* फील्ड में तैनात वनकर्मियों को कोरोना ड्यूटी में लगाया
* ऑफिस में अटैच वनकर्मी अपने घरों में फरमा रहे आराम
शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) मध्य प्रदेश के पन्ना जिले का वन विभाग लम्बे समय से भ्रष्टाचार और अराजकता को लेकर सुर्ख़ियों में बना है। यहाँ के सामान्य वन मण्डल उत्तर-दक्षिण एवं पन्ना टाइगर रिजर्व अंतर्गत सुरक्षा एवं निगरानी व्यवस्था चौपट होने से विगत तीन वर्षों से लगातार वन्यजीवों के शिकार, वनों की अवैध कटाई, वन क्षेत्र में अवैध उत्खनन समेत अन्य वन अपराधों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। बाबजूद इसके वन विभाग जिम्मेदार अधिकारी इनकी रोकथाम को लेकर संजीदा नहीं हैं। इनकी कार्यशैली और फैसलों से यह बात साफ़ तौर पर जाहिर होती है।

वर्तमान में वैश्विक महामारी नोवल कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम हेतु 21 दिनों का देशव्यापी लॉकडाउन चल रहा है। सम्पूर्ण मानव समाज पर मंडरा रहे कोरोना वायरस (कोविड-19) संक्रमण के खतरे के मद्देनजर पन्ना में जिला मजिस्ट्रेट के आदेश पर कानून एवं शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए उत्तर एवं दक्षिण वन मण्डल के 60 वनकर्मियों को 16 अप्रैल तक के लिए विशेष पुलिस अधिकारी नियुक्त किया गया है। इन्हें पुलिस के जवानों के साथ सुरक्षा ड्यूटी में सहयोग हेतु तैनात किया गया है। भीषण आपदा के समय बेशक कोरोना ड्यूटी आवश्यक है। मगर वन विभाग के अफसरों ने इस मामले में जिस तरह की अदूरदर्शिता एवं अव्यवहारिकता दिखाई है उसका नतीजा यह है कि पहले से खराब जंगल के हालात लॉकडाउन में और अधिक तेजी से बिगड़ने लगे हैं।
डीएफओ उत्तर व दक्षिण वन मण्डल ने ऑफिस में कई वर्षों से नियम विरुद्ध अटैच वनकर्मियों के बजाय जंगल की सुरक्षा में तैनात मैदानी अमले (बीटगार्ड) को कोरोना ड्यूटी में लगा दिया। जंगल की सुरक्षा में तैनात रहे अमले को अस्थाई तौर पर हटाए जाने का लाभ उठाते हुए माफिया और शिकारी जंगलों में सक्रिय हो गए हैं। अवैध कटाई करने वाले और शिकारी अब बैखोफ होकर वन अपराधों को अंजाम दे रहे हैं। वहीं दोनों ही सामान्य वन मण्डलों के वन क्षेत्रों में आगजनी की घटनाएं भी तेजी से बढ़ीं हैं। तापमान कम होने के बाबजूद हर दिन जंगल में आग लग रही है। अधिकाँश बीटों में बीटगार्ड के न होने का दुष्परिणाम यह है कि वरिष्ठ अधिकारियों को समय पर भीषण आगजनी की सूचना नहीं मिल पा रही है। इसलिए आग को काबू करने के प्रयास जब तक शुरू होते हैं तब तक कई हेक्टेयर में जंगल जलकर ख़ाक हो चुका होता है।
कार्यालय में अटैच 34 कर्मचारी

पन्ना के दक्षिण वन मण्डल अंतर्गत आने वाले काष्ठागार डिपो में विगत कई वर्षों से 02 वनपाल, 11 वनरक्षक, 24 स्थाईकर्मी, 01 चालक एवं 04 पार्ट टाइम श्रमिक समेत कुल 42 कर्मचारी पदस्थ हैं। जबकि वहां नियमित से काम सिर्फ 08 कर्मचारी ही कर रहे हैं। शेष 34 कर्मचारी पन्ना में स्थित डीएफओ, एसडीओ के कार्यालय और बंगलों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इन कर्मचारियों को लेकर विभाग के अंदर चर्चा आम है कि फील्ड की 24 घण्टे मुश्किल और चुनौतीपूर्ण ड्यूटी से बचने के लिए उनके द्वारा काष्ठागार डिपो में अपनी पोस्टिंग कराई गई ताकि पन्ना में परिवार के साथ रहकर कार्यालय या बंगलों काम कर सकें।
गौरतलब है कि पांच माह पूर्व काष्ठागार डिपो पन्ना के तत्कालीन काष्ठागार अधिकारी आर. एस. पटेल के द्वारा दिनांक 15 नवम्बर 2019 वनमण्डलाधिकारी दक्षिण वन मण्डल पन्ना को प्रेषित पत्र क्रमांक/DO/2019 / में यह उल्लेख किया था कि काष्ठागार डिपो का आकार छोटा है, काष्ठ (लकड़ी) की आमद कम होने के साथ-साथ कार्यालयीन कार्य भी अत्यंत ही सीमित है। इसलिए वहाँ 42 कर्मचारियों की आवश्यकता नहीं है। कर्मचारियों की इतनी संख्या किसी क्षेत्रीय रेन्ज से भी अधिक है।
इस पत्र के माध्यम से उन्होंने नामित कर्मचारियों के अतिरिक्त रेन्ज कार्यालय में पदस्थ 34 कर्मचारियों को अन्यंत्र पदस्थ करने की सिफारिश की थी। विभाग के हित में यह सिफारिश करना काष्ठागार अधिकारी श्री पटेल को काफी महंगा पड़ा था। बड़े अफसरों ने अटैचमेन्ट समाप्त कर वनकर्मचारियों को फील्ड भेजने के बजाय रेन्जर आर. एस. पटेल को ही काष्ठागार अधिकारी के पद से हटा दिया था। यह मामला में मीडिया में काफी उछला था। लेकिन वन कर्मियों को अटैच न के आदेश जारी करने वाले भोपाल में बैठे अफसरों ने इस मामले को जानबूझकर नजरअंदाज कर दिया।
जंगल की सुरक्षा से समझौता

वर्तमान में लॉकडाउन के चलते पिछले एक पखवाड़े से उत्तर-दक्षिण वन मण्डल कार्यालय बंद हैं। इसलिए वहाँ पदस्थ और अटैच सभी कर्मचारी घरों में रहकर फुल टाइम आराम फरमा रहे हैं। आश्चर्य की बात है कि काष्ठागार के अटैच कर्मचारियों की ड्यूटी कोरोना संक्रमण के मद्देनजर पुलिस को सुरक्षा में सहयोग हेतु नहीं लगाई गई बल्कि फील्ड में तैनात वनकर्मियों को विशेष पुलिस अधिकारी के रूप सेवाएं देने के लिए भेजा गया। इसी तर्ज पर उत्तर वन मण्डल कार्यालय में अटैच वनकर्मियों की जगह फील्ड स्टॉफ को पुलिस के सहयोग के लिए तैनात किया गया। जिससे दोनों ही वन मण्डलों की अधिकांश बीटों में बीटगार्ड ही नहीं हैं। इस स्थिति में सुरक्षा श्रमिक भी लापरवाही कर रहे हैं। जंगल की सुरक्षा अब पूरी तरह भगवान भरोसे है।

वन विभाग के अफसरों को बढ़ते वन अपराधों को दृष्टिगत रखते हुए जंगल की सुरक्षा बनाए रखने के लिए करना यह चाहिए था कि जिस भी कार्यालय में वनकर्मी अटैच हैं उन्हें कोरोना ड्यूटी में लगाया जाता। उसके बाद भी अगर कर्मचारी कम पड़ते तब बीट गार्डों को पुलिस के सहयोग के लिए भेजा जाता तो शायद इतनी बड़ी तादाद में बीटें खाली न होतीं। लेकिन इसके उलट बीटों में तैनात वनकर्मियों विशेष पुलिस अधिकारी के रूप में सेवाएं देने के लिए भेज दिया। इसलिए वन विभाग के अफसरों के इस मनमाने निर्णय पर विभाग के अंदर सवाल उठ रहे हैं। कार्यालय में अटैच वनकर्मियों को फील्ड ड्यूटी के साथ-साथ कोरोना की विशेष ड्यूटी से जंगल और वन्यजीवों की सुरक्षा की कीमत पर राहत दिए जाने से मैदानी अमले में जबरदस्त असंतोष व्याप्त है। इस अदूरदर्शी और अव्यवहारिक फैसले से पता चलता है जिम्मेदार अफसरों को जंगल और वन्यजीवों की सुरक्षा की वाकई कितनी परवाह है।
