विश्व की सबसे बुजुर्ग हथिनी वत्सला का निधन

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पन्ना टाइगर रिजर्व में पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रही विश्व की सबसे बुजुर्ग हथिनी वत्सला। (फाइल फोटो)

  वन्यजीव प्रेमियों और पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन में शोक की लहर

शादिक खान, पन्ना।(www.radarnews.in) मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व (Panna Tiger Reserve) में कई वर्षों तक पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रही विश्व की सबसे बुजुर्ग हथिनी (World’s Oldest Elephant) वत्सला (Vatsala) अब नहीं रही। वत्सला ने आज यानी मंगलवार 08 जुलाई 2025 को लगभग 100 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उसने पीटीआर की हिनौता रेंज अंतर्गत दोपहर में 01:30 बजे उसने अन्तिम सांस ली। अपने नाम को सार्थक करने वाली वत्सला वास्तव में प्रेम-स्नेह और ममता की मिसाल थी। दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनी के निधन की खबर आने के बाद से वन्यजीव प्रेमियों एवं पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन में शोक की शोक की लहर व्याप्त है।
पन्ना टाइगर रिजर्व वन्यप्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता ने जानकारी देते हुए बताया कि परिक्षेत्र हिनौता के हाथी कैम्प से बुजुर्ग हथिनी को नहाने के लिए प्रतिदिन समीप स्थित खैरईया नाला ले जाया जाता था। आज नाला के पास अचानक आगे के पैर के नाखून टूट जाने के कारण वत्सला वहीं बैठ गई। वनकर्मियों द्वारा उसको उठाने का काफी प्रयास किया गया लेकिन उन्हें कोई सफलता मिली। इसी बीच दोपहर 01:30 बजे विश्व की सबसे उम्रदराज हथिनी वत्सला ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

केरल में गुजरा प्रारंभिक जीवन

प्रेम और स्नेह का प्रतीक रही हथिनी वत्सला केरल के जंगलों में पैदा हुई और वहीं पर पली-बढ़ी। इसका प्रारंभिक जीवन केरल के नीलांबुर वन मण्डल में वनोपज के परिवहन में गुजरा। वर्ष 1971 में इसे मध्य प्रदेश के होशंगाबाद (नर्मदापुरम) लाया गया। लगभग 20 साल तक होशंगबाद में रहने के बाद वत्सला ने वर्ष 1993 में पन्ना टाइगर रिजर्व में पदार्पण किया और फिर आख़िरी सांस तक पन्ना में ही रही। पन्ना टाइगर रिजर्व के भ्रमण पर आने वाले पर्यटकों के लिए विश्व की सबसे बुजुर्ग हथिनी वत्सला आकर्षण का प्रमुख केन्द्र रही। शांत स्वाभाव की यह हथिनी अपने पास आने वाले पर्यटकों को हमेशा ही प्रेम, सुरक्षा एवं भावनात्वक जुड़ाव का एहसास कराती थी और बदले में सबसे ढेर सारा प्यार भी पाती थी। जिसका अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि पर्यटक वत्सला को अपने हाथों से खाद्य पदार्थ खिलाने के अविस्मरणीय पलों को जीने के लिए सहर्ष शुल्क अदा करते थे।

मोतियाबिंद ने छीन ली थी आंखों की रोशनी

वत्सला की अधिक उम्र एवं सेहत से जुड़ी समस्याओं के मद्देनजर वर्ष 2003 पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने इसे रिटायर्ड कर गश्ती कार्य से मुक्त कर दिया था। शतायु (Centenarians) हो चुकी वत्सला बढ़ती उम्र के साथ होने वाली स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं से जूझ रही थी। वत्सला का पाचन तंत्र कमजोर हो चुका था। इसलिए उसे खाने में दलिया या विशेष भोजन ही दिया जाता रहा है। करीब पांच वर्ष पूर्व 2020 में दोनों आंखों में मोतियाबिंद होने के कारण उसे दिखाई देना देना बंद हो गया था। आंखों की रोशनी खोने के बाद वत्सला के लिए जिंदगी दिन-प्रतिदिन मुश्किल होती चली गई। बिना किसी सहारे के चलना और जमीन रगड़ती अपनी लंबी सूंड को संभालना उसके लिए सबसे बड़ी समस्या बन गया। बुजुर्ग हथिनी की देखरेख करने वाला कर्मचारी मनीराम उसकी सूंड पकड़कर घुमाने ले जाता था। उसे हिनौता के हाथी कैम्प में रखा जाता था।

हाथियों के दल का करती थी नेतृत्व

पन्ना टाइगर रिजर्व के अन्तर्गत कैम्प के हाथियों में सबसे बुजुर्ग सदस्य होने के नाते वत्सला अपनी जिम्मेदारी को न सिर्फ अच्छी तरह समझती थी बल्कि तीन दशक तक उसे बखूबी निभाती रही है। सबसे उम्रदराज होने के कारण जाहिर है वह हाथियों के पूरे दल का कुशलतापूर्वक नेतृत्व करती रही है। कुनबे में जब भी कोई हथिनी बच्चे को जन्म देती थी तो वत्सला प्रसव के समय कुशल दाई की भूमिका निभाती थी। और प्रसव उपरांत वह नानी अथवा दादी की तरह बच्चों की देखभाल करती थी। परिणामस्वरूप पीटीआर में बाघों के साथ हाथियों का कुनबा भी बढ़ता गया। वर्तमान में पन्ना टाइगर रिजर्व में हाथियों के कुनबे की सदस्य संख्या एक दर्जन से अधिक है।

बेहतर इलाज से दो बार बची जान

पन्ना टाइगर रिजर्व के हिनौता स्थित हाथी कैम्प में वत्सला को स्पर्श करते बच्चे। (फाइल फोटो)
पन्ना टाइगर रिजर्व के ही एक गुस्सैल हाथी रामबहादुर ने दो बार प्राणघातक हमला कर वत्सला को गंभीर रूप से घायल कर दिया था। उस दौरान अगर वन्यप्राणी चिकित्सक (Wildlife Doctor) डॉ. संजीव गुप्ता ने वत्सला को अपनी निगरानी में रखकर बेहतर इलाज उपलब्ध कराने के साथ कई महीने तक नियमित रूप से उसकी विशेष देखभाल न की होती तो शायद वह शतायु होने का कीर्तिमान स्थापित न कर पाती। वत्सला के निधन से शोकमग्न डॉ. गुप्ता उस घटना को याद करते हुए बताते हैं कि हाथी रामबहदुर ने मद के दौरान पहला हमला वर्ष 2003 और दूसरा हमला 2008 में किया था। डॉ. गुप्ता ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व की मड़ला रेंज अंतर्गत जूड़ी हाथी कैंप में नर हाथी रामबहादुर ने मद के दौरान वत्सला के पेट पर जब हमला किया तो उसके दांत पेट में अंदर तक घुस गए। हाथी ने झटके के साथ सिर को ऊपर किया, जिससे वत्सला का पेट फट गया और उसकी आंतें बाहर निकल आईं थी। डॉ. गुप्ता ने 6 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद 200 टांके लगाए तथा पूरे 9 महीने तक वत्सला का इलाज किया। समुचित देखरेख व बेहतर इलाज से अगस्त 2004 में वत्सला का घाव भर गया। लेकिन फरवरी 2008 में नर हाथी रामबहादुर ने दुबारा अपने दांतों से वत्सला हथिनी पर हमला करके गहरा घाव कर दिया, जो 6 माह तक चले उपचार से ठीक हुआ। इस तरह दो बार नई जिंदगी मिलने पर वत्सला सबसे उम्रदराज हथिनी होने का रिकार्ड बनाकर हमेशा के लिए अमर हो गई। पन्ना टाइगर रिजर्व की क्षेत्र संचालक अंजना सुचिता तिर्की ने प्रेस में जारी विज्ञप्ति में बताया कि प्रबंधन द्वारा वन्यप्राणी चिकित्सक एवं विशेषज्ञों से समय-समय पर वत्सला हथिनी के स्वास्थ्य का परीक्षण कराया जाता था, जिससे वह यहां के विरल एवं शुष्क वन क्षेत्र में भी दीर्घकाल तक जीवित रही। टाइगर रिजर्व अन्तर्गत बाघ पुनर्स्थापना योजना में वत्सला का अहम योगदान रहा है।