जागनी रास के रस में डूबे रहे पचास हजार से अधिक श्रृद्धालु सुन्दरसाथ
अमृतपान और नैनों को तृप्त कर मंत्रमुग्ध हुए सुन्दरसाथ
विद्वानों एवं धर्मगुरूओं ने बताया श्री रास का गहन अध्यात्मिक महत्व
“अंतर्राष्ट्रीय शरदपूर्णिमा महोत्सव में पूनम की महारास का दिन विशेष था। अखण्ड मुक्तिदाता निष्कलंक बुद्ध अवतार श्री प्राणनाथ जी 5 दिनों तक चलने वाले इस महारास में सुन्दरसाथ के साथ साक्षात उन्हें रासमण्डल में परमधाम के वास्तविक सुख एवं अध्यात्मिक दृष्टिकोण से रत करते हुए उनका जीवन धन्य करेंगे। शरदपूर्णिमा के अवसर पर पचास हजार से अधिक सुन्दरसाथ ने श्री जी को निहारकर अपने नैनों को तृप्त किया। जैसे ही मध्य रात्रि में बंगला जी दरबार साहब से श्री जी की सवारी रासमण्डल के लिए निकली वैसे ही रास के रचइया की, श्री प्राणनाथ एेयारे के जयकारों से पन्ना पवित्र नगरी गूंज उठी।“
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पन्ना। रडार न्यूज प्रणामी धर्म का सबसे पवित्र धाम श्री गुम्बट जी मंदिर जिसका प्रांगण ब्रम्ह चबूतरा (रास मण्डल) कहा जाता है। क्योंकि यहीं पर श्री प्राणनाथ जी ने अपने परम स्नेही सुंदरसाथ जी को श्री राज जी-श्यामा जी की अलौकिक अखण्ड रासलीला, जागिनी रास का दर्शन कराया था इसीलिये इसे जागिनी लीला भी कहा जाता है। उसी समय से अंतराष्टीय शरद पूर्णिमा महोत्सव के नाम से प्रतिवर्ष पांच पद्मावतीपुरी धाम पन्ना संपूर्ण विश्व की मुक्तिपीठ है। यहां विराजमान साक्षात अक्षरातीत पूर्णब्रम्ह के अलौकिक रास के आनंद में सराबोर होते हैं। इस आनंद में सराबोर होने पन्ना पहुंचे पचास हजार से अधिक सुन्दरसाथ उस क्षण के प्रत्यक्षदर्शी बने जब श्री प्राणनाथ जी की शोभयात्रा श्री बंगला जी मंदिर से निकलकर रासमण्डल में पधराई गई। बुधवार की रात जैसे ही श्रीजी की भव्य सवारी बंगला जी दरबार साहब से रासमण्डल में आई तो वहां उपस्थित हजारों सुंदरसाथ अपने पिया के साथ प्रेम रंग में डूब गये. यह अखण्ड रास का आयोजन पांच दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय शरद पूर्णिमा उत्सव के रूप में रात-दिन चलेगा।
सिंहासन को कंधों पर निकली सवारी-
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क्षर और अक्षर से भी परे जो मूल-मिलावा श्री राज के साथ जागिनी रास महोत्सव का शुभारंभ इसी बंगला जी मंदिर से होता है। इस महोत्सव में प्रणामी धर्म के सभी गादीपति, धर्मगुरू व संतगण उपस्थित रहकर कार्यक्रम में शामिल होते हैं। सर्वप्रथम श्री बंगला जी मंदिर में सेवा, पूजा व आरती हुई। तत्पश्चात श्री राज जी महाराज के दिव्य सिंहासन को मंदिर के पुजारियों द्वारा अपने कंधों पर लेकर श्री प्राणनाथ जी के जयघोष के साथ शोभयात्रा रात्रि ठीक 12 बजे निकली। शोभायात्रा निकलते ही उपस्थित हजारों की संख्या में प्रणामी धर्मावलम्बी सुंदरसाथ की भावनायें व उत्साह कुछ ध्सा दिखा जैसे कि श्री प्राणनाथ जी स्वयं पालकी में विराजमान हों। शोभायात्रा ब्रम्ह चबूतरे पर ही स्थित रासमण्डल में पधराई गई।
उमड़ा भक्तों का सैलाब-
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श्री राज जी की शोभयात्रा की एक झलक पाने के लिये बेताब रहे लगभग एक लाख सुंदरसाथ उस क्षणिक दर्शन पाने के लिये बेताब दिखे जो कभी श्री प्राणनाथ जी ने साक्षात जागिनी लीला कर इसी ब्रम्ह चबूतरे में सुंदरसाथ को दिखाया था। शाम 6 बजे से ही पूरा ब्रम्ह चबूतरा लहराते‘-उफनाते मानव सागर की तरह दिखने लगा. देश के कोने-कोने से आये सुंदरसाथ पारम्पारिक वेश-भूषा में सुसज्जित जन अपनी-अपनी बोलियों में भजन-कीर्तन करते नजर आये। दिल खोलकर सुधबुध भूलकर ऐसा नृत्य कर रहे थे मानों वे स्वयं परमात्मा श्री राज जी महाराज के साथ रास रमण कर रहे हों। ऐसी अनुभूति शायद ही कहीं देखने को मिलती हो जहां देश-विदेश के लोग समरसता की भावना से एकत्रित होकर एक ही भाव में प्रेम के रस में डूबे नजर आये।