* धरोहर के संरक्षण हेतु पुरातत्व विभाग ने विशेषज्ञों की देखरेख में कराया कार्य
शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) बुंदेली शासकों के गौरवशाली इतिहास को समेटे पन्ना के प्राचीन मकबरों के संरक्षण को लेकर पिछले कुछ सालों से पुरातत्व विभाग के द्वारा लगातार इनका अनुरक्षण (रखरखाव) सहित आवश्यक कार्य कराए जा रहे हैं। इसी क्रम में शहर के राजेन्द्र उद्यान परिसर में स्थित प्राचीन मकबरों की साफ़-सफाई और कैमिकल ट्रीटमेंट कराया गया। पिछले माह पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों की देखरेख में पूर्ण हुए विशेष सफ़ाई कार्य के फलस्वरूप दोनों ऐतिहासिक मकबरे पहले की तुलना में काफी हद तक चमकने लगे हैं। प्राकृतिक रूप से क्षरण के कारण बदहाल हो रही धरोहर को बचाने के लिए समय रहते ठोस प्रयास किए जाने पर नगरवासियों ने प्रसन्नता व्यक्त की है।
देखरेख के आभाव में खो रहे थे पहचान
उल्लेखनीय है कि पन्ना नगर के बीचोंबीच राजेन्द्र उद्यान (पार्क) परिसर में बुंदेली राजाओं के दो प्राचीन मकबरे स्थित हैं। कई दशकों से देखरेख के आभाव के कारण मौसम की मार से प्राकृतिक क्षरण के चलते दोनों मकबरों में जगह-जगह घास-फूंस और झाड़-झंकाड़ उग आए थे। बारिश में पानी के बहाव से बने काई के काले धब्बे भव्य मकबरों की बेजोड़ स्थापत्य कला की बारीकियों और सौंदर्य को ग्रहण लगाए हुए थे। पार्क की सैर पर आने वाले लोग ऐतिहासिक धरोहर की बद से बदतर होती स्थिति को देखकर अब तक मन ही मन दुखी और परेशान होते रहे हैं। सुन्दर पार्क में स्थित मकबरों की बदहाली लंबे समय से लोगों को बैचेन करती रही है। कुछ वर्ष पूर्व ही राज्य संरक्षित स्मारक घोषित हुए दोनों मकबरों की बदहाली ने पुरातत्व विभाग का ध्यान अपनी ओर खींचा है। आसपास स्थिति कहीं अधिक जर्जर करीब आधा दर्जन मकबरों का अनुरक्षण कार्य को प्राथमिकता से कराने के बाद अब पार्क के मकबरों के संरक्षण हेतु फिलहाल आवश्यक कार्य कराए गए हैं।
आकर्षण का केन्द्र बनेंगे
पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय ग्वालियर के उप संचालक पी.सी. महोबिया के मार्गदर्शन में माह नवंबर 2022 में दोनों मकबरों की क्लीनिंग और बायोसाइड ट्रीटमेंट रसायनज्ञ नीलेश लोखंडे की देखरेख में कराया गया। रडार न्यूज़ से चर्चा में श्री लोखंडे ने बताया पार्क के अंदर स्थित दोनों मकबरे अन्य की मकबरों की तुलना काफी अच्छी स्थिति में हैं। इनके संरक्षण कार्य अंतर्गत फ़िलहाल जगह-जगह उग आई घास-खरपतवार की साफ़-सफाई कराई गई। काले धब्बों-काई आदि को घिसाई करवाकर साफ़ कराया। जिसके बाद कैमिकल (बायोसाइड) ट्रीटमेंट करया गया। जीवनाशी रसायनों के छिड़काव के असर से प्राचीन मकबरे अगले कुछ सालों तक दीमक आदि कीट-पतंगों और छोटे-मोटे जीवों से पूर्णतः सुरक्षित रहेगा। साथ ही इन पर खरपतवार भी नहीं उगेंगे। इनके मूल स्वरूप को सुरक्षित रखते हुए सावधानीपूर्वक सिर्फ साफ़-सफाई और बायोसाइड ट्रीटमेंट कराने मात्र से ही दोनों मकबरों का सौंदर्य चमक उठा है। जिससे यह उम्मीद की जा रही है कि बुंदेली स्थापत्य कला के ये नायब नमूने राजेन्द्र उद्यान की सैर पर आने वाले लोगों के बीच आकर्षण का केन्द्र साबित होंगे।
मकबरों के इतिहास की जानकारी नहीं
मालूम हो कि पार्क में स्थित मकबरों के इतिहास के संबंध में पुरातत्व विभाग और पन्ना के राज परिवार के पास प्रमाणित जानकारी उपलब्ध नहीं है। जिससे पक्के तौर यह पता चल सके कि कौन सा मकबरा किस महराजा या महारानी का है। मगर जानकर इस बात एक मत हैं कि पार्क परिसर और इसके आसपास स्थित सभी मक़बरे बुंदेली राजाओं, राज परिवार के सदस्यों तथा बुंदेली राजाओं के शासनकाल में ऊंचा ओहदा रखने वाले उनके खास सिपहसालारों के हैं। पन्ना के सफरबाग इलाके में स्थित मिर्ज़ा राजा का भव्य मकबरा इस बात का उदाहरण है कि बुंदेली शासकों के दरबार में विशेष ओहदा रखने वालों को भी मृत्यु पश्चात राजपरिवार के सदस्यों की तरह सम्मान मिलता था। राजाओं की तरह उनके भी मकबरे/छत्री का निर्माण कराने की परंपरा रही है।