* लोकसभा चुनाव को लेकर खजुराहो संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं में नहीं दिलचस्पी
* पहली बार कांग्रेस पार्टी समेत अन्य प्रमुख दलों के प्रत्याशियों के बगैर होगा चुनाव
* 1989 से लगातार चुनाव जीत रहे भाजपा सांसदों की क्षेत्र के विकास को लेकर एक भी उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं
* चुनाव में रोजगार, पलायन, महंगाई, खनिज संसाधनों की लूट, मेडिकल कॉलेज, शिक्षा संस्थान और बुनियादी सुविधाओं के आभाव के मुद्दे रहे हावी
शादिक पन्ना। (www.radarnews.in) लोकसभा चुनाव 2024 के कार्यक्रम अनुसार दूसरे चरण में मध्य प्रदेश के छह संसदीय क्षेत्रों में शुक्रवार 26 अप्रैल को मतदान होना है। जिसमें खजुराहो लोकसभा क्षेत्र भी शामिल है। मतदान की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी लेकिन खजुराहो क्षेत्र के मतदाताओं का लोकतंत्र के महापर्व को लेकर किसी तरह का कोई उत्साह न दिखाना चिंताजनक है। मतदाताओं की अरुचि का एक बड़ा कारण इस बार मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस समेत अन्य प्रमुख दलों के प्रत्याशियों का चुनाव मैदान में न होना माना जा रहा है। मैदान खाली होने के परिणामस्वरूप मुकाबले को एकतरफ़ा मानकर चल रहे भाजपा प्रत्याशी एवं प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा (वीडी शर्मा) अपनी लगातार दूसरी जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नजर आ रहे हैं। उनका पूरा जोर जीत का रिकार्ड बनाने पर है। खजुराहो लोकसभा संसदीय क्षेत्र में भाजपा के विष्णु दत्त शर्मा सहित कुल 14 प्रत्याशियों की किस्मत दांव पर लगी है। यहां भाजपा के नेतागण अपने प्रदेश अध्यक्ष की 10 लाख मतों के अंतर से ऐतिहासिक जीत का दावा कर रहे हैं। जबकि बहुजन समाज पार्टी प्रत्याशी कमलेश पटेल और इंडिया गठबंधन समर्थित ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के प्रत्याशी पूर्व आईएएस आरबी प्रजापति (राजा भइया प्रजापति) भाजपाईयों के दावों को अति आत्मविश्वास करार देते हुए अपनी-अपनी जीत की बात कह रहे हैं। दोनों ही क्षेत्रीय प्रत्याशियों का दावा है, खजुराहो संसदीय क्षेत्र की जनता इस बार बाहरी प्रत्याशी (वीडी शर्मा) को खदेड़कर स्थानीय व्यक्ति को अपना सांसद चुनने का मन बना चुकी है। किसके दावे में कितना दम है, इसका पता तो मतदान के बाद चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद ही चलेगा।
बहरहाल, खजुराहो के मौजूदा सांसद एवं भाजपा प्रत्याशी विष्णु दत्त शर्मा के पांच साल के कार्यकाल को लेकर लोगों में गहरा असंतोष व्याप्त है। शर्मा ने चुनाव के समय क्षेत्र की जनता से जो वायदे किए थे चुनाव जीतने के बाद उन्हें पूरा करने की सुध तक नहीं ली। सांसद के साथ भाजपा प्रदेशाध्यक्ष का ओहदा मिलने के बाद प्रदेश में शर्मा की राजनैतिक हैसियत मुख्यमंत्री के बाद नंबर दो की रही। बावजूद इसके डबल इंजन की सरकार में वीडी अपने बलबूते खजुराहो संसदीय क्षेत्र को एक भी उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं दिला सके। विपक्षी दलों के नेता इसके लिए उन्हें नाकार सांसद घोषित कर चुके हैं।
सांसद शर्मा पर यह भी आरोप लगता रहा है कि, वह अपने निर्वाचन क्षेत्र में जनप्रतिनिधि की तरह जनता के बीच न आकर व्हीव्हीआईपी की तरह दर्शन देने आते हैं। क्षेत्र के दौरे पर रहने के दौरान पूरे समय पार्टी के चुनिंदा नेताओं और चमचों-चाटुकारों से घिरे रहने के कारण आमजन का सांसद से मिलना कभी सहज नहीं रहा। कहा तो यह भी जाता है कि, सांसद जी अधिकांशतः सरकारी कार्यक्रमों या फिर पार्टी के कार्यक्रमों में शिरकत करने के लिए ही क्षेत्र के दौरे के पर आते हैं। विपक्ष के इन आरोपों को श्री शर्मा पूर्व में अनेक मौकों पर खुद को बदनाम करने की साजिश बताकर सिरे से ख़ारिज करते रहे हैं। साथ ही खजुराहो क्षेत्र में पिछले पांच साल में हुए कुछ कार्यों को भी उनके द्वारा अपनी उपलब्धि के तौर पर गिनाया गया। लेकिन विडंबना यह है कि, उन्हीं कार्यों का श्रेय लेते हुए क्षेत्र के विधायक विधानसभा चुनाव के समय जनता से वोट मांग चुके हैं। इससे विपक्ष को सांसद के रूप में वीडी की उपलब्धि पर सवाल उठाने का मौका मिल गया। सांसद निधि के खर्च का हिसाब सार्वजानिक न करने तथा सांसद निधि से सरस्वती शिशु स्कूलों को बड़ी राशि आवंटित करने को लेकर भी विपक्ष के नेतागण सांसद वीडी शर्मा पर हमला बोलते रहे हैं।
ऊपर से ख़ामोशी पर अंदरखाने हलचल
भाजपा का अभेद दुर्ग माने जाने वाले खजुराहो संसदीय क्षेत्र में मतदान की पूर्व संध्या तक ऊपर से चुनावी माहौल भले ही पूरी तरह शांत नजर आ रहा हो लेकिन अंदरखाने क्षेत्रीयता, जाति और वर्ग के आधार पर प्रभावी तरीके से वोटरों की गोलबंदी की जा रही है। इस अंदरूनी हलचल के बावजूद बहुसंख्यक मतदाताओं में चुनाव के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं। इसका सीधा दुष्प्रभाव मतदान प्रतिशत बढ़ाने के प्रयासों पर पड़ सकता है। वहीं मतदाताओं की अरुचि के परिणामस्वरूप रिकार्ड मतों से जीत का दावा करने वाले भाजपाइयों की अब सांसें फूल रही हैं। भाजपाईयों का मानना है वीडी की जीत का अंतर जितना बड़ा होगा उसके ही आधार पर उनके राजनैतिक कद का निर्धारण किया जाएगा। अब सवाल उठता है, मोदी लहर में पिछला चुनाव करीब पांच लाख मतों के अंतर से जीतने वाले वीडी शर्मा इस बार प्रतिकूल माहौल में क्या वाकई अपनी जीत का अंतर दो गुना (दस लाख) कर पाएंगे या फिर उनका यह दावा महज प्रतिद्वंदियों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनांने की रणनीति का हिस्सा है? इसका जवाब तो आने वाला वक्त ही बातएगा।
सत्ता विरोधी लहर को चुनाव प्रचार से किया कमजोर !
विदित हो कि, कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की एकमात्र खजुराहो सीट गठबंधन के तहत समाजवादी पार्टी को दी थी। लेकिन यहां से समाजवादी पार्टी प्रत्याशी मीरा दीपक यादव का नामांकन फार्म निरस्त हो गया था। इंडिया गठबंधन की ओर से कोई डमी नामांकन न होने पर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और आमआदमी पार्टी ने फॉरवर्ड ब्लॉक ऑफ इंडिया के प्रत्याशी पूर्व आईएएस आरबी प्रजापति को अपना समर्थन दिया है। इनका चुनाव चिन्ह शेर है। मैदान मुख्य विपक्षी दलों के उम्मीदवार न होने के बावजूद भाजपा प्रत्याशी ने चुनाव को पूरी गंभीरता से लिया। अपने समर्थन में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुकांत साय और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सभाएं-रोड शो आयोजित कराए। इसकी तुलना में बसपा प्रत्याशी कमलेश पटेल और इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार आरबी प्रजापति का चुनाव प्रचार बेहद ही कमजोर रहा। चुनाव प्रचार में सबसे आगे रहने वाले भाजपा प्रत्याशी की रणनीति को लेकर जानकारों मानना है, इस बार सबको पता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लहर नहीं है बल्कि महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरूपयोग, विपक्ष के दमन और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने जैसे मुद्दों पर मोदी सरकार से जनता काफी नाराज़ है। इसके आलावा खजुराहो क्षेत्र की जनता ने भाजपा सांसदों पर जितने बार भरोसा जताया है उतनी संख्या में उनकी उपलब्धि भी नहीं है। क्षेत्र में बड़े नेताओं की सभाएं करवाकर और चुनाव प्रचार अभियान के दौरान लोगों के बीच पहुंचकर वीडी ने भाजपा और अपने प्रति नाराजगी को दूर करने का भरसक प्रयास किया है। हालांकि, इसमें वे कितने सफल रहे इसका पता तो आगामी 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने पर चलेगा।