लापरवाही या साजिश : जल संसाधन विभाग के अफसरों ने सरकारी ख़जाने को लगाई 27 करोड़ की चपत !

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पन्ना जिले में पवई मध्यम सिंचाई परियोजना अंतर्गत निर्मित (तेन्दूघाट) बांध। फाइल फोटो

*    पन्ना जिले की 600 करोड़ की लागत वाली पवई मध्यम सिंचाई परियोजना का मामला

*   निर्माण कार्य का ठेका अनुबंध निरस्त करने में निर्धारित प्रक्रिया का नहीं किया पालन

*    ठेकेदार के पक्ष में फैसला आने पर निर्धारित समय सीमा में नहीं की गई अपील

*    सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर मध्यप्रदेश सरकार पर लगाया था 1 लाख का जुर्माना

   न्यायालय में लंबित राशि वसूली के प्रकरण को लेकर विभाग में मचा जबर्दस्त हड़कंप

शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में जल संसाधन संभाग पवई अंतर्गत निर्माणाधीन 600 करोड़ की लागत वाली पवई मध्यम सिंचाई परियोजना निर्माण कार्य के ठेकेदार रहे मेसर्स जी.एस. रेड्डी एसोसिएट्स (कंस्ट्रक्शन) प्राईवेट लिमिटेड हैदराबाद का ठेका अनुबंध मनमाने तरीके से निरस्त करना राज्य सरकार को बहुत महंगा पड़ रहा है। जल संसाधन विभाग के तकनीकी अधिकारियों ने पहले तो निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बगैर जल्दबाज़ी में ठेका निरस्त कर दिया बाद में ठेकेदार के पक्ष में आर्बिट्रेटर का फैसला आने पर समयसीमा में सक्षम न्यायालय में उसे चुनौती नहीं दी गई। समयसीमा में अपील न करने के कारण मध्यप्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर से लेकर देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट तक शासन के पक्ष को सुना नहीं गया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मध्यप्रदेश सरकार की याचिका को ख़ारिज कर दिया और अदालत का समय बर्बाद करने के लिए नाराज़गी जाहिर करते हुए राज्य सरकार पर 01 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया। शीर्ष अदालत के फैसले को आधार बनाकर ठेकेदार की ओर से पन्ना जिले के पवई स्थित अपर सत्र न्यायालय में राज्य सरकार के विरुद्ध राशि वसूली का मुकदमा दायर किया गया है। वर्तमान स्थिति में ठेकेदार को लगभग 27 करोड़ का भुगतान किया जाना है, जिसे लेकर जल संसाधन विभाग में अंदरखाने जबर्दस्त हड़कंप मचा है।

आर्बिट्रेटर ने ठेकेदार के पक्ष में अवार्ड किया था पारित

उल्लेखनीय है कि, पन्ना जिले की पवई मध्यम सिंचाई परियोजना के निर्माण का ठेका वर्ष 2012 में मेसर्स जी.एस. रेड्डी एसोसिएट्स (कंस्ट्रक्शन) प्राईवेट लिमिटेड हैदराबाद को मिला था। लेकिन करीब एक साल बाद कार्य की प्रगति धीमी होने को आधार बनाकर तत्कालीन कार्यपालन यंत्री जल संसाधन संभाग पन्ना ने दिनांक 23 मई 2013 को ठेकेदार की सुरक्षा निधि को राजसात कर ठेका निरस्त कर दिया था। ठेका निरस्त करने की जल्दबाज़ी में प्रकिया का पालन नहीं किया गया। जाहिर इसके खिलाफ ठेकेदार ने वरिष्ठ अधिकारियों से पत्राचार करके अपनी आपत्ति दर्ज कराई गई। परिणाम स्वरूप मुख्य अभियंता, जल संसाधन विभाग सागर ने ठेका निरस्त करने के विरुद्ध आर्बिट्रेटर की नियुक्ति की गई। प्रकरण में आर्बिट्रेटर ने दोनों पक्षों की सुनवाई के उपरान्त दिनांक 18 मई 2015 को ठेकेदार के पक्ष में अवार्ड पारित किया था। जल संसाधन विभाग की ओर से इसके विरुद्ध निर्धारित समयसीमा में सक्षम न्यायालय में अपील नहीं की गई।

हाईकोर्ट के फैसले को यथावत रखा

काफी देरी से नींद से जागी राज्य सरकार बाद में इस प्रकरण को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर और फिर सुप्रीम कोर्ट तक गई लेकिन निर्धारित समयसीमा में अपील न करने के कारण सभी न्यायालयों में शासन के पक्ष को ख़ारिज/अमान्य किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 30 जून 2019 को इस मामले में जहां मध्यप्रदेश सरकार की विशेष अवकाश याचिका को ख़ारिज कर दिया और अदालत का समय बर्बाद करने के लिए नाराज़गी जाहिर करते हुए राज्य सरकार पर 01 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को यथावत रखते हुए याचिका को खारिज कर अपने आदेश में उल्लेख किया है कि, हमें उच्च न्यायालय के द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है।

सालाना 14 प्रतिशत ब्याज के साथ बढ़ रही राशि

राज्य सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश का स्क्रीन शॉट।
उच्च अदालतों से आए इन फैसलों को आधार बनाकर मेसर्स जी.एस. रेड्डी एसोसिएट्स (कंस्ट्रक्शन) प्राईवेट लिमिटेड हैदराबाद ने पवई के अपर सत्र न्यायालय में जल संसाधन विभाग के विरुद्ध राशि वसूली का मुकदमा पेश किया गया। कोर्ट में विचाराधीन इस मामले में बहुत जल्द फैसला आने की संभावना को देखते हुए जल संसाधन विभाग के अफसर पिछले कुछ माह से काफी परेशान हैं। क्योंकि, ठेकेदार का लंबित भुगतान करने के लिए राशि की स्वीकृति शासन स्तर पर होना है, जिस पर अब तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है। इन परिस्थियों में विभागीय अफसरों को अब यह डर सताने लगा है, अगर शीघ्र ही राशि का भुगतान नहीं किया गया तो शायद अगली पेशी में न्यायालय कार्यपालन यंत्री जल संसाधन संभाग पवई के कार्यालय की कुर्की का आदेश दे सकता है। बताते चलें कि, पिछले 6-7 साल से जारी कानूनी लड़ाई के चलते ठेकेदार की लंबित राशि सालाना 14 प्रतिशत ब्याज़ दर के साथ बढ़कर वर्तमान में लगभग 27 करोड़ रुपए हो चुकी है। यह राशि लगातार बढ़ती ही जा रही है फिर भी जिम्मेदार भुगतान हेतु राशि स्वीकृत कराने को लेकर गंभीर नहीं हैं।

उच्च स्तरीय जांच से स्पष्ट होगी वस्तुस्थिति

वहीं मेसर्स जी.एस. रेड्डी एसोसिएट्स (कंस्ट्रक्शन) प्राईवेट लिमिटेड हैदराबाद का ठेका अनुबंध मनमाने तरीके से निरस्त करने के प्रकरण को दबी जुबान कुछ लोग अफसरों की लापरवाही न मानकर इसे कथित तौर पर जानबूझकर की गई सुनियोजित साजिश के रूप में देख रहे हैं। हालांकि, इस संबंध में आधिकारिक तौर पर वस्तु स्थिति उच्च स्तरीय जांच के बाद ही स्पष्ट होने की बात कही जा रही है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो इस मामले में राज्य सरकार को आर्थिक क्षति पहुंचाने के लिए दोषी अफसरों की जवाबदेही तय करके उनके खिलाफ सख्त एक्शन लेने की मंशा से वित्त विभाग ने आवश्यक जानकारी भोपाल तलब की है।

इनका कहना है-

“ठेकेदार को राशि का भुगतान करने के लिए शासन स्तर पर आवश्यक कार्यवाही जारी है, बहुत जल्द इस पर निर्णय होने की संभावना है। शासन को होने वाली आर्थिक क्षति के लिए जो भी जिम्मेदार होगा उसके विरुद्ध शीर्ष स्तर से निश्चित ही नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी।”

– धीरेन्द्र कुमार खरे, एसई, जल संसाधन विभाग मण्डल छतरपुर।