विश्व की सबसे बुजुर्ग हथिनी ‘वत्सला’ की स्मृति को चिरस्थायी बनाने अनूठी पहल

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विश्व हाथी दिवस के अवसर पर दुनिया सबसे बुजुर्ग हथिनी वत्सला के नाम पर वृक्षारोपण के नामकरण कार्यक्रम में उपस्थित पन्ना जिले के वन विभाग के अधिकारी।

 दक्षिण वन मण्डल पन्ना ने 50 हेक्टेयर के पौधारोपण का नामकरण ‘वत्सला वन’ किया

 विश्व हाथी दिवस पर सबसे बुजुर्ग हथिनी को दी गई श्रद्धांजलि

शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में कई वर्षों तक पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रही विश्व की सबसे बुजुर्ग हथिनी वत्सला की स्मृति को चिरस्थायी बनाने दक्षिण वन मण्डल पन्ना ने अनूठी पहल करते हुए 50 हेक्टेयर क्षेत्र के पौधारोपण को ‘वत्सला वन’ नाम दिया है। वत्सला को दी गई यह अनोखी श्रद्धांजलि है। प्रेम और वात्सल्य की प्रतिमूर्ति रही वत्सला को याद कर वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारी भावुक हो गए। उसकी मौत पिछले माह (जुलाई 2025) पैर में चोट लगने के कारण हो गई थी। विश्व हाथी दिवस के उपलक्ष्य पर मंगलवार 12 अगस्त को दक्षिण वन मण्डल पन्ना के शाहनगर वन परिक्षेत्र अंतर्गत बीट बोरी में एक गरिमामयी कार्यक्रम आयोजित हुआ। जिसमें विशेष रूप से वन संरक्षक वृत्त छतरपुर एवं क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व नरेश यादव, वनमण्डलाधिकारी दक्षिण पन्ना अनुपम शर्मा एवं मैदानी वन अमला उपस्थित रहा। इस मौके पर पूजा-अर्चना उपरांत पौधारोपण का नामकरण किया गया।

वत्सला के योगदान को जान पाएगी भावी पीढ़ी

नरेश सिंह यादव, क्षेत्र संचालक, पन्ना टाइगर रिजर्व।
वन संरक्षक वृत्त छतरपुर एवं क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व नरेश यादव ने वत्सला को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि, हमें इस बात का गर्व है कि सबसे उम्रदराज हथिनी का घर पन्ना टाइगर रिजर्व है। पन्ना में बाघों को पुनः आबाद करने की योजना अर्थात बाघ पुनर्स्थापना कार्यक्रम में वत्सला का अहम योगदान रहा है। पन्ना पार्क में हाथियों के कुनबे की सदस्य संख्या वर्तमान में अगर डेढ़ दर्जन से अधिक है तो इसमें भी वत्सला का अविस्मरणीय योगदान है। श्री यादव ने बताया कि, पीटीआर अंतर्गत कैम्प के हाथियों में सबसे वयस्क सदस्य होने के नाते वत्सला अंतिम समय तक अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए पूरे दल का नेतृत्व करती रही। सबसे खास बात, कैम्प की हथिनियों के प्रसव के दौरान वह एक प्रशिक्षित दाई की भूमिका निभाती और प्रसव उपरांत वह नवजात बच्चों की नानी-दादी जैसी देखभाल करती थी। बुंदेलखंड पन्ना के विरल एवं शुष्क वन क्षेत्र में मादा हाथी वत्सला का लगभग 100 वर्ष से अधिक समय तक जीवित रहना किसी चमत्कार से कम नहीं। क्योंकि हाथियों की औसत आयु 60-70 वर्ष होती है। क्षेत्र संचालक श्री यादव ने बताया कि पन्ना पार्क प्रबंधन की ओर से भी वत्सला को सम्मान देने, उसके योगदान से भावी पीढ़ी को परिचित कराने एवं स्मृति को सदैव जीवित बनाए रखने की दिशा में काम किया जा रहा है। संभवतः वह जल्दी ही आप सबके सामने होगा।
वन्यजीव संरक्षण के प्रति आएगी जागरूकता
दक्षिण वन मण्डल पन्ना ने विश्व की सबसे उम्रदराज हथिनी वत्सला को विश्व हाथी दिवस के अवसर श्रद्धांजलि अर्पित की। कार्यक्रम में उपस्थित वन विभाग के अधिकारीगण।
दक्षिण वन मण्डल पन्ना के डीएफओ अनुपम शर्मा ने कहा कि, वत्सला आज भले ही भौतिक रूप से जीवित नहीं है लेकिन उसके संबंध में जानने वालों के जेहन में वह आज भी जीवित है। उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उसी की याद में परिक्षेत्र शाहनगर की बीट बोरी के वन कक्ष क्रमांक-पी 925 में वर्ष 2022-23 रकबा 50 हेक्टेयर में स्थित वृक्षारोपण का नामकरण ‘वत्सला वन’ किया गया है। वत्सला के योगदान को याद करके उसे सम्मान देने के लिए विश्व हाथी दिवस सबसे उपयुक्त अवसर था। श्री शर्मा ने बताया, पन्ना टाइगर रिजर्व में वत्सला की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उसने अपने जीवनकाल में अनेक वन्यजीव बचाव अभियानों (Wildlife Rescue Operations) में योगदान दिया और कई हथिनियों के बच्चों की देखभाल एवं पालन-पोषण में अहम भूमिका निभाई। वत्सला की मातृसुलभ देखभाल और सेवाभाव ने उसे पन्ना के वन्यजीव परिवार में एक विशेष स्थान दिलाया। आपने बताया कि वत्सला के नाम पर वन के नामकरण की यह पहल न केवल ‘वत्सला’ के योगदान का स्मरण कराएगी बल्कि वन्यजीव संरक्षण के प्रति जन जागरूकता को भी बढ़ाने का काम करेगी।

बुजुर्ग हथिनी ने पिछले माह ली थी अंतिम सांस

विश्व की सबसे उम्रदराज हथिनी वत्सला का जीवित अवस्था का चित्र।
विदित हो कि, दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी ने पिछले माह 08 जुलाई 2025 को अंतिम सांस ली थी। पन्ना टाइगर रिजर्व की सुरक्षा में करीब 4 दशक तक सक्रिय भूमिका निभाती रही वत्सला 100 वर्ष से अधिक की हो चुकी थी। वह पन्ना टाइगर रिजर्व के हिनौता स्थित हाथी कैम्प में रहती। वत्सला पिछले कुछ सालों से आयु संबंधी समस्याओं से जूझ रही थी। मोतियाबिंद होने के कारण उसकी आंखों की रोशनी चली गई थी। जिससे वह अधिक दूरी तक चल नहीं पाती थी। वत्सला की पार्क प्रबंधन के द्वारा विशेष देखभाल की जा रही थी। रोजाना महावत उसका कान या सूंढ़ पकड़कर नजदीकी खैरइया नाला में नाहने के लिए ले जाता था। दिनांक 08 जुलाई को नहाने के लिए जाते समय नाले में गिरने के कारण उसके अगले पैर का नाख़ून टूटा गया था। चोटिल वत्सला नाला में ऐसी बैठी की फिर दुबारा उठ नहीं पाई। वनकर्मियों ने उसे अपने पैरों पर खड़ा करने का काफी प्रयास किया लेकिन इसी बीच दोपहर में करीब 1:30 बजे उसने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।