* पन्ना के उत्तर वन मण्डल अंतर्गत दो दिन से फंदे में फँसा था तेंदुआ !
* वन अमले को मौके पर क्लिच वायर का फंदा और वन्यजीव के पगमार्क मिले
* बैखोफ शिकारियों ने कुछ दिन पूर्व नीलगाय का शिकार कर जंगल में की थी पार्टी
* पन्ना टाइगर रिजर्व में 15 दिन पूर्व बाघ का कंकाल मिलने पर संदिग्ध मौत का हुआ था खुलासा
शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) मध्य प्रदेश को पुनः टाइगर स्टेट का दर्जा दिलाने में अहम योगदान देने वाले पन्ना जिले के जंगलों से पिछले कुछ समय लगातार बुरी ख़बरें आ रहीं हैं। जिनसे यह पता चलता है, यहाँ के संरक्षित एवं सामान्य वन क्षेत्र में स्वछंद विचरण करने वाले बाघ-तेन्दुआ समेत दूसरे वन्यजीव गम्भीर संकट में हैं। पन्ना में सक्रिय शिकारियों और वन्यजीवों के तस्करों ने जंगल के चप्पे-चप्पे में बेजुबान वन्यजीवों के शिकार के लिए जाल बिछा रखा है। फलस्वरूप नियमित अंतराल में वन्य प्राणियों के शिकार की हैरान करने वाली घटनायें सामने आ रहीं हैं। विगत दो वर्ष की अवधि में जिले में एक दर्जन से अधिक तेन्दुओं, दो बाघों, एक भालू, एक मोर, एक पैंगोलिन एवं दर्जनों की तादाद में अन्य शाकाहरी वन्यजीवों का शिकार हुआ है।
इसके अलावा पन्ना टाइगर रिजर्व सहित पन्ना के उत्तर एवं दक्षिण वन मण्डल अंतर्गत बड़े पैमाने पर जंगल की अवैध कटाई, वन क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर खनिज सम्पदा का उत्खनन तथा वन भूमि में अतिक्रमण के मामले प्रकाश में आए हैं। इन सब से पता चलता है कि वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा एवं निगरानी की व्यवस्था अत्यंत ही लचर स्थिति में होने के कारण हालात किस हद तक बेकाबू हो चुके हैं। इतनी बड़ी तादाद में शिकार की घटनाओं के मद्देनजर यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण न होगा, यदि शीघ्र ही ठोस कदम नहीं उठाए गए तो पन्ना के जंगल एक बार फिर बाघ विहीन हो सकते और इस बार यहां से तेन्दुओं का भी नामो-निशान भी मिट सकता है। इस भयावह त्रासदी की आहट अब साफ़ सुनाई दे रही है।
उल्लेखनीय है कि, वर्तमान में मकर संक्रांति त्यौहार के उपलक्ष्य पर शिकार की आशंका को देखते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व एवं जिले के उत्तर एवं दक्षिण वन मण्डल में अलर्ट घोषित है। शिकार की घटनाओं की रोकथाम हेतु मैदानी अमले को अपने-अपने क्षेत्र में सघन जंगल गश्ती करने के निर्देश दिए गए हैं। बाबजूद इसके उत्तर वन मण्डल की धरमपुर रेन्ज अंतर्गत बीट धरमपुर एवं पंचमपुर के सीमावर्ती जंगल में कथित तौर पर एक तेंदुए के क्लिच वायर के फंदे में फँसे होने की ख़बरें रविवार 12 जनवरी 2020 से आ रहीं थी। क्षेत्रीय ग्रामीणों और वन विभाग के चौकीदार रामाधार लोध के अनुसार तेंदुए का पिछला पैर फंदे में फँसा था जोकि मंगलवार 14 जनवरी की शाम तक देखा गया। खबर मिलने पर डिप्टी रेन्जर बल्देव प्रसाद और धरमपुर रेन्जर बी. के. विश्वकर्मा दलबल के साथ मौके पर पहुँचे। रात्रि में जंगल की सर्चिंग कराई गई लेकिन वहाँ तेंदुआ नहीं मिला। जिस स्थान पर तेंदुआ दो दिनों से फंदे में फँसा गुर्रा रहा था, वहाँ पर वनकर्मियों को क्लिच वायर का एक फंदा अवश्य मिला है। ऐसा माना जा रहा है कि वन विभाग की टीम के पहुँचने के पहले ही तेन्दुआ किसी तरह खुद को फंदे से आजाद कर जंगल की ओर भाग निकला।
धरमपुर रेन्जर बी. के. विश्वकर्मा ने बताया कि वन विभाग की टीम के द्वारा दूसरे दिन बुधवार 15 जनवरी को दिन के समय जंगल सर्चिंग की गई। इस दौरान कुछ पगमार्क उस स्थान पर मिले हैं जहाँ पर क्लिच वायर का एक फंदा मिला था लेकिन हल्की बारिश होने की वजह से यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि पगमार्क किस वन्य प्राणी के है। रेन्जर श्री विश्वकर्मा के अनुसार उक्त पगमार्क सियार के प्रतीत होते हैं। उनसे यह पूँछा गया कि, फंदे में तेन्दुआ या फिर अन्य कोई वन्यजीव फँसा था, अब तक की जाँच-पड़ताल से क्या निष्कर्ष निकला ? धरमपुर रेन्जर बी. के. विश्वकर्मा का कहना है, फंदे में कोई भी वन्यजीव नहीं फँसा था। वन विभाग के चौकीदार रामाधार लोध के द्वारा फंदे में तेंदुआ के फँसे होने के संबंध मीडियकर्मियों को दिए गए बयान पर जब सवाल पूँछा गया तो उन्होंने अपने जवाब में बताया कि चौकीदार को कुछ पता ही नहीं है, उससे तो मीडियकर्मियों ने बाईट में तेंदुआ कहलवा लिया था। जबकि इसी चौकीदार के द्वारा तेंदुए के फंदे में फँसे होने की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी गई थी।
उत्तर वन मण्डल की प्रभारी डीएफओ मीना मिश्रा ने बिना किसी लाग-लपेट के यह स्वीकार किया है कि, फंदे में कोई वन्यजीव फँसा था वह तेंदुआ था या लकड़बग्घा यह अभी स्पष्ट नहीं है। उन्होंने बताया कि, इस मामले की जाँच जारी है, जिसके पूर्ण होने पर ही तस्वीर साफ़ हो पाएगी। गौरतलब है इस संवेदनशील मामले में रेन्जर जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे बी. के. विश्वकर्मा का बयान अत्यंत ही गैर जिम्मेदाराना है। इससे पता चलता है कि वे वन्य प्राणियों और जंगल की सुरक्षा को लेकर कितने सजग और ईमानदार हैं। यह मामला ऐसे समय प्रकाश में आया है जब शिकार की रोकथाम को लेकर अलर्ट जारी है। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब उत्तर वन मण्डल के ही विश्रामगंज वन परिक्षेत्र अंतर्गत सरकोहा में स्थित पत्थर खदान में एक तेंदुआ संदिग्ध परिस्थितियों में मृत मिला था। इसकी मौत कब और कैसे हुई यह रहस्य बना हुआ है। उधर, पन्ना टाइगर रिजर्व के कड़ी सुरक्षा वाले कोर क्षेत्र अंतर्गत 31 दिसम्बर 2019 को रमपुरा बीट में वनरक्षक आवास सह नाका के समीप एक युवा बाघ का कंकाल मिलने का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया था। युवा बाघ की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के कारणों का भी अब तक खुलासा नहीं हो पाया है।
शिकारियों के हौसले बुलंद
पन्ना के जंगल अब वन्य प्राणियों के लिए सुरक्षित नहीं है। दरअसल, यहाँ शिकारियों और तस्करों की सक्रियता लगातार चिंताजनक तेजी से बढ़ रही है। इसके उलट वन अपराधों की रोकथाम करने के लिए जंगल की निगरानी और वन्यजीवों की सुरक्षा बढ़ाने संबंधी वन विभाग के अफसरों के दावे धरातल पर खोखले साबित हो रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण जिले के दक्षिण वन मण्डल अंतर्गत सामने आया नीलगाय के शिकार का हैरान करने वाला मामला है। यहाँ की शाहनगर एवं पवई रेन्ज के सीमावर्ती इलाके में अज्ञात शिकारियों ने न सिर्फ नीलगाय का शिकार किया बल्कि बड़े ही बेखौफ अंदाज में जंगल में ही शिकार के माँस और शराब की पार्टी की। दिनाँक 10 जनवरी 2020 को शिकार की इस घटना के खुलासे ने वन विभाग के अफसरों के दावों की पोल खोलकर रख दी है। इससे मैदानी अमले से लेकर वरिष्ठ अधिकारियों तक की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगने से जहाँ उन्हें शर्मसार होना पड़ा वहीं अराजकता पूर्ण स्थिति(जंगलराज) व्याप्त होने को लेकर वन विभाग की भी काफी बदनामी हो रही है। इस घटनाक्रम से यह साबित हो चुका है पन्ना जिले में शिकारियों और वन्यजीव तस्करों के हौसले कितने बुलंद है। बेजुबान वन्य प्राणियों के शिकार की घटनाओं तथा अन्य वन अपराधों को जिस बेख़ौफ़ अंदाज में अपराधी अंजाम दे रहे हैं उससे तो यही खबर मिलती है कि पन्ना के जंगलों, वन्यजीवों तथा वन सम्पदा को उसके रखवालों ने लुटने के लिए खुला छोड़ दिया है।
शिकार रोकने में नाकाम तो छिपाने लगे घटनाएं
दक्षिण वन मण्डल पन्ना की पवई एवं शाहनगर रेन्ज के सीमावर्ती इलाके में हुए नीलगाय के शिकार की घटना को मैदानी वन अमले ने पहले तो दबाने का भरसक प्रयास किया पर जब मीडियाकर्मियों ने मौके के वीडियो और फोटो वायरल करने शुरू किए तो इससे मचे हड़कंप के चलते अगले दिन 11 जनवरी 2020 को शिकार की घटना होना स्वीकार कर लिया। कुछ समय पूर्व दिनाँक 29 अक्टूबर 2019 को शाहनगर रेन्ज अंतर्गत हुए तेंदुए के शिकार की घटना पर भी इसी तरह पर्दा डालने का प्रयास किया गया था। उस समय भी स्थानीय मीडियाकर्मियों ने ही पूरे मामले को उजागर किया था।
बहरहाल नीलगाय के शिकार एवं जंगल में ही शिकारियों के पार्टी करने का मामला पवई एवं शाहनगर दोनों ही रेन्जों से जुड़ा है। पवई रेन्ज की मोहाड़िया बीट के कक्ष क्रमांक- 638 में नीलगाय की खाल नाले के पानी में पड़ी मिली। जबकि नाला के दूसरी तरफ शाहनगर रेन्ज के टिकरिया सर्किल की ढेंसाई बीट में चूल्हा बना पाया गया। कथित तौर इसी चूल्हे में शिकार के माँस को पकाकर खाया गया। चूल्हे के ही आसपास शराब की खाली बोतलें और नीलगाय की हड्डियाँ भी मिलीं। सूत्र बताते हैं, पन्ना जिले के जंगलों में प्रतिदिन कई वन्यजीवों का शिकार होता है, जिनमें शिकार की अधिकाँश घटनाएं तो पता ही नहीं चलती और वहीं कुछ को विभाग की बदनामी के डर एवं अपने निकम्मेपन को छिपाने के लिए मैदानी अमला जंगल में ही दफन कर देता है।
जवाबदेही के आभाव में बिगड़े हालत
जिले में सक्रिय बेखौफ शिकारियों की हिम्मत तो देखिये, नीलगाय का शिकार करने के बाद जंगल में ही बड़े इत्मिनान से उसे छीला-काटा गया फिर वहीं पर माँस पकाया और शराब के साथ बड़े मजे से पार्टी करके रफूचक्कर हो गए। इस घटना को सप्ताह भर होने को है लेकिन अब तक न तो अज्ञात शिकारियों का कोई सुराग लग पाया और ना ही शिकार की इस अप्रत्याशित घटना के लिए प्रथम दृष्टया जवाबदेह मैदानी अमले की घोर लापरवाही सामने आने पर दोषियों को दण्डित किया गया है। जानकारों का मानना है, मौजूदा रिचार्ज बाउचर व्यवस्था में हर स्तर पर जवाबदेही का आभाव होने से अंधेरगर्दी को बढ़ावा मिल रहा है जिससे हालात बद से बद्तर होते जा रहे हैं। शिकार की घटनाएं यदि इसी गति जारी रहीं तो निकट भविष्य में पन्ना के जंगल पुनः बाघ विहीन हो सकते हैं और तेन्दुओं का भी पूरी तरह खात्मा हो सकता है। वैसे भी पिछले कुछ सालों से हीरा-पत्थर-मुरुम के व्यापक पैमाने पर अवैध उत्खनन एवं पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के चलते यहाँ वनों की विनाशलीला अनवरत जारी है। सरकारी रिकार्ड से इतर जमीनी सच्चाई यह है कि पन्ना में पहाड़ खोखले हो रहे हैं और धरती का हरित आवरण तेजी से सिकुड़ रहा है।