
* विवादित नदी जोड़ो परियोजना को लेकर सब्जबाग दिखा रही सरकार ने प्रभावितों की मांगों पर मौन साधा
* भूमि अधिग्रहण में मनमानी के खिलाफ 25 गांव के लोगों ने प्रस्तावित बांध क्षेत्र में किया जल सत्याग्रह
* भाजपा सरकार के खिलाफ महापंचायत में वोट बंदी, चूल्हा बंदी और ग्राम बंदी जैसे कठोर कदम उठाने का ऐलान
शादिक खान, पन्ना/बिजावर। (www.radarnews.in) क्या आपको सिंगूर याद है! आप उसके बारे में क्या जानते हैं ? यह किसी परीक्षा में पूंछे गए प्रश्न नहीं हैं। इसलिए दिमाग पर जोर डालने के बाद भी अगर कुछ याद ना आ रहा हो तो कोई बात नहीं, हम आपको बता देते हैं। पश्चिम बंगाल में स्थित सिंगूर वर्ष 2006 में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ ऐतिहासिक आंदोलन को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियों में आया था। सिंगूर में टाटा की नैनो कार फैक्ट्री को लेकर जमीन अधिग्रहण के विरोध में तत्कालीन विपक्ष की तेज-तर्रार नेत्री ममता बनर्जी ने बड़ा और सफल जन आंदोलन चलाया था। भूमि अधिग्रहण के खिलाफ सिंगूर के ऐतिहासिक आंदोलन को चलाकर ममता बनर्जी राष्ट्रीय फलक पर चमकीं और पांच साल बाद हुए विधानसभा के चुनाव में उन्होंने पश्चिम बंगाल में 34 साल पुराने वामपंथी शासन को उखाड़ दिया था। सिंगूर के आंदोलन को आज़ाद भारत के इतिहास में जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ सबसे बड़े जन आंदोलन के तौर पर देखा जाता है।
अब बात मुद्दे की, इन दिनों मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड अंचल में बहुचर्चित केन-बेतवा लिंक परियोजना प्रभावित छतरपुर एवं पन्ना जिले के गांवों में जबरिया भूमि अधिग्रहण के खिलाफ सिंगूर सरीखे आक्रोश की आग अन्नदाता किसानों के सीने में सुलग रही है। बहुउद्देशीय केन-बेतवा लिंक परियोजना के निर्माण के लिए जारी भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई के खिलाफ परियोजना प्रभावित गांवों के लोग पिछले कुछ समय से लगातार आंदोलन कर रहे हैं। इसी क्रम में परियोजना के डूब क्षेत्र में आने वाले 25 ग्रामों के वाशिंदों द्वारा गुरुवार 5 अक्टूबर को जल सत्याग्रह किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में आदिवासी महिलाएं शामिल रहीं। जल सत्याग्रह पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में नदी जोड़ो परियोजना के तहत प्रस्तावित दौधन बांध स्थल पर किया गया। करीब सप्ताह भर के अंतराल में प्रभावित ग्रामीणों का यह दूसरा जल सत्याग्रह है। मेगा प्रोजेक्ट के लिए जमीनों का जबरिया भूमि अधिग्रहण करने पर आमादा प्रशासन की कार्रवाई का किसानों के द्वारा निरंतर कड़ा विरोध करने के बाद से ही पूरे इलाके में जबर्दस्त तनावपूर्ण स्थिति निर्मित है। अपने खेतों को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे ग्रामीणों में क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों व प्रशासन की भूमिका को लेकर बेहद गुस्सा और निराशा देखी जा रही है।
पर्यावरण से जुड़ीं चिंताओं के बीच सिर्फ लाभ गिना रहे

जल सत्याग्रह की अगुवाई करने वाले समाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर ने भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई में प्रशासन पर निर्धारित प्रक्रिया का पालन न कर खुली मनमानी करते हुए प्रभवितों के संवैधानिक अधिकारों का हनन करने सरीके बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है, केन-बेतवा लिंक पर प्रदेश सरकार एवं प्रशासन के एकालाप वाले रवैये के चलते परियोजना के डूब क्षेत्र प्रभावित ग्रामों के वाशिंदे अपनी न्यायोचित मांगों की उपेक्षा से आक्रोशित हैं। नदी जोड़ो परियोजना को लेकर पर्यावरण संबंधी गंभीर चिंताओं के बीच परियोजना के मात्र लाभ गिनाकर सब्जबाग दिखाने वाली सरकार बहादुर ने प्रभावितों के मुद्दे पर पूरी तरह मौन साध रखा है। जबकि इससे पर्यावरण पर पड़ने वाले व्यापक दुष्प्रभाव एवं हजारों लोगों के विस्थापन जैसे ज्वलंत मुद्दों पर जिम्मेदार कुछ भी बोलने या सुनने को तैयार नहीं है।
हर जुल्म का सामना करेंगे पर जमीन नहीं देंगे
