* कुरीति को मिटाने के निर्णय की समाजजनों ने की सराहना
* शोकसभा कर मृत आत्मा की शांति के लिये की गई प्रार्थना
पण्डित मनीष सारस्वत/राजेन्द्र कुमार लोध, पन्ना। (www.radarnews.in) मृत्यु भोज लम्बे समय से बहस का मुद्दा रहा है। कई विद्वानों का मानना है कि यह एक सामाजिक बुराई है, इसे बंद किया जाना चाहिए। जबकि कुछ लोग इस वैदिक व्यवस्था के पक्षधर है। सबके अपने-अपने तर्क है। बावजूद इसके आधुनिक प्रगतिशील समाज में यह सोच लगातार मजबूत हो रही है कि अपनों का खोने का दुःख और ऊपर से तेरहवीं संस्कार पर भारी भरकम खर्च कहाँ तक उचित है। इस कुरीति के कारण कई दुःखी परिवार कर्ज के बोझ तले दब जाते है। जीवन भर कर्ज के कुचक्र से मुक्त नहीं हो पाते है। पन्ना जिले में लोधी समाज की बैठकों में लम्बे समय से मृत्यु भोज को बंद करने की बात होती रही है लेकिन इसकी शुरूआत समाज की युवा इकाई के जिलाध्यक्ष लोधी चन्द्रशेखर सिंह आज अपने घर से की है। उन्होंने अपनी माता जी स्वर्गीय सुमित्रा सिंह लोधी के निधन उपरांत तेरहवीं के दिन मृत्यु भोज आयोजित न करके सदियों से चली आ रही इस समाजिक कुरीति को मिटाने का साहसिक कदम उठाया है। अच्छी बात यह है कि समाजजनों ने उनके इस निर्णय की सराहना की है। समाज के प्रबुद्धजनों ने इस निर्णय को मानवीय, व्यवहारिक और दूरदर्शितापूर्ण बताया है।
परिजनों की सहमति से लिया फैसला
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय लोधी युवा महासभा जिला ईकाई पन्ना के जिलाध्यक्ष लोधी चन्द्रशेखर सिंह जी की माता स्व. सुमित्रा सिंह लोधी 74 वर्ष का गुरूवार 20 जून 2019 को दुखद निधन हो गया था। वे कुछ समय से बीमार चल रहीं थीं। उनके गृह ग्राम खोरा सरवंशी में उनका अंतिम संस्कार विधि-विधान के साथ परिवाजनों के द्वारा किया गया। लेकिन उनकी त्रियोदशी (तेरहवीं) पर मंगलवार 02 जुलाई 2019 को परिवार ने मृत्यु भोज का आयोजन नहीं किया। यह निर्णय परिवार के सभी सदस्यों की पूर्ण सहमति से लिया गया। इसके पीछे मंशा तेरहवीं के मृत्यु भोज की सदियों पुरानी कुप्रथा को सामाप्त करने का संदेश देना है। कई विद्वानों का मानना है कि कोई भी उपदेश और संदेश तभी सार्थक और प्रभावी साबित होता है जब व्यक्ति स्वंय उसे अपने व्यवहार में उतारते है। मृत्यु भोज को बंद करने की समाजिक स्तर पर चल रही चर्चाओं के बीच लोधी समाज की युवा इकाई के अध्यक्ष चन्द्रशेखर लोधी ने इसकी शुरूआत अपने घर से करके समाज के समक्ष अनुकरणीय उदहारण प्रस्तुत किया है।
समाज सुधार की दिशा में क्रांतिकारी कदम

प्राप्त जानकारी के अनुसार मंगलवार 02 जुलाई चंद्रशेखर की माता जी की तेरहवीं थी। जिसमें बड़ी संख्या में दूर-दूर से समाज के लोग, परिचित और क्षेत्रवासी शामिल हुये। लेकिन आर्थिक रूप से सक्षम होने के बावजूद चन्द्रशेखर ने तेरहवीं पर मृत्युभोज आयोजित नहीं किया। बेशक उनका यह निर्णय कतिपय लोगों को रास नहीं आया पर उन लोगों की तादाद कहीं अधिक है जो कि इस निर्णय को समाज सुधार की दिशा में क्रांतिकारी कदम बताते हुये उसके पक्ष में दृढ़ता के साथ खड़े हैं। उनकी इस भावना और निर्णय का पवई विधायक प्रहलाद लोधी, पूर्व जिला पंचायत सदस्य श्रीपाल लोधी एवं एन.पी. सिंह व्याख्याता स्वामी ब्रम्हानंद बौद्धिक संघ अध्यक्ष बुन्देलखण्ड ने खुले मन से स्वागत किया है।
.. ताकि कमजोर परिवारों को न हो अड़चन
