पन्ना को टीबी मुक्त बनाने के प्रयासों में कौन बन रहा है बाधक ?

0
609

*    टीबी मरीजों के सर्वे एवं उपचार के लिए कार्यरत संस्था के कर्मचारी परेशान

*    दीपक फाउंडेशन में नई डीपीएम के रवैये से मचा घमासान

पन्ना। (www.radarnews.in) गंभीर संक्रामक क्षय रोग (टीबी) की अधिकता वाला पन्ना जिला केन्द्र सरकार की मंशानुरूप 2025 में क्या टीबी मुक्त हो पायेगा? यह सवाल बीते कुछ महीनों से जिले के स्वास्थ्य महकमें के जिम्मेदार अधिकारियों को लगातार बैचेन कर रहा है। दरअसल, बात ही कुछ ऐसी है। जिले में टीबी संक्रमण के नये रोगियों की खोज करने, निक्षय घोषित होने तक उन्हें नियमित रूप से उपचार मुहैया कराने के लिए कार्यरत स्वयंसेवी संस्था दीपक फाउण्डेशन में घमासान मचा है। जिसकी वजह पन्ना जिले के लिए नियुक्त की गई संस्था की नई जिला कार्यक्रम प्रबंधक (डीपीएम) के रवैये को बताया जा रहा है। मैडम के रवैये से परेशान होेकर संस्था के अनुभवी कर्मचारी अपनी नौकरी से त्याग पत्र दे चुके हैं, जबकि कुछ को बाहर का रास्ता दिखा दिखाया जा चुका है। संस्था में मची इस उठापटक का दुष्प्रभाव प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से जिले में टीबी उन्मूलन के प्रयासों पर पड़ रहा है।
विदित हो कि, पन्ना जिले में टीबी के साथ-साथ सिलीकोसिस के मरीजों की अच्छी खासी तादाद है। बुन्देलखण्ड के पन्ना जिले में तपेदिक यानि टीबी की भयावह स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ग्रामीण अंचल में जन्म लेने वाले अनेक मासूम बच्चे टीबी से ग्रसित होते है। वहीं जिले के गरीब अशिक्षित आदिवासी समाज को टीबी का संक्रमण तेजी से निगल रहा है। इन हालात में पन्ना जिले को 2025 तक टीबी मुक्त करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए धरातल पर ठोस समन्वित प्रयास प्रयास करने की जरूरत है। तभी पन्ना के साथ-साथ प्रदेश और देश को टीबी मुक्त बनाया जा सकता है। लेकिन, विडंबना यह है कि इस काम के लिए नियुक्त की गई संस्था दीपक फाउण्डेशन इस खतरनाक टीबी की बीमारी से लड़ने के बजाय अपने ही कर्मचारियों को कथित तौर पर प्रताड़ित करने के आरोपों में उलझी है।

टेंशन में आए सीएमएचओ

संस्था की ओर से टीबी के नये मरीजों की जांच आदि की जिम्मेदारी संभाल रहे लैब टैक्नीशियन ध्रुव कुशवाहा एवं टीबी मरीजों के रिकार्ड का संधारण करने वाले राजेन्द्र कुमार लोध अपने पद से इस्तीफा दे चुके है। वहीं फील्ड में नये टीबी मरीजों को खोजने तथा उनकी जांच कराने ब्लॉकों में तैनात रहे कई स्पुटम कलेक्शन एजेन्ट नौकरी छोड़ चुके है। इसके अलावा सलेहा-गुनौर डीएमसी में कार्यरत स्पुटम एजेन्ट का कार्य संतोषजनक होने के बावजूद हाल ही में उन्हें हटा दिया गया है। पन्ना में दीपक फाउण्डेशन की नई डीपीएम आयुषी सैनी जब से आईं है तब से संस्था में भारी उथल-पुथल मची है। इसका मुख्य कारण सुश्री सैनी का अव्यवहारिक और तानाशाहीपूर्ण रवैया बताया जा रहा है। अपने मातहत कर्मचारियों के साथ उनका व्यवहार ऐसा है कि अनुभवी कर्मचारी मजबूर होकर या तो नौकरी छोड़ रहे है या फिर उन्हें निकाला जा रहा है। दीपक फाउण्डेशन में मची इस उठापटक ने जिले के प्रभारी क्षय अधिकारी सहित प्रभारी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी की टेंशन बढ़ा दी है।
मालूम हो कि, पन्ना जिले में टीबी के नये रोगियों के प्राईवेट नोटिफिकेशन पहले से भी बहुत कम है, जिसका सीधा असर जिले के सूचकांक पर पड़ता है और इससे जिले में क्षय उन्मूलन कार्यक्रम प्रभावित होता है। स्वास्थ्य अधिकारियों की चिंता का सबब यह है कि दीपक फाउण्डेशन से अनुभवी कर्मचारी जिस तरह से एक-एककर काम छोड़ते जा रहे है उसके मदद्देनज़र कहीं निर्धारित समयावधि में क्षय उन्मूलन लक्ष्य हांसिल करने की उम्मीद का दीपक ही न बुझ जाए। इससे चिंतित और नाखुश प्रभारी सीएमएचओ पन्ना डॉ. व्हीएस उपाध्याय ने दीपक फाउण्डेशन के कर्मचारियों के लगातार त्याग पत्र देने तथा उन्हें नौकरी से निकाले जाने के मामले को गंभीरता से लिया है।

डीपीएम को तलब कर मांगा था जवाब

फाइल फोटो।
प्रभारी सीएमएचओ ने इस सम्बंध में संस्था की जिला कार्यक्रम प्रबंधक को तलब कर समक्ष में जवाब मांगा था। डीपीएम को भेजे गये पत्र में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने स्पष्ट तौर पर लेख किया था कि संस्था से नौकरी छोड़ने वाले कर्मचारियों ने आपके रवैये पर सवाल उठाए है। ऐसी स्थिति मे उक्त प्रकरणों में आपके विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही हेतु उच्चाधिकारियों को क्यों न लेख किया जाए। इस पत्राचार से मचे हड़कम्प के बाद डीपीएम ने खुद को निर्दोष साबित करने के लिए त्याग पत्र दे चुके एक जरूरतमंद कर्मचारी से क्षमा पत्र लिखवाकर वापिस नौकरी पर रख लिया है। जबकि आधा दर्जन कर्मचारी अभी भी बाहर है। क्षमा पत्र लिखवाकर एकमात्र कर्मचारी को वापिस नौकरी पर रख कर डीपीएम यह साबित करना चाहती है कि गलत वह नहीं बल्कि कर्मचारी हैं। इस तरह डीपीएम अपनी कारगुजारियों पर पर्दा डालने के साथ ही संस्था में कर्मचारियों के साथ होने वाले अनुचित व्यवहार को लेकर उच्चाधिकारियों के उदासीन रवैये का भी बचाव कर रही है। हालांकि नौकरी छोड़ चुके कर्मचारी तथ्यों-तर्कों के साथ जो कुछ बता रहे है वह डीपीएम की कवायद पर पानी फेरने वाला है। उल्लेखनीय है कि पूर्व कर्मचारियों के आरोपों के सम्बंध में दीपक फाउण्डेशन पन्ना की डीपीएम आयुषी सैनी से उनका पक्ष जानने के लिए सम्पर्क किया गया लेकिन उनका मोबाइल फोन रिसीव नहीं हुआ। उन्होंने व्हाट्सएप सन्देश और टेक्स्ट मैसेज का भी कोई जवाब नहीं दिया।

इनका कहना है-

“कर्मचारियों को नौकरी पर रखना या निकालना यह संबंधित संस्था के क्षेत्राधिकार का मामला है। इसमें हमारा किसी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं है। यह बात सही है, यदि अनुभवी कर्मचारियों को निकाला जाता है तो उससे चल रहे कार्यक्रम की प्रगति बाधित होती है। पन्ना का मामला संज्ञान में आया था जिसके संबंध में आवश्यक पत्राचार किया गया है। अधिक जानकारी के लिए इस सबंध में आप दीपक फाउण्डेशन के उच्चाधिकारियों से बात कर सकते है।”

–  डॉ. प्रितेष ठाकुर, जिला क्षय अधिकारी, पन्ना, मध्यप्रदेश।