* सेल्समैन की मनमानी से संकट में गरीबों परिवारों की खाद्य सुरक्षा
* पन्ना के गहरा एनएमडीसी उचित मूल्य दुकान का मामला
* राशन दुकान खुलने का दिन और समय निर्धारित नहीं
* मजदूरी छोड़कर अनाज के लिए भटकने को मजबूर हैं हितग्राही
शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) खाद्य नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण विभाग लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली अंतर्गत चिन्हांकित परिवारों को पात्रतानुसार रियायती दर पर खाद्यान्न (अनाज) वितरण की व्यवस्था का पारदर्शी, नियमानुसार एवं प्रभावी क्रियान्वयन होने का दावा करता है लेकिन पन्ना जिले में जमीनी सच्चाई इसके ठीक उलट है। अति पिछड़े इस जिले में पात्र गरीब परिवारों को सरकारी राशन प्राप्त करने के लिए प्रत्येक माह काफी परेशान होना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर, गहरा एनएमडीसी के वाशिंदों को सस्ता राशन प्राप्त करने के लिए अपनी मजदूरी से हाथ धोना पड़ रहा है। भोजन के लिए सरकारी अनाज पर निर्भर रहने वाले गरीब परिवारों के लिए यह स्थिति कितनी पीड़ादायक साबित हो रही है, इसका अंदाजा एक हितग्राही द्वारा व्यक्त की गई उसकी व्यथा से लगाया जा सकता है, “गरीब को जिन्दा रहने के लिए लिए राशन और मजदूरी दोनों ही जरुरी है। सिर्फ सूखा अनाज तो खाया नहीं जा सकता, उसे पकाने (भोजन बनाने) के लिए ईंधन, तेल, मसाले आदि सामग्री लगती है, इन सब की पूर्ती के लिए रुपए चाहिए और रुपए तो सिर्फ मजदूरी करने पर ही मिलेंगे।”
दरअसल, गहरा एनएमडीसी के गरीबों के सामने राशन या मजदूरी दोनों में से किसी एक को चुनने की विचित्र दुविधा भरी परिस्थिति स्थानीय उचित मूल्य दुकान के विक्रेता की मनमानी पूर्ण निरंकुश कार्यप्रणाली के चलते निर्मित हुई है। कमोबेश यही स्थिति अन्य जगह भी नजर आती है। इस समस्या का मूल कारण राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013 का सही तरीके से पालन न होना है।
जिला मुख्यालय पन्ना से लगा गहरा एनएमडीसी ग्राम कुछ समय पूर्व ही नगर पालिका पन्ना (शहरी क्षेत्र) में शामिल हुआ है। स्थानीय गरीब परिवारों को साल भर पहले तक कुंजवन की उचित मूल्य दुकान से राशन मिलता था लेकिन जब से इनकी बस्ती में राशन दुकान शुरू हुई है तब से लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली व्यवस्था चौपट है। गहरा एनएमडीसी की आदिवासी बस्ती में माध्यमिक विद्यालय के नजदीक स्थित सरकारी उचित मूल्य दुकान के संचालन में व्याप्त अंधेरगर्दी-मनमानी से हितग्राही खासे परेशान और नाराज हैं।
सोमवार 28 फरवरी को गहरा के भ्रमण पर पहुंचे सामाजिक कार्यकर्ताओं व पत्रकारों को स्थानीय लोगों ने बताया कि फरवरी माह में उनकी राशन दुकान का ताला एक दिन भी नहीं खुला। राशन दुकान के खुलने और राशन वितरण का दिन-समय निर्धारित न होने से हितग्राही राशन प्राप्त करने के लिए दुकान के चक्कर काटने को मजबूर हैं। राशन दुकान के बाहर सेल्समैन एवं शिकायत निवारण व्यवस्था से जुड़े अधिकारियों का मोबाइल नम्बर दर्ज नहीं है। वहीं हितग्राहियों के मांगने पर भी विक्रेता अपना मोबाइल नम्बर उन्हें उपलब्ध नहीं कराते। उचित मूल्य दुकान के स्तर पर गठित सतर्कता समिति में सम्मलित पदाधिकारियों की सूची को भी प्रदर्शित नहीं किया गया। स्थानीय लोगों को सतर्कता समिति के संबंध में कोई जानकारी तक नहीं है।
आपको पढ़ने और सुनने में यह समस्या मामूली सी लग सकती है लेकिन इसका व्यापक दुष्प्रभाव गहरा एनएमडीसी के गरीबों को झेलना पड़ रहा है। यहां के कई हितग्राही परिवार 3-4 किलोमीटर के दायरे में निवास करते हैं। उचित मूल्य दुकान खुलने का दिन-समय आदि निर्धारित न होने कारण स्थानीय लोग राशन प्राप्त करने के चक्कर में प्रत्येक माह कई दिनों तक मजदूरी करने (काम पर) नहीं जा पाते। इस समस्या के कारण गहरा के श्रमिकों को लंबी अवधि का नियमित रूप से काम नहीं मिलता। नतीजतन प्रभावितों को अपना गुजारा महीने में बमुश्किल चंद दिन मिली मजदूरी की मामूली सी राशि अर्थात तंगहाली में करना पड़ता है।
बेतहाशा महंगाई के इस दौर में महज चंद दिनों की मजदूरी से गरीबों के लिए अपना व परिवार का भरण-पोषण करना कितना कठिन और चुनौतीपूर्ण होता है, उसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल पर समझना आसान है। स्वयंसेवी संस्था विकास संवाद के पन्ना जिला समन्वयक रवि पाठक, सामुदायिक कार्यकर्ता राम विशाल गौंड़ एवं पत्रकारों को गहरा के रहवासियों ने अपने राशन कार्ड दिखाते हुए राशन वितरण व्यवस्था में गड़बड़ी के गंभीर आरोप लगाए साथ ही गहरा असंतोष व्यक्त किया है।
मजाक बने खाद्य सुरक्षा कानून के प्रावधान
