* स्त्री रोग विशेषज्ञ ने कहा, प्रसव के पहले ही बता दिया था महिला की स्थिति अच्छी नहीं
* शव का दो बार कराया पोस्टमार्टम ! महिला की मौत का सच क्या हो पाएगा उजाग़र ?
* सिविल सर्जन का दावा पीएम एक ही बार कराया, हो सकता है कि टीम की दूसरी सदस्य बाद में कुछ देखने गई हों
शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) घोर अव्यवस्थाओं एवं मरीजों के इलाज में गंभीर लापरवाही के लिए बदनाम पन्ना जिला चिकित्सालय में प्रसूता की असमय मौत होने का मामला प्रकाश में आया है। यहां सिज़ेरियन ऑपरेशन के चंद घण्टे बाद 35 वर्षीय प्रसूता की अचानक तेज़ी से हालत बिगड़ने लगी। परिजनों के द्वारा सूचना देने पर बमुश्किल स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मीना नामदेव तेज़ बारिश के बीच हॉस्पिटल पहुंची और प्रसूता को ब्लड चढ़ने के बाद स्थिति नार्मल होने की बात कहकर वापस लौट गईं। लेकिन प्रसूता की हालत में सुधार होना तो दूर उसकी तबियत लगातार बिगड़ती ही चली गई। आख़िरकार 3 घण्टे तक असहनीय दर्द और बैचेनी से कराहती-तड़पती प्रसूता संगीता सिंह की सांसें हमेशा के लिए थम गईं। वह अपने नवजात बच्चे को भी ठीक से देख नहीं सकी। और इस तरह बच्चे के जन्म की ख़ुशी कुछ ही घण्टे के अंदर मातम में तब्दील हो गई। पीड़ित परिजनों ने डॉ. मीना नामदेव पर इलाज एवं ऑपरेशन में गंभीर लापरवाही बरतने के आरोप लगाए है। साथ ही महिला चिकित्सक के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की मांग की है।
परिजनों ने जानकारी देते हुए बताया कि, संगीता सिंह पति हरपाल सिंह 35 वर्ष निवासी ग्राम सिमरी थाना अमानगंज के गर्भवती होने के बाद से ही लगभग 9 माह तक नियमित रूप से पन्ना में डॉक्टर मीना नामदेव अपने निजी आवास में स्थित क्लीनिक में बुलाकर परामर्श और उपचार करती रहीं। इस दौरान डॉक्टर मैडम हर माह-डेढ़ माह में सोनोग्राफी करवाती और केवल दिल्ली सोनोग्राफी सेंटर की सोनोग्राफी तथा अपने आवास के सामने स्थित मेडिकल स्टोर की दवाइयां मान्य करती रहीं। इस प्रकार 9 माह में लगभग 1 लाख रुपए का खर्च आया। परिजनों का कहना है, डॉ. मीना नामदेव की एक-एक बात पर वे अक्षरशः अमल करते रहे ताकि प्रसव के समय जच्चा-बच्चा पूर्णतः सुरक्षित रहें।
संगीता को प्रसव पीड़ा होने पर दिनांक 20 अगस्त 2022 को परिजनों के द्वारा उसे पन्ना लाकर जिला चिकित्सालय के मेटरनिटी वार्ड में भर्ती कराया गया। जहां डॉ. मीना नामदेव ने महिला की स्थिति ठीक न होने की जानकारी देते हुए सिजेरियन ऑपरेशन के जरिए प्रसव कराने की बात कही। परिजनों की सहमति मिलने के बाद सिजेरियन डिलीवरी कराई गई, फलस्वरूप दोपहर लगभग 1 बजे बच्चे का जन्म हुआ। प्रसव पश्चात महिला को ब्लड चढ़वाया गया। इस बीच शाम करीब 5 बजे अचानक प्रसूता की हालत बेहद तेज़ी से बिगड़ने लगी। परिजनों के द्वारा वार्ड की नर्सों को जानकारी देकर डॉ. मीना नामदेव को एमर्जेन्सी कॉल पर बुलाने की गुहार लगाई। लेकिन उन्होंने डॉ. मीना के मैटर में कुछ भी करने से साफ़ इंकार कर दिया। इस स्थिति में परिजनों ने डॉ. मीना नामदेव को खुद ही कई बार कॉल किया। तेज बारिश के बीच शाम करीब 6 बजे बमुश्किल डॉ. मीना हॉस्पिटल पहुंचीं और खून की कमी के कारण प्रसव उपरांत इस तरह की समस्याएं आम होने की जानकारी देते हुए बोलीं कि ब्लड चढ़ने के बाद स्थिति नार्मल हो जाएगी। परिजनों के अनुसार इतनी तसल्ली देने के बाद डॉ. नामदेव वापस अपने घर चली गईं।
प्रसूता संगीता की हालत में कोई सुधार होना तो दूर उसकी तबियत लगातार बिगड़ती ही चली गई। हॉस्पिटल में ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर को दिखाया मगर, कोई राहत नहीं मिली। बेटी की लगातार बिगड़ती हालत को देखते हुए परिजनों के द्वारा डॉ. मीना नामदेव को बुलाने के लिए पुनः कॉल किये गए। लेकिन इस बार उनका मोबाइल फोन रिसीव नहीं हुआ। आख़िरकार रात्रि क़रीब 8 बजे असहनीय दर्द और बैचेनी से तड़प-तड़प कर प्रसूता ने दम तोड़ दिया। बेटी की असमय मौत से दुखी और आक्रोशित परिजनों ने डॉ. मीना नामदेव पर आरोप लगाया कि, 9 माह तक संगीता से परामर्श-उपचार के नाम पर मोटी रकम ऐंठने के बाद अंत में उसे भगवान भरोसे छोड़ दिया।
जबकि डॉ. मीना नामदेव ने बताया कि शाम को करीब 7:30 बजे मैं पुनः भारी बारिश के बीच अपनी गाड़ी ड्राइव कर किसी तरह हॉस्पिटल पहुंची तब संगीता जीवित थी। लेकिन काफी प्रयास करने के बाद भी खून की कमी के कारण हालत बिगड़ने पर उसे बचाया नहीं जा सका। डॉ. नामदेव का आरोप है कि, मौके पर मौजूद संगीता के परिजन उन्हें गंदी-गंदी गालियां देते रहे, काफी भला-बुरा कहते रहे फिर भी वे इस दुर्व्यवहार और अपमान का घूंट पीकर धैर्य के साथ मरीज़ का इलाज करती रहीं। उन्होंने बताया कि, वे हॉस्पिटल में रात लगभग10 बजे तक रहीं और शव को घर ले जाने के लिए वाहन की व्यवस्था करवाती रहीं। लेकिन जब परिजनों के असंतोष व आरोपों का पता चला तो मैनें ही सिविल सर्जन सर को फोन करके शव का पोस्टमार्टम करवाने की बात कही। इसके उलट संगीता के चाचा मंगल सिंह राजावत का कहना है, डॉ. नामदेव बेटी की मौत होने के बाद हॉस्पिटल आई थीं।
मृतिका के परिजनों और महिला डॉक्टर के अपने-अपने दावे
मृतिका के चाचा मंगल सिंह ने बताया कि प्रसव के चार दिन पूर्व 16 अगस्त को संगीता अपने पति के साथ डॉ. नामदेव से परीक्षण कराने पन्ना स्थित उनके क्लीनक पर आई थी। तब मैडम ने स्थिति पूर्णतः नार्मल बताते हुए प्रसव में कोई समस्या न होने की बात कही थी। मंगल सिंह के अनुसार, प्रसव के समय संगीता के ब्लड (हिमोग्लोबिन) की मात्रा 13 ग्राम थी जोकि सामान्य मानी जाती है। उन्होंने स्वीकार किया कि सिजेरियन ऑपरेशन के पूर्व स्त्री रोग विशेषज्ञ ने यह बताया था कि संगीता की स्थिति क्रिटिकल है। लेकिन यह बात चार दिन पूर्व परीक्षण के समय नहीं बताई। अगर, समय रहते बता देतीं तो हम अपनी बेटी का प्रसव कराने उसे बाहर ले जाते।
भतीजी की मौत से दुखी मंगल सिंह का मानना है, संगीता की स्थिति यदि ठीक न होती तो ऑपरेशन के दौरान उसके साथ कोई भी अनहोनी हो सकती थी। लेकिन उसकी तबियत ऑपरेशन के करीब 3 घण्टे बाद बिगड़ी। खून की कमी होने की बात को बहाना करार देते हुए उन्होंने आशंका जताई है, सिजेरियन ऑपरेशन के दौरान नसों के कटने अथवा दिए गए उपचार के साइड इफ़ेक्ट के कारण उनकी बेटी की मौत हुई है। डॉ. मीना की मानें तो प्रसूता की मौत खून की कमी के ही कारण हुई है, उसके शरीर में खून की मात्रा को लेकर तीन अलग-अलग रिपोर्ट थीं। जिनमें से दो रिपोर्ट में शरीर में हिमोग्लोबिन की मात्रा 7 से 8 ग्राम के बीच बताई गई थी। महिला की हालत देखने से भी लग रहा था कि उसके शरीर में खून की कमी है। स्त्री रोग विशेषज्ञ के अनुसार, मृतिका के परिजनों ने उन्हें बताया था कि पूर्व दोबार हुए ऑबर्शन सहित संगीता का यह छटवां प्रसव था। जबकि मृतिका की मां कमला सिंह ने इसे सरासर झूठ और मनगढ़ंत करार देते हुए बताया, उनकी बेटी का यह चौथा प्रसव था, पूर्व में उसके एक बच्चे की मौत हो गई थी।