* एक हजार रुपए के अर्थदण्ड से भी किया गया दण्डित
* द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश पन्ना ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला
पन्ना। (www.radarnews.in) कोर्ट में झूठे (मिथ्या) कथन करने के एक मामले में पन्ना के द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश श्री सुरेन्द्र मेश्राम ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। रेप का केस दर्ज करवाने के बाद पीड़िता कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान घटना से मुकर गई थी। लेकिन उसने मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान देना और आदेश पत्रिका पर हस्ताक्षर करना स्वीकार किया था। इस तरह न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी पन्ना के समक्ष दिए गए बयान (कथन) और विशेष न्यायालय में दिए गए बयान विरोधाभासी होने के कारण फरियादिया के विरुद्ध जानबूझकर मिथ्या साक्ष्य देने का अपराध पंजीबद्ध किया गया था। मामले के विचारण उपरांत न्यायालय द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पन्ना ने महिला को धारा 195 भादंसं. के आरोप में दोषसिद्ध पाये जाने पर 10 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। न्यायालय द्वारा आरोपिया को एक हजार रूपए के अर्थदण्ड से भी दण्डित किया गया। कोर्ट के इस फैसले की सर्वत्र सराहना हो रही है।
यह है पूरा मामला
सहायक जिला लोक अभियोजन अधिकारी पन्ना ने प्रकरण की जानकारी देते हुए बताया कि विशेष न्यायाधीश (एट्रोसिटी) पन्ना में म.प्र. राज्य विरूद्ध महेन्द्र अंतर्गत धारा-376(2)(एन) एवं धारा 506 भादंवि. तथा धारा-3(2)(5) अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम का प्रकरण विचाराधीन था। इस प्रकरण में अभियुक्त महेन्द्र के विरूद्ध पीड़िता (फरियादिया) ने उसके साथ बार-बार बलात्कार करने और ब्लैकमेल कर परेशान करने के संबंध में एक लिखित आवेदन पत्र पुलिस अधीक्षक पन्ना को दिया था। जिसके आधार पर थाना अजयगढ़ में अपराध पजीबद्ध किया गया।
प्रकरण की विवेचना के दौरान महिला (फरियादिया) के कथन न्यायालय के समक्ष लेखबद्ध किए गए। जिसमें फरियादिया ने अभियुक्त महेन्द्र पर बार-बार बलात्कार करने और पति को जान से मारने की धमकी देने का कथन (बयान) किया। पुलिस द्वारा सम्पूर्ण विवेचना पश्चात् प्रकरण विचारण हेतु न्यायालय के समक्ष पेश किया गया। न्यायालय में केस की सुनवाई के दौरान आरोपी महेन्द्र ने अपराध करने से इंकार किया। फरियादिया को साक्ष्य हेतु न्यायालय में तलब किया गया। फरियादिया न्यायालय में उपस्थित हुई और अपने साक्ष्य में मुकरते हुए बताया कि आरोपी महेन्द्र ने उसके साथ कोई घटना नहीं की। लेकिन उसने मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान देना तथा आदेश पत्रिका पर हस्ताक्षर करना स्वीकार किया। इस तरह पीड़िता द्वारा न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी पन्ना के समक्ष दिए गए बयान और विशेष न्यायालय में दिए गए बयान विरोधाभासी पाए गए।
कोर्ट ने दर्ज किया था झूठे कथन करने का प्रकरण
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