कैसे मिटेगा कुपोषण का कलंक ! आंगनवाड़ी में नाश्ता और भोजन न मिलने से मायूस हैं मासूम नौनिहाल

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पूरक पोषण आहार से वंचित पाण्डेय पुरवा ग्राम की आंगनवाड़ी कि मासूम बच्चियां केन्द्र के बाहर बैठीं खाली कटोरी को चाटते हुए।

* पन्ना के पाण्डेय पुरवा ग्राम की आंगनवाड़ी में 15 दिन से नहीं हुआ पूरक पोषण आहार का वितरण

फरवरी माह के टेक होम राशन में विभाग ने की 60 फीसदी की कटौती

प्रत्येक माह 10 बोरी टेक होम राशन मिलता था इस बार सिर्फ 4 बोरी मिला

मवेशियों के तबेला वाले जर्जर मकान में किराए के कमरे में संचालित हो रहा आंगनवाड़ी केन्द्र

शादिक खान, ऋषि कुमार मिश्रा- पन्ना। (www.radarnews.in) मध्यप्रदेश में कोरोना महामारी के लंबे चले लॉकडाउन के कई माह बाद 26 जनवरी से आँगनवाड़ी केन्द्रों को खोला गया है। पन्ना जिले के अजयगढ़ ब्लॉक अंतर्गत आने वाली चर्चित ग्राम पंचायत विश्रामगंज के पाण्डेय पुरवा ग्राम के बच्चे आँगनवाड़ी केन्द्र के खुलने से कल तक काफ़ी खुश नजर आ रहे थे लेकिन आज वे काफी मायूस और दुखी हैं। इसका कारण पाण्डेय पुरवा आंगनवाड़ी केन्द्र पर बच्चों को पिछले15 दिनों से नाश्ता और भोजन (पूरक पोषण आहार) नसीब न होना है। महिला एवं बाल विकास विभाग की उदासीनता के चलते आंगनवाड़ी में मासूम बच्चों तथा गर्भवती /धात्री महिलाओं के पोषण से जुड़ीं सेवाएं लगभग ठप्प पड़ीं हैं।
पैर के ऊपर अपनी खाली कटोरी रखे हुए निराश मुद्रा में आंगनवाड़ी के बाहर बैठीं मासूम बच्चियां।
विभाग के द्वारा पाण्डेय पुरवा की आंगनवाड़ी को फ़रवरी माह के लिए आवंटित टीएचआर (टेक होम राशन) में भी 60 फीसदी की कटौती की गई है। जाहिर सी बात है कि टीएचआर (राशन पैकेट) में भारी कटौती किये जाने व नाश्ता-भोजन का वितरण न होने के कारण इस केन्द्र में दर्ज माताओं और बच्चों को जरुरी पोषण नहीं मिल रहा है। इसका सीधा दुष्प्रभाव उनके पोषण, स्वास्थ्य एवं विकास पर पड़ना तय है। सवाल यह भी है, पन्ना जिले के माथे पर लगा कुपोषण एवं एनीमिया का कलंक इन हालात में कैसे मिट पाएगा।
पन्ना जिला मुख्यालय से बमुश्किल 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तराई अंचल का ग्राम पाण्डेय पुरवा निर्माणाधीन रुन्ज मध्यम सिंचाई परियोजना प्रभावित पूर्ण विस्थापित होने वाले गाँवों में शामिल है। मंगलवार 9 फरवरी को दोपहर में 1:27 बजे पन्ना के पत्रकार जब पाण्डेय पुरवा के आंगनवाड़ी केन्द्र पर पहुंचें तो वहाँ सिर्फ 5 बच्चे उपस्थित मिले जबकि केन्द्र पर कुल 122 बच्चे दर्ज हैं। जिसमें 3 से 6 वर्ष के बच्चों की दर्ज संख्या 66 है। कुपोषित श्रेणी के बच्चों की संख्या 10 है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता संध्या गुप्ता ने बताया कि आज 16 बच्चे आए थे लेकिन कुछ बच्चे थोड़ी देर पहले ही अपने घर वापस चले गए।
भैंसों के तबेला वाला जर्जर कच्चा मकान जिसके एक कमरे में संचालित है आंगनवाड़ी केन्द्र।
नदी किनारे स्थित इस गाँव की आंगनवाड़ी मवेशियों के तबेले वाले बेहद जर्जर कच्चे मकान के एकमात्र किराए के कमरे में संचालित हो रही है। बच्चों की सुरक्षा व आंगनवाड़ी संचालन के लिहाज से उक्त कमरा सही नहीं है। केन्द्र के बाहर मायूस बैठीं दो बच्चियां एक खाली कटोरी को अपनी जीभ से चाट रहीं थी और अंदर एक अलमारी में रखे बर्तनों पर धूल की हल्की सी परत चढ़ी हुई नजर आ रही थी।
आंगनवाड़ी केन्द्र पाण्डेय पुरवा में 15 दिन पूरक पोषण आहार वितरण न होने की वजह से अलमारी में सजाकर रखे गए बर्तन।
सहज जिज्ञासावश बच्चों से नाश्ता और भोजन वितरण को लेकर सवाल पूँछा तो कार्यकर्ता ने बोल पड़ीं- “सर हमारे केन्द्र पर 26 जनवरी 2020 से बच्चों को नाश्ता और भोजन वितरण नहीं हुआ।” उन्होंने बताया कि बच्चों की भोजन व्यवस्था के लिए सांझा चूल्हा कार्यक्रम के तहत अनुबंधित महिला स्व सहायता समूह के पदाधिकारियों का कहना कि उन्हें अभी तक भोजन वितरण के लिए सक्षम अधिकारी से लिखित आदेश नहीं मिला। इसलिए समूह द्वारा पूरक पोषण आहार वितरण करने से फिलहाल साफ़ इंकार किया जा रहा है।
संध्या के अनुसार इस मामले की जानकारी महिला एवं बाल विकास विभाग की सुपरवाईजर से लेकर परियोजना अधिकारी अजयगढ़ तथा कार्यक्रम अधिकारी को भी है। दरअसल, 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर आंगनवाड़ी के खुलने के बाद से अब तक उक्त सभी अधिकारी अलग-अलग तिथियों में पाण्डेय पुरवा केन्द्र का निरीक्षण कर वहाँ की बदहाली को स्वयं देख चुके हैं। मगर, किसी भी अधिकारी ने अब तक नाश्ता एवं भोजन वितरण की तात्कालिक वैकलल्पिक व्यवस्था करना उचित नहीं समझा।
आंगनवाड़ी केन्द्र की बदहाली और टाट-फट्टी तथा टेबल के आभाव को बयां करती हुई तस्वीर।
जिम्मेदारों ने समूह के अध्यक्ष-सचिव को नोटिस जारी करके अपने कर्तव्यों-दायित्वों की इतिश्री कर ली है। केन्द्र पर बच्चों की कम उपस्थिति, उनकी निराशा एवं पोषण को लेकर बेखबर अफसर समूह का जवाब आने का इंतजार कर रहे हैं। सरकारी काम-काज के तौर-तरीकों व जिम्मेदारों में संवेदनशीलता के आभाव के मद्देनजर यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि गरीब परिवारों के मासूम बच्चों को आंगनवाड़ी में नाश्ता और भोजन कब तक नसीब हो पाता है। इस केन्द्र की बदहाली को लेकर जिम्मेदारों की उपेक्षा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, बच्चों के बैठने के लिए टाट-फट्टी तक नहीं है।

स्वास्थ्य व पोषण में कैसे होगा सुधार

आंगनवाड़ी केन्द्र के बाहर बच्चों का वजन करते हुए कार्यकर्ता एवं सहायिका।
पाण्डेय पुरवा ग्राम के मासूम बच्चों और महिलाओं के पोषण से जुड़ीं योजनाओं का वर्तमान में सही तरीके से कियान्वयन न होना बच्चों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक विकास, स्वास्थ्य व पोषण की स्थिति को लेकर गंभीर चिंता पैदा करता है। क्योंकि गाँव की आंगनवाड़ी में दर्ज बच्चों पर दोहरी मार पड़ रही है। एक ओर नौनिहालों को जहाँ नाश्ता-भोजन (पूरक पोषण आहार) नहीं मिल रहा है वहीं इस महीने उन्हें निर्धारित मात्रा में टीएचआर अर्थात आंगनवाड़ी से मिलने वाले खिचड़ी, हलवा, बाल आहार, बेसन लड्डू इत्यादि के पैकेट से वंचित होना पड़ सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि, इस केन्द्र को प्रतिमाह औसतन 10 बोरी टीएचआर वितरण हेतु मिलता था। लेकिन चालू माह फरवरी के लिए परियोजना कार्यालय अजयगढ़ के द्वारा सिर्फ 4 बोरी टीएचआर पाण्डेय पुरवा केन्द्र को आवंटित किया गया।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका को यह मालूम नहीं कि टीएचआर में इतनी बड़ी कटौती क्यों की गई। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि जितना टीएचआर मिला है उसका पहले आओ-पहले पाओ की तर्ज पर जिस भी मात्रा में जितने बच्चों, गर्भवती /धात्री महिलाओं को वितरण संभव हुआ वितरित कर दिया। लेकिन यह सवाल अनुत्तरित है कि सही मात्रा पोषण आहार से वंचित बच्चे सुपोषित कैसे होंगे, पन्ना के माथे पर लगा कुपोषण का कलंक कैसे मिटेगा और गर्भवती /धात्री महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार के उद्देश्य की पूर्ती आखिर कैसे संभव होगी।

इनका कहना है –

“पाण्डेय पुरवा की आंगनवाड़ी में नाश्ता और भोजन वितरण न होने की जानकारी मुझे केन्द्र के निरीक्षण के समय मिली थी, संबंधित समूह को नोटिस जारी कर जवाब माँगा गया है। यह बात सही जिस कमरे में आंगनवाड़ी संचालित उसकी स्थिति अच्छी नहीं है, उसे जल्द ही किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट कराया जाएगा।”

– ऊदल सिंह ठाकुर, डीपीओ, महिला एवं बाल विकास विभाग, जिला पन्ना।