भालू के शिकार की घटना से हुआ चौंकाने वाला खुलासा
तस्कर को बेंचने के लिए शिकारी ने छिपा रखा था भालू का सेक्सुअल पार्ट
पन्ना टाईगर रिज़र्व और समान्य वन क्षेत्र में सुरक्षित नहीं बेजुबान वन्य प्राणी
लगातार चिंताजनक तेजी से बढ़ रहीं हैं शिकार की घटनायें
पन्ना। रडार न्यूज़ मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में दक्षिण वन मंडल की पवई रेंज अंतर्गत करीब डेढ़ माह पूर्व शिकार हुए नर भालू का प्राइवेट पार्ट (जननांग) पॉलीथीन में लिपटा हुआ बरामद किया गया है। वन विभाग की टीम ने शिकारपुरा ग्राम में जिस स्थान से भालू के शरीर के महत्वपूर्ण अवशेष बरामद किये है, वह शिकार के आरोप में पवई जेल में बंद जाहर सिंह आदिवासी के घर के ठीक पीछे स्थित है। शिकार के इस मामले में अब तक हुए हैरान करने वाले खुलासों और सभी कड़ियों को आपस में जोड़कर देखने से यह स्पष्ट है कि पन्ना जिले में वन्यजीवों के शिकार और उनके अंगों की तस्करी का गोरखधंधा चल रहा है। जिसका पता वन विभाग को अब जाकर चला। जानकारी अनुसार मंगलवार को आरोपी जाहर सिंह आदिवासी की पत्नी अंजू आदिवासी उससे मिलने जेल गयी थी, इस दौरान दौरान जाहर ने उसे घर के पास बांस के पेड़ में भालू के कुछ अवशेष छिपाकर रखने की बात बताई। अंजू ने वापिस घर पहुंचकर जब बांस के झाड़ के पास जाकर देखा तो वहां एक पॉलथीन छिपी हुई पाई गई। उसने इसकी जानकारी गांव के लोगों को दी। इस बीच शिकार हुए भालू के गायब अन्य अवशेषों का सुराग लगाने में जुटी वन विभाग को जब यह खबर मिली तो पवई रेंजर शिशुपाल अहिरवार के नेतृत्व में डॉग स्कवॉड के साथ शिकारपुरा पहुंची टीम ने जाहर सिंह के घर के समीप लगे बांस भिर्रा में छिपाकर रखी गई संदिग्ध पॉलीथीन को अपने कब्जे में लिया। जब उसे खोला गया तो उसके अंदर से भालू का सेक्सुअल पार्ट और बाल बरामद हुए।

उल्लेखनीय है कि 30 मई 2018 को पवई रेंज की शिकारपुरा बीट में भालू एवं तेंदुए का करंट लगाकर शिकार किये जाने का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया था। उस समय रेंजर से लेकर अधीनस्थ वन कर्मचारी प्रदेशव्यापी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर थे। कुछ दिनों बाद हड़ताल समाप्त होने पर काम पर लौटे पवई रेंजर शिशुपाल अहिरवार द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में तत्परता से कार्रवाई करते शिकार के इन चुनौतीपूर्ण मामलों का खुलासा किया गया। पिछले माह तेंदुऐ के शिकार मामले में शिकारपुरा ग्राम के तीन आरोपियों को पकड़ा गया था। वहीं कुछ दिन पूर्व भालू के शिकार के मामले में जाहर सिंह आदिवासी समेत अब तक तीन आरोपियों से जबड़ा एवं पंजा जप्त कर इन्हें भी जेल भेजा जा चुका है।
दवा बनाने में होता है उपयोग-

वन्य जीवों की कई प्रजातियां आज संकटग्रस्त हैं, जिनके विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इसके पीछे वैसे तो कई कारण जिनमें अवैध व्यापार के उद्द्देश्य से किये जाने वाले शिकार के कारण भी कई वन्य प्राणियों का अस्तित्व संकट में है। वन्य जीवों के अंगों का व्यापार करने वाले अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मिलने वाली ऊंची कीमत के कारण अवैध शिकार के लिए प्रेरित हो रहे हैं। दरअसल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वन्य जीवों के अंगों की जबरदस्त मांग है। जानकारों की मानें तो हाथी, बाघ, शेर, तेंदुआ, पेंगोलिन, भालू, सर्प आदि वन्य जीवों की खाल व दांतों का उपयोग सजावट, चमड़ा और गहने बनाने में किया जाता है। जबकि इनकी हड्डियां और जननांगों का उपयोग कई गंभीर बीमारियों और कामोत्तेजक शक्ति बढ़ाने की परम्परागत दवाएं बनाने में किया जाता है।
कई अध्ययनों से यह पता चला है कि भारत में वन्य जीवों के अंगों का इस्तेमाल रूहानी (तंत्र-मंत्र) मकसद से भी किया जाता है।अंधविश्वास के चलते कुछ लोग अपनी खुशकिस्मती या गुड लक लाने के लिए वन्य जीवों के अंगों की बनी ताबीज और अंगूठी भी पहनते हैं अथवा उनके अंगों को घर में रखते हैं। भालू के शिकार की घटना पर गौर करें तो शातिर शिकारी जाहर सिंह आदिवासी और उसके साथियों ने जिस तरह भालू के महत्वपूर्ण अंगो को मृत शरीर से अलग करके आपस में बांट लिया था उससे अंगों के अवैध व्यापर की आशंका को बल मिल रहा है। वन विभाग की जांच भी इसी दिशा में चल रही है। सूत्र बताते हैं कि इस मामले की यदि गहन जांच-पड़ताल की जाये तो सम्भवतः वन्य जीवों के अंगो की तस्करी करने वाले बड़े गिरोह का खुलासा हो सकता है।
कहीं फिर ना उजड़ जाये बाघों का संसार-

शिकार के चलते वर्ष 2008 में पन्ना टाईगर रिजर्व पूर्णतः बाघ विहीन हो गया था। यहां पुनः बाघों को आबाद करने के लिए पुनर्स्थापना कार्यक्रम चलाया गया। जिसकी ऐतिहासिक सफलता के फलस्वरूप आज यहां बाघों का भरा पूरा संसार आबाद हो चुका है। वर्तमान में इनकी संख्या करीब 35 तक बताई जा रही है। पन्ना जिले में पिछले 7-8 महीने पूर्व टाईगर रिजर्व की गहरीघाट रेंज अंतर्गत फंदा लगाकर एक युवा बाघिन का शिकार किया गया और सामान्य वन मंडल दक्षिण में 3 तेंदुओं की मौत हुई जिनमें दो का शिकार पवई रेंज अंतर्गत क्लच वायर का फंदा लगाकर और जलस्रोत के समीप करंट बिछाकर किया गया था। पवई रेंज की शिकारपुरा बीट में 30 मई 2018 को तेंदुए के साथ ही भालू का शिकार होने का मामला प्रकाश में आया था।

भालू के मृत शरीर से जिस तरह उसके महत्वपूर्ण अंगों को निकालने के बाद शिकारियों ने आपस में बंटवारा कर उन्हें छिपाकर रखा उससे यह संकेत मिले हैं कि मौका पाकर वे उन्हें बेंचने की फ़िराक में थे। प्रकरण जांच में होने के कारण दक्षिण वन मंडल के अधिकारी इस संबंध में फिलहाल खुलकर कुछ भी बताने से कतरा रहे हैं पर दबी जुबान वे वन्य जीवों के अंगों की तस्करी को स्वीकार कर रहे हैं। इससे साफ जाहिर है कि पन्ना जिले में शिकारियों और वन्य जीवों के अंगों का अवैध व्यापार करने वाले तस्कर गिरोह पुनः सक्रिय हो गए हैं।
लगातार सामने आईं शिकार की घटनाएं इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि पन्ना जिले में बेजुबान और निरीह वन्य प्राणियों पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। यहां पर कड़ी सुरक्षा और चौबीस घंटे निगरानी वाले टाईगर रिज़र्व में रेडियो कॉलर वाले बाघ ही जब शिकार बन रहे हैं तो सामान्य वन क्षेत्रों में विचरण करने वाले वन्य जीव कितने महफूज हैं, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। चिंताजनक बात यह है कि यदि शीघ्र संकटग्रस्त वन्य जीवों की सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध करने के साथ शिकारियों और तस्करों के नेटवर्क को ध्वस्त नहीं किया गया तो वर्तमान हालत को देखते हुए यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण ना होगा पन्ना टाईगर रिज़र्व एक बार फिर बाघ विहीन हो सकता है।
इनका कहना है-
“पन्ना टाईगर रिज़र्व सहित सामान्य वन मंडलों में मौजूदा समय बेहद लचर प्रबंधन, जबाबदेही के अभाव और वन्य प्राणियों सहित वन संपदा की सुरक्षा को लेकर बरती जा रही घोर लापरवाही के दुष्परिणाम लगातार सामने आरहे हैं। इस स्थिति में यदि तत्काल आवश्यक सुधार नहीं किया गया तो निश्चित ही पन्ना के बाघों और दूसरे वन्य जीवों को बचा पाना संभव नहीं होगा। क्योंकि पन्ना जिले में पिछले एक साल से कई शिकारी गिरोह सक्रिय हैं। मैं यह दावे के साथ कह रहा हूं यदि पन्ना के बाघों और दूसरे वन्य जीवों की पूरी ईमानदारी के साथ और पारदर्शी तरीके से गणना कराई जाये तो कई बाघ गायब मिलेंगे।“
– राजेश दीक्षित, प्रतिनिधि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण।
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