
* वार्ड फुल होने से फर्श पर लेटकर इलाज कराने को मजबूर हुए लोग
* भीषण उमस और गर्मी के चलते मौसमी बीमारियां हुई बेकाबू
* डीएच की ओपीडी में पर्याप्त समय न देकर अपने घर की ओपीडी चला रहे डॉक्टर्स
* संवेदनहीन जनप्रतिनिधियों और निकम्मे प्रशासन ने पब्लिक को अपने हाल पर छोड़ा
शादिक खान, पन्ना। (www.radarnews.in) वर्तमान में पन्ना जिले में भीषण उमस एवं तेज गर्मी पड़ने से मौसमी बीमारियों का जबरदस्त प्रकोप देखा जा रहा है। पखवाड़े भर से जिला चिकित्सालय पन्ना में मरीजों की भारी भीड़ उमड़ रही है। चिकित्सालय के अंदर-बाहर हर तरफ सिर्फ मरीज और उनके तीमारदार ही नजर आ रहे हैं। पहले से ही बदहाल जिला अपस्पताल की चिकित्सा एवं उपचार सेवाएं मरीजों की भीड़ के चलते बुरी तरह से चरमरा गईं है। अस्पताल के सभी वार्ड पहले से ही फुल चल रहे थे अब तो फर्श भी मरीजों से पट चुका है। सप्ताह भर के ओपीडी रिकार्ड अनुसार प्रतिदिन औसतन 800 से अधिक मरीज इलाज कराने के लिए जिला अस्पताल पहुंच रहे हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि, वर्तमान में जिला अस्पताल आने वाले कुल मरीजों में 60-70 फीसदी लोग कई घंटों तक लाइन में लगने के बाद भी डॉक्टर से अपना परीक्षण ही नहीं करा पाते अथवा डॉक्टर से परामर्श लेने से वंचित रह जाते हैं। दरअसल लंबे अर्से से डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे जिला अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर्स इस आपदा को अपनी निजी प्रैक्टिस चमकाने के अवसर में बदलने में जुटे हैं। उनके द्वारा अपने बंगले की ओपीडी में मरीजों की संख्या बढ़ाने की मोनोपोली के तहत अस्पताल की ओपीडी में मरीजों को कम से कम समय दिया जाता है। जिला चिकित्सालय में इलाज के लिए भटकते मरीजों को हर दिन जिस परेशानी से गुजरना पड़ता है उसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। डॉक्टरों के रिक्त पदों की पूर्ति करवाकर व्यवस्था सुधारने के बजाए संवेदनहीन जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों ने आमजनता को उसके हाल पर छोड़ दिया है।
सर्दी-खांसी और बुखार से पीड़ित अधिकांश मरीज
मध्य प्रदेश के अत्यंत ही पिछड़े एवं गरीब जिलों में शामिल पन्ना की बहुसंख्यक आबादी इलाज एवं स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर निर्भर है। विडंबना यह है कि जिला अस्पताल में डॉक्टरों के अधिकांश पद रिक्त होने के साथ आंचलिक अस्पतालों सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी डॉक्टरों के लगभग 80 से 90 फीसदी पद वर्षों से खाली पड़े हैं। जिससे आंचलिक क्षेत्र के सामान्य मरीज और आंचलिक स्वास्थ्य संस्थाओं के रेफरल मरीज बेहतर इलाज की उम्मीद में प्रतिदिन बड़ी संख्या में जिला अस्पताल पहुंचते हैं। वर्तमान में वायरल फीवर के जबरदस्त प्रकोप की वजह से जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों की संख्या में तीन गुना तक बढ़ गई। मरीजों की संख्या के बढ़ते दवाब के कारण जिला अस्पताल की उपचार एवं स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह चरमरा गईं है। स्थिति यह है कि सुबह 9 बजे से लेकर दोपहर 2 बजे तक अस्पताल में मरीजों का मेला सा लगता है। इस दौरान ओपीडी पर्ची बनवाने से लेकर डॉक्टर से चिकित्सीय परीक्षण कराने, पैथोलॉजी टेस्ट का सैम्पल देने और फिर निःशुल्क सरकारी दवाएं प्राप्त करने तक हर जगह मरीजों को मुसीबत की लंबी कतार में लगना पड़ रहा है। जिला अस्पताल के एक डॉक्टर ने नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर बताया कि, तेज धूप और उमस के कारण वायरल फीवर के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। अधिकांश मरीज बुखार, सर्दी-खांसी, सिरदर्द, बदन दर्द और जुकाम की शिकायत लेकर आ रहे हैं। कुछ मरीज पेट संबंधी समस्याओं एवं मच्छर जनित बीमारियों से भी पीड़ित रहते हैं।
ओपीडी मरीजों को कम समय दे रहे डॉक्टर्स

जिला अस्पताल में पहुंचने वाले मरीजों को वर्तमान में सबसे ज्यादा परेशान डॉक्टर से परीक्षण कराने के लिए होना पड़ रहा है। हालात इतने अधिक खराब हैं कि वर्तमान में 60-70 फीसदी मरीज हॉस्पिटल में डॉक्टर को दिखा ही नहीं पाते। मरीज पहले कई घंटे तक डॉक्टर का उनके कक्ष के बाहर इंतजार करते हैं, बाद में जब डॉक्टर वार्ड में भर्ती मरीजों के चेकअप से फ्री होकर अपने कक्ष में आते हैं तब मरीजों को बाहर कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है। इस दौरान मरीजों की तकलीफ और निराशा तब काफी बढ़ जाती है जब अपना नंबर आने की प्रतीक्षा के बीच दोपहर में 2 बजने पर डॉक्टर साहब सुबह की ओपीडी ड्यूटी पूरी करके अपने घर चले जाते हैं। जिला अस्पताल के विशेषज्ञ चिकित्सक बमुश्किल 1-2 घंटे ही ओपीडी मरीजों को देखते है। इसलिए अधिकांश मरीजों का नम्बर नहीं लग पाता। इस स्थिति में मरीजों के पास 3 विकल्प बचते या तो वे विशेषज्ञ चिकित्सकों के बंगले में जाकर उनसे परीक्षण करवाने के लिए 400/- (चार सौ) रुपए शुल्क अदा करें। जिनके पास इलाज के लिए रुपये नहीं उन्हें अगले दिन पुनः हॉस्पिटल जाकर अपना नंबर आने का इंतज़ार करना होता है। क्योंकि जिला अस्पताल में शाम की ओपीडी वर्षों से कागजों चल रही है। तीसरा और आखिरी विकल्प किसी झोलाछाप डॉक्टर की सेवाएं लेने का बचता है लेकिन इसके अपने जानलेवा जोखिम हैं। जिला अस्पताल के प्रमुख डॉक्टर्स के बंगलों में जाकर उन्हें दिखाने वाले मरीजों से जुटाई गई जानकारी अनुसार, इन दिनों प्रत्येक डॉक्टर रोजाना 50 से अधिक मरीज देख रहे हैं।
पन्ना जिला चिकित्सालय के ओपीडी मरीजों की दैनिक संख्या
दिनांक |
पंजीकृत मरीज |
|
12 अगस्त 2025 |
855 |
|
13 अगस्त 2025 |
786 |
|
14 अगस्त 2025 |
682 |
|
18 अगस्त 2025 |
1145 |
|
19 अगस्त 2025 |
943 |
|
20 अगस्त 2025 |
917 |
|
21 अगस्त 2025 |
874 |
अस्पताल का निजी नर्सिंग होम की तरह उपयोग


जिला अस्पताल पन्ना की व्यवस्था सुधारने को लेकर जिले के जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी तनिक भी संवेदनशील नहीं हैं। डॉक्टरों के रिक्त पदों की पूर्ति करवाने में पूरी तरह नाकाम साबित हुए जनप्रतिनिधि आजकल स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली की बात आने पर मेडीकल कॉलेज का झुनझुना बजाने लगते हैं। पड़ोसी जिला छतरपुर समेत अन्य जिलों में जहां 7 से 10 वर्ष पूर्व मेडिकल कॉलेज स्वीकृत हुए थे वे आज किस स्थिति में हैं, क्या उनका लाभ मिल रहा है, लोगों को इस पर गौर करने की जरुरत है। दरअसल भोपाल, दिल्ली के नामी निजी अस्पतालों में अपना इलाज करवाने वाले जनप्रतिनिधियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पन्ना में डॉक्टर है या नहीं हैं और जिला चिकित्सालय की व्यवस्था कैसी है। वहीं उपलब्ध संसाधनों में ही व्यवस्था को बेहतर बनाने और समय-समय पर जिला अस्पताल का नियमित रूप से आकस्मिक निरीक्षण कर व्यवस्थाओं को जांचने-परखने से प्रशासनिक अधिकारियों को भी कोई लेना-देना नहीं है। जानकर बताते हैं यदि डॉक्टर्स टाइम से ड्यूटी पर आएं, जिन विभागों में 2 या उससे अधिक विशेषज्ञ हैं उनमें एक डॉक्टर्स भर्ती मरीजों का चेकअप करें और एक डॉक्टर ओपीडी मरीजों का परीक्षण करें तथा शाम की ओपीडी में नियमित रूप से डॉक्टर्स उपस्थिति दर्ज कराएं तो काफी हद तक मरीजों को राहत मिल सकती है।
जिला अस्पताल पन्ना में पदस्थ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नीलम पटेल पिछले कुछ समय से चाइल्ड केयर लीव पर हैं। हालांकि, वे अस्पताल परिसर में ही स्थित अपने शासकीय आवास पर प्रतिदिन बड़ी संख्या में पहुंचने वाली महिला रोगियों को लगातार परामर्श दे रहीं थी। जिसकी शिकायत एक व्यक्ति द्वारा कलेक्टर से करने और बंगले में जुटी मरीजों की भीड़ का वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किए जाने से नाराज डॉ. नीलम पटेल ने गुरुवार दोपहर 3 बजे से मरीजों को देखना पूर्णतः बंद कर दिया। महिला चिकित्सक के इस निर्णय महिला मरीजों की परेशानी बढ़ गई है। मरीजों का कहना है जिले की आबादी लगभग 12 लाख है, इसमें आधी आबादी यानी महिलाओं के लिए जिले में सिर्फ तीन स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं। डॉक्टरों के वर्षों से खाली पड़े पदों को की पूर्ती के लिए जनहित सार्थक पहल करने के बजाए अनावश्यक शिकवा-शिकायत करके महिला चिकित्सक को परेशान करना गलत है। वहीं डॉ. नीलम पटेल का कहना है, मैं अपने अवकाश का उपभोग कैसे करतीं हूं यह मेरा निजी निर्णय है, इसमें अन्य कोई व्यक्ति हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। उन्होंने शिकायतकर्ता पर उन्हें बदनाम करने का आरोप भी लगाया है। इस घटनाक्रम को लेकर लोगों के बीच चर्चाएं डॉ. नेहा खटीक, डॉ. श्रद्धा दक्ष की तरह डॉ. नीलम पटेल को भी सुनियोजित तरीके से परेशान करके पन्ना से भगाने की साजिश की जा रही है।