* किसानों की शिकायत मांग अनुरूप नहीं मिल रही यूरिया
* डीडीए का दावा जिले में पर्याप्त मात्रा में यूरिया उपलब्ध
शादिक खान, पन्ना।(www.radarnews.in) गत दिनों जिले में हुई बारिश को रबी फसलों के लिए अमृत वर्षा माना जा रहा है। सही समय पर आवश्यकता अनुसार पर्याप्त बारिश होने से कल तक अन्नदाता किसानों के चेहरे ख़ुशी से खिल रहे थे लेकिन अब वह निराश और मायूस नजर आ रहे हैं। किसानों की ख़ुशी को यूरिया क़िल्लत की नजर लग गई है। बारिश होने के बाद जहां यूरिया की डिमांड अचानक से कई गुना बढ़ गई है वहीं मांग के अनुरूप यूरिया न मिलने किसान खासे परेशान है। यह स्थिति तब है जब जिले में यूरिया समेत अन्य रासायनिक उर्वरक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने का दावा किया जा रहा है। हालांकि आंचलिक क्षेत्रों से जिस तरह की तस्वीरें निकल कर सामने आ रहीं है वह सरकारी दावों पर कई सवाल खड़े करती हैं।
अजयगढ़ विकासखंड मुख्यालय में स्थित प्राथमिक विपणन सहकारी समिति मर्यादित अजयगढ़ के बाहर अंचल के किसानों की लम्बी कतार लग रही है। यूरिया खरीदने के लिए सुबह-सुबह कड़ाके की सर्दी में ही किसान अजयगढ़ पहुँच जाते हैं। विपणन समिति के बाहर कई घंटे लाइन में लगने और नकद राशि देने के बाद भी किसानों को मांग के अनुसार यूरिया नहीं मिल पा रही है। ऐसे ही एक कृषक बाबूलाल गुप्ता निवासी सिमराकला ने बताया कि उनकी प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति में बड़े दाने की यूरिया उपलब्ध है जोकि खेत में डालने पर घुलने में काफी समय लेती है। इसलिए वह अजयगढ़ स्थिति विपणन समिति से नकद में छोटे दाने की जल्दी घुलने वाली यूरिया लेने गए थे, लेकिन अब वहां भी छोटे दाने की यूरिया (रासायनिक उर्वरक) समाप्त हो चुकी है। कृषक बाबूलाल ने बताया कि शुक्रवार एवं शनिवार लगातार दो दिन तक भटकने के बाद भी उसे छोटे दाने का यूरिया नहीं मिला। मजबूरी में उन्हें बड़े दाने वाली यूरिया लेनी पड़ी।
अजयगढ़ क्षेत्र के ग्राम थरकेपुरवा निवासी 4 एकड़ कृषि भूमि के कृषक शिवनाथ यादव, ग्राम माधौगंज निवासी 6 एकड़ भूमि के किसान अनिल गुप्ता ने यूरिया की किल्लत पर नाराजगी जाहिर की है। दोनों ने बताया, पिछले दिनों प्रकृति की मेहरबानी के चलते अच्छी बारिश होने से फसल सिंचाई पर होने वाला खर्च और श्रम बच गया। अमृत वर्षा से फसल उत्पादन में भी पर्याप्त वृद्धि होने की पूरी उम्मीद थी लेकिन समय पर मांग अनुसार अपेक्षित यूरिया न मिलने से उत्पादन में वृद्धि की उम्मीदें अब धूमिल पड़ती दिख रहीं है। नकद राशि देने के बाद भी छोटे दाने वाली यूरिया मांग के मुताबिक़ न मिल पाने से किसान परेशान है।
यूरिया का निर्धारित मात्रा में करें उपयोग : डीडीए श्री सुमन
उप संचालक, किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग पन्ना, एपी सुमन के अनुसार शुक्रवार 3 दिसम्बर की स्थिति में जिले में कुल 8 स्थानों पर 1586 मैट्रिक टन यूरिया उपलब्ध थी। उनका दावा है जिले में अभी भी पर्याप्त मात्रा में यूरिया उपलब्ध है और इसकी सतत आपूर्ति भी जारी है। डीडीए श्री सुमन ने बताया कि यूरिया की जमाखोरी को रोकने के लिए किसानों को उनके आराजी रकबा अनुसार पर्याप्त मात्रा में यूरिया वितरित की जा रही है। उन्होंने बताया, एक हैक्टेयर भूमि में सिर्फ 25 किलोग्राम यूरिया डालना चाहिए। फसलों पर संतुलित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया जाना जरुरी है, क्योंकि यूरिया की मात्रा अधिक होने पर फसल लॉजिंग का खतरा बढ़ जाता है। इस स्थिति में फसल लूज होकर जमीन पर गिर जाती है।
डीडीए ने बताया कि हाल ही में जो बारिश हुई है उसमें यूरिया समेत अन्य पोषक तत्व मौजूद हैं इसलिए भी निर्धारित मात्रा में रसायनिक उर्वरकों का उपयोग किया जाना चाहिए। फसल में अधिक मात्रा यूरिया या फिर अन्य उर्वरक डालने से फसल उत्पादन उस अनुपात नहीं बढ़ता है, उत्पादन में अधिकतम जितनी भी वृद्धि संभव हो सकती है वह निर्धारित मात्रा में उर्वरक के उपयोग से प्राप्त की जा सकती है। इसलिए किसानों को उनके आराजी रकबा के अनुपात 2, 3 या 4 बोरी यूरिया दिया जा रहा है। इससे जमाखोरी रोकने में भी मदद मिलती है।
जैविक खेती में एक भी कृषक का पंजीयन नहीं
जिले में कुछ समय पूर्व रबी फसलों की बोबनी के समय और अब अमृत वर्षा होने के बाद रासायनिक उर्वरक प्राप्त करने के लिए होने वाली मारमारी और किसानों की जद्दोजहद को देखते हुए मन में जैविक खेती अथवा आर्गेनिक खेती (Organic Farming) को बढ़ावा देने किये जाने वाले प्रयास और उनके नतीजों को लेकर सहज ही सवाल उठने लगते हैं। विदित होकि पन्ना जिले में जैविक खेती अर्थात परम्परागत खेती का रकबा पन्ना विकासखण्ड में एकमात्र गांव पल्थरा और पवई एवं शाहनगर विकासखण्ड अंतर्गत कल्दा पठार के चंद किसानों की कुछेक एकड़ की जोत तक ही सीमित है। एक एनजीओ के प्रयास से पल्थरा गांव के किसानों ने जैविक खेती करना शुरू की है। बता दें कि, जैविक खेती में रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, और आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। जैविक खेती मिट्टी, पर्यावरण और इंसानी सेहत के लिए लाभदायक मानी जाती है।
केन्द्र और मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि विभाग के माध्यम से योजनाएं संचालित करते हुए काफी प्रचार-प्रसार किया गया। साथ ही किसानों के प्रशिक्षण आदि पर भी बड़ी धनराशि खर्च की जा रही है। कृषि विभाग की फ्लैगशिप योजनाओं में भी जैविक खेती शामिल है। बाबजूद इसके आपको यह जानकार हैरानी होगी कि जैविक खेती पोर्टल पर पन्ना जिले का एक भी किसान पंजीकृत नहीं है। इसकी पुष्टि स्वयं उप संचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग पन्ना, एपी सुमन ने की है। आपने बताया कि, लगातार तीन साल तक जैविक खेती करने के बाद संबंधित किसान पंजीयन के लिए पात्र माना जाता है। जिसकी विस्तृत जांच के बाद जैविक खेती का प्रमाण पत्र जारी किया जाता है।