खजुराहो लोकसभा सीट | बुन्देलखण्ड के चुनावी रण में मोदी जीतेंगे या क्षेत्रवाद ? महारानी कविता, मुरैना के बीडी और चित्रकूट के वीर सिंह के बीच रोचक मुकाबला

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* चुनावी मैदान में 17 उम्मीदवार फिर भी क्यों है बेहतर विकल्प का आभाव ?

* चुनाव प्रचार से पूरी तरह गायब रहे क्षेत्र के विकास से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे

* जातिगत गोलबंदी के चलते भाजपा और कांग्रेस में बढ़ा भीतरघात का खतरा

शादिक खान, पन्ना। रडार न्यूज  अंतर्राष्ट्रीय पहचान रखने वाले खजुराहो-पन्ना-कटनी संसदीय क्षेत्र क्रमाँक-8 में मतदान की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। यहाँ सोमवार 6 मई को वोटिंग होनी है। मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड अंचल की इस लोकसभा सीट को भारतीय जनता पार्टी का मजबूत गढ़ माना जाता है। पिछले तीन दशक से इस सीट पर लगातार भाजपा के सांसद निर्वाचित हो रहे हैं। वर्तमान में यहाँ से सांसद रहे नागेन्द्र सिंह चार माह पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में सतना जिले की नागौद सीट से चुनाव जीतकर विधायक बन चुके हैं। बीजेपी ने इस बार खजुराहो सीट से विष्णु दत्त शर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया है। उनका मुकाबला कांग्रेस की उम्मीदवार छतरपुर के पूर्व राजघराने की महारानी कविता सिंह और समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक वीर सिंह पटेल से है। भाजपा प्रत्याशी विष्णु दत्त शर्मा जहाँ चम्बल क्षेत्र के मुरैना जिले के निवासी हैं वहीं सपा प्रत्याशी वीर सिंह पटेल तराई अंचल के दस्यु सरगना रहे ददुआ के पुत्र हैं और पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले से आते हैं। कांग्रेस की उम्मीदवार कविता से इन दोनों ही बाहरी प्रत्याशियों को क्षेत्रीयता के मुद्दे कड़ी चुनौती मिल रही है। दरअसल कविता सिंह पन्ना जिले की बेटी खजुराहो की बहु हैं। इनके पति विक्रम सिंह नातीराजा खजुराहो संसदीय क्षेत्र अंतर्गत आने वाली राजनगर सीट से विधायक हैं।

हाथ जोड़कर वोट मांगतीं कांग्रेस प्रत्याशी कविता सिंह।
भाजपा प्रत्याशी विष्णु दत्त शर्मा को बाहरी होने के कारण चुनाव के शरुआती दौर में अपनी ही पार्टी के नेताओं का कड़ा विरोध झेलना पड़ा था। क्षेत्र में कई जगह उनके पुतले जलाकर बीडी शर्मा वापस जाओ के नारे भी लगाए गए। भाजपा के शीर्ष नेताओं की पहल से पार्टी के अंदर उनके खिलाफ उठने वाले विरोध के स्वर तो शांत हो गए पर स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा चुनाव में बना है। इस चुनौती का मुकाबला करने खास रणनीति के तहत भाजपा का चुनावी कैम्पेन राष्ट्रवाद, जाँबाज सैनिकों द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट में की गई एयर स्ट्राइक, पूर्व में हुई सर्जिकल स्ट्राइक, मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने तथा देश को कुशल नेतृत्व प्रदान करने के लिए नरेन्द्र मोदी को पुनःप्रधानमंत्री बनाने पर अब तक केन्द्रित रहा है। भाजपा प्रत्याशी बीडी शर्मा खुद को निमित्त मात्र बताते हुए मोदी के नाम पर वोट माँग रहे हैं।
पन्ना में जनसम्पर्क करते भाजपा प्रत्याशी बीडी शर्मा।
जबकि कांग्रेस प्रत्याशी कविता सिंह खुद को क्षेत्र की बेटी और बहु बताकर भावनात्मक सम्बंधों की दुहाई देते हुए मतदाताओं से पिछले अनुभवों को ध्यान में रखकर उन्हें को एक अवसर देने की अपील कर रहीं हैं। कांग्रेस प्रत्याशी मतदाताओं को पूर्व में चुनें गए भाजपा के सांसदों की विफलताओं, वादाखिलाफी, उनके बाहरी होने के कारण क्षेत्र से अधिकाँश समय गायब रहने और संसद में खामोश रहने के बारे में भी बता रहीं हैं। वे केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार पर अपनी असफलताओं को छिपाने के लिए चुनाव में राष्ट्रवाद के मुद्दे को उछालने, चुनाव आयोग की रोक के बाबजूद चुनाव प्रचार में सैनिकों का जिक्र कर उनके शौर्य का श्रेय लेने आदि मुद्दों पर भाजपा को घेर रहीं हैं। कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगता है कि खजुराहो सीट पर स्थानीय बनाम बाहरी की चुनावी जंग में मतदाताओं का समर्थन उन्हें मिलेगा। इसके अलावा प्रदेश की कमलनाथ सरकार द्वारा की गई किसानों की ऋण माफ़ी, विवाह योजना की सहायता राशि में वृद्धि सहित अन्य फैसलों और महत्वकांक्षी न्याय योजना से मतदाता उनके साथ आएँगे।
सपा प्रत्याशी वीर सिंह पटेल पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा की सुप्रीमो मायावती के नाम पर वोट माँग रहे हैं। चित्रकूट और पन्ना जिले की सीमा जुड़ी होने के कारण वे खुद को बाहरी नहीं मानते। सपा प्रत्याशी का चुनाव प्रचार अभियान कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले बेहद कमजोर रहा है। हालाँकि वे खजुराहो संसदीय क्षेत्र की उपेक्षा और पिछड़ेपन के लिए भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ हमलावर रहते हुए इन दोनों ही पार्टियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि इन दोनों ही दलों से निराश हो चुके खजुराहो क्षेत्र के लोग तीसरे विकल्प के तौर पर सपा का साथ देंगे ? बहरहाल इस बार के लोकसभा चुनाव में खजुराहो सीट पर प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार में विकास से जुड़े मुद्दों, अति पिछड़े इस इलाके की ज्वलंत समस्याओं के समाधान पर कोई खास बात नहीं हुई। भाजपा-कांग्रेस के बड़े नेताओं की आमसभाओं में तक में इनका जिक्र तक नहीं हुआ।
सांकेतिक फोटो।
बुन्देलखण्ड के इस चर्चित संसदीय क्षेत्र से सांसद कौन होगा इसका निर्धारण पिछड़ा वर्ग के मतदाता करते आये हैं, जिनकी संख्या का अनुपात कुल मतदाताओं का लगभग आधा है। खजुराहो संसदीय क्षेत्र से इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रमुख दलों ने नए चेहरों के रूप में सवर्णों पर दाँव लगाया है। जबकि समाजवादी पार्टी प्रत्याशी वीर सिंह पटेल बहुसंख्यक पिछड़ा वर्ग से आते हैं, उन्हें बहुजन समाज पार्टी का समर्थन भी प्राप्त है। इस चुनाव में तीनों ही प्रत्याशियों के पक्ष में जातिगत गोलबंदी साफ़ नजर आ रही है। यह अलग बात है कि वे इससे इंकार करते हुए सबका समर्थन मिलने की बात कह रहे हैं। चुनाव पूर्व जातिगत भावनाओं के उभार का असर यह है कि भाजपा के कई नेता इस चुनाव में कांग्रेस को जिताने और कांग्रेस के कई नेता भाजपा प्रत्याशी को जिताने के लिए अंदरूनी तौर पर काम कर रहे हैं। पन्ना जिले में कुछ नेता ऐसे भी हैं जिन्होंने चार माह पूर्व संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए वोट मांगे थे, लेकिन आज वे कांग्रेस के लिए वोट माँग रहे हैं। वहीं जो लोग कांग्रेस के हाथ को मजबूत बनाने की बात कर रहे थे आज वे भाजपा को जिताने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं।

पन्ना में जनसम्पर्क पर निकलीं कांग्रेस प्रत्याशी कविता सिंह।
इस विचित्र स्थिति को देखते हुए बहुसंख्यक मतदाता खामोश हैं। चुनाव मैदान में 17 उम्मीदवार होने के बाबजूद कई मतदाताओं को बेहतर विकल्प का आभाव महसूस हो रहा है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने नाम नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर अपने अंदर चल रहे द्वंद की स्थिति को साझा करते हुए बताया कि एक तरफ राजपरिवार से ताल्लुक रखने वालीं महारानी हैं तो दूसरी तरफ दो अन्य प्रमुख राजनैतिक दलों के प्रत्याशी बाहरी हैं। इन तीनों में से यदि कोई चुनाव जीतता है तो क्या क्षेत्र के आम लोगों के लिए उसकी उपलब्धता सहज और सुलभ होगी, यह बड़ा और अहम सवाल है ? पीछे मुड़कर देखें तो बाहरी सांसदों को लेकर अनुभव बेशक अच्छा नहीं रहा। लेकिन, एक अच्छा प्रत्याशी होने के लिए स्थानीय (क्षेत्रीय) होना ही क्या एक  मात्र योग्यता है ? उन्होंने बड़ी ही साफगोई के साथ कहा कि फिलहाल वे यह निर्णय नहीं ले पा रहे हैं कि किसे अपना वोट दें। 6 मई को मतदान केन्द्र के अंदर जो दिल कहेगा उसी की बटन दबाऊँगा।
सांकेतिक मानचित्र।
उल्लेखनीय है कि अभी तक की स्थितियों के मुताबिक खजुराहो सीट पर फ़िलहाल लड़ाई त्रिकोणीय नजर आ रही है। हालाँकि इस सीट के चुनावी इतिहास को देखते हुए विश्लेषकों का मानना है कि मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होगा। इनका तर्क है कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की पहचान इस इलाके में कुछ समूहों तक ही सीमित है। ऐसे में गैर सवर्ण कितने एकजुट होते हैं उस पर ही त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति निर्भर करेगी। यदि भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला हुआ तो यह देखना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रवाद और मोदी के नाम पर भाजपा ध्रुवीकरण करने में सफल होती है या फिर क्षेत्रवाद का मुद्दा भारी पड़ता है।