
* ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के राजयोग प्रशिक्षण केन्द्र पन्ना में विश्व पृथ्वी दिवस पर आयोजित हुआ जन जागरूकता कार्यक्रम
पन्ना। (www.radarnews.in) प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के राजयोग प्रशिक्षण केन्द्र पन्ना (मध्य प्रदेश) में 22 अप्रैल को ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ जन जागरूकता कार्यक्रम के रूप मनाया गया। कार्यक्रम की मख्य वक्ता एवं राजयोग प्रशिक्षण केन्द्र पन्ना की प्रमुख ब्रह्माकुमारी सीता बहनजी ने भारत की धार्मिक मान्यताओं और संस्कृति का उदाहरण देते हुए बड़े ही सरल-सहज तरीके से धरती के महत्व को विस्तार से समझाया। आपने पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से मानव अन्य जीवों के समक्ष उपन्न संकट की भयावहता को रेखांकित करते हुए सभी से पृथ्वी को बचाने का आव्हान किया।
बहनजी ने सभी कार्यक्रम में उपस्थित भाई-बहनों को पृथ्वी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए बताया कि, पृथ्वी दिवस एक वार्षिक आयोजन है, जिसे पूरी दुनिया में 22 अप्रैल को पर्यावरण संरक्षण की जागृति के लिए 192 देश में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करके मनाया जाता है। वर्ष 1970 से पृथ्वी दिवस को मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य यह भूमि जोकि हमारी जननी है इसकी रक्षा करना है, इसे सुरक्षित रखना हम सबका कर्तव्य है। प्रतिदिन सवेरे जागते ही धरती मां को नमन करने की संस्कृति हमारी ही है। पृथ्वी हमारी माता है, पूरे ब्रह्मांड में कहीं पर भी पृथ्वी के बिना जीवन यापन असंभव है, क्योंकि जीवन की निरंतरता के लिए आवश्यक प्रत्येक महत्वपूर्ण संसाधन जैसे कि ऑक्सीजन, पानी, वायु इत्यादि केवल इस सृष्टि पर ही उपलब्ध है। लेकिन आज मनुष्य की अनैतिकता के कारण पृथ्वी अपनी ही संरचना को नष्ट कर रही है हमारे ही कर्मों ने आज पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों के जीवन को संकट में डाल दिया है।
बहनजी पृथ्वी पर लगातार गहराते संकट की भयाहता की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए बताया कि, संपूर्ण विश्व में व्याप्त विषाक्त वातावरण, वायु, जल एवं ध्वनि प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, वनों की कटाई तथा प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित दोहन के कारण पृथ्वी पर मौजूद जीवन में तेजी से जहर घुल रहा है। इसलिए पर्यावरण के विषयों पर ध्यान देना अति आवश्यक हो गया है। हमें पृथ्वी को बचाने के लिए अपने अप्राकृतिक जीवन में शीघ्र ही बदलाव लाने की बहुत आवश्यकता है।
धरती मां की सुनों पुकार

ब्रह्माकुमारी बहनजी ने कविता पाठ के माध्यम से धरती की पीड़ा को महसूस कराते हुए कहा कि “धरती मां की पुकार सुनो : मैं धरती हूं, तुम सब की मां” तुम्हारी प्यास बुझाने के लिए जिसने पानी उपलब्ध कराया, पानी के लिए नदियां उपलब्ध कराई, सांस लेने के लिए हवा, भूख मिटाने के लिए अन्न उपलब्ध कराया, अन्न के लिए जमीन और उस पर लहराती फसले उपलब्ध कराई, हमेशा सूरज के तप को बर्फ की पहाड़ियों की शीत को सहनकर अपनी धुरी पर दिन-रात दौड़ने वाली अंतरिक्ष की परिक्रमा करने वाली आज उसी मां की यह हालत हो चुकी है कि कंक्रीट के जंगलों के भार से ज्यादा व्यक्ति की लालच से हिल रही हूं। मानव की मनमानी चाहतों और महत्वाकांक्षाओं से आज धरती मां डसी जा रही हूं, मानव आकाश में आशियाने बनाता जा रहा है और मैं धरती मां होकर भी नीचे धसती जा रही हूं।
पौधे लगाने और प्लास्टिक का उपयोग न करने की प्रतिज्ञा
