* पन्ना जिले के छापर गांव के रहवासियों ने ककरहटी के लिये किया पलायन
* झुलसाने वाली गर्मी 4 किलोमीटर दूर से लाते हैं पीने का पानी
* जलस्तर गिरने से हवा उगल रहे हैण्डपम्प, कुँआ भी सूख गया
* पीने का पानी बचाने के लिए चार से पाँच दिनों तक नहीं नहाते ग्रामीण
“बुंदेलखंड का नाम आते ही भीषण सूखा और बदहाली की तस्वीर जेहन में घूमने लगती है। हकीकत भी यही है। बेशक, यहाँ की तकदीर और तस्वीर को बदलने के लिए विशेष आर्थिक पैकेज दिए गए और कई योजनाएँ संचालित की गईं लेकिन फिर भी हालात सुधरने के बजाए बद से बद्तर हो चुके हैं। मध्यप्रदेश में व्याप्त जल संकट की सबसे भयावह तस्वीर बुंदेलखंड के इलाके में ही नजर आती है। उदाहरण सामने है। यहाँ के दमोह जिले के बाद अब पन्ना जिले के छापर गाँव से 250 लोग अपना गाँव छोड़कर पलायन कर चुके हैं। ग्रामीणों के पलायन का एकमात्र कारण भीषण जल संकट है। इस गांव में पानी की विकराल समस्या के चलते पिछले तीन माह से अधिकांश घरों में ताले लटक रहे हैं। छापर गाँव की गलियों में पसरे सन्नाटे पर महाकवि रहीम का कालजयी दोहा चरितार्थ होता है – “रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरे मोती, मानुष, चून।।”
शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) पिछले कुछ सालों से अल्प वर्षा के चलते सूखे की भीषण त्रासदी झेलने वाले बुन्देलखण्ड अंचल के पन्ना जिले में इस समय पानी को लेकर त्राहि-त्राहि मची हुई है। ग्रामीण अंचल में प्यास बुझाने के लिये लोग बूंद-बूंद पानी तक को मोहताज है। प्रशासनिक उदासीनता के कारण हालात इस हद तक ख़राब हो चुके हैं कि अब यहाँ लोगों को पानी के लिए पलायन करना पड़ रहा है। बुंदेलखंड अंचल में काम के आभाव में गाँवों से बड़ी तादाद में लोगों का महानगरों के लिए पलायन करना तो आमबात है लेकिन, पानी के लिए पलायन नया है। आग उगलती गर्मी के बीच पन्ना जिले में जल संकट से उत्पन्न त्रासदी का हाल यह है कि यहाँ के छापर ग्राम के लोग जल संकट के कारण तीन माह पहले ही अपना गाँव छोड़ कर ककरहटी में विस्थापित हो चुके हैं। ग्रामीणों के पलायन करने से यहाँ के अधिकांश घरों में ताले लटक रहे है। लगभग वीरान हो चुके इस गांव में सिर्फ तीन बुजुर्ग व्यक्ति और कुछ मवेशी ही अब शेष बचे है। जो कि जिंदा रहने की जद्दोज़हद करते हुये इस चिलचिलाती धूप में करीब 3-4 किलोमीटर दूर से पीने का पानी लाने को मजबूर है।
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जिला मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम छापर पन्ना जनपद की ग्राम पंचायत जनवार के अंतर्गत आता है। पन्ना से महज चंद किलोमीटर की दूरी पर सतना मार्ग पर नेशनल हाइवे क्रमाँक-39 किनारे स्थित छापर गाँव से ग्रामीणों के पानी के आभाव में पलायन करने को लेकर समूचा प्रसाशन अब तक बेखबर है। अनुसूचित जाति बाहुल्य छापर गांव में पेयजल का इतना विकराल संकट पहली बार निर्मित हुआ है। गांव के बुजुर्ग बंदी चौधरी (60) का कहना है कि उन्होने जबसे होश सम्भाला है तब से पहली बार पानी का इतना भीषण संकट अपने गांव मे देखा है। बंदी चौधरी ने बताया कि गर्मी बढ़ने के साथ ही जल स्तर लगातार पाताल की ओर खिसकने के कारण मची हा-हाकार के चलते करीब तीन माह पूर्व उनके गांव के अधिकांश लोग गांव छोड़ कर 20 किलोमीटर दूर ककरहटी के लिये पलायन कर गये है। बंदी को छोड़कर उसके परिवार के अन्य सदस्य भी ककरहटी में रह रहे है। बंदी चौधरी के अलावा छापर में बचे दो अन्य ग्रामीण गेंदलाल चौधरी और बुधुआ चौधरी ने बताया कि आग उगलती गर्मी में वे तीन से चार किलोमीटर दूर से जनवार गाँव या फिर मोहनगढ़ी से पीने का पानी लाते हैं। जब पानी लाने की हिम्मत नहीं रहती तो वे जंगल में स्थित प्राचीन झिरिया का गंदा पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते है। यह झिरिया भी छापर गाँव की आबादी से लगभग 1 किलोमीटर दूर स्थित है।![](http://radarnews.in/wp-content/uploads/2019/06/IMG-20190603-WA0009.jpg)
हवा उगल रहे हैण्डपम्प
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छापर गांव में पेयजल व्यवस्था के लिये 3 हैण्डपम्प और एक प्राचीन कुआं स्थित है। लेकिन पिछले तीन-चार माह से अर्थात गर्मी के तेवर तीखे होने के साथ ही हैण्डपम्पों का जल स्तर खिसक गया और तब से वे पानी की जगह हवा उगल रहे हैं। एक मात्र कुआं का पानी भी समाप्त हो चुका है। इसकी तलछट पर कीचड़ साफ़ नजर आ रहा है। जल समस्या के निदान के लिये ग्रामीण बंदी चौधरी ने सीएम हेल्प लाईन पर सम्पर्क किया लेकिन इन बदनसीबों को कोई हेल्प अब तक नहीं मिल सकी। इनके मुताबिक वे प्रशासनिक अधिकारियों को अपनी समस्या बताने कई बार पन्ना भी गये और पीएचई तथा जनपद पंचायत कार्यालय के कई दिनों तक चक्कर काटते रहे। लेकिन, एसी चैम्बरों में बैठे अधिकारियों ने इनकी समस्या का समय रहते समाधान नहीं किया। अधिकारियों के कोरे आश्वासनों के सहारे छापर के लोग माह फरवरी तक किसी तरह गाँव में ही डटे रहे। इस बीच बूंद-बूंद पानी के लिये तरसते ग्रामीणों को जब कई दिनों तक पानी नसीब नहीं हुआ तो उन्होंने प्यास से मरने के बजाय पलायन करना ही उचित समझा। व्यवस्था की असंवेदनशीलता को लेकर नाराज छापर के बुजुर्गों का कहना है कि कोई मदद न मिलने के कारण पलायन करना गाँव के लोगों की मजबूरी बन गई थी।
पीने का पानी बचाने के लिये नहीं नहाते
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छापर गांव में निर्मित पेयजल संकट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पीने का पानी बचाने के लिये गांव के रहवासी इस प्रचंड गर्मी में चार से पांच दिन तक नहीं नहाते है। बुजुर्ग बुधुआ चौधरी ने बताया कि उनके गाँव स्थित तीन हैण्डपम्पों में से एक हैण्डपम्प पूरी तरह बंद पड़ा है जबकि दो हैण्डपम्प में चौबीस घण्टे में बमुश्किल 1-2 डिब्बा मटमैला पानी निकलता है। जिससे वे अपने मवेशियों की प्यास बुझाते हैं। अपने पीने के लिए वे समीपी ग्राम जनवार अथवा मोहनगढ़ी से पानी लाते है। पानी की व्यवस्था के लिये तीन से चार किलोमीटर दूर भटकने के कारण वे चार-पांच दिन तक सिर्फ इसलिये नहीं नहाते ताकि पीने का पानी बचा रहे। चिलचिलाती धूप में जब ये पानी लेने जाते है तभी वहां से नहा कर आते हैं। उल्लेखनीय है कि गर्मी के सीजन में पेयजल संकट के मद्देनजर प्रत्येक बसाहट में पेयजल की उपलब्धता हर हाल में सुनिश्चित कराने के प्रसाशन के दावे यहाँ हवा-हवाई साबित हो रहे हैं। जिला मुख्यालय पन्ना के नजदीक ही जब जल संकट की इतनी विकराल स्थिति से प्रसाशन अनभिज्ञ हैं तो फिर सुदूर पहुँचविहीन पठारी गाँवों के हालत कैसे होंगे, कहना मुश्किल पर समझना आसान है। छापर में पानी को लेकर 250 ग्रामीणों का पलायन करना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि इस मुश्किल घड़ी में जिम्मेदार अधिकारी और मैदानी अमला भीषण जल संकट के निदान को लेकर कितना सजगता और ईमानदारी से अपने कर्तव्य एवं दायित्व का निर्वहन कर रहा है ?
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इनका कहना है–
“आपके माध्यम से छापर गाँव में जल संकट के कारण ग्रामीणों का सामूहिक पलायन होने जानकारी मिली है, मैं तुरंत सीईओ जनपद और कार्यपालन यंत्री पीएचई को अवगत कराता हूँ। गाँव की समस्या का समाधान कर ग्रामीणों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिये हर संभव प्रयास किये जायेंगे।“
– जे.पी. धुर्वे, प्रभारी कलेक्टर जिला पन्ना।
“छापर से ग्रामीणों का तीन माह पूर्व पानी के अभाव मे पलायन करना बेहद गम्भीर मामला है। मुझे आपके माध्यम से यह जानकारी मिल रही है। क्षेत्र के हमारे सब इंजीनियर और हैण्डपम्प तकनीशियन के संज्ञान में ये मामला अब तक क्यों नहीं आया मैं उनसे चर्चा करता हूं और समस्या का तत्परता से समाधान कराता हूँ।“
– एस.के. जैन, कार्यापालन यंत्री पीएचई पन्ना।