विश्व के लिए शोध एवं अध्ययन का केन्द्र बना पन्ना टाईगर रिज़र्व

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शावकों के साथ बाघिन का फाइल फोटो।

बाघ पुर्नस्थापना योजना की कामयाबी से मिली ख्याति बना मिसाल

 वन सेवा के अधिकारियों के अलावा विदेशों से प्रशिक्षण प्राप्त करने आ रहे हैं प्रशिक्षु

पन्ना। रडार न्यूज़  मध्यप्रदेश के पन्ना नेशनल पार्क की स्थापना यूँ तो वर्ष 1981 में हुई थी, जिसे वर्ष 1994 में टाईगर रिजर्व के रूप में मान्यता मिली। लेकिन इसे आकर्षण का केन्द्र पन्ना टाईगर रिजर्व द्वारा बुनी गयी बाघों की विलुप्ति से पुर्नस्थापना की कहानी ने बनाया है। आज यह न केवल देश-विदेश के पर्यटकों को लुभा रहा है बल्कि देश-विदेश के अधिकारियों व ककर्मचारियों के लिए शोध एवं अध्ययन का केन्द्र बन गया है। पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर क्षेत्र 576 वर्ग किलोमीटर तथा बफर क्षेत्र 1021 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। विश्व प्रसिद्ध सांस्कृतिक पर्यटन स्थल खजुराहो से इसका पर्यटन प्रवेश द्वार मड़ला महज 25 किलोमीटर दूर है। बाघों से आबाद रहने वाला पन्ना टाईगर रिजर्व विभिन्न कारणों से फरवरी 2009 में बाघ विहीन हो गया था। जिसके बाद इन विपरीत परिस्थितियोंय में पार्क प्रबंधन के द्वारा भारतीय वन जीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों की मदद से दिसम्बर 2009 में पन्ना बाघ पुर्नस्थापना योजना की व्यापक रूप रेखा तैयार की गई। योजना के अंतर्गत 4 बाघिन व 2 वयस्क नर बाघों को बाघ पुर्नस्थापना के संस्थापक बाघों की आबादी के रूप में बांधवगढ़, कान्हा एवं पेंच टाईगर रिजर्व से पन्ना टाईगर रिजर्व में लाया गया ताकि यहां पर बाघों की वंश वृद्धि हो सके। लेकिन यह इतना आसान भी न था। योजना के मुताबिक पेंच टाईगर रिजर्व से लाया गया नर बाघ टी-3 यहां के जंगल में 10 दिन रहने के बाद यहां से दक्षिण दिशा में निकल पड़ा। यह बाघ नजदीकी जिलों के वन क्षेत्रों में लगभग 1 माह तक स्वच्छंद विचरण करता रहा। योजना के शुरूआती दौर में ही उत्पन्न हुई इस समस्या से पार्क प्रबंधन ने हार नहीं मानी। पार्क की टीम लगातार बाघ का पीछा करती रही। पार्क के 70 कर्मचारियों की टीम 4 हाथियों के द्वारा दिसम्बर 2009 को दमोह जिले के तेजगढ़ जंगल से इस बाघ को फिर से पन्ना टाईगर रिजर्व में लाया गया। पुनस्र्थापना किए गये बाघ में होमिंग (अपने घर लौटने की प्रवृत्ति) कितनी प्रबल होती है इसे पहली बार देखा गया। इस बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य को अपने दृढ़ निश्चिय से सफल बनाकर पन्ना पार्क टीम ने अपनी दक्षता साबित की है। बाघ टी-3 की उम्र अब 15 वर्ष हो गई है और अ बवह अपने ही वयस्क शावकों से अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है।

70 शावकों का हुआ जन्म

मड़ला स्थित पन्ना टाईगर रिजर्व का प्रवेश द्वार।

बाघ टी-3 से पन्ना बाघ पुर्नस्थापना की सफतला की श्रंखला प्रारंभ हो गई। पार्क की सुरक्षा प्रबंधन एवं सृजन की अभिनव पहल को पहली ऐतिहासिक सफलता तब मिली जब बाघिन टी-1 ने वर्ष 2010 को 4 शावकों को जन्म दिया। जिसके बाद बाघिन टी-2 ने भी 4 शावकों को जन्म दिया। इसके बाद से सिलसिला निरंतर जारी है। बाघिन टी-1, टी-2 एवं कान्हा से लाई गई अर्द्ध जंगली बाघिनों टी-4, टी-5 एवं इनकी संतानों द्वारा अब तक लगभग 70 शावकों को जन्म दिया जा चुका है। जिनमें से जीवित रहे 49 बाघों में से कुछ ने विचरण करते हुए सतना, बांधवगढ़ तथा पन्ना एवं छतरपुर के जंगलों में आशियाना बना लिया है। बाघों की पुनस्र्थापना की इस सफलता की कहानी को सुनने और इससे सीख लेने प्रतिवर्ष भारतीय वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों को एक सप्ताह के लिए भेजा जाने लगा है। इतना ही नहीं कम्बोडिया एवं उत्तर पूर्व के देशों तथा भारत के विभिन्न राज्यों से भी बाघ पुर्नस्थापना का अध्ययन करने एवं प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए अधिकारी एवं कर्मचारी यहां आ रहे है।

पर्यटकों की संख्या में हुई वृद्धि

फाइल फोटो।

पिछले वर्षों में पर्यटकों विशेषकर विदेशी पर्यटको की संख्या में भी उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। वर्ष 2015-16 में कुल 36730 पर्यटक, वर्ष 2016-17 में कुल 38545 पर्यटक एवं वर्ष 2017-18 में मई 2018 तक की स्थिति में कुल 27234 पर्यटकों की संख्या दर्ज की गई है। इसके अलावा पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की बढ़ती संख्या के लिए रहवास प्रबंधन, मानव एवं वन्य प्राणी द्वंद का समाधान तथा पर्यटन से लगभग 500 स्थानीय लोगों को रोजगार भी प्रदाय किया जा रहा है। वर्ष 2017-18 में 30 ग्रामों में संसाधन विकसित करने हेतु 60 लाख रूपये पार्क प्रबंधन द्वारा प्रदाय किए गए है। साथ ही स्थानीय 68 युवकों को आर आतिथ्य का प्रशिक्षण खजुराहो में दिलाकर उन्हें सितारा एवं 5 सितारा होटलों में रोजगार दिलाया गया है।

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