* स्कूल का पुराना जर्जर भवन धराशायी हुआ तो हो सकता है बड़ा हादसा
* बच्चियों के सिर पर मंडरा रहे गंभीर खतरे को लेकर उदासीन है जिम्मेदार
* हेडमास्टर ने सबको भेजे पत्र लेकिन सालभर से कोई देखने तक नहीं आया
शादिक खान, भानू गुप्ता पन्ना। रडार न्यूज हमारी व्यवस्था क्या हादसा होने के बाद ही जागती है ? यह सवाल अक्सर ही उठता रहता है, क्योंकि यह देखने में आया है कि कई मामलों में हादसों अथवा दुर्घटनाओं की रोकथाम हेतु समय रहते पुख्ता इंतजाम नहीं किये जाते हैं। जिम्मेदारों की इस आपराधिक लापरवाही के कारण कई बार निर्दोष लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ती या फिर बड़ी क्षति उठानी पड़ती है। बात अगर छोटे बच्चों की सुरक्षा की हो तो जिम्मेदारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे इसमें किसी तरह की कोताही न बरतकर तत्परता से आवश्यक उपाय करेंगे। लेकिन, शासकीय मनहर कन्या माध्यमिक एवं प्राथमिक शाला पन्ना के मामले ऐसा हुआ नहीं है। दरअसल इस शाला का प्राचीन भवन अत्यंत ही जर्जर स्थिति में होने से इसके किसी भी समय धराशायी होने का खतरा बना है।

शाला में पढ़ने वाली 170 बच्चियाँ और यहाँ पदस्थ शिक्षकगण हादसे की आशंका को लेकर अत्यंत चिंतित और भयभीत हैं। शाला की प्रधानाध्यापिका नम्रता जैन ने इस संबंध में जिला परियोजना समन्वयक सर्व शिक्षा अभियान पन्ना, जिला शिक्षा अधिकारी, कार्यपालन यंत्री लोक निर्माण संभाग पन्ना और कलेक्टर पन्ना को पत्र भेजकर हालात की गंभीरता से अवगत कराया। लेकिन किसी ने आवश्यक सुरक्षा प्रबंध करना तो दूर शाला में जाकर वहाँ बच्चियों के सिर पर मँडराते खतरे की जानकारी लेना भी उचित नहीं समझा। इस पत्राचार को साल भर का समय हो रहा है लेकिन कथित जिम्मेदार व संवेदनशील अफसर अब तक जिला मुख्यालय की इस शाला में नहीं पहुँच सके। क्या इनकी नींद हादसा होने के बाद ही टूटेगी। उधर, हर दिन गुजरते समय के साथ बच्चियों और शिक्षकों की धड़कनें तेज हो रहीं है।
जर्जर भवन में लग रहीं कक्षाएं

मध्यप्रदेश के पन्ना शहर के बीचों-बीच स्थित शासकीय मनहर कन्या माध्यमिक एवं प्राथमिक शाला एक ही भवन में संचालित है। इसका आगे का हिस्सा करीब 100 वर्ष पुराना होने के कारण समुचित मरम्मत के आभाव में जर्जर हो चुका है। बारिश के दिनों में यहाँ के कमरों में पानी भर जाता है, जिससे करंट फैलने का खतरा बना रहता है। प्रधानाध्यापिका नम्रता जैन ने “रडार न्यूज” को बताया कि शाला के पिछले हिस्से में स्थित नवीन भवन में सिर्फ 6 कमरे स्थित हैं इसलिए 2 कक्षाएं पुराने जर्जर भवन में लगाना मजबूरी है। यहाँ हादसे की आशंका को लेकर बालिकाएँ और शिक्षक काफी डरे हुए रहते हैं। गौरतलब है कि श्रीमती जैन ने वरिष्ठ अधिकारियों को भेजे गए पत्र में स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया है कि “शाला भवन पुराना है, इसका अग्रिम भाग जीर्ण -शीर्ण हो गया है। कभी भी किसी भी समय यह धराशायी हो सकता है तथा दुर्घटना हो सकती है। भवन में कक्षाएं लगती हैं, इसके अग्रिम भाग की मरम्मत तुरंत कराया जाना आवश्यक है। कृपया भवन का निरीक्षण कर तुरंत आवश्यक मरम्मत कराने की कृपा करें।” लेकिन कई माह गुजरने के बाद भी किसी को इस ओर ध्यान देने की फुर्सत ही नहीं मिली। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तब है जब बात सैंकड़ों बच्चियों की जिंदगी की है। वरिष्ठ अधिकारियों की हद दर्जे की उदासीनता से परिलक्षित होता है कि इनके लिए बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा महज जुमला बन चुका है।
अभिभावक नहीं कराते बेटियों का दाखिला
