* सोशल मीडिया पर वायरल हो रही बसपा नेताओं के सामूहिक त्यागपत्र वाली सूची
* बसपा सुप्रीमो पर पन्ना का टिकिट बेंचने का पूर्व प्रत्याशी ने लगाया था आरोप
शादिक खान, पन्ना। रडार न्यूज चुनावी मौसम में राजनैतिक दलों के नेताओं-कार्यकर्ताओं का बगावत करना या नाराज होना नई बात नहीं है। इस स्थिति से कमोबेश सभी पार्टियों और उनके प्रत्याशियों को जूझना पड़ता है। अंतर सिर्फ इतना रहता है, कहीं पर इस तरह की स्थिति कम तो कहीं अधिक प्रभावी होती। किसी भी प्रत्याशी के चुनावी आंकलन में विश्लेषक इस फैक्टर को काफी अहम् मानते है। दरअसल, यह माना जाता है कि अपनों के विरोध का सीधा असर चुनावी माहौल पर पड़ता है। शायद इसीलिए आंतरिक असंतोष को रोकने, रूठों को मनाने और बागियों शांत कर वापस अपने खेमे में लाने के लिए राजनैतिक दल हर संभव प्रयत्न करते है। पन्ना विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-60 की बात करें तो यहां भाजपा, कांग्रेस, बसपा और सपा प्रत्याशी अपनों के असंतोष और भितरघात से जूझ रहे हैं। नेताओं के असंतुष्ट होने का कारण जाहिर तौर पर राजनैतिक महत्वकांक्षा है। दरअसल, इन्हें लगता है कि इसी तरह अगर चुनाव के समय बाहरी नेता आकर टिकिट पाते रहे तो वे क्या सिर्फ पार्टी का काम करने और बाहरी नेताओं को ढ़ोने के लिए है। लेकिन बहुजन समाज पार्टी की प्रत्याशी अनुपमा चरण सिंह यादव का मामला थोड़ा अलग है। श्री मती यादव को उनकी पार्टी के ही लोग स्वीकार्य नहीं कर पा रहे। विरोध का कारण अनुपमा चरण सिंह यादव का बाहरी होना है। इसके अलावा टिकिट मिलने से पूर्व वे बसपा की सदस्य तक नहीं रहीं। कारोबारी पृष्ठभूमि वाले उनके पति चरण सिंह यादव कुछ महीने पहले तक समाजवादी पार्टी में सक्रिय रहे हैं। इसलिए बहुजन समाज पार्टी में वर्षों से सक्रिय रहे क्षेत्रीय नेताओं की उपेक्षा कर अनुपमा चरण सिंह यादव को प्रत्याशी बनाये जाने से नाराज दर्जनभर पदाधिकारी सामूहिक रूप से पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं। इनकी सूची सोशल मीडिया पर उपलब्ध है। जिसमें कहा गया है कि पार्टी के प्रति समर्पित स्थानीय नेताओं की उपेक्षा कर बाहरी व्यक्ति को प्रत्याशी बनाये जाने का हम विरोध करते हैं और संतोष दुबे के नेतृत्व में अपने पद तथा पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से सामूहिक त्याग पत्र देते हैं। विदित हो कि बहुजन समाज पार्टी के पूर्व जिला उपाध्यक्ष संतोष दुबे पन्ना सीट से टिकिट के एकमात्र दावेदार रहे हैं। बसपा में कई वर्षों से सक्रिय होने और पन्ना विधानसभा क्षेत्र का मूल निवासी होने के कारण वे टिकिट के स्वाभाविक प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। लेकिन अंतिम समय में बसपा ने पन्ना सीट से पहले अपने निष्कासित नेता महेन्द्र पाल वर्मा को उम्मीदवार घोषित और इसके कुछ ही घंटे बाद वर्मा का टिकिट काटकर आनन-फानन में बड़े ही नाटकीय तरीके से उत्तर प्रदेश से ही ताल्लुक रखने वाली अनुपमा चरण सिंह यादव को प्रत्याशी घोषित कर दिया था। टिकिट कटने से नाराज महेंद्र पाल बसपा सुप्रीमो पर पन्ना का टिकिट बेंचने का आरोप लगा चुके हैं।
पन्ना के नेता गुनौर में कर रहे प्रचार
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती, पन्ना में बसपा के खेमे में अभी भी सब कुछ सामान्य नहीं है। अंदरखाने ऐसी चर्चायें हैं कि अपवाद स्वरुप कुछ लोगों को छोड़कर बसपा के अधिकांश कार्यकर्ता-पदाधिकारी अपनी पार्टी प्रत्याशी अनुपमा चरण सिंह यादव के पक्ष में प्रचार नहीं कर रहे हैं। बसपा का वोट बैंक समझे जाने वाले तबके में भी यह बात तेजी से फ़ैल रही है। पन्ना विधानसभा क्षेत्र के बसपा पदाधिकारियों की नाराजगी का हाल यह है कि वे अपने कार्य क्षेत्र के बजाय पन्ना जिले के ही आरक्षित गुनौर विधानसभा क्षेत्र में पार्टी प्रत्याशी इंजीनियर जीवनलाल सिद्धार्थ के पक्ष में गांव-गांव घूमकर प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। उधर, पन्ना में बसपाईयों की जगह एक खास वर्ग के लोगों की प्रचार-प्रसार में अग्रणी भूमिका होने के साथ-साथ प्रत्याशी के पक्ष में इनकी गोलबंदी का नकारात्मक असर पड़ने सरीकी धारणाओं को बल मिल रहा हैं। हालांकि, बहुजन समाज पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष प्रदीप अहिरवार इन सब बातों को सिरे से नकार रहे हैं। श्री अहिरवार का दावा है कि अनुपमा चरण सिंह यादव के प्रचार में पन्ना के सभी पार्टी कार्यकर्ता-पदाधिकारी पूरी निष्ठा के साथ जुटे हैं। बसपा नेताओं के सामूहिक इस्तीफों और टिकिट बेंचने के आरोप लगने के सवाल पर उनका कहना है यह सबकुछ एक नेता के इशारे पर हुआ है। टिकिट बेंचने के आरोप पूर्णतः निराधार हैं, इस तरह के घिनौने आरोपों को मीडिया पता नहीं क्यों तूल दे रहा है।
“मुझे तो किशोर जी ने बुलाया है”
पन्ना सीट से बहुजन समाज पार्टी की प्रत्याशी अनुपमा सिंह यादव के पति चरण सिंह यादव यहां से चुनाव लड़ने और बाहरी होने के सवाल पर कहते हैं कि उन्हें यहां पर श्री जुगल किशोर जी ने बुलाया है। पन्ना से मेरा नाता पुराना है, यहां की आवोहवा, घने जंगल, शांत प्राकृतिक वातावरण और सरल स्वाभाव के लोगों ने उन्हें काफी प्रभावित-आकर्षित किया है। इनका दावा है वे यहां के पिछड़ेपन, पलायन और गरीबी को दूर कर खुशहाली लाना चाहते हैं। उधर सोशल मीडिया सहित अखबारों में ख़बरें आ रहीं है खनन कारोबार से प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से जुड़े धनाढ्य बाहुबलियों की नजर पन्ना की बहुमूल्य खनिज संपदा पर है। गरीबी, अशिक्षा, शोषण, और जागरूकता के आभाव में पन्ना जिला कई दशकों से खनन माफियाओं, सामंती सोच वाले कतिपय प्रभावशाली परिवारों और अधिकारियों का चरागाह बना है। पन्ना को प्रकृति से मिली बेशुमार नेमतें हीरा, पत्थर, रेत और प्रचुर वन संपदा ही अब यहां के लोगों के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है। दरअसल, पन्ना में ठिकाना बनाने की तमन्ना में कतिपय नेतागण खुद को विकास पुरुष बताकर तो कोई समाजसेवी का चोला पहनकर या फिर धनबल और जातिगत भावनाओं को उभार कर यहां का माहौल ख़राब करने में लगे है। पन्ना का प्रबुद्ध वर्ग इस बात को भलीभांति महसूस कर रहा है और यहां के भविष्य को लेकर आशंकित व चिंतित भी है। वे तर्कसंगत तरीके से यह सवाल उठा रहे हैं, बाहरी नेताओं ने यदि वाकई अपने क्षेत्र या कर्मभूमि के विकास के लिए ईमानदारी से काम किया है और निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा की है तो ये वहां सफल क्यों नहीं हो पाये। इनकी कर्मभूमि के लोगों ने स्वघोषित विकास पुरुष और समाजसेवियों को क्यों नकार दिया। अपने क्षेत्र में ये अगर वाकई लोकप्रिय रहे तो आज इन्हें पन्ना में जमीन तलाशने की आवश्यकता क्यों पड़ी। यह सवाल विचारणीय होने के साथ-साथ आमजन मानस को झकझोर रहे हैं। इन सवालों पर लोगों के बीच मतभेद हो सकते हैं लेकिन पन्ना का हितों का संरक्षण सभी चाहते हैं।