पन्ना। रडार न्यूज मिशन 2018 की सियासी सरगर्मी बढ़ने के साथ पन्ना का राजनैतिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। यह समय संभवतः जिले के कुछ राजनैतिक परिवारों के लिए काफी कठिन और चुनौती पूर्ण है। कांग्रेस और भाजपा से सम्बद्ध कुछ राजनैतिक परिवारों के सदस्यों के बीच सियासी महत्वकांक्षा हिलोरे मार रही है, जिससे रिश्तों में दूरियां बढ़ने लगी है। सत्ता हांसिल करने या फिर उसे अपनों से बचाये रखने के लिए कुनबों के बीच संघर्ष नया नहीं है यह आदिकाल से चला आ रहा है। पन्ना जिले के राजनैतिक पटल पर पिछले कुछ समय जो कुछ चल रहा, उस पर यदि नजर दौड़ाये तो उन नेताओं के चेहरे आखों के सामने आने लगते है, जिनकी दावेदारी को घर में ही चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। बेशक विधानसभा चुनाव के लिए अभी कुछ महीने शेष लेकिन टिकिट को लेकर इन दोनों ही दलों में लाबिंग अभी से शुरू हो गई है। इससे बिगड़े रिश्तों के बीच कुछ दिलचस्प समीकरण भी बनते दिख रहे है।
कांग्रेस के कुनबे इनके बीच कलह
जिले के तीनों विधानसभा क्षेत्रों में से पन्ना सीट से भाजपा और कांग्रेस में टिकिट के सर्वाधित दावेदार बताये जा रहे है। मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी ने कुछ समय पहले टिकिट को लेकर विधानसभावार आवेदन पत्र आमंत्रित किये थे, जिससे इसकी पुष्टी होती है। कांग्रेस में इस बार पन्ना विधानसभा सीट से छंगे राजा परिवार के तीन सदस्य दावेदार के रूप में सामने आये है। जिनमें जिला पंचायत पन्ना के सदस्य केशव प्रताप सिंह, इनके सगे छोटे भाई पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष उपेन्द्र प्रताप सिंह व चचेरे भाई ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह पूर्व सचिव मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी शामिल है। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष उपेन्द्र प्रताप का कहना है कि उनके दोनों बड़े भाई पार्टी के लिए योग्य उम्मीदवार नहीं हो सकते, क्योंकि उनका आम आदमी से कोई जुडाव नहीं है। उनकी दलील है कि बड़े भाई केशव प्रताप सिंह की पत्नी दिव्यारानी सिंह अध्यक्ष जिला कांग्रेस कमेटी पन्ना को वर्ष 2003 में कांग्रेस ने पवई विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया था। इस चुनाव में कांग्रेस को शर्मनाक हार झेलनी पड़ी थी, उन्हें गोड़वाना गणतंत्र पार्टी से भी कम वोट मिले थे। श्री सिंह का मानना है कि इसका मुख्य कारण उनके भैया-भाभी राजनीति में तो है लेकिन उनका दायरा बहुत ही सीमित है। गौरतलब है कि केशव प्रताप सिंह वर्तमान में पन्ना विधानसभा क्षेत्र के तराई अंचल से जिला पंचायत के सदस्य है। केशव प्रताप सिंह एवं उपेन्द्र प्रताप सिंह के चचेरे भाई ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह पिछले कुछ सालों से अजयगढ़ क्षेत्र में काफी सक्रिय है। वे इस बार भी मजबूती के साथ पन्ना सीट से टिकिट की दावेदारी कर रहे है। उपेन्द्र प्रताप का कहना है कि ज्ञानेन्द्र सिंह का अजयगढ़ क्षेत्र में खनन का कारोबार फैला है, इसलिए वे अजयगढ़ आते-जाते है। इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं कि क्षेत्र के लोगों से उनका जीवंत सम्पर्क है। मजेदार बात यह है कि उपेन्द्र प्रताप के भाई भी उनके जिला पंचायत अध्यक्ष पद से हटने के बाद से पार्टी और क्षेत्र में बिल्कुल भी सक्रीय न होने के आरोप लगाते हुए उन्हें सबसे कमजोर दावेदार मानते है।
महदेले की विरासत का किसका दावा मजबूत
शिवराज सरकार की वरिष्ठ मंत्री सुश्री कुसुम सिंह मेहदेले उम्र की 75वीं दहलीज पर खड़ीं है। भाजपा नेतृत्व ने पुराने फार्मूले के तहत् पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और सरताज सिंह की तरह मेहदेले को यदि आगामी विधानसभा चुनाव मंे टिकिट नहीं दिया तो उनकी राजनैतिक विरासत का उत्तराधिकारी कौन होगा। यह सवाल पिछले कुछ समय से जिले के सियासी हलकों में गूंज रहा है। 75 के फेर में फंसने के मद्देनजर मंत्री मेहदेले ने अपने अनुज भ्राता आशुतोष सिंह महदेले का नाम आगे बढ़ाया है। वे अपने करीबियों से भी आशुतोष को लेकर अपनी मंशा जाहिर कर चुकी है। मंत्री महदेले की राजनैतिक विरासत के आशुतोष स्वाभाविक उत्तराधिकारी है। क्योंकि मंत्री मेहदेले के करीब 4 दशक से अधिक के राजनैतिक सफर के दौरान आशुतोष छाया की तरह हर समय उनके साथ रहे है। इसके अलावा भाजपा में भी सक्रीय रहते हुए उन्होंने अहम संगठनात्मक जिम्मेदारियों का निर्वाहन किया है। लेकिन पिछले कुछ समय से जिस तरह मंत्री महदेले की भाभी नर्मदा मेहदेले और उनके पुत्र युवा नेता पार्थ मेहदेले का नाम बीच-बीच में उछल रहा है, उससे टिकिट के पहले परिवार के अंदर देवर-भाभी और भतीजे के बीच खींचतान की चर्चाओं को बल मिल रहा है। पिछले साल भोपाल से प्रकाशित एक अखबार में पार्थ महदेले का फोटो और नाम छपने के साथ पन्ना मंे प्रत्याशी को लेकर चल रहे विभिन्न सर्वे में आशुतोष महदेले के साथ उनके भतीजे का नाम शामिल होने से सफरबाग के अंदर सियासी हितों के टकराव को अनदेखा करना मुश्किल है। अच्छी बात यह है कि परिवार की प्रतिष्ठा और रिश्तों की मर्यादा को ध्यान रखते हुए महदेले परिवार के सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ कोई बात नहीं करते। चर्चा यह भी है कि 75 पार का नियम आगामी विधानसभा चुनाव में यदि शिथिल होता है तो जाहिर है कि भाजपा की ओर से मंत्री सुश्री कुसुम महदेले ही पुनः उम्मीदवार होगीं।
दीक्षित परिवार में भी टेंशन
पन्ना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के पूर्व प्रत्याशी रहे सुधाकर दीक्षित के परिवार में भी सबकुछ सामन्य नहीं है। दरअसल यहां भी टिकिट को लेकर उनके ज्येष्ठ पुत्र शशिकांत दीक्षित अध्यक्ष किसान कांग्रेस पन्ना और भतीजे श्रीकांत दीक्षित पप्पू महामंत्री जिला कांग्रेस कमेटी पन्ना के बीच टेंशन कम नहीं है। इसकी वजह विधानसभा चुनाव के ऐन पहले श्रीकांत दीक्षित की तेजी से बढ़ती सक्रीयता है। जिसने सरदार जी यानि शशिकांत को सकते में ला दिया है। श्रीकांत जहां अपने पिता स्वर्गीय भास्कर दीक्षित पूर्व अध्यक्ष जिला कांग्रेस कमेटी पन्ना की राजनैतिक विरासत को संभालने के लिए आतुर है। पेशे से खनन कारोबारी श्रीकांत ने हाल ही में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का सम्मान करने के बाद किसान मजदूर सम्मेलन के जरिये अघोषित शक्ति प्रदर्शन करके अपने अनुज समेत टिकिट के अन्य दावेदारों की चिंता में डाल दिया है। यह बात अलहदा है कि किसान सम्मेलन में श्रीकांत मंच से चुनाव न लड़ने का ऐलान कर चुके है। राजनीति की बिसात पर जिस तरह से एक के बाद एक दांव चल रहे है, उससे शायद ही किसी को उनके ऐलान पर भरोसा होगा। स्थानीय स्तर पर सोशल मीडिया में सुयोग्य दावेदार को लेकर चल रहे प्रयोजित आॅनलाईन सर्वे में श्रीकांत दीक्षित पप्पू का नाम आने से विरोधाभास पैदा हो रहा है। किसान नेता शशिकांत दीक्षित अपने चचेरे बड़े भाई श्रीकांत को प्रत्याशी बनाये के सवाल पर सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कहते, लेकिन इसारों में वे तीखे व्यंग करते हुए कहते है कि उम्मीदवार की आर्थिक हैसियत से उसकी लोकप्रियता का आंकलन करना गलत है।
मामा-भांजे में बढ़ी तकरार
मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी में हुए हालिया फेरबदल के बाद सांसद कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष बनने से पन्ना विधानसभा सीट से अजयगढ़ के जनपद अध्यक्ष भरतमिलन पाण्डेय की टिकिट को लेकर उम्मीदें बढ़ गई है। कमलनाथ के कैम्प से खुद को अकेला सिपाही बताने वाले भरतमिलन पाण्डेय पिछले कुछ समय से अपने सगे मामा सुखदेव मिश्रा की गतिविधियों को लेकर चिंतित है। कुछ समय पूर्व पन्ना के प्रवास पर आये विधायक जयवर्धन सिंह का अजयगढ़ में सुखदेव मिश्रा ने अपने निज निवास पर भव्य स्वागत किया था। इसके पहले प्रदेश कांग्रेस प्रभारी दीपक वाबरिया के पन्ना दौरे के समय भी श्री मिश्रा काफी सक्रीय रहे है। मामा-भांजे में पंचायत चुनाव के बाद से अदावत चल रही है। इस बीच अजयगढ़ के कांग्रेस नेता जिस तरह से सुखदेव मिश्रा के समर्थन में खुलकर आये है उससे भरतमिलन पाण्डेय की दावेदारी को घाटी के नीचे उनके घर से ही चुनौती मिलती दिख रही है।
वर्मा बंधुओं ने बढ़ाई सक्रियता
जिले की आरक्षित विधानसभा सीट गुनौर से टिकिट को लेकर पूर्व विधायक राजेश वर्मा की पिछले कुछ समय से सक्रीयता बढ़ गई है। विधानसभा क्षेत्र का नियमित रूप से दौरा करने और अपने स्तर पर जन समस्याओं का निराकरण कराने के साथ ही वे भाजपा संगठन की ओर से सौंपे जाने वाले दायित्वों का पूरी संजीदगी के साथ निर्वाहन करने में जुटे है। दूसरी तरफ कांग्रेस से उनके बड़े भाई सूर्यप्रकाश वर्मा ने भी गुनौर से कांग्रेस के टिकिट के लिए आवेदन किया है। जिला कांग्रेस कमेटी पन्ना कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे सूर्यप्रकाश को गुनौर विधानसभा का प्रभारी भी बनाया गया है। अमानगंज (गुनौर) सीट से भाजपा के विधायक रहे, स्वर्गीय गनेशी लाल वर्मा के दोनों पुत्र राजेश और सूर्यप्रकाश पिता की विरासत और अपने सम्पर्कों के भरोसे मिशन 2018 में सियासी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने में जुटे है। पिता के निधन के बाद से ही इन दोनों भाईयों के रिश्ते सामान्य नहीं है। आपसी बातचीत में वे एक-दूसरे के खिलाफ आरोप लगाते रहे है।
खुशीराम की खुशी हुई गायब
गुनौर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का सपना संजोये बैठे लुहरगांव के प्रजापति बंधु किसी परिचय के मोहताज नहीं है। खुशीराम प्रजापति कांग्रेस पार्टी में विगत 10 वर्षों से लगातार सक्रिय है। वहीं उनके छोटे भाई और पेशे से शिक्षक सीताराम प्रजापति को इस बार कांग्रेस से टिकिट के योग्य दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। पार्टी से टिकिट की ख्वाहिश खुशीराम भी रखते है। लेकिन छोटे भाई की लोकप्रियता और राजनैतिक सम्पर्क को दृष्टिगत रखते हुए उनकी खुशी संकोच के द्वंद में फंसी है। चुनावी समर के नजदीक आने के साथ ही खुशीराम की उलझन बढ़ती जा रही है। एक तरफ छोटा भाई सीताराम है तो दूसरी तरफ सियासी तमन्ना मचल रही है। दर्द ऐसा है जो छुपाया भी न जाये और बताया भी न जाये।
हिम्मत और रणमत में किसकी खुलेगी किस्मत
आरक्षित गुनौर विधानसभा सीट से इस बार भाजपा के एक और पूर्व विधायक काशी बागरी के बेटे हिम्मत बागरी और रणमत सिंह बागरी संजू क्रमशः कांग्रेस और भाजपा से टिकिट के दावेदार है। स्वर्गीय श्री बागरी के बड़े बेटे हिम्मत बागरी ने पिछले साल वर्ष 2017 में अप्रत्याशित निर्णय लेते हुए कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। हिम्मत की इस हिम्मत को हिमाकत के रूप में देख रहे उनके छोटे भाई रणमत खासे नाराज चल रहे है। पिता की राजनैतिक विरासत के उत्तराधिकार को लेकर दोनों भाईयों के बीच गहरे मतभेद उभरने से दूरियां काफी बढ़ चुकी है। चुनाव के करीब आने तक रिश्तों की खाई और गहरी होने के अंदेशे से इंकार नहीं किया जा सकता।
चाचा-भतीजे में भी टिकट की होड़
पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष भास्कार देव बुंदेला के परिवार में भी पन्ना विधानसभा से टिकट को लेकर अंदर ही अंदर खींचतान मची है। चुनाव से पहले बुंदेला परिवार में टिकट को लेकर चाचा-भजीते खुलकर आमने-सामने हैं। श्री बुंदेला के भतीजे युवा नेता मार्तण्ड देव बुंदेला भी टिकट मजबूत दावेदारों में शुमार हैं। मालूम हो कि मार्तण्ड देव बुदेला की पत्नि पन्ना जनपद की अध्यक्ष रहीं हैं। अन्य दावेदारों से पहले घर में ही चुनौती मिलने से वरिष्ट नेता भास्कार देव बुंदेला अपने लिये समर्थन जुटाने की कवायत तेज करते हुए दूसरे खेमांे से मेलजोल बढा रहे हैं। चाचा की इस रणनीति को भांपते हुए मार्तण्ड ने भी अपने लिये नये साथी तलाश कर लिये हैं। अब देखना यह है कि टिकट की दौड में चाचा भतीजे में से किसकी जीत होती है, या फिर कोई और बाजी मारता है।