* खाद्य असुरक्षा और कुपोषण से मुक्ति जनयात्रा से निकली मांगों का सौंपा ज्ञापन
* ज्ञापन में 5 हजार से भी अधिक लोगों ने हस्ताक्षर कर मांगों का किया समर्थन
पन्ना। (www.radarnews.in) “संडे हो या मंडे रोज खाओ अण्डे” की चर्चित टैग लाइन वाला विज्ञापन टीव्ही चैनलों पर पिछले कई वर्षों से नजर नहीं आया लेकिन एक दौर था जब टीव्ही घर-घर अपनी पैठ बना रहा था और उसी समय इस विज्ञापन के जरिए आम लोगों को खानपान में अण्डे के उपयोग की आवश्यकता तथा इसके महत्व को बड़े ही प्रभावी तरीके से समझाया गया। इसका सकारात्मक असर अण्डे की मांग में इजाफे के रूप में सामने आया। पौष्टिक गुणों से भरपूर अण्डे को मध्यप्रदेश के आंगनवाड़ी केन्द्रों के पोषण आहार में शामिल करने की बात लंबे समय से चल रही है लेकिन बहुसंख्यक आबादी की खानपान से जुड़ीं धार्मिक मान्यताओं एवं सियासी विरोध की वजह से इस पर निर्णय नहीं हो पा रहा है। जानकारों का मानना है कि अण्डा कुपोषण के कलंक को मिटाने में काफी मददगार साबित हो सकता है। अपने नौनिहालों के पोषण और स्वास्थ्य को लेकर चिंतित कई अभिभावक भी इससे सहमत है। शायद इसीलिए कुपोषण एवं शिशु मृत्यु दर की अधिकता वाले पन्ना जिले के 5 हजार से अधिक लोगों ने खाद्य असुरक्षा और कुपोषण से मुक्ति के लिए प्रतिमाह सरकारी राशन दुकान से रियायती दर पर मिलने वाले अनाज की पात्रता को प्रति व्यक्ति 10 किलो करने व आंगनवाड़ी केन्द्रों के पोषण आहार में अण्डे को अनिवार्य रूप से शामिल करने की पुरजोर मांग की है। इनका कहना है कि जिन परिवारों अथवा अभिभावकों को अण्डे पर कोई एतराज नहीं है उनकी बकायदा सहमति लेकर बच्चों पोषण आहार में अण्डा परोसा जाए। ताकि अण्डे खाकर उनके नौनिहाल सुपोषित हो सकें।