जंगलराज : वन विभाग के रोपण में सूख कर मर गए हजारों पौधे, क्या खरपतवार और झाड़ियाँ उगाने खर्चे थे करोड़ों ?

0
1102
समुचित देखरेख के आभाव में सूख कर मर चुके पौधों से उजागर होती रोपण की जमीनी हकीकत।

* सीमेंट पोल धराशाई होने से गिर गई सुरक्षा जाली

* कई सालों से अधूरे पड़े सुरक्षा श्रमिकों के आवास

* सच्चाई जानने के बाद भी कार्यवाही करने से कतरा रहे डीएफओ

शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में बिगड़े वनों के सुधार एवं विकास के नाम पर वन विभाग ने विगत वर्षों में पौधरोपण पर करोड़ों रुपए खर्च कर सामान्य व संरक्षित वन क्षेत्रों के अंतर्गत लाखों पौधे लगाए हैं, लेकिन इनकी समुचित देखभाल न होने से अधिकांश रोपणों में 90 फीसदी से अधिक पौधे सूख कर मर चुके हैं। कई रोपड़ों में तो पौधों की जगह चारा, खरपतवार, कटीली झाड़ियाँ उग आई हैं। गम्भीर अनियमितताओं और घोर लापरवाही की भेंट चढ़ चुके रोपणों में 1-2 वर्ष बाद भी जीवित पौधे (हरियाली) खोजना मुश्किल है। जिले के उत्तर वन मण्डल की पन्ना रेन्ज के वन खण्ड सकरिया बीट जनवार के अंतर्गत ग्राम छापर में हुए पौधरोपण इसका एक उदाहरण मात्र है। यहाँ वर्ष 2017-18 में कैम्पा मद से 40 हेक्टेयर क्षेत्र में सागौन के पौधरोपण में सागौन समेत अन्य प्रजातियों के तकरीबन 60 हजार एवं एफडीए शिल्पी पाश्चर रोपण मद से वर्ष 2018-19 में 30 हेक्टेयर क्षेत्र में सागौन तथा शीषम के 12 हजार पौधे रोपित कराए गए। बहुत सम्भव है कि कागजों में यह रोपण आबाद हो सकता है, लेकिन धरातल पर अपवाद स्वरूप गिनती के पौधों को छोड़ दें तो अधिकांश पौधे काफी पहले ही सूख कर पूरी तरह मर चुके हैं।
वनमंडलाधिकारी उत्तर वन मण्डल पन्ना के कार्यालय का फाइल फोटो।
रोपणों की बदहाली को देखते हुए इन पर खर्च हुए करोड़ों रुपए की उपयोगिता पर सवाल उठ रहे हैं। उधर, सच्चाई जानने के बाद भी जिम्मेदार अधिकारी किंकर्तव्यविमूढ़ बने बैठे हैं। इनके द्वारा अपने निकम्मेपन को छिपाने के और दोषियों को बचाने के लिए बड़ी ही बेशर्मी के साथ कुतर्क दिए जा रहे हैं। जिला मुख्यालय पन्ना से महज 7 किलोमीटर की दूरी पर सतना मार्ग पर एनएच- 39 किनारे स्थित जनवार बीट के ग्राम छापर के दोनों रोपड़ों की बदहाली वहाँ हुए भ्रष्टाचार की कहानी को स्वतः ही चींख-चींखकर को बयाँ कर रही है। लेकिन, वन विभाग में ऊपर से नीचे तक चलने वाली बंदरबाँट की व्यवस्था में यह नक्कारखाने की तूती बनकर रह गई है। करोड़ों रुपए की लागत के इन पौधरोपणों से क्षेत्र में हरियाली भले ही नहीं आई पर लगता है व्यवस्था से जुड़े लोगों तक इसकी हिस्सेदारी का फीलगुड सही तरीके से पहुँचा है। शायद इसीलिए मामला मीडिया में आने के बाद भी डीएफओ साहब के कानों जूँ तक नहीं रेंग रही है।

धराशाई हुए खम्भे गिर गई सुरक्षा जाली

जनवार बीट के सागौन कैम्पा रोपण के खम्भे टूटने से जगह-जगह गिरी पड़ी सुरक्षा जाली।
दोनों रोपण क्षेत्रों की बद से बद्तर स्थिति का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है जहाँ पर हजारों पौधे लगाए गए थे वहाँ पौधों की जगह चारा और खरपतवार उग आया है। हजारों पौधे पर्याप्त नमी एवं आवश्यक पोषक तत्वों (जैविक खाद,काली मिटटी आदि) के आभाव में सूखी टहनियों में तब्दील होकर पूरी तरह मर चुके हैं। इतना ही नहीं जगह-जगह सीमेंट पोल (खम्भे) धराशाई होने से रोपड़ की सुरक्षा जाली भी गिर चुकी है। इन हालात में वन्यजीव वहाँ आसानी घुसकर गिनती के बचे पौधों को भी उजाड़ सकते हैं। सूखे पत्तों की तरह बड़ी तादाद में सीमेंट पोल गिरने से इनकी गुणवत्ता और मापदण्डों पर सवाल उठना स्वाभाविक। साथ ही खम्भों को जमीन में गाड़ने के बाद सही तरीके से इनकी कॉन्क्रीटिंग नहीं करने की बातें भी सामने आ रहीं है। वर्तमान में दोनों रोपणों की जो हालत उसे देखकर प्रतीत होता है कि स्थल की समुचित सफाई के बगैर ही मनमाने तरीके से पौधे लगाए गए।
इन रोपणों के पूर्णतः असफल होने से वन विभाग को भले ही आर्थिक क्षति पहुँचीं हो लेकिन ये फॉरेस्ट के कतिपय अधिकारियों-कर्मचारियों की निहित स्वार्थपूर्ति के लिए ये बेहतरीन चारागाह साबित हुए है। पन्ना जिले के उत्तर वन मण्डल में व्याप्त भ्रष्टाचार और अराजकता का यह एक नमूना मात्र है। राजनैतिक संरक्षण और ऊँचीं पहुँच के चलते यहाँ वर्षों से जमे कतिपय अधिकारी-कर्मचारी वन विभाग को दीमक की तरह खोखला कर कथिततौर पर अनुपातहीन सम्पत्ति के मालिक बन चुके हैं। आमचर्चा यह भी है कि इनके द्वारा अपने रिश्तेदारों के नाम पर विभाग में निर्माण सामग्री की सप्लाई करने से लेकर माफियाओं के साथ हाथ मिलाकर वन क्षेत्र में अवैध पत्थर, हीरा खदानें संचालित की जा रहीं हैं और बड़े पैमाने पर सागौन की तस्करी कराई जा रही है। इस तरह कुछ लोग वन विभाग को दोतरफ़ा लूट रहे हैं।

मानसून की हरियाली में छिप जाएँगे गुनाह

उत्तर वन मण्डल की जनवार बीट अंतर्गत छापर गाँव में कैम्पा मद से सागौन के और एफडीए मद से हुए रोपणों में पौधों के मरने का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इनमें अधिकांशतः उन प्रजातियों के पौधे रोपित कराए हैं जिनमें गर्मी के मौसम में हरियाली आती है। लेकिन वहाँ उँगलियों पर गिने जा सकने वाले पौधों को छोड़ दें तो अधिकांश में कोंपलें तक नहीं फूटीं है। रिकार्ड के अनुसार इन रोपणों में सागौन, शीषम, आँवला, वेल, जामुन, सफेद सिरस के तकरीबन 70 हजार पौधे लगाए गए है। जानकारों के अनुसार इतनी बड़ी तादाद में लगे पौधों में यदि आधे पौधे भी जीवित होते तो काफी हरियाली दिखने लगती। लेकिन वहाँ तो जहां भी नजर दौड़ाओ वहाँ हर तरफ सूखा चारा और खरपतवार ही दिखाई देता है। कुछ-कुछ फासले पर मिट्टी के ढ़ेर में दबी बेजान सूखी टहनियाँ पौधों के मरने की गवाही दे रहीं हैं।
वन विभाग के नियम-कानूनों के मुताबिक रोपणों में पौधों के मरने की संख्या के आधार पर सम्बंधित बीटगार्ड से लेकर डीएफओ तक की जबाबदेही बनती है। उत्तर वन मण्डल अधिकारियों-कर्मचारियों के बीच साँठगाँठ को देखते हुए इस बात की पूरी सम्भावना है कि जनवार के रोपणों की यदि स्थानीय स्तर पर जाँच कराई गई तो इसका हश्र भी पूर्व के मामलों की ही तरह ही होगा। कुछ दिनों तक जाँच की औपचारिकता कर मामला शांत होने पर सम्बंधितों को क्लीनचिट दे दी जाएगी। सर्वविदित है कि आगामी दिनों में मानसून के सक्रिय होने से जंगल में हर तरफ प्राकृतिक तौर पर मौसमी हरियाली फैल जाएगी जिसमें इनके गुनाह कुछ समय के लिए छिप जाएँगे। इस स्थिति में रोपणों में पौधों के जीवित होने की निष्पक्ष जाँच बारिश के पूर्व ही सम्भव है।
रोपण में पौधों की जगह उगा चारा और खरपतवार।

अधूरे पड़े चौकीदारों के आवास

दो वर्ष से नींव स्तर पर पड़ा कैम्पा मद के सागौन रोपण में चौकीदार का आवास।
जनवार बीट अंतर्गत छापर गाँव में कैम्पा मद से सागौन के और एफडीए मद से हुए रोपणों में तैनात वन विभाग के सुरक्षा श्रमिकों के आवास आज भी अधूरे पड़े हैं। जबकि वहाँ पौधारोपण 1-2 वर्ष पूर्व हो चुके हैं। सुरक्षा श्रमिकों के आवास निर्माण को लेकर जिम्मेदारों की उदासीनता-लापरवाही को देखते हुए यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि रोपित पौधों की सुरक्षा को लेकर वे कितने सजग और ईमानदार हैं। आवास अधूरे होने के कारण सम्बंधित सुरक्षा श्रमिक रोपणों की सही तरीके से सुरक्षा नहीं कर पा रहे हैं। इस इलाके में बाघ की चहलकदमी के बाबजूद चौकीदारों की सुरक्षा के लिहाज से उनके अधूरे पड़े आवासों को पूर्ण कराने की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। मालूम हो कि छापर में कुल तीन रोपण हैं। इनमें सबसे पुराने रोपण में ही चौकीदार का आवास निर्मित है इसलिए अन्य दोनों रोपणों के चौकीदार भी उसी में किसी तरह निवास कर रहे हैं।
एफडीए रोपण में निर्मित बिना गेट का अधूरा चौकीदार आवास।
जनवार के बीटगार्ड से सुरक्षा श्रमिकों के आवास अधूरे होने की वजह पूँछने पर उन्होंने पहले तो निर्माण कार्य शीघ्र पूर्ण कराने की बात कही और फिर बोले कि तीनों रोपण आसपास स्थित होने से पृथक-पृथक आवास की आवश्यकता नहीं है। एक ही आवास में सभी सुरक्षा श्रमिक अच्छी तरह रह रहे हैं। पर जब उनसे पूँछा गया कि अलग-अलग आवास की यदि आवश्यकता नहीं है तो फिर उनका आधा-अधूरा निर्माण भी क्यों कराया गया। इस सवाल का वे कोई जबाब नहीं दे सके। मजेदार बात यह है कि जनवार में सुरक्षा श्रमिकों से जिस तरह आवास शेयर कराए जा रहे हैं यदि इसी तर्ज पर एक ही परिसर में रहने वाले वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारी आवास साझा कर रहने लगें तो वाकई पृथक-पृथक आवासों के निर्माण पर व्यय होने वाली राशि की कथित फिजूलखर्ची बंद हो जाएगी। उधर, इस मुद्दे पर जब उत्तर वन मण्डल के डीएफओ रामनरेश सिंह यादव से उनका पक्ष जानने के लिए मोबाइल पर सम्पर्क किया गया तो कई बार रिंग जाने के बाद भी उनका फोन रिसीव नहीं हुआ।
रोपण प्रोजेक्ट की लागत को छोड़ अन्य जानकारी बोर्ड पर प्रदर्शित की गई।

इनका कहना है –

“छापर के दोनों प्लान्टेशनों में रोपित पौधे मरे नहीं हैं वे जीवित हैं कुछ समय बाद वे हरे-भरे दिखने लगेंगे, रोपण कार्य पूर्णतः मापदण्डों के अनुसार कार्य गया इसमें सिर्फ मैनें ही नहीं बल्कि अन्य किसी ने भी किसी तरह का कोई भ्रष्टाचार नहीं किया है। घटिया कार्य और अनियमितताओं के आरोप पूर्णतः असत्य और निराधार हैं। इन रोपणों में पौधों की सिंचाई का प्रावधान नहीं है। जाँच होने पर आपके बेबुनियाद आरोपों की सच्चाई सामने आ जाएगी। आप इस सम्बंध में वरिष्ठ अधिकारियों से बात कर सकते हैं, इस सम्बंध मैं कुछ नहीं और कह सकता हूँ।”

प्रदीप गर्ग, बीटगार्ड जनवार

“गर्मी के मौसम में पौधों में पत्तियाँ भले न हों पर कोंपलें तो दिखने लगती हैं अगर ऐसा नहीं है तो मैं स्वयं शीघ्र ही मौके पर जाकर दोनों प्लान्टेशनों को देखूँगा। इसके बाद ही कुछ कह पाउँगा। सीमेंट पोल और सुरक्षा जाली गिरने की भी जाँच की जाएगी। प्लान्टेशनों के रखरखाव एवं सुरक्षा के लिए लगातार कई सालों तक राशि का प्रावधान रहता है। इस राशि का उपयोग कर मरे हुए पौधों के स्थान पर नए पौधे रोपित कराए जा सकते हैं और आवश्यकता अनुसार रोपण की मरम्मत कराई जा सकती है।”

के.एस. भदौरिया, प्रभारी मुख्य वन संरक्षक वृत्त छतरपुर।