
* कोरोना संक्रमण के कारण कई माह से बंद पड़े छात्रावासों को खोलने की मांग कर रहे हैं छात्र
* हड़ताल समाप्त कराने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों पर दवाब बनाने का लगाया आरोप
शादिक खान, पन्ना।(www.radarnews.in) मध्यप्रदेश में कोरोना संकट के चलते लगभग एक साल से बंद पड़े छात्रावासों को खोलने की मांग को लेकर पन्ना जिला मुख्यालय में आरक्षित वर्गों के छात्र-छात्राएं मंगलवार 16 फरवरी से नवीन कलेक्ट्रट के बाहर स्थित यात्री प्रतीक्षालय में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ हैं। पन्ना में कल देर शाम मौसम के मिजाज आए में बदलाव के चलते अचानक बारिश होने व ठण्ड बढ़ने के मद्देनजर हड़ताल कर रहे छात्रों को लेकर चिंतित जिले के प्रशासनिक मुखिया कलेक्टर संजय कुमार मिश्र मध्य रात्रि में उनसे बात करके हड़ताल को समाप्त कराने दल-बल के साथ पहुंचे। लेकिंन वे स्वयं छात्र-छात्राओं से सीधे बात करने के लिए उनके पास नहीं गए बल्कि अपर कलेक्टर जे.पी. धुर्वे से संदेश भेजकर हड़ताल पर बैठे छात्र-छात्राओं को संयुक्त कलेक्ट्रेट में स्थित अपने कक्ष में चर्चा करने के लिए बुलाया।
देर रात हड़ताली छात्रों ने जब वहां जाकर बात करने से इंकार किया तो साहब का संदेशा लेकर आए प्रशासनिक अधिकारी कथित तौर पर नाराज हो गए। छात्रों की मनाही से प्रशासनिक अफसरों के अहम व रुतबे को इतना जोर का झटका लगा कि अगले ही पल उनका रवैया ही अप्रत्याशित रूप से बदल गया।
हड़ताली छात्रों का आरोप है कि जिला प्रशासन के द्वारा भूख हड़ताल रुपी अहिंसक व शांतिपूर्ण प्रतिरोध को समाप्त कराने के लिए उनके ऊपर अनुचित दवाब डाला गया। मौके पर मौजूद भारी पुलिस बल का भय दिखाकर जबरन हड़ताल से उठाने की कोशिश की गई। इतना ही नहीं उनके माता-पिता को भी कॉल करके पर डराया-धमकाया गया। हलाँकि इन तमाम हथकंडों को आजमाने के बावजूद मध्य रात्रि के सन्नाटे लिखित आश्वासन के बगैर हड़ताल को समाप्त कराने प्रशासन सफल नहीं हो सका। अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल का नेतृत्व कर रहे युवा छात्र नेता संजय अहिरवार ने मंगलवार-बुधवार की मध्य रात्रि के घटनाक्रम को लेकर जिला प्रशासन के रवैए की कड़ी आलोचना की है।
संजय के अनुसार दरम्यानी रात जन के ऊपर तंत्र के द्वारा अपनी इच्छा को जबरिया थोपने का प्रयास किया गया। प्रशासन का यह कृत्य घोर निंदनीय है। उनका कहना है कि भारत का संविधान देश के प्रत्येक नागरिक को विचार की अभिव्यक्ति के अधिकार के तहत शांतिपूर्ण तरीके से धरना-प्रदर्शन करने का हक प्रदान करता है। कानून के दायरे में रहकर शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन का अधिकार हर नागरिक का लोकतांत्रिक व संवैधानिक अधिकार है। लेकिन मंगलवार-बुधवार की रात इसे हमसे छीनने की कोशिश की गई। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी व अन्य महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और क्रांतिकारियों ने देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के लिए उपवास/भूख हड़ताल को आंदोलन का एक शक्तिशाली अस्त्र बना बनाया था।
संजय पूंछते हैं कि हम छात्र-छात्राएं अपने अधिकार को पाने के लिए आज अगर शांतिपूर्वक भूख हड़ताल कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है। वे स्वयं ही इसका जवाब देते हुए तंज भरे अंदाज में कहते हैं दरअसल, “आंदोलनजीवी अर्थात परजीवी” वाली संकीर्ण सोच मौजूदा व्यवस्था (तंत्र) के अंतर्मन में गहरे तक बैठ चुकी है। इसलिए बीती रात जो कुछ हुआ वह आजादी के 70 साल बाद संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों से इतर गढ़े जा रहे “न्यू इण्डिया” में नागरिक अधिकारों व अहिंसक प्रतिरोध के दमन की मानसिकता का ही सूचक है। हड़ताली छात्र-छात्राओं का कहना है कि हम इसका लोकतांत्रिक तरीके से मुकाबला करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
सिनेमाघर खुल सकते हैं तो छात्रावास क्यों नहीं …
