मजदूर का हीरा हड़पने के मामले में हीरा पारखी के खिलाफ कोर्ट ने दर्ज किया धोखाधड़ी का केस

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फाइल फोटो।

*   मजिस्ट्रेट प्रियंक भारद्वाज ने परिवाद पर विचारण उपरांत दिया आदेश

*   अगली सुनवाई में अनावेदक हीरा पारखी को सम्मन भेजकर तलब करने कहा

पन्ना। (www.radarnews.in) जिला हीरा कार्यालय पन्ना के हीरा पारखी आभाष चन्द्र सिंह के द्वारा गरीब मजदूर का हीरा छल-कपट पूर्वक बदलकर बेईमानी से हड़पने का अपराध प्रथम दृष्टया दर्शित होने पर न्यायालय ने उनके विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420 के अंतर्गत अपराध का संज्ञान लिया है। परिवादी बृजकिशोर विश्वकर्मा निवासी कछियाना मोहल्ला अजयगढ़ जिला पन्ना की ओर न्यायालय में प्रस्तुत परिवाद पत्र पर जांच कथन एवं विचारण के उपरांत न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी पन्ना प्रियंक भारद्वाज ने अनावेदक हीरा पारखी आभाष चन्द्र सिंह के खिलाफ भादंसं की धारा 420 के अंतर्गत अपराध का संज्ञान लेते हुए विधिवत प्रकरण पंजीबद्ध करने का आदेश दिया है।
न्यायालय के इस आदेश के बाद सेवानिवृत्त हीरा पारखी की मुश्किलें बढ़ना तय माना जा रहा है। इस मामले की अगली सुनवाई हेतु 28 अप्रैल 2022 की तारीख नियत की गई है। न्यायालय ने अगली सुनवाई में अनावेदक को उपस्थित होने के लिए सम्मन भेजकर तलब करने के निर्देश दिए हैं।
सांकेतिक फोटो।
परिवादी के मामले के संबंध में प्राप्त जानकारी अनुसार बृजकिशोर विश्वकर्मा 65 वर्ष निवासी कछियाना मोहल्ला अजयगढ़ ने हीरा कार्यालय पन्ना से अनुमति लेकर दहलान चौकी क्षेत्र में निजी भूमि पर हीरा खदान लगाई थी। जिसमें दिनांक 11 अक्टूबर 2012 को उसे 2.5 कैरेट (ढाई कैरेट वजन) का उज्जवल किस्म का हीरा मिला था। वृद्ध हीराधारक ने अपने हीरे को जिला हीरा कार्यालय में जमा कर रसीद प्राप्त की। माह अक्टूबर 2012 में ही उक्त हीरे को जिला हीरा कार्यालय के द्वारा नीलामी में रखा गया लेकिन वह नीलाम नहीं हुआ।
पुनः माह जनवरी 2013 हीरे को नीलामी में शामिल किया लेकिन कोई खरीददार नहीं मिला। लगभग तीन साल बाद बृजकिशोर विश्वकर्मा ने दिनांक 13 जनवरी 2016 को 1,00,500/- (एक लाख पांच सौ) रुपये में अपना ही जमाशुदा हीरा स्वयं खरीद लिया। रॉयल्टी राशि 11,581/- रुपए एवं आयकर की राशि 1992 रुपए दिनांक 11 फरवरी 2013 को चालान के माध्यम से स्टेट बैंक पन्ना में जमा कर दिया था।
परिवादी दिनांक 14 फरवरी 2013 को अपनी पत्नी कुसुम विश्वकर्मा, देवीदयाल, मुन्ना कुशवाहा, नन्हे सिंगरौल के साथ हीरा कार्यालय पहुंचा जहां तत्कालीन हीरा पारखी (अनावेदक) आभाष चन्द्र सिंह के द्वारा आवश्यक कार्यवाही पूरी करने के बाद एक हीरा बृजकिशोर को दिया गया। उक्त हीरे को लैंस चैक किया गया जोकि परिवादी के द्वारा जमा किया गया हीरा नहीं था, बदला हुआ दूसरा हीरा था। इस संबंध में हीरा पारखी को बताया गया। हीरा पारखी ने उससे कहा कि यह हीरा उसे वापस कर दो, धोखे से बदल गया होगा। हीरे ट्रेजरी जमा रहने जानकारी देकर परिवादी से कहा गया कि, 2-3 दिन बाद आना उसका हीरा मिल जाएगा और उक्त बात किसी को मत बताना।
हीरा पारखी की बातों पर भरोसा कर परिवादी उसे हीरा वापस देकर अपने घर लौट गया। बृजकिशोर के हवाले से परिवाद पत्र में बताया गया है कि, दिनांक 19 फरवरी 2013 को वह पुनः हीरा कार्यालय पहुंचा और अपना हीरा माँगा तो आभाष सिंह गालियां देते हुए बोला हीरा वापस ले चुका है उसके पास पावती मौजूद है।
सांकेतिक चित्र।
परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र एवं जांच कथन में यह स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है कि अनावेदक (हीरा पारखी) ने उसका हीरा बदल दिया था और बाद में हीरा वापस करने की बात कहकर उसने हीरा वापस नहीं किया। तथा परिवादी से हीरा प्राप्ति की धोखे से पावती ले ली थी। विद्वान न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी पन्ना प्रियंक भारद्वाज ने परिवाद के विचारण उपरान्त यह पाया कि अनावेदक ने दिनांक 14 फरवरी 2013 को योजनाबद्ध तरीके दिनांक 13 फरवरी 2013 की तारीख दर्शाकर छल-कपटपूर्वक बेईमानी से बृजकिशोर विश्वकर्मा का हीरा हड़पने के आशय से उससे पावती पर हस्ताक्षर करा लिए थे। जबकि परिवादी (बृजकिशोर) दिनांक 13 फरवरी 2013 को हीरा कार्यालय गया ही नहीं था। परिवादी का हीरा वापस करने का आश्वासन देने के बाद उसे वापस नहीं किया।
इस तरह हीरा पारखी आभाष सिंह ने परिवादी की मूल्यवान सम्पत्ति बेईमानी से हड़प कर छल किया जो भादंसं की धारा 420 के अंतर्गत अपराध किया जाना प्रथम दृष्टया दर्शित है। न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में उल्लेख किया है कि आभाष सिंह के विरुद्ध भादंसं की धारा 420 के तहत अपराध का संज्ञान लिए जाने के पर्याप्त आधार विद्यमान हैं।