* अरुणाचल प्रदेश के प्रतिनिधि मण्डल ने केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह से की मुलाकात
नई दिल्ली। (www.radarnews.in) बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने “उत्कृष्टता केंद्र के रूप में जैव-संसाधनों व सतत् विकास केंद्र” की स्थापना के लिए प्रतिष्ठित परियोजना को मंजूरी दी थी और जल्द ही इसके औपचारिक उद्घाटन के लिए काम पूरा हो गया है। यह परियोजना अरुणाचल प्रदेश के पापुम पारे जिला स्थित किमिन में है और नए भवन के निर्माण के साथ-साथ अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण पूरा हो चुका है। लगभग 50 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित इस परियोजना की वित्त पोषण एजेंसी भारत सरकार का बायोटेक्नोलॉजी विभाग है।
लोकसभा के वरिष्ठ सदस्य तापिर गाव, राज्यसभा के सांसद नबाम रेबिया और अरुणाचल प्रदेश राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद के अध्यक्ष बामंग मंघा के नेतृत्व में अरुणाचल प्रदेश के एक प्रतिनिधिमंडल ने आज केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह से मुलाकात की। इस प्रतिनिधिमंडल ने उन्हें अपनी और साथ ही विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश के लोगों व सामान्य रूप से पूरे उत्तर पूर्व क्षेत्र की जनता की ओर से धन्यवाद दिया।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल उत्तर पूर्व को उच्च प्राथमिकता दी है, बल्कि ढांचागत विकास व संचालित परियोजनाओं के मूल्यवर्धन के लिए नवीनतम तकनीक का उपयोग करने का भी आह्वाहन किया है। इसे देखते हुए इस उद्देश्य के लिए यह महत्वपूर्ण है कि इस क्षेत्र में खुद के प्रौद्योगिकी संसाधन केंद्र हों और प्रस्तावित उत्कृष्टता केंद्र का लक्ष्य इस उद्देश्य को पूरा करना है।”
मंत्री ने आगे कहा कि मोदी सरकार के दौरान अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी व सैटेलाइट इमेजिंग सहित विभिन्न प्रकृति की प्रौद्योगिकियों के सर्वश्रेष्ठ उपयोग के माध्यम से कई परियोजनाओं को आगे बढ़ाया गया है और इन्हें त्वरित गति से शुरू किया गया है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि एक समय में निधियों के दुरुपयोग को लेकर आरोप-प्रत्यारोप होते थे। लेकिन अब हमारे पास सैटेलाइट इमेजिंग के माध्यम से उपयोगिता प्रमाण पत्र प्राप्त करने व ई-ऑफिस और अन्य इलेक्ट्रॉनिक साधनों के जरिए परियोजनाओं को मंजूरी देने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए एक तंत्र है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि बायोटेक्नोलॉजी विभाग के जैव-संसाधन केंद्र की स्थापना से पूरा उत्तर पूर्वी क्षेत्र अपने फल व जैविक खाद्य क्षमता का अधिकतम सीमा तक उपयोग करने में सक्षम होगा। इसके अलावा यह कई विशाल क्षेत्रों की खोज करने व विविध आवासों और विविध वनस्पतियों सहित अब तक कम ज्ञात या अज्ञात नई प्रजातियों को खोजने में भी सहायता करेगा। इसका प्रभाव पूरे उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार पर पड़ेगा।