं आँका जा सकता। इनका जहाँ लोगों से व्यक्तिगत जुड़ाव है वहीं युवा मतदाताओं का भी इन्हें समर्थन मिल सकता है।
कांग्रेस को वोट कर सकते हैं बसपा के वोटर ?
मध्यप्रदेश में बहुजन समाज पार्टी BSP और समाजवादी पार्टी SP के बीच हुए गठबंधन के तहत खजुराहो सीट सपा के खाते में गई है। अर्थात इस सीट पर समाजवादी पार्टी की ओर से अपना उम्मीदवार उतारा जाएगा। लेकिन सपा के उम्मीदवार को बसपा के मतदाता वोट करेंगे इस बात को लेकर बसपा के अंदर ही संशय बरक़रार है। दरअसल, इन्हें डर है कि बसपा उम्मीदवार के न होने पर उसका आधार वोट बैंक कहे जाने वाले दलित मतदाता कांग्रेस के पक्ष में वोट कर सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा के किले में सेंध लग सकती है। दलित मतदाता कांग्रेस के साथ इसलिए भी जा सकते हैं क्योंकि बसपा से पहले वे कांग्रेस में ही थे। खजुराहो संसदीय क्षेत्र में दलित मतदाताओं की तादाद भी 2 लाख से अधिक बताई जाती है। इसके अंतर्गत आने वाली पन्ना जिले की गुनौर और छतरपुर की चंदला विधानसभा सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है।
जानकारों की मानें बसपा का 20-25 फीसदी वोट भी यदि कांग्रेस के साथ आया तो भाजपा मुश्किल में पड़ सकती है। वैसे भी, इस समय किसानों की कर्जमाफ़ी, विवाह योजना की सहायता राशि में दोगुनी वृद्धि और बेरोजगार युवाओं के पंजीयन के चलते माहौल कुछ हद तक कांग्रेस के पक्ष में है। इन परिस्थितियों में कांग्रेस पार्टी यदि दलितों को अपनी ओर खींचने अथवा उनके वोटों में सेंध लगाने में सक्षम प्रत्याशी पर दाँव लगाती है तो उसकी संभावना कहीं बेहतर हो सकती है। उधर, समाजवादी पार्टी से अभी तक कोई दावेदार सामने सामने नहीं आया है। उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे खजुराहो संसदीय क्षेत्र में सपा का कोई निश्चित वोट बैंक भी नहीं है, यह प्रत्याशी, जातिगत समीकरणों और परिस्थितियों के आधार पर घटता-बढ़ता रहता है। कुल मिलाकर इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच रोचक मुकाबला होने के आसार हैं, लेकिन चुनावी तस्वीर प्रत्याशी घोषित होने के बाद ही साफ़ होगी।