केन-बेतवा लिंक परियोजना के भूमिपूजन की तैयारी, भू-अर्जन मुआवजा राशि को लेकर प्रभावितों में आक्रोश

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मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व के बीचों-बीच से प्रवाहित केन नदी का मनोरम दृश्य। (फाइल फोटो)

*     मुख्यमंत्री ने की परियोजना के भूमिपूजन संबंधी तैयारियों की समीक्षा

*     बुंदेलखंड में चुनावी लाभ की मंशा से भूमिपूजन को लेकर जल्दबाज़ी में डबल इंजन सरकार !

शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) मध्यप्रदेश में तीन माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले देश की पहली नदी जोड़ो परियोजना केन-बेतवा लिंक परियोजना के भूमिपूजन के लिए आवश्यक तैयारियों को तेजी से अंतिम रूप दिया जा रहा है। मंगलवार 01 अगस्त को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केन-बेतवा लिंक परियोजना के भूमिपूजन के संबंध में तैयारियों की समीक्षा की। भोपाल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उन्होंने राजस्व, वन और जल संसाधन विभाग के अधिकारियों से परियोजना अंतर्गत विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। साथ ही कहा कि वर्तमान अगस्त माह के अंत तक शेष भू-अर्जन का कार्य पूरा कर लिया जाए। उन्होंने फॉरेस्ट क्लीयरेंस, प्रभावित वन भूमि, पुर्नवासन व पुर्नव्यवस्थापन प्रक्रिया की जानकारी भी ली। इस दौरान स्थानीय एनआईसी कक्ष में नवागत कलेक्टर हरजिंदर सिंह, उप संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व रिपुदमन सिंह भदौरिया, अपर कलेक्टर नीलाम्बर मिश्र, एसडीएम अशोक अवस्थी, कार्यपालन यंत्री जल संसाधन सतीश शर्मा मौजूद रहे।
केन-बेतवा लिंक परियोजना के भूमिपूजन की तैयारियों की समीक्षा बैठक में उपस्थित पन्ना कलेक्टर हरजिंदर सिंह, उप संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व रिपुदमन सिंह भदौरिया एवं अन्य अधिकारी।
बता दें, कई दशकों से सूखा की भीषण त्रासदी झेल रहे मध्यप्रदेश-उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल के वाशिंदों और बंजर होते खेतों की प्यास बुझाने वाली जीवनदायिनी बहुउद्देश्यीय परियोजना के तौर पर केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट को प्रचारित किया जा रहा है। अरबों रुपये की लागत वाली इस वृहद सिंचाई परियोजना के निर्माण से भविष्य में होने वाले लाभ को लेकर जितनी चर्चा है उससे कहीं अधिक चिंता इसके निर्माण से जुड़े व्यापक पर्यावरणीय दुष्प्रभावों को लेकर भी की जा रही है। हालांकि डबल इंजन वाली (केन्द्र एवं राज्य) सरकार केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट से संबंधित तमाम तथ्यात्मक, तार्किक और बाज़िव चिंताओं को दरकिनार करते हुए पूरी दृढ़ता के साथ इस पर आगे बढ़ रही है।

प्रभावितों ने मुआवजा राशि को बताया मज़ाक

(फाइल फोटो)
केन-बेतवा लिंक परियोजना वरदान या अभिशाप की बहस से अलग एक अन्य पहलू, परियोजना प्रभावित व्यक्तियों की भूमि अधिग्रहण के एवज़ में दी जाने वाली मुआवजा राशि का भी है। पन्ना एवं छतरपुर जिले के प्रभावितों में भू-अर्जन मुआवजा राशि को लेकर जबरदस्त आक्रोश-असंतोष देखा जा रहा है। इस ज्वलंत मुद्दे का समय रहते सर्वमान्य समाधान निकालने को लेकर शासन-प्रशासन के स्तर पर अज़ीब सी उदासीनता देखी जा रही है। नतीज़तन नदी जोड़ो परियोजना से प्रभावित एवं विस्थापित होने वाले परिवार उचित मुआवजा राशि की जायज़ मांग को लेकर पिछले कई माह से लगातार आंदोलित है। केन-बेतवा लिंक प्रभावित ग्रामीणों के अनुसार, मौजूदा बेतहाशा महंगाई के दौर में उनकी एक हैक्टेयर कृषि भूमि अधिग्रहण के एवज़ सिर्फ़ 3,20,000/- (तीन लाख बीस हजार) रुपए की मुआवजा राशि दी जा रही है। उक्त राशि को मज़ाक बताते हुए ग्रामीण सवाल पूंछते है क्या इससे, छतरपुर या पन्ना में 2,000 वर्गफीट का एक आवासीय प्लाट खरीदा जा सकता है? प्रभावितों का साफ़ कहना है, जब तक उचित मुआवजा राशि घोषित नहीं की जाती तब तक वे अपनी एक इंच जमीन नहीं देंगे। और पूरी क्षमता के साथ केन-बेतवा लिंक परियोजना का पुरजोर विरोध जारी रखेंगे।

विस और लोस चुनाव में लाभ को लेकर जल्दबाज़ी !

भू-अर्जन पर बने गतिरोध के बीच परियोजना के भूमिपूजन को लेकर की जाने वाली जल्दबाज़ी से केन्द्र सरकार और राज्य की शिवराज सरकार की मंशा पर सवाल उठ रहे है। जानकार मानते हैं, भूमिपूजन को लेकर जल्दबाज़ी के पीछे असल मकसद मध्यप्रदेश के आसन्न विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंड अंचल में सत्ताधारी दल भाजपा की स्थिति को अधिक मजबूत बनाना है साथ ही अगले वर्ष 2024 में होने वाले आम चुनाव मध्यप्रदेश-उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में चुनावी लाभ प्राप्त करना है। केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट का भूमिपूजन करके सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी की सरकार मतदाताओं को यह सन्देश देना चाहती है कि वह अपना चुनावी वादा निभाने, बुंदेलखंड की ज्वलंत समस्या के समाधान एवं क्षेत्र के समग्र विकास को लेकर सजग और संवेदनशील है। भाजपा के रणनीतिकारों को पक्का भरोसा है, केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट का मात्र भूमिपूजन करके अति पिछड़े इस इलाके में वोटों की लहलहाती फसल को आसानी से काटा जा सकता है। हालांकि, इस महत्वकांक्षी सिंचाई परियोजना का निर्माण प्रभावितों के भू-अर्जन से जुड़ी मांग के निराकरण के बाद ही सम्भव हो सकेगा।