बिन पानी सब सून | उद्गम से संगम तक सूखी पड़ी “मिढ़ासन”… नदी पुनर्जीवन के नाम पर खर्च हो गए 20 करोड़

0
908
इस साल जनवरी माह से पूरी तरह सूखी पड़ी मिढ़ासन नदी के पुनर्जीवन कार्य की हकीकत को बयां करता दृश्य।

* शिवराज ने लिया था मिढ़ासन को सदानीरा बनाने का संकल्प

* बुन्देलखण्ड विशेष पैकेज और मनरेगा से कराया नदी पुनर्जीवन कार्य

* हर साल गर्मी के मौसम में पूरी तरह सूख जाती है मिढ़ासन नदी

शादिक खान, पन्ना।(www.radaranews.in) मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड अंचल में सूखे की त्रासदी साल दर साल भयावह रूप ले रही है। इसका एक बड़ा कारण अति पिछड़े इस इलाके में प्राकृतिक जल स्रोतों तथा वर्षा जल संरक्षण-संर्वधन से जुड़े कार्यों का धरातल पर सही तरीके से क्रियान्वयन न होना है। पन्ना जिले की “मिढ़ासन नदी पुनर्जीवन” कार्यक्रम इसका एक उदाहरण मात्र है। इस नदी को पुनर्जीवित करने के नाम पर शिवराज सरकार में करीब 20 करोड़ रूपए विभिन्न कार्यों पर खर्च किए गए थे। जिसका नतीजा यह है कि पिछले पाँच माह से मिढ़ासन नदी अपने उद्गम से संगम तक पूरी तरह सूखी पड़ी है। कभी सदानीरा रहते हुये कल-कल कर प्रवाहित होने वाली मिढ़ासन नदी में वर्तमान में धूल उड़ रही है। वर्ष 2010 में पन्ना में जल अभिषेक अभियान अंतर्गत मिढ़ासन नदी पुनर्जीवन का तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक भव्य कार्यक्रम में शुभारम्भ करते हुए तीन वर्ष में इस नदी को पूर्व की तरह उसका सदानीरा स्वरूप लौटने का संकल्प लिया था। लेकिन शासन-प्रशासन में इच्छाशक्ति के आभाव, कार्यक्रम के क्रियान्वयन में अनियमितताओं और घोर लापरवाही के चलते पूर्व मुख्यमंत्री का संकल्प आज भी न सिर्फ अधूरा पड़ा है बल्कि इसे लेकर उनका अक्सर काफी मजाक भी उड़ता रहता है। क्योंकि, नदी पुनर्जीवन का कार्य प्रारम्भ होने से लेकर अब तक करीब 9 वर्षों में हर साल मिढ़ासन नदी गर्मी के मौसम में पूरी तरह सूख जाती है। मिढ़ासन नदी पुनर्जीवन की जमीनी सच्चाई शिवराज के कार्यकाल में ही उजागर हो गई थी। मजेदार बात तो यह कि पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान वर्ष 2010 के बाद पन्ना के दौरे पर कई बार आए लेकिन उन्होंने फिर कभी मिढ़ासन नदी और उससे जुड़े अपने संकल्प को पूरा करने की सुध नहीं ली।

राशि खर्च की उपयोगिता पर सवाल

मिढ़ासन नदी के प्रवाह क्षेत्र किनारे रहने वाले लोगों की मानें तो पिछले 9 वर्षों से यह नदी गर्मी के मौसम में हर साल सूख जाती है। फर्क सिर्फ इतना है कि यदि किसी साल बारिस अच्छी हुई तो नदी मार्च-अप्रैल में सूखती है, अगर बारिस कम हुई तो दिसम्बर-जनवरी महीने में ही मिढ़ासन की सतह मैदान में तब्दील हो जाती है। मिढ़ासन को उसका मूल स्वरूप लौटाकर प्रवाह क्षेत्र पर पुनः हरियाली की चादर ओढ़ाने के संकल्प के साथ विभिन्न कार्यों पर 20 करोड़ रूपये पानी की तरह बहाने के बाद भी नदी के पूरी तरह सूखने से पुनर्जीवन कार्यक्रम के क्रियान्वयन की उपयोगिता पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं। इसे मिढ़ासन नदी के पुनर्जीवन कार्यक्रम की असफलता माना जाये या फिर मृत प्राय नदी को जीवित करने का बीड़ा उठाते हुये प्राकृतिक जल स्त्रोतों के संरक्षण-संर्वधन की सराहनीय पहल की आड़ में महज निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिये सरकारी धनराशि के सुनियोजित दुरूपयोग के उदाहरण के रूप में देखा जाये। मामला चाहे जो भी हो पर इतनी बड़ी धनराशि खर्च होने के बाद भी मिढ़ासन नदी के पुनर्जीवित न हो पाने से इस महत्वकांक्षी कार्यक्रम की उच्च स्तरीय निष्पक्ष जांच बेहद आवश्यक हो गई है। ताकि उन कारणों का खुलासा हो सके जो कि नदी पुनर्जीवन कार्यक्रम के फ्लॉप होने के लिये जिम्मेदार हैं। विडम्बना यह है कि जल संरक्षण-संवर्धन पर उपदेश देने वाले जिम्मेदार जन प्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी, मिढ़ासन के मामले में चुप्पी साधे हुये बैठे हैं। जिससे इनके दोहरे चरित्र का पता चलता है।

81 किलोमीटर है प्रवाह क्षेत्र

मिढ़ासन नदी मुख्य रूप से केन नदी की एक सहायक नदी है। यह केन गंगा कछार में आने वाली मुख्य नदियों में से एक है। मिढ़ासन नदी का उद्गम पन्ना जिले की पन्ना जनपद पंचायत के ग्राम मुटवाकलॉ से होता है। पहाड़ी नालों और जंगल से पतली धार के रूप में मुटवाकलॉ से प्रारंभ होकर मिढ़ासन नदी गुनौर विकासखण्ड अंतर्गत 81 किलोमीटर तक प्रवाहित होकर अमानगंज के समीप 7 नदियों के प्रसिद्ध संगम स्थल पण्डवन में केन नदी में समाहित हो जाती है।

अत्याधिक दोहन से बनी बरसाती नदी

मिढ़ासन की मौजूदा स्थिति को देखते हुये इसे बरसाती नालों की तरह बरसाती नदी कहना अतिश्योक्तिपूर्ण न होगा। कभी जीवनदायिनी रही मिढ़ासन नदी का अत्याधिक दोहन होने के कारण आज मृत प्राय अवस्था में पहुंच चुकी इस नदी को जीवन की दरकार है। विगत् दो दशक में मिढ़ासन नदी का तेजी से सतत् दोहन तो किया गया किन्तु इसके प्रवाह को वर्ष भर बनाये रखने की ओर जन समुदाय या शासन-प्रशासन द्वारा विशेष ध्यान नहीं दिया गया। फलस्वरूप इसका कछार भी तेजी से नष्ट होता चला गया। पिछले कुछ सालों में पन्ना जिले में साल दर साल गंभीर होते जल संकट के मद्देनजर मिढ़ासन नदी के प्रति जनमानस की घोर उपेक्षा अथवा उदासीनता हैरान करने वाली है। उधर, सूखी पड़ी मिढ़ासन नदी में जल प्रवाहित कर उसका मूल स्वरूप लौटाने के लिये शासन-प्रशासन स्तर पर अब तक जो भी कार्य कराये गये वे अनुपयोगी ही साबित हुये हैं। इन परिस्थितियों में इस नदी का पुनर्जीवन महज छलावा बनकर रह गया है।

पुनर्जीवन हेतु कराये गये कार्य

मिढ़ासन नदी पुनर्जीवन योजना के तहत् निर्मित संरचनाओं को दो भागों वन क्षेत्र एवं राजस्व तथा हितग्राही क्षेत्र में विभाजित किया गया है। इसमें भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार पृथक-पृथक रूप से गतिविधियां चिन्हित कर नदी के उपचार हेतु विभिन्न संरचनाओं का निर्माण कराया गया। वन क्षेत्र में कंटूर ट्रैंच, बोल्डर चेक, चेक डेम, स्टापडेम, नवीन तालाब, तालाब जीर्णोंद्धार, रिंग डेम, वृक्षारोपण, चारागाह विकास तथा राजस्व एवं हितग्राही क्षेत्र में मेड़ बंधान, कच्चा नाला बंधान, बोल्डर चेक, चेक डेम, नवीन तालाब, तालाब जीर्णोंद्धार वीयर व करोड़ों रूपये की लागत से स्टापडेम बनाये गये। निर्माण कार्यों की श्रृंखला खड़ी करने के बाद भी मिढ़ासन नदी के पुनर्जीवित न हो पाने से कराये गये कार्यों की उपयोगिता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। जिनका जवाब शासन-प्रशासन में शीर्ष पदों पर बैठे कथित जिम्मेदारों के पास नहीं है। इतने महत्वपूर्ण कार्यक्रम पर इतनी बड़ी राशि खर्च करने के बाद भी अपेक्षा अनुरूप परिणाम न मिलना बेहद चिन्ताजनक है।

अधूरा है पूर्व सीएम का संकल्प

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान।
उल्लेखनीय है कि जल अभिषेक अभियान 2010 के अंतर्गत मिढ़ासन नदी पुनर्जीवन कार्यक्रम का शुभारंभ तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं प्रदेश के सर्वोच्च जल नायक शिवराज सिंह चौहान द्वारा किया गया था। प्राकृतिक जल स्त्रोत के संरक्षण से जुड़े इस महत्वकांक्षी कार्यक्रम के सूत्रधार और प्रेरणास्त्रोत स्वयं मुख्यमंत्री श्री चौहान रहे हैं। प्रदेश के मुखिया के नेतृत्व में नदी पुनर्जीवन के पुनीत कार्य का जोर-शोर से आगाज करने के दौरान यह संकल्प लिया गया था कि लगातार जल संरक्षण तथा मृदा संरक्षण के कार्य कराकर मिट्टी के क्षरण को रोका जायेगा और वर्षा जल को भूमि में समाहित कर इस 3 वर्षीय कार्ययोजना के पूर्ण होने के पश्चात मिढ़ासन नदी को उसका सदानीरा वाला पुनारा स्वरूप लौटाया जायेगा। लेकिन मिढ़ासन नदी के हर साल गर्मी के मौसम में सूखने के कारण इसके पुनर्जीवन का संकल्प धरातल पर आज भी अधूरा है। नर्मदा नदी की परिक्रमा करने वाले और नदियों के संरक्षण को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले शिवराज सीएम रहते हुए अपने पूरे कार्यकाल में मिढ़ासन नदी पर चुप्पी साधे रहे। इसके पुनर्जीवन का का संकल्प लेकर उन्होंने वाहवाही तो खूब बटोरी थी लेकिन ईमानदारी से नदी को पुनर्जीवित कराने पर आवश्यक ध्यान नहीं दिया। जल संकट से मची त्राहि-त्राहि को देखते हुए प्राकृतिक जल का महत्वपूर्ण स्रोत कहलाने वाली नदियों को बचाने सूबे की नई सरकार क्या कदम उठाती है अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
मिढ़ासन नदी के हर साल सूखने से पुनर्जीवन के नाम पर कराये गये कार्यों की उपयोगिता पर उठ रहे हैं सवाल।

 मिढ़ासन नदी पुनर्जीवन योजना एक नजर में

नदी की कुल लम्बाई
81 किलोमीटर
नदी का कुल केचमेंट क्षेत्र
970 वर्ग किलोमीटर
उद्गम स्थल
ग्राम पंचायत मुटवा जनपद पन्ना जिला पन्ना
उपचार हेतु चयनित लंबाई
24 किलोमीटर
उपचार हेतु चयनित क्षेत्र
214 वर्ग किलोमीटर
उपचार हेतु चयनित ग्राम पंचायतें
23
कार्यों पर व्यय की जाने वाली राशि
26 करोड़ 69 लाख 54 हजार
जून 2016 तक व्यय
 19 करोड़ 78 लाख रूपये
परियोजना की अवधि
3 वर्ष