आंगनवाड़ी की सेवाओं से वंचित आदिवासी बाहुल्य ग्राम के बच्चे, स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति में कैसे होगा सुधार !

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सांकेतिक फोटो।

* पन्ना की ग्राम पंचायत रहुनिया के ग्राम पाली-बिजवारा व गुढ़हा का मामला

मासूम बच्चों को पूरक पोषण आहार एवं टेक होम राशन का नहीं मिलता लाभ

कागजों पर कुपोषण मिटाने में जुटा महिला एवं बाल विकास विभाग का अमला

शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) मध्यप्रदेश की सरकार महिलाओं और बच्चों के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए का बजट खर्च करके महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से अनेकों योजनाएं संचालित की जा रहीं हैं। बावजूद इसके आपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो रहे हैं। आज भी मानव विकास सूचकांक में प्रदेश की स्थिति काफी खराब बनी है। पन्ना की बात करें तो कुपोषण, शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर एवं बच्चों के पोषण स्तर जैसे महत्वपूर्ण सूचकांकों के मामले में इस जिले की गिनती प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर अत्यंत ही बदहाल स्थिति वाले जिलों के रूप में होती है। इसका प्रमुख कारण महिला एवं बाल विकास विभाग की योजनाओं का क्रियान्वयन धरातल पर सही तरीके से न होना है।
विभागीय अधिकारी इस सच्चाई को भली-भांति जानते है लेकिन बजट को ठिकाने लगाने के लिए नीचे से ऊपर तक आंकड़ों का घालमेल करके कागजों पर कुपोषण को मिटाया जा रहा है। विडंबना यह है कि महिलाओं-बच्चों के पोषण स्तर एवं स्वास्थ्य से जुड़े कार्यक्रमों/योजनाओं में आंकड़ेबाजी का यह खेल उस प्रदेश में चल रहा है जहाँ के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान महिलाओं को अपनी बहिन बताते और उनके नौनिहालों को भांजा-भांजी कहते हैं।
जिले की पन्ना ग्रामीण परियोजना के अंतर्गत आने वाली आदिवासी बाहुल्य ग्राम पंचायत रहुनिया के ग्राम पल्थरा व गुढ़हा की आंगनवाड़ी का मामला इसका एक उदाहरण मात्र है। जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पल्थरा ग्राम की मिनी आंगनवाड़ी में कुल 52 बच्चे दर्ज हैं। जिसमें 0 से 6 माह के 4, 6 माह से 3 वर्ष के 27 और 3 से 6 वर्ष तक के 21 बच्चे शामिल हैं। पल्थरा से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति मजरा ग्राम पाली-बिजवारा के बच्चों के नाम भी इसी मिनी केन्द्र में दर्ज हैं लेकिन उन्हें पूरक पोषण आहार व टीएचआर का लाभ नहीं मिलता है।
पल्थरा की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ईशा बाई बतातीं हैं कि पाली-बिजवारा से केन्द्र की दूरी छोटे बच्चों के लिहाज से अधिक होने के कारण वहाँ के बच्चे पूरक पोषण आहार (नाश्ता और भोजन) गृहण करने कभी भी पल्थरा नहीं आते। ईशा बाई का दावा है कि उक्त दोनों गांवों के बच्चों एवं गर्भवती/धात्री महिलाओं को टीएचआर का नियमित रूप से वितरण उनके द्वारा प्रत्येक सप्ताह मौके पर जाकर किया जा रहा है।
आंगनवाड़ी केन्द्र पल्थरा में वितरण हेतु रखे टीएचआर की बोरियों को दिखाते हुए कार्यकर्ता ईशाबाई।
गौरतलब है कि ईशा बाई के अनुसार उसे हर माह 5 बोरी टीएचआर (टेक होम राशन) वितरण हेतु मिलता है जबकि 22 फरवरी अर्थात पिछले माह के तीन सप्ताह तक सिर्फ 1 बोरी टीएचआर का ही वितरण ही हुआ था। हलवा-खिचड़ी (टीएचआर) के पैकेट से भरी 4 बोरी केन्द्र में पैक रखीं थी। इससे स्पष्ट है कि नियमित रूप से प्रत्येक सप्ताह टीएचआर पैकेट वितरण के दावे में सच्चाई नहीं है। इसकी जानकारी मौके से परियोजना अधिकारी अशोक विश्वकर्मा को दी गई। हैरानी की बात तो यह है कि पाली-बिजवारा की महिलाओं-मासूम बच्चों को टीएचआर प्रत्येक सप्ताह नहीं बल्कि कभी-कभार ही मिलता है। बिजवारा की केशारानी आदिवासी कहती हैं कि सालभर में बमुश्किल 8-10 पैकेट टीएचआर ही मिल पाता है। दरअसल, पाली-बिजवारा की महिलाएं टीएचआर लेने के लिए पल्थरा नहीं जातीं जब कभी ईशा बाई उनके गांव में टीएचआर लेकर पहुँचती हैं तो वे उसे वितरित करती हैं।
पूरक पोषण आहार एवं टीएचआर से वंचित पाली-बिजवारा ग्राम के चंद मासूम बच्चे।
मालूम हो कि पाली-बिजवारा गांव में 6 माह से लेकर 6 वर्ष तक की आयु के 20 से अधिक बच्चे हैं जोकि पूरक पोषण आहार से तो पूरी तरह से वंचित हैं ही साथ ही उन्हें टीएचआर भी नियमित रूप से नसीब नहीं हो पा रहा है। कोरोना संकटकाल के दौरान करीब 6 तक आंगनवाड़ी केन्द्र बंद रहने के दौरान भी उक्त दोनों गांवों की पात्र महिलाओं और बच्चों को खाद्य सामग्री नहीं मिली। कुल मिलाकर पाली-बिजवारा ग्राम के बच्चों और महिलाओं को पल्थरा केन्द्र के माध्यम से आंगनवाड़ी की सेवाओं का लाभ मिल पाना व्यवहारिक तौर पर सम्भव नहीं है। आवश्यता इस बात की है कि उनके लिए स्थानीय स्तर ही नियमित रूप से पूरक पोषण आहार व टीएचआर वितरण की ठोस व्यवस्था बनाई जाए।

नहीं मिलता नाश्ता

टीएचआर वितरण के संबंध में जानकारी देते हुए पल्थरा ग्राम की आनंदरानी व संगीता बाई और दाईं तरफ खड़ीं आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ईशाबाई।
इधर, पल्थरा निवासी कुपोषित बच्चों की माँ आनंदरानी व संगीता बाई ने बताया कि उन्हें हर सप्ताह टीएचआर का सिर्फ एक पैकेट ही मिलता है। इसी तरह पल्थरा की आंगनवाड़ी में बच्चों को सिर्फ भोजन मिलता है नाश्ता इस बार एक भी दिन नहीं मिला। वहां भोजन भी मीनू के अनुसार वितरित नहीं हो रहा है।
मिनी आंगनवाड़ी केन्द्र पल्थरा में बच्चों को भोजन परोसते हुए रसोईया कौशल्या रानी।
रसोईया कौशल रानी से जब इस संबंध में पूंछा गया तो उन्होंने बड़ी ही साफगोई से बताया कि समूह की अध्यक्ष-सचिव के द्वारा जो भी खाद्य सामग्री मुहैया कराई जाती है उसी को पकाकर बच्चों को परोसा जाता है। सवाल यह उठता है कि महिलाओं-बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी योजनाओं का जमीनी स्तर पर सही तरीके से क्रियान्वयन न होने कारण कुपोषण से मुक्त स्वस्थ्य समाज का सपना कैसे साकार हो पाएगा।

महीने भर से वितरित नहीं हुआ पोषण आहार

मिनी आंगनवाड़ी केन्द्र गुड़हा में बच्चों के संग बैठीं कार्यकर्ता रीना बाई।
ग्राम पंचायत रहुनिया के ही अंतर्गत आने वाले ग्राम गुड़हा की मिनी आंगनवाड़ी में करीब एक माह से पूरक पोषण आहार का वितरण ही नहीं हुआ। सांझा चूल्हा समूह के द्वारा आंगनवाड़ी के बच्चों को नाश्ता और भोजन वितरण न करने की लिखित सूचना आंगनवाड़ी कार्यकर्ता रीना बाई के द्वारा बकायदा परियोजना अधिकारी पन्ना ग्रामीण को दी गई लेकिन पूरक पोषण आहार व्यवस्था को शुरू कराने की सुध जिम्मेदारों ने नहीं ली। इसका सीधा दुष्प्रभाव आंगनवाड़ी में दर्ज 57 मासूम बच्चों के पोषण स्तर पर पड़ रहा है।
गुड़हा के आंगनवाड़ी केन्द्र पर बच्चों को समूह के द्वारा नाश्ता-भोजन वितरण न करने के संबंध में परियोजना अधिकारी को दी गई लिखित सूचना की पावती।
विदित हो कि कोरोना संकट के चलते कई माह तक बंद रहे आंगनवाड़ी केन्द्रों को 26 जनवरी 2021 से बच्चों के लिए खोला जा चुका है। लेकिन गुड़हा की मिनी आंगनवाड़ी में 26 जनवरी से लेकर अब तक बच्चों को नाश्ता और भोजन वितरण न होने से महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों की उदासीनता का पता चलता है। जिम्मेदार अफसर विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन के माध्यम से विभाग की छवि चमकाने, कागज पर आंकड़ों का खेल दिखाकर बदहाल व्यवस्था और अपनी कारगुजारियों को छिपाने में जुटे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि महिलाओं-बच्चों के शारीरिक, मानसिक विकास, स्वास्थ्य एवं पोषण से जुड़ीं योजनाएं भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी की भेंट चढ़ चुकीं हैं। शायद यही वजह है कि पन्ना जिले के माथे पर लगा कुपोषण का कलंक मिट नहीं पा रहा है।

इनका कहना है –

“आपने जानकारी दी है शीघ्र ही मैं स्वयं पल्थरा और गुढ़हा ग्राम की आंगवाड़ी का निरीक्षण कर वस्तुस्थिति की जानकारी प्राप्त करूँगा। पाली-बिजवारा ग्राम की महिलाओं और बच्चों को आंगनवाड़ी सेवाओं का हर हाल में लाभ दिलाया जाएगा।”

– ऊदल सिंह, जिला कार्यक्रम अधिकारी, महिला एवं बाल विकास विभाग, पन्ना।