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चुनाव से पहले नगायच का निष्कासन समाप्त होने से शुरू हुई अटकलें
पवई सीट टिकिट को लेकर भाजपा के खेमे में बढ़ने लगी सियासी हलचल
शादिक खान, पन्ना। रडार न्यूज मध्यप्रदेश में अबकी बार 200 पार के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व ने एक अहम निर्णय लेते हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अपने निष्कासित नेताओं की घर वापसी शुरू कर दी है। फलस्वरूपप बुधवार 3 अक्टूबर 2018 को जिला सहकारी केंद्रीय बैंक पन्ना के पूर्व अध्यक्ष संजय नगायच की चार साल बाद भाजपा में वापसी हो गई है। संजय की पार्टी में वापसी से उनके समर्थकों में जहां ख़ुशी की लहर व्याप्त है वहीं पवई और पन्ना सीट से भाजपा के टिकिट के प्रबल दावेदार माने जा रहे कई बड़े नेता इससे असहज हैं। दावेदारों के टेंशन की असल वजह इस फैसले के पीछे भाजपा प्रदेश नेतृत्व की मंशा अथवा रणनीति समझ में न आना है। उधर अचानक हुए इस निर्णय के बाद से कई तरह की चर्चाएं भी शुरू हो गई है। बहरहाल कल तक पन्ना जिले की पवई सीट से सर्वदलीय क्षेत्रीय संघर्ष समिति के तत्वाधान में क्षेत्रीय प्रत्याशी की मांग को लेकर जन जागरण अभियान चलाने वाले फायर ब्रांड नेता संजय नगायच की भाजपा में वापसी के बाद उनके सुर पूरी तरह बदल गए है। प्रेसवार्ता में पत्रकारों ने जब यह सवाल पूंछा कि आपकी मांग के अनुसार भाजपा ने पवई से यदि क्षेत्रीय व्यक्ति को प्रत्याशी नहीं बनाया और कांग्रेस या अन्य विपक्षी दल क्षेत्रीय व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाकर चुनावी समर में उतारते हैं तो क्या आप अपनी पूर्व घोषणा अनुसार दलगत राजनीति से ऊपर उठकर क्षेत्रीय उम्मीदवार का खुलकर समर्थन करेंगे ? संजय ने बिना किसी लागलपेट के अपने जबाब में कहा कि क्षेत्रीय प्रत्याशी की मांग पवई की जनभावनाओं से जुड़ा मुद्दा है जिसे भाजपा प्रदेश नेतृत्व के समक्ष प्रमुखता से रखा गया था, अब पार्टी नेतृत्व पर निर्भर है वह क्या निर्णय लेते हैं। हाँ, इतना स्पष्ट है कि पवई सीट से पार्टी जिसे भी टिकिट देगी मैं पार्टी के निर्णय का सम्मान करते हुए उसका प्रचार करूंगा। नगायच के हृदय परिवर्तन का हाल यह है कि पवई सीट से पूर्व मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह को प्रत्याशी बनाये जाने कि स्थिति में वे उनके लिए भी चुनाव प्रचार करने को तैयार हैं।
नायक बने विरोधी, बृजेन्द्र से नहीं परहेज
सर्वविदित है कि संजय नगायच और पूर्व मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह के बीच करीब एक दशक से छत्तीस का आंकड़ा है। दोनों ही एक-दूसरे का फूटी आंख नहीं देखते और खुलकर विरोध करते रहे हैं। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में नगायच ने बृजेंद्र सिंह के खिलाफ कथित रूप से कांग्रेस प्रत्याशी मुकेश नायक का समर्थन किया था। इसका नतीजा यह हुआ कि मंत्री रहते हुए बृजेंद्र सिंह को चुनाव में करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी। विधानसभा चुनाव में पार्टी विरोधी कार्य करने पर संजय नगायच को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था। इसके बाद संजय अपने धुर विरोधी बृजेंद्र प्रताप को पानी पी-पीकर कोसते रहे हैं। सोशल मीडिया में आपत्तिजनक पोस्ट भी करते रहे हैं। किसी ने सच ही कहा है, राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी कभी स्थाई नहीं रहती। अब देखिये न मुकेश नायक को जिताने के चक्कर में संजय भाजपा से निष्कासित हुए बाद में उन्हीं से विरोध हो गया। बदले हुए हालात आज नगायच अपने धुर विरोधी रहे बृजेंद्र प्रताप सिंह के लिए भी चुनाव प्रचार करने को तैयार हैं। वहीं प्रेससवार्ता के दौरान संजय नगायच और भाजपा जिलाध्यक्ष सतानंद गौतम के बीच गलबहियां देखकर उनकी अपनी पार्टी के लोग हैरान हैं। वे जिस तरह एक-दूसरे को आदर-सम्मान दे रहे थे उसे देखकर यह यकीन ही नहीं हो रहा था कि अतीत में इन दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ क्या-क्या नहीं कहा। लेकिन पार्टी के अंदर अब शायद ही कोई उसे याद करना या उस पर बात करना चाहेगा। रहा सवाल आमजनता का तो नेता यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी याददाश्त कमजोर है।
कमजोर पड़ी क्षेत्रीय प्रत्याशी की मांग
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सर्वदलीय क्षेत्रीय संघर्ष समिति की धुरी रहे संजय नगायच के अचानक भाजपा में रिटर्न होने से एक बार फिर चुनाव से पहले पवई सीट से क्षेत्रीय प्रत्याशी की मांग को लेकर चलाई जा रही मुहिम कमजोर पड़ती दिख रही है। पिछले कुछ चुनावों से क्षेत्रीय प्रत्याशी की मांग करने वालों के साथ यह सबसे बड़ी समस्या पेश आती रही है कि वे निर्णायक समय तक एकजुट नहीं रह पाते या फिर किसी भी दल से क्षेत्रीय व्यक्ति को टिकिट ना मिलने की स्थिति अपना प्रत्याशी उतारकर उसे विजयी नहीं बना पाये। उधर पूर्व में जब भी कांग्रेस या भाजपा ने क्षेत्रीय व्यक्ति को बतौर प्रत्याशी आजमाया है तो वह जीत हासिंल नहीं कर सका। इसलिए प्रमुख राजनैतिक दल कुछ चुनाव से क्षेत्रीय प्रत्याशी की मांग की उपेक्षा कर जीत की संभावना वाले नेताओं को टिकिट देते रहे है। लेकिन इस बार क्षेत्रीय प्रत्याशी की मांग को लेकर जिस तरह चरणबद्ध तरीके से अब तक गांव-गांव अलख जगाई गई उससे यह मांग क्षेत्रीय अस्मिता और जनभावनाओं से जुड़ा ऐसा मुद्दा बन गया जिसकी अनदेखी करना भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए मुश्किल हो रहा था। प्रबल होती क्षेत्रीयता की भावना के बीच सर्वदलीय संघर्ष समिति के सबसे बड़े रणनीतिकार संजय नगायच की अचानक नाटकीय तरीके से भाजपा में वापसी होने से इस अभियान को तगड़ा झटका लगा है।
बिना शर्त हुई पार्टी में वापसी !
संजय की वापसी को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रहीं है। भाजपा में वापसी के समय प्रेसवार्ता में पार्टी के प्रति उनके प्रेम-निष्ठा-समर्पण की बातें सुनकर लोग जहां हैरान हैं वहीं इन सबसे आगे बढ़कर क्षेत्रीय प्रत्याशी की मांग पर बदले हुए सुर से संजय नगायच की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। सर्वदलीय क्षेत्रीय संघर्ष समिति से जुड़े कांग्रेस और भाजपा के अन्य नेता अपने साथी नगायच का अप्रत्याशित रूप से हृदय परिवर्तन देखकर अचंभित हैं।बहरहाल भाजपा में अपनी वापसी को नगायच बेशर्त बता रहे है, लेकिन राजनीति के इस मंजे हुए खिलाड़ी को करीब से जानने वालों को यह अच्छी तरह पता है कि वे कितने महत्वकांक्षी है। उल्लेखनीय है कि पवई से बृजेंद्र सिंह पिछला चुनाव कांग्रेस के मुकेश नायक से करीब 11 हजार मतों के अंतर से हारे थे। मंत्री रहते हुए बृजेंद्र को शिवराज और मोदी लहर के बाबजूद मिली करारी शिकस्त के मद्देनजर चुनाव से पहले उनके धुर विरोधी संजय की घर वापसी भाजपा में क्या किसी नए समीकरण का सूत्रपात। राजनैतिक पंडित भी मानते है कि यह सब अनायास नहीं है बल्कि बदली हुई रणनीति का अहम हिस्सा है। पत्रकारों के कुरेदने पर संजय कह चुके हैं,- “पार्टी नेतृत्व पवई की गतिविधियों से भलीभांति अवगत है, मेरी सभी लोगों से बात हो चुकी है देखिए कुछ अच्छा होगा बस थोड़ा इंतजार करिए।”
क्या वाकई मिट गए मनभेद
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भाजपा में अपनी वापसी के समय संजय नगायच ने यह कहकर लोगों को भले ही चौंका दिया है कि बृजेंद्र प्रताप या अन्य किसी को टिकिट मिलने पर भी वे पार्टी के लिए ही काम करेंगे। लेकिन इससे यह मान लेना कि इनके बीच मनभेद दूर हो गए गलतफहमी पालना है। क्योंकि संजय की भाजपा में वापसी की घोषणा के समय जिले के सभी प्रमुख पार्टी नेता मौजूद रहे सिवाय मंत्री कुसुम मेहदेले और बृजेंद्र प्रताप सिंह को छोड़कर। बृजेन्द्र सिंह की अनुपस्थिति को लेकर यह बताया गया कि वे शाहनगर ब्लॉक के दूरस्थ ग्राम के दौरे पर है। गौरतलब है कि भाजपा के पन्ना जिला प्रभारी राजेंद्र गुरू प्रदेश नेतृत्व के निर्देश पर सिर्फ इस घोषणा के लिए दमोह से चलकर पन्ना आये थे लेकिन जिले में रहते हुए भी पूर्व मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह प्रेसवार्ता में शामिल नहीं हुए। जबकि सुश्री मेहदेले उस दिन भोपाल में थीं। संजय भी कह चुके हैं कि किसी व्यक्ति विशेष से मतभेद हो सकते हैं कि लेकिन उनकी गतिविधि कभी पार्टी के खिलाफ नहीं रही। भाजपा उनके खून और डीएनए में है। इन सब बातों का लब्बोलुआब यही है राजनैतिक हितों के टकराव और वर्चस्व को कायम रखने की होड़ के चलते पवई के इन दो दिग्गजों के रिश्ते सामान्य होना संभव नहीं है। टिकिट को लेकर भी इनके बीच टकराव होना तय माना जा रहा है। पवई सीट से टिकिट के लिए अभी तक सिर्फ कांग्रेस के खेमे में ही घमासान मचा था लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में भाजपा में भी प्रतिस्पर्धा रोचक हो गई है। चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद अब सब की नजरें इस बात पर टिकीं है कि पवई सीट से भाजपा इस बार किसे अपना प्रत्याशी बनाकर चुनावी समर में उतारती है।