देश के सबसे बड़े अभ्यारण्य में जल्द आयेगें नन्हें मेहमान
पन्ना टाईगर रिजर्व की तर्ज पर शुरू हुआ बाघ पुर्नस्थापना कार्यक्रम
नौरादेही में कान्हा की रानी को मिला बांधवगढ़ के राजा का साथ
भोपाल। मध्यप्रदेश के पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघ पुर्नस्थापना कार्यक्रम के अनूठे प्रयोग से वहां बाघों का उजड़ा हुआ संसार सफलतापूर्वक पुनः आबाद हो चुका है। दुनियाभर के लिए मिसाल बन चुकी पन्ना की सफलता से उत्साहित मध्यप्रदेश के वन विभाग द्वारा इस प्रयोग को अब नौरादेही अभयारण्य में दोहराया जा रहा है। कुछ माह पूर्व नौरादेही अभयारण्य में बाघ पुर्नस्थापना शुरू की गई थी। यहाँ के बाड़े में बाघिन को कान्हा टाइगर रिजर्व और बाघ को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से लाकर छोड़ा गया था। मध्यप्रदेश के लिए यह ऐतिहासिक क्षण है, जब नौरादेही अभयारण में बाघ-बाघिन एक दूसरे के करीब आ गये हैं। इससे प्रदेश में बाघों की संख्या में वृद्धि होगी। अब वन विभाग द्वारा जारी किये गये वीडियो से उम्मीद की जा रही है कि निश्चित ही नौरादेही अभ्यारण में अगले कुछ महीनों में नन्हें मेहमान आयेगें और मध्यप्रदेश में बाघों का कुनबा बढ़ेगा।
अभयारण्याेें में बसाये जा रहे बाघ-
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में निरंतर किये जा रहे प्रयासों से बाघों की संख्या बढ़ रही है। किशोर होते बाघों को वर्चस्व की लड़ाई और मानव द्वदं से बचाने के लिये वन विभाग ने अभिनव योजना अपनायी है। वन विभाग अनुकूल वातावरण का निर्माण कर बाघों को ऐसे अभयारण्यों में शिफ्ट कर रहा है, जहाँ वर्तमान में बाघ नहीं हैं। पन्ना में बाघ पुर्नस्थापना से विश्व में मिसाल कायम करने के बाद वन विभाग ने सीधी के संजय टाइगर रिजर्व में भी 6 बाघों का सफल स्थानांतरण किया है। वर्ष 2009 में बाघ शून्य हो चुके पन्ना में आज लगभग 30-35 बाघ हैं। अब नौरादेही अभयारण्य में बाघ पुर्नस्थापना का कार्य प्रगति पर है। मध्यप्रदेश केवल प्रदेश में ही नहीं देश में भी बाघों का कुनबा बढ़ रहा है।
सदियों तक रहा बाघों का प्राकृतिक रहवास-
जबलपुर से 140 किलोमीटर दूर दमोह, सागर और नरसिंहपुर जिले में 1197 वर्ग किलोमीटर में फैले नौरादेही अभ्यारण्य में बहुत पहले कभी बाघ रहे होंगे। यह जंगल देश की दो बड़ी नदियों गंगा और नर्मदा का कछार होने के कारण यहाँ पानी की कमी नहीं है। वन विभाग ने पन्ना की तर्ज पर देश के सबसे बड़े इस अभ्यारण्य में बाघ आबाद करना शुरू किया है। पिछले 18 अप्रैल को यहाँ कान्हा से ढाई वर्षीय एक बाघिन और 29 अप्रैल को बाँधवगढ़ से लगभग पाँच वर्षीय बाघ का स्थानांतरण किया गया है।