कर्नाटक का जनादेश : नफ़रत की सियासत को नकारा, असल मुद्दों पर लगाई मुहर

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सांकेतिक फोटो।

*      कांग्रेस को मिली प्रचंड जीत, सीटों का आंकड़ा 135 पार; भाजपा 66 सीटों पर सिमटी

    भाजपा के धार्मिक ध्रुवीकरण के दांव पर भारी पड़े महंगाई, रोज़गार और भ्रष्टाचार के मुद्दे

शादिक खान। (www.radarnews.in) कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने प्रचंड बहुमत के साथ शानदार जीत हांसिल की है। शनिवार 13 मई को घोषित नतीजों के अनुसार 224 सीटों वाले कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी को 135 सीटों पर जीत दर्ज कराई है। वहीं कर्नाटक में पूरी ताकत झोंकने वाली भारतीय जनता पार्टी को निराशा मिली है। भाजपा सिर्फ 66 सीटें ही जीत सकी। जबकि जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) 19 सीटों पर सिमट गई। निर्दलीय सहित अन्य को 4 सीटों पर सफलता मिली है। निर्वाचन आयोग के द्वारा जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक कांग्रेस पार्टी को 42.9 प्रतिशत वोट मिले हैं। वहीं भाजपा को 36 और जेडीएस को 13.3 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए हैं। अन्य के हिस्से में 4 फीसदी वोट आए हैं। कर्नाटक में बीते 38 सालों से चला आ रहा सत्ता परिवर्तन का रिवाज़ इस बार भी बरक़रार रहा। तमाम हथकंडे अपनाने एवं चुनाव में पूरी ताकत झोंकने के बाद भी बीजेपी इस रिवाज़ को तोड़ नहीं पाई। मालूम हो कि वर्ष 1985 के बाद से कर्नाटक में कोई भी दल सत्ता में लगातार दूसरी बार वापसी नहीं कर सका।

रिवाज़ बदलने की उम्मीद को लगा झटका

दक्षिण भारत के राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य कर्नाटक में ऐतिहासिक जीत मिलने से कांग्रेस पार्टी में नए उत्साह, ऊर्जा और आशा का संचार हुआ। जबकि कर्नाटक का रिवाज़ बदलने की उम्मीद लगाए बैठी भाजपा को चुनावी नतीजों से तगड़ा झटका लगा है। पिछले चुनाव में 104 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी भाजपा इस बार सिर्फ 66 सीटों पर ही सिमट गई। वर्ष 2019 तमाम तिकड़म भिड़ाकर सरकार में आई भाजपा के मौजूदा प्रदर्शन को करारी शिकस्त के तौर पर देखा जा रहा है। राज्य में सत्ता विरोधी प्रचंड लहर को भांपते हुए भाजपा के द्वारा साल भर पहले से सांप्रदयिक ध्रुवीकरण का दांव चला गया था। सबसे पहले शैक्षणिक संस्थानों में हिज़ाब विवाद गरमाया और हलाल फिर उसके बाद भगवान बजरंगबली के कथित अपमान तथा मुस्लिम आरक्षण समाप्त करने जैसे मुद्दे उछालकर चुनाव में हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण की पुरजोर कोशिश की गई। लेकिन यह कोशिशें पार्टी के काम न आ सकीं।

पीएम मोदी का प्रचार भी काम न आया

कांग्रेस के द्वारा अपने घोषणा पत्र में जब बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई तो प्रधानमंत्री मोदी सहित पूरी भाजपा ने इसे भगवान बजरंगबली के अपमान से जोड़ दिया। प्रधानमंत्री ने अपनी चुनावी रैलियों में इस मुद्दे पर कांग्रेस को जमकर घेरा। हालांकि पार्टी के इस दांव का कर्नाटक की जनता पर कोई असर नहीं पड़ा। कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह एवं भाजपा के अन्य बड़े नेताओं ने धुंआधार चुनाव प्रचार किया। सत्ताधारी दल भाजपा की ओर से इस चुनाव को अपने पक्ष में करने के लिए तमाम संसाधनों का भी भरपूर उपयोग किया गया। बाबजूद इसके पार्टी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। प्रधानमंत्री ने चुनाव प्रचार के दौरान कर्नाटक में विक्टिम कार्ड खेलते हुए आम जनमानस की सहानुभूति हांसिल करने के लिए कांग्रेस पार्टी पर उन्हें गालियां देने का आरोप लगाया। प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा हर तरह से अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने के बाद भी कर्नाटक में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। चुनावी नतीजों के विश्लेषण और भाजपा की हार के कारणों पर गौर करने से साफ़ पता चलता है कि कर्नाटक में कांग्रेस के द्वारा उठाए गए जमीनीं मुद्दों के सामने भाजपा के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का दांव चारों खाने चित हो गया।

धार्मिक ध्रुवीकरण का दांव हुआ फेल

सांकेतिक फोटो।
साल भर पहले भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने प्रदेश की शैक्षिणक संस्थाओं में हिज़ाब पर बैन लगा दिया था। विपक्षी दलों ने जहां इसके खिलाफ प्रदर्शन किया तो हिंदूवादी संगठनों ने इस फैसले के समर्थन में हंगामा खड़ा किया। बवाल बढ़ने पर भाजपा ने हिजाब और हलाल जैसे मुद्दों को सही बताया। लेकिन जब चुनाव आया तो भारतीय जनता पार्टी के ही राज्य के बड़े नेताओं ने इन मुद्दों को गैरजरूरी बताते हुए इनसे किनारा लिया। चुनाव प्रचार के दौरान इन मुद्दों का किसी ने जिक्र तक नहीं किया। दरअसल इन मुद्दों के जरिए हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण की आस लगाए बैठी भाजपा के रणनीतिकारों को चुनावी समर में इस बात का भलीभांति एहसास हो चुका था कि हिज़ाब और हलाल जैसे मुद्दों से पार्टी को नुकसान होगा। इतना ही नहीं चुनाव से ठीक पहले 4 फीसदी मुस्लिम आरक्षण को समाप्त करने का दांव भी भाजपा को चुनावी शिकस्त से बचा नहीं सका। पार्टी को उम्मीद थी कि इससे चुनाव में उसके पक्ष में हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

BJP पर भारी पड़ा भ्रष्टाचार का मुद्दा

प्रदेश में भाजपा की सरकार की हार का सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार का मुद्दा रहा। इस ज्वलंत मुद्दे को कांग्रेस पार्टी ने प्रभावी तरीके से उठाते हुए चुनाव के साल भर पहले से ही भजपा की सरकार को घेरना शुरू कर दिया था। कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक की भाजपा सरकार पर सरकारी ठेकों में 40 में चालीस फीसदी कमीशन खाने का आरोप लगाया और इस सरकार को 40 प्रतिशत कमीशन की सरकार के तौर पर जमकर प्रचारित किया। मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को पे-सीएम बताते हुए राज्य भर में पोस्टर लगाए गए। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी कर्नाटक में व्याप्त भ्रष्टाचार पर जमकर हमला बोलते हुए पीएम मोदी पर इसे नजर अंदाज करने का आरोप लगाया था। चुनाव के समय कर्नाटक के बीजेपी विधायक का पुत्र 8 करोड़ रुपए के साथ पकड़ा गया। वहीं बीजेपी के एक विधायक के द्वारा यह कहना कि 2500 करोड़ रुपए में मुख्यमंत्री की कुर्सी खरीदी जा सकती है जैसे बयान पर राहुल गांधी ने बीजेपी को आड़े हाथ लेते हुए कर्नाटक की सरकार को सवालों के कठघरे में खड़ा कर दिया।

5 गारंटी बनीं जीत का आधार

बेतहाशा बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को लेकर परेशान कर्नाटक के मतदाताओं ने इस चुनाव में भाजपा के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और नफरती एजेंडे को नकारते हुए सम्मानपूर्वक जीवनयापन की उम्मीद में कांग्रेस की पांच गारंटियों पर अपना भरोसा जताया है। चुनावी नतीजे इस बात की तस्दीक करते हैं। भाजपा ने चुनावी कैंपेन के दौरान सत्ता विरोधी लहर को कमज़ोर करने और सरकार की नाकामियों से ध्यान हटाने के लिए अपनी जीत के सबसे सफल फार्मूले में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर फोकस किया। जिसका खामियाजा उसे हार के रूप में भुगतना पड़ा। बता दें कि राज्य में चुनाव पूर्व हुए अनेक सर्वेक्षणों में जनता ने महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी को ज्वलंत मुद्दा बताया था। फलस्वरूप कांग्रेस पार्टी ने अपनी 5 गारंटियों को इन्हीं स्थानीय मुद्दों को आधार बनाकर फ्रेम किया। जिसने महिलाओं, युवाओं और सर्वसमाज को कांग्रेस की तरफ आकर्षित किया। कांग्रेस ने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान पूरे समय स्थानीय मुद्दों को ही तरजीह दी। दूसरी तरफ भाजपा ने इस चुनाव में समान नागरिक संहिता, एनआरसी, भक्तों को मंदिर प्रशासन की पूर्ण स्वायत्तता देने जैसे मुद्दों को उठाया। माना जा रहा था कि बीजेपी की कोशिश इन मुद्दों के जरिए हिन्दू वोटरों को अपने पक्ष में करना था। लेकिन कांग्रेस की 5 गारंटी सहित गैस सिलेंडर के दाम में रियायत के राहत भरे ऐलान ने भाजपा की कोशिश को असफल कर दिया। इसके अलावा बजरंग दल और पीएफआई जैसे संगठनों पर बैन लगाने की घोषणा का भी कांग्रेस को फायदा मिला। जिसका असर चुनावी नतीजों पर साफ़ दिख रहा है।

गांधी परिवार और खरगे के प्रचार का मिला फायदा  

कर्नाटक के दिग्गज कांग्रेस नेता सिद्धारमैया एवं डीके शिवकुमार।
कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में पूरे गांधी परिवार यानी राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी ने प्रचार किया। एक और जहां राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने सीधे वोटरों से संवाद किया। वहीं लंबे समय बाद सोनिया गांधी ने चुनावी सभा को संबोधित करके कर्नाटक में कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान को गति प्रदान करने का काम किया। चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी आम आदमी की तरह कभी नंदनी मिल्क पार्लर पहुंचकर दुकान संचालक से बात करते दिखे तो कभी डिलेवरी ब्वाय की बाइक पर बैठकर मुद्दे समझते नजर आये। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की इन तस्वीरों और वीडियो को पार्टी के द्वारा सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया गया जिसे लोगों ने काफी पसंद किया। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का गृह राज्य है, जहां उन्होंने डेरा डालकर चुनाव प्रचार अभियान का जिम्मा संभाला। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की मौजूदगी ने राज्य के पार्टी कार्यकर्ताओं के उत्साह और मनोबल को बढ़ाने का काम किया। इसके आलावा कर्नाटक कांग्रेस के दिग्गज़ नेता सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच पूरे समय नजर आई एकजुटता से भी वोटर्स के बीच सकारत्मक सन्देश गया। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा भी सहायक सिद्ध हुई है। कर्नाटक के जिन जिलों से भारत जोड़ो यात्रा गुजरी थी वहां की लगभग 70 फीसदी सीटों पर कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की है।