* माप पुस्तिका में पेज चस्पा करके तैयार किया गया कूटरचित बिल
* पन्ना जिले के लोक निर्माण विभाग (भवन) का मामला
* उपयंत्री ने उजागर किया कार्यपालन यंत्री और सहायक यंत्री का फर्जीवाड़ा
शादिक खान, पन्ना।(www.radarnews.in) मध्य प्रदेश के अति पिछड़े पन्ना जिले में व्याप्त भ्रष्टाचार सारी सीमाएं लांघ चुका है। जिले के कतिपय प्रशासनिक अधिकारी-कर्मचारियों, सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधि-राजनेता मिलकर संगठित तरीके से सरकारी धन को लूटकर अपनी तिजोरी भरने के एक सूत्रीय अभियान में जुटे है। यहां आए दिन सरकारी योजनाओं एवं कार्यों में गंभीर अनियमितता से जुड़े हैरान करने वाले मामले सामने आने से सूबे की मोहन सरकार का भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने का दावा पूरी तरह खोखला साबित हो रहा है। पन्ना के लोक निर्माण विभाग (भवन) के कार्यपालन यंत्री व सहायक यंत्री का फर्जीवाड़ा इसका ताज़ा उदाहरण है। दोनों ही तकनीकी अधिकारियों पर जिला चिकित्सालय उन्नयन कार्य के ठेकेदार को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए पद का दुरुपयोग करते हुए भुगतान संबंधी नियम-प्रक्रिया को ठेंगा दिखाने का आरोप लगा है।
कथित तौर पर निहित स्वार्थपूर्ति के चक्कर में तकनीकी अधिकारियों ने माप पुस्तिका के साथ छेड़छाड़ करते हुए कूटरचित बिल तैयार कर हॉस्पिटल ठेकेदार को 35 लाख रुपये का अतिरिक्त भुगतान कर दिया। बिल्डिंग का जो कार्य अभी हुआ भी नहीं ठेकेदार को उसकी राशि का भुगतान कर शासन को आर्थिक क्षति पहुँचाने से जुड़े इस मामले का खुलासा किसी ओर ने नहीं बल्कि संबंधित कार्य के प्रभारी उपयंत्री ने विभाग के प्रमुख सचिव को भेजी गई शिकायत में किया है। कार्यपालन यंत्री के मनमाफिक ठेकेदारों को अतिरिक्त भुगतान करने में आवश्यक सहमति न देने पर उपयंत्री के प्रभार से संबंधित कार्यों में चार साल के अंदर सात बार बदलाव किया गया। आरोपों की गंभीरता को देखते हुए प्रमुख सचिव ने मामले की जांच के निर्देश दिए है। आर्थिक अनियमितता एवं प्रताड़ना से संबंधित इस प्रकरण की जांच अधीक्षण यंत्री (भवन) लोक निर्माण विभाग मण्डल रीवा ने शुरू कर दी है।
निर्माण एजेंसी लोक निर्माण विभाग (पीआईयू) वर्तमान नाम लोक निर्माण विभाग (भवन) पन्ना ने माह नवंबर 2020 में दो सौ बिस्तरीय जिला चिकित्सालय पन्ना का 300 बिस्तरीय में उन्नयन करने के लिए कार्यादेश जारी किया था। लगभग 11 करोड़ 80 लाख से अधिक की लागत से नवीन हॉस्पिटल बिल्डिंग का निर्माण कार्य ठेके पर लक्ष्मी चन्द एण्ड कम्पनी, ग्वालियर द्वारा कराया जा रहा है। कार्य पूर्णता के लिए निर्धारित समयसीमा दो वर्ष पूर्व समाप्त होने के बाद भी हॉस्पिटल बिल्डिंग अधूरी पड़ी है। घटिया फिनिशिंग वर्क तथा कार्य की गुणवत्ता को लेकर शुरू से ही बिल्डिंग निर्माण पर सवाल उठते रहे हैं। लेकिन कमीशन के चक्कर जिम्मेदार तकनीकी अधिकरियों से लेकर कंसल्टेंट एजेंसी ने निर्माण कार्य को गुणवत्ता के मानकों के अनुरूप कराने के लिए ठेकेदार पर कभी भी जोर डाला। जानबूझकर बरती जाने वाली इस उदासीनता से जिम्मेदार अधिकारीयों और ठेकेदार के बीच सांठगांठ होने के संकेत मिलता है। इनके बीच सांठगांठ कितनी गहरी है, इसका अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि तकनीकी अधिकारियों पर ठेकेदार को आर्थिक लाभ पहुँचाने के बेहद गंभीर आरोप लगे हैं।
बता दें कि, ठेकेदार को 11(A) रनिंग बिल के जरिए दिनांक 22 मई 2024 को चेक क्रमांक 28040000676 से रुपए 2,0347920/- रुपए का भुगतान किया गया था। हॉस्पिटल बिल्डिंग के प्रभारी उपयंत्री पीके जैन का दावा है, 11(A) रनिंग बिल में ठेकेदार को रुपए 34,70,256/- का अतिरिक्त भुगतान किया गया है। नियम-कायदों से समझौता न करने और ठेकेदारों पर प्रभावी नियंत्रण रखते हुए हर हाल में गुणवत्तापूर्ण निर्माण कार्य सुनिश्चित कराने के लिए बाल सी बारीकी को लेकर सजग रहने वाले उपयंत्री जैन ने अतिरिक्त भुगतान मामले में अपने वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका को लेकर हैरान करने वाला खुलासा किया है। इस संबंध में विभाग के प्रमुख सचिव एवं पन्ना कलेक्टर को भेजी गई शिकायत में उपयंत्री ने बताया है कि, उनके द्वारा ठेकेदार का 11(A) रनिंग बिल रुपए 1,68,77,664/- भुगतान हेतु माप पुस्तिका क्रमांक 148 के पृष्ठ क्रमांक 37 पर प्रस्तुत किया गया था। लेकिन तत्कालीन कार्यपालन यंत्री जगदीश प्रसाद सोनकर द्वारा संविदकार को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए माप पुस्तिका के पेज क्रमांक 38 पर दिनांक 22 मई 2024 को चेक क्रमांक 28040000676 से रुपए 2,0347920/- रुपए का भुगतान कर दिया गया।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि, ठेकेदार को रुपए 34,70,256/- का अतिरिक्त भुगतान माप पुस्तिका (मेजरमेंट बुक) क्रमांक 148 के पृष्ठ क्रमांक 37 पर पूर्व से बने बिल के ऊपर अतिरिक्त पृष्ठ चस्पा करके किया था। अर्थात एमबी (मेजरमेंट बुक) के साथ छेड़छाड़ करते हुए कूटरचित बिल तैयार किया गया था। सिर्फ इतना ही नहीं, ठेकेदार को अतिरिक्त भुगतान करने के लिए तत्कालीन कार्यपालन यंत्री जेपी सोनकर व सहायक यंत्री यशवंत सिंह ने निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना भी उचित नहीं समझा। नियमानुसार भुगतान किए गए बिल पर कार्य की देखरेख करने वाले प्रभारी उपयंत्री जैन के हस्ताक्षर नहीं कराए गए।