अब भूमि की रजिस्ट्री के बाद बिना आवेदन दिए 15 दिन में होगा नामांतरण

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सांकेतिक चित्र।

*     साइबर तहसील की नई व्यवस्था को लेकर शासन का बड़ा दावा

*     प्रदेश के सभी जिलों में 29 फरवरी से शुरू होगी साइबर तहसील व्यवस्था

*     नई व्यवस्था में धोखाधड़ी से जमीन-खरीदने बेचने की संभावना शून्य

*     वर्तमान में नामंतरण कराने तहसील कार्यालय के चक्कर काटने के साथ देनी पड़ती है रिश्वत

पन्ना।(www.radarnews.in) मध्यप्रदेश के राजस्व प्रशासन सुधार में साइबर तहसील व्यवस्था के माध्यम से नागरिकों के हित में अभूतपूर्व परिवर्तन होने जा रहा है। आगामी 29 फरवरी को प्रदेश के सभी जिलों में एक साथ साइबर तहसील का शुभारंभ होगा। जिला जनसम्पर्क कार्यालय पन्ना के द्वारा जारी समाचार में यह दावा किया गया है कि, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मंशानुसार अब प्रदेश में राजस्व प्रकरणों का निराकरण अत्यंत कम समय में हो जाएगा। भू-अभिलेखों में अमल के बाद भू-अभिलेखों एवं आदेश की सत्यापित प्रतिलिपि संबंधित पक्षकार को मिल सकेगी। अब अनावश्यक रूप से लंबित रहने वाले प्रकरणों का तकनीकी सहायता से कम समय में गुणवत्तापूर्ण निराकरण हो सकेगा। साइबर तहसीलों में औसत 15 से 17 दिनों का समय लग रहा है, जो मैन्युअल प्रक्रिया में लगने वाले 60 दिनों की तुलना में महत्वपूर्ण उपलब्धि है। 15 दिन की समय सीमा में बिना आवेदन दिए, पेपरलेस, फेसलेस और ऑनलाइन नामांतरण और भू अभिलेख अद्यतन करने के लिए साइबर तहसील स्थापित की गयी है।
इस प्रकार संपूर्ण खसरा के क्रय-विक्रय से संबंधित नामांतरण प्रकरणों का निराकरण साइबर तहसीलों से किया जा सकता है। इस प्रकार के प्रकरणों में त्वरित नामांतरण के अलावा भू-अभिलेख अपडेट होगा। क्षेत्रीय तहसील स्तर पर अविवादित प्रकरणों के निराकरण का भार कम होगा। साइबर तहसील की व्यवस्था के लिए राजस्व विभाग द्वारा मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 में संशोधन कर धारा 13-क में साइबर तहसील के प्रावधान किए गए हैं। साइबर तहसील की व्यवस्था सभी जिलों में लागू हो रही है।
उल्लेखनीय है कि, वर्तमान में भूमि के रजिस्ट्री के बाद नामांतरण कराने के लिए आवेदन पत्र प्रस्तुत करना होता है और तहसील कार्यालय में पेशी पर उपस्थित होना पड़ता है। सिर्फ इतना ही नहीं नामांतरण कराने के लिए तहसील कार्यालय के दलालों/कर्मचारियों को रिश्वत के रूप में मोटी रकम भी देनी पड़ती है। अब साइबर तहसील की नई व्यवस्था के लागू होने के बाद यह देखना वाकई महत्वपूर्ण होगा कि नामंतरण को लेकर जिस तरह के बड़े-बड़े दावे किए गए उसमें लोगों को रिश्वत देने के लोगों को मजबूर होना पड़ता है या नहीं।

साइबर तहसील में कैसे होगा काम

साइबर तहसील में पंजीयन से नामांतरण तक की प्रकिया लागू कर दी गई है। साइबर तहसील को 4 अलग-अलग प्लेटफार्मों जैसे संपदा पोर्टल, भूलेख पोर्टल, राजस्व प्रकरण प्रबंधन व्यवस्था के पोर्टल से जोड़ दिया गया है। सायबर तहसील में ऐसे प्रकरण निराकरण योग्य हैं-संपूर्ण खसरा, जिसे विभाजित नहीं किया गया एवं ऐसी जमीन जो किसी प्रकार से गिरवी या बंधक ना रखी गई हो। पोर्टल पर पंजीयन करने के बाद और रजिस्ट्री के बाद रेवेन्यू पोर्टल पर स्वतः केस दर्ज हो जाएगा। इसके बाद सायबर तहसीलदार द्वारा जाँच की जाएगी। सूचना के बाद इश्तेहार एवं पटवारी रिपोर्ट के लिए मेमो जारी किया जाएगा। इसके बाद आदेश पारित कर भू-अभिलेख को अपडेट किया जाएगा। दस दिन बाद दावा-आपत्ति प्राप्त नहीं होने पर ई-मेल एवं व्हाट्सएप से आदेश दिए जायेंगे।

साइबर तहसील की विशेषतायें व लाभ

रजिस्ट्री के बाद बिना आवेदन किये नामांतरण का प्रखंड दर्ज हो जाता है। इस प्रक्रिया में क्रेता और विक्रेता को नामांतरण के लिए तहसील कार्यालय में उपस्थित होने, पेशी पर आने की जरूरत नहीं है। संपूर्ण प्रक्रिया ऑनलाइन व फेसलेस एवं पेपरलेस है। साथ ही प्रक्रिया पारदर्शी होने के साथ ही मानवीय हस्तक्षेप भी नहीं है। नोटिस क्रेता-विक्रेता तथा ग्राम के सभी निवासियों को एसएमएस से मिलता है। नोटिस आरसीएमएस पोर्टल पर भी दिखता है। इसमें ऑनलाइन आपत्ति दर्ज की जा सकती है। अंतिम आदेश की कॉपी ईमेल या व्हाट्सएप के माध्यम से आवेदक को मिलेगी। आदेश पारित होते ही स्वतः भू-अभिलेखों में सुधार हो जाता है। आदेश एवं राजस्व अभिलेखों में अमल की प्रक्रिया सरकारी छुट्टियां को छोड़कर 15 दिनों में पूरी हो जाएगी।
इस व्यवस्था ने क्षेत्राधिकार की सीमाओं को समाप्त कर दिया है। इस प्रणाली से रियल टाइम में भू अभिलेख अपडेट किए जाने की अनूठी सुविधा उपलब्ध कराई गई है। इससे पटवारी का हस्तक्षेप नहीं रहेगा। पटवारी रिपोर्ट ऑनलाइन जमा करने की सुविधा है। कम से कम समय में निराकरण होगा। पहले इन प्रक्रियाओं में औसत 60 दिन लग जाते थे। साइबर तहसील में औसत 15 दिनों में ही यह प्रक्रिया पूरी हो जायेगी। साइबर तहसील द्वारा पारित आदेश की पीडीएफ प्रति आवेदक को ईमेल-व्हाट्सएप से मिल जाएगी। इसकी प्रति आरसीएमएस पोर्टल पर भी अपलोड होगी।