मध्य प्रदेश के खनिज मंत्री के गृह जिले में रेत माफ़िया से मैनेज है प्रशासन !

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पन्ना जिले के ग्राम जिगनी ग्राम में निजी भूमि पर खुलेआम संचालित रही अवैध रेत खदान में मशीनों से कराए गए रेत खनन कराया गया। (फाइल फोटो)

*    रेत खदानों के पेटी ठेका की अनुबंध शर्तों से “बेशर्म सांठगांठ” का हुआ खुलासा

*    मैनेजमेंट के दम पर खुलेआम जारी है बहुमूल्य खनिज सम्पदा की लूट का खेल

*    पन्ना की केन नदी, पहाड़ और पर्यावरण के विनाश पर मौन हैं जिम्मेदार

*    प्रशासन के मैनेजमेंट को लेकर पूर्व में रेत माफियाओं की बातचीत का वीडियो हुआ था वायरल

शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रूख अख्तियार करने का संदेश देते हुए कुछ वर्ष पूर्व कहा था कि, “ना खाऊँगा, ना खाने दूँगा”। उन्होंने देश से भ्रष्टाचार समाप्त करने का वादा करते हुए अपने चिरपरिचित अंदाज में यह सख्त चेतावनी भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों को दी थी। प्रधानमंत्री की ही तर्ज पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भ्रष्टाचार को किसी भी सूरत में बर्दाश्त न करने की बात कई अवसरों पर कहते रहे हैं। शिवराज ने तो एमपी में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ जीरो टॉलरेन्स की नीति अपनाने का बकायदा ऐलान भी किया था। लेकिन इन इरादों और दावों के बीच भारत हाल ही में एशिया महाद्वीप का सबसे भ्रष्ट देश बन गया है। यह बात भ्रष्टाचार पर आने वाली ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ताजा रिपोर्ट में सामने आई है। हालांकि भ्रष्टाचार की जमीनी सच्चाई इस रिपोर्ट से भी कहीं अधिक शर्मनाक और विकराल है।
हमारे यहां भ्रष्टाचार/घूसख़ोरी की जड़ें व्यवस्था में काफी गहराई तक फैली हैं, इन्हें सिर्फ कोरी बयानबाजी से उखाड़ पाना असंभव है। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की बात करें तो भ्रष्टाचार के लिए बदनाम अति पिछड़े इस जिले में चौतरफा खुलेआम लूटपाट मची है। शिव “राज” में सत्ता का संरक्षण प्राप्त माफिया और प्रशासन के बीच यहां ग़जब की सांठगांठ है। इसका खुलासा जिले की रेत खदान समूह ठेकेदार के द्वारा रेत खदानों को पेटी ठेका पर देने के लिए तैयार कराए गए अनुबंध पत्र के मसौदे में शामिल शर्तों से हुआ है। इसमें रेत खदान ठेकेदार के द्वारा “प्रशासनिक मैनेजमेंट” के संबंध में पेटी ठेकेदारों के लिए वस्तुस्थिति स्पष्ट की गई है।
अनुबंध पत्र के मसौदे के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद से जिले के प्रशासनिक हल्कों में आंतरिक खलबली मची है। मजेदार बात यह है कि रेत की लूट की खुली छूट देकर कमीशन खाने वाले भ्रष्ट अफसर और पन्ना को खनन से खोखला करने वाला रेत ठेकेदार दोनों ही डैमेज कण्ट्रोल की रणनीति के तहत अपने इस “गुप्त इकरारनामे” को झुठला रहे हैं। मालुम हो कि पन्ना में लम्बे समय से फल-फूल रहे माफिया और प्रशासन के नापाक रिश्ते पहले भी उजागर हो चुके हैं। थोड़ा फ़्लैश बैक में जाएं तो कमलनाथ सरकार के समय पन्ना के पूर्व कलेक्टर कर्मवीर शर्मा के कार्यकाल के दौरान रेत माफियाओं की बातचीत का एक वीडियो वायरल हुआ था। जिसमें रेत के अवैध उत्खनन के एवज में कलेक्टर व माइनिंग ऑफिसर को क्रमशः पाँच और तीन लाख रुपए एडवांस देने पड़ते हैं, जैसी हैरान करने वाली बात सामने आई थी।

अनुबंध पत्र के प्रारूप में क्या है ?

वायरल अनुबंध पत्र का प्रारूप पेज-1
पन्ना जिले की रेत खदान समूह के ठेकेदार रसमीत सिंह मल्होत्रा के द्वारा कथित तौर पर अजयगढ़ तहसील क्षेत्र की अनुबंधित रेत खदानों को पेटी ठेका पर देने के उद्देश्य से मैन पावर प्रोवाईडर/सर्विस प्रोवाइडर के लिए 14 बिंदुओं का एक अनुबंध पत्र तैयार कराया गया है। जिसमें नियम-शर्तों का विस्तृत उल्लेख है। इस अनुबंध पत्र का बिंदु क्रमाँक-4 खासा चर्चाओं में बना है। दरअसल इसमें उल्लेख है कि- “रायल्टी व अन्य प्रशासनिक व मैनेजमेंट खर्च जिले के अनुबंधित वैध ठेकेदार (आर.एस.एम.) द्वारा खर्च किया जावेगा।” अनुबंध पत्र में ठेकेदार रसमीत सिंह मल्होत्रा का पूरा नाम न लिखकर शार्ट में जिले के अनुबंधित वैध ठेकेदार (आर.एस.आम) लिखा गया है।
वायरल अनुबंध पत्र का प्रारूप पेज-2
जनचर्चा है कि, मानसून के समापन उपरांत माह अक्टूबर 2020 से इसी अनुबंध पत्र के आधार पर रेत खदानों को पेटी ठेका पर दिया गया है। अनुबंध पत्र की इस शर्त से साफ़ तौर पर जाहिर है कि जिले में बड़े पैमाने पर चल रही रेत की लूट में अधिकारियों को उनका हिस्सा मुख्य ठेकेदार के द्वारा दिया जा रहा है। इसके एवज में संबंधित अधिकारियों ने ठेकेदार को रेत की लूट की खुली छूट दे रखी है। पन्ना की जीवनदायनी केन नदी और पर्यावरण के विनाश की कीमत पर निहित स्वार्थ पूर्ती का यह खेल पिछले छह माह से अनवरत जारी है। उल्लेखनीय है कि रडार न्यूज़ इस वायरल अनुबंध पत्र के मसौदे (प्रारूप) की स्वतंत्र रूप से इस पुष्टि नहीं करता है। मालुम हो कि वायरल अनुबंध पत्र के आलावा रेत ठेकेदार ने निजी भूमि पर रेत की अवैध खदानें संचालित करने के लिए अजयगढ़ क्षेत्र के कई ग्रामों में दर्जनों किसानों से बाकायदा अनुबंध निष्पादित किए हैं। हाल ही में रेत ठेकेदार के खिलाफ एनजीटी में प्रकरण दर्ज कराने वाले आवेदक ने इन अनुबंध को अवैध खनन के महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में पेश किया है।

विभागीय मंत्री हैं मौन

मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह।
मध्यप्रदेश शासन के खनिज एवं श्रम विभाग के मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह के गृह जिले एवं निर्वाचन क्षेत्र पन्ना की अजयगढ़ तहसील अंतर्गत खुलेआम जारी रेत की लूट ने अवैध उत्खनन के पिछले सभी रिकार्ड तोड़ दिए हैं। इस क्षेत्र में रेत का अवैध खनन पहले भी होता रहा है लेकिन इतने वृहद पैमाने पर और इस तरह बेख़ौफ़ अंदाज रेत की लूट कभी नहीं हुई। आश्चर्य की बात है कि, खनिज मंत्री इस ज्वलंत मुद्दे पर न सिर्फ मौन हैं बल्कि इसकी पूरी तरह से अनदेखी भी कर रहे हैं। जबकि कुछ माह पूर्व बृजेन्द्र प्रताप ने मंत्री के रूप में खनिज विभाग का पदभार गृहण करने के पश्चात अपनी प्राथमिकताएं गिनाते हुए अवैध खनन पर प्रभावी अंकुश लगाने की बात कही थी।
पन्ना जिले को वर्तमान में रेत, पत्थर और हीरे के लिए रात-दिन जिस तरह खोखला किया जा रहा है उसे देखकर लगता है, मंत्री जी की प्राथमिकताएं अब शायद बदल चुकी हैं। कुछ इसी तर्ज पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के स्वार्थी नेता भी अवैध खनन पर खामोश हैं। चर्चा है कि अग्रिम पंक्ति कुछ नेताओं को रेत ठेकेदार ने रोजगार दे दिया है। कुछ को रेत खदान में हिस्सेदारी मिल गई तो कतिपय नेताओं के माध्यम से मशीनरी को किराया/ठेके पर लगाया गया है। वहीं पन्ना-अजयगढ़ के अधिकाँश पत्रकार और प्रशासनिक अफसर पहले से ही मैनेज हैं। ये सभी रेत की लूट से निकलने वाले घी को कम्बल ओढ़कर पी रहे हैं। अपवाद स्वरूप गिनती के चंद लोगों को छोड़कर।

बदल गया केन किनारे का भूगोल

बीरा गांव में केन नदी किनारे स्थित टीलों को खोखला कर रेत निकालती पोकलेन मशीन। (फाइल फोटो)
रेत के ठेके की आड़ में पन्ना जिले की अजयगढ़ तहसील अंतर्गत खनन-पर्यावरण सम्बंधी नियम-कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए ताबड़तोड़ अंदाज में जारी अवैध खनन का दुष्परिणाम केन नदी तथा इसके कछार में मोहना ग्राम से लेकर रामनई तक साफ़ देखा जा सकता। रेत के लिए ठेकेदार ने केन नदी किनारे स्थित आधा दर्जन से अधिक ग्रामों में टीलानुमा संरचना वाले खेतों को अवैध खनन से खोखला कर दिया है। नदी किनारे शासकीय भूमि पर भी जहां कहीं रेत मौजूद है, उसे दैत्याकार मशीनों से निकाला जा रहा है। निजी एवं शासकीय भूमियों पर रेत की पूर्णतः अवैध खदानों के चलते केन नदी के कछार का भूगोल बदल चुका है। अति वृष्टि की स्थिति में केन नदी की बाढ़ से सुरक्षा प्रदान करने वाले चम्बल के बीहड़ जैसे टीलेनुमा संरचना वाले खेतों को खदान में तब्दील करने से जहां नदी किनारे स्थित गांवों में जल भराव का खतरा बढ़ गया है वहीं इस इलाके में भू-कटाव बढ़ने तथा नदी के प्रवाह में बदलाव आने की आशंका भी जताई जा रही है।
आने वाले समय में अजयगढ़ तहसील के केन पट्टी क्षेत्र के लिए निश्चित ही यह मानव निर्मित बड़ी त्रासदी साबित होगी। जिसका खामियाजा बहुसंख्यक निर्दोष लोगों को भुगतना पड़ेगा। जानकारों का मानना है कि बाढ़ से सुरक्षा प्रदान करने वाले टीलों की गहरी खुदाई के कारण नदी किनारे स्थित ग्रामों को बाढ़ की विभीषिका झेलनी पड़ सकती है। रेत ठेकेदार ने निजी एवं शासकीय भूमि पर अवैध खदानें खोदकर केन नदी के कछार के बड़े इलाके को तबाह-बर्बाद तो किया ही है, इसके आलावा सैंकड़ों लोगों के जीवन को संकट में डालने का अक्षम्य अपराध किया है। लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस भ्रष्ट और बिकाऊ व्यवस्था में जहां धन के हाथों सभी बिक गए हैं, वहां अब किसी जुर्म (अपराध) के लिए क्या कोई सजा हो सकती है ?

रेत के अवैध कारोबार पर नहीं होती कार्रवाई

रामनई ग्राम में केन नदी में खुलेआम लिफ्टर चलाकर पानी के अंदर से रेत निकालते हुए ठेकेदार के गुर्गे।
रेत माफिया और प्रशासनिक अफसर लेनदेन के अपने रिश्ते को चाहे जितना भी नकारें मगर अजयगढ़ क्षेत्र में नियम-कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए जारी रेत के अनियंत्रित दोहन की विनाशलीला चींख-चींखकर कर जमीनी सच्चाई बयां कर रही है। रेत माफिया से बतौर प्रशासनिक मैनेजमेंट के रूप में मिलने वाली रिश्वत ने जिम्मेदारों की आँखों और हाथों पर पट्टी बाँध दी है। शायद यही वजह है कि रेत के अवैध खनन, परिवहन एवं भण्डारण के खिलाफ होने वाली शिकायतें जिला स्तर पर ठण्डे बास्ते में डाल दी जाती हैं। पिछले साल तक जिले में रेत के अवैध कारोबार के खिलाफ कार्रवाई भी होती रहती थी लेकिन अब यह औपचारिकता भी लगभग बंद हो चुकी है। पहले पुलिस अधिकारी भी अवैध रेत खनन-परिवहन में लगी मशीनरी-वाहन जब्त करते रहते थे। लेकिन रेत के वैध ठेके की आड़ में सत्ता के संरक्षण में जब से अवैध खनन का नया खेल शुरू हुआ है, पुलिस-राजस्व तथा खनिज विभाग के अफसर किसी अदृश्य शक्ति के दबाव में आ गए हैं।
बदली हुई परिस्थितियों में अफसरों की प्राथमिकता अपनी कुर्सी और रेत से मिलने वाली रिश्वत को बचाए रखने तक सिमट गई है। इसलिए अब इन्हें रेत का अवैध खनन-परिवहन दिखना लगभग बंद हो गया है। रेत माफिया की लूट से प्रभावित ग्रामीणों का दुःख-दर्द भी जिम्मेदारों को सुनाई नहीं देता। बताते चलें कि पन्ना जिले में जारी रेत के अवैध खनन एवं रेत खदानों को पेटी ठेका पर देने संबंधी वायरल अनुबंध पत्र की शर्तों को लेकर खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह, रेत ठेकेदार के प्रतिनिधि मोंटू अग्रवाल, पन्ना पुलिस अधीक्षक मयंक अवस्थी एवं जिला खनिज अधिकारी रवि पटेल से उनका पक्ष जानने के लिए कई बार सम्पर्क किया गया लेकिन उनके मोबाइल फोन या तो रिसीव नहीं हुए या फिर अपनी व्यस्तता का हवाला देकर कुछ भी बोलने से बचते रहे।
इनका कहना है –
पन्ना कलेक्टर, संजय कुमार मिश्र।
“अनुबंध पत्र के प्रारूप मात्र के आधार पर मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकता, अगर किसी ने इस अनुबंध को निष्पादित किया है तो उसकी कॉपी उपलब्ध कराएं मैं उचित कार्रवाई करूँगा। रेत के अवैध कारोबार के खिलाफ कार्रवाई को लेकर जिला प्रशासन जरा भी उदासीन नहीं है, जहां भी सूचना मिलती है हम उस पर कार्रवाई करते हैं। यदि कोई व्यक्ति एनजीटी या न्यायालय में जाता है यह उसका अधिकार है। हम माननीय न्यायालय के निर्देशों का अक्षरशः पालन करेंगे। मैं फिर भी इस अनुबंध पत्र के प्रारूप के संबंध में पता करता हूँ।”

– संजय कुमार मिश्र, कलेक्टर, जिला पन्ना।