जलकुम्भी और कचरे से पटे जलाशय, चैतरफा अतिक्रमण ने पसारे पैर
जलसंरचनाओं के संरक्षण को लेकर प्रशासन उदासीन
पन्ना। रडार न्यूज बेशकीमती रत्न हीरे के लिए दुनियाभर में विख्यात पन्ना शहर की एक अन्य पहचान यहां के छोटे-बड़े डेढ़ दर्जन से अधिक ताल-तलैया भी हैं। बुंदेली राजाओं द्वारा निर्मित प्राचीन तालाब तत्कालीन ग्राउण्ड लेबल वाटर रिचार्ज (भू-जल पुर्नभरण) तथा बारिश की एक-एक बूंद को सहेजने के लिए निर्मित अनूठे जल प्रबंधन का उत्कृष्ट नमूना हैं। शायद इसीलिए पन्ना शहर को लेकर कहावत प्रचलित है-‘‘पन्ना तीन बात में आगर पानी, पाथर और लावर‘‘। कभी स्वच्छ अमृत जल का स्रोत रहे प्राचीन जलाशयों में से अधिकांश का पानी अब जहर में तब्दील हो चुका है। घोर प्रशासानिक उपेक्षा तथा आमजन की उपभोगवादी प्रवृत्ति के चलते ऐतिहासिक तालाब बदहाली का शिकार है। चैतरफा बढ़ते अतिक्रमण, जलकुम्भी और कचरा के कारण इनके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जिस छोटे से शहर में 17 ताल-तलैया स्थित हैं वहां की 40 फीसदी से अधिक आबादी जलसंकट की मार झेल रही है। प्रतिवर्ष गर्मियों में सूरज की तपिश बढ़ने के साथ ही शहर में जलसंकट कहीं अधिक भीषण रूप ले लेता हैै। पानी को लेकर पन्ना में त्राहि-त्राहि मचने के नजारे शहर के वृद्धजनों के मन-मस्तिष्क को झकझोरते हैं। कारण उनकी स्मृति में समुचे बुंदेलखण्ड अंचल में पन्ना ऐसा शहर है कि जहां के तालाबों और कुओं में वर्षभर विपुल जलराशि रहती है। यह बात काफी हद तक सही है। तीन दशक पूर्व तक पन्ना के लोग पानी के मामले मेंं समृद्ध थे। किंतु राजशाही जमाने में निर्मित ऐतिहासिक जल संरचनाओं की लगातार घोर उपेक्षा के चलते अब पन्ना में भी वर्ष दर वर्ष जल संकट भीषण रूप ले रहा है। कभी पानीदार रहे पन्ना जैसे शहर के लिए निश्चित तौर पर यह स्थिति खतरे की घण्टी वाली है। जिन ताल-तलैयों में कभी इतने स्वच्छ जल का भराव रहता था कि उनमें गिरा एक सिक्का भी स्पष्ट नजर आता था, आज उनकी दुर्दशा यह है कि वे जलकुंभी, कचड़ा, बेशरम और अतिक्रमण से चैतरफा घिरे हैं। आज अधिकांश ताल-तलैयों का पानी इतना अधिक प्रदुषित हो चुका है कि वह निस्तार के उपयोग का भी नहीं रहा। उनके पानी से भीषण र्दुगंध उठ रही है। अतिक्रमणकारी जहां एक ओर तालाबों की भूमि पर खेत, मकान और दुकान बनाने में जुटे हैं वहीं जिम्मेदार तमाशबीन बने बैठे हैं। शहर के ताल-तलैयों के संरक्षण के लिए आज सबसे बड़ी आवश्यकता इस बात है कि इन्हें ईमानदारी से अतिक्रमण और जलकुम्भी मुक्त करने के अलावा इनके पानी को प्रदूषित करने वाली सभी गतिविधियों पर प्रभावी रोक लगाने के लिए जनसहयोग से वातावरण का निर्माण किया जाये।
बेमिशाल है प्राचीन जल प्रबंधन
आज वाटरशेड मिशन के अंतर्गत ग्राउण्ड लेबल वाटर को रिचार्ज करने और बारिश की एक-एक बूंद को सहेजने विभिन्न तकनीकी उपाय किये जा रहे हैं। किंतु आज से 300 वर्ष पूर्व जब इंजीनियरिंग इतनी विकसित नहीं थी उस समय पन्ना शहर में बुंदेली शासकों ने जल संरक्षण संवर्द्धन के लिए जो उपाय किये वे आज वाटरशेड प्रबंधन से जुड़े लोगों के लिए शोध और आश्चर्य का विषय है। उस जमाने में जब किसी ने जल प्रबंधन की कल्पना भी न की होगी तब ग्राउण्ड लेवल वाटर को रिचार्ज करने तथा वर्षा के जल की एक-एक बूंद को सहेजने के लिए किये गये उपाय अनुकरणीय हैं। पन्ना राजपरिवार के वरिष्ठ सदस्य एवं जल संरक्षण, संवर्द्धन के हिमायती लोकेन्द्र सिंह के अनुसार शहर के बीचों-बीच स्थित झीलनुमा तालाब धर्मसागर तालाब से जल सुरंगंे निकालकर उनसे शहर के दो दर्जन से अधिक कुओं से जोड़ा गया था। ताकि पूरे शहर में फैले इन कुओं में वर्षभर पर्याप्त पेयजल की उपलब्धता बनी रहे। इसके अतिरिक्त धर्मसागर तालाब से ही एक जलसुरंग के जरिए शहर के सबसे बड़े पार्क राजेन्द्र उद्यान व नजरबाग ग्राउण्ड को जोड़ा गया। ग्राउण्ड और उद्यान को जलसुरंगों से जोड़ने के पीछे मंशा यह थी कि भीषण गर्मी में भी इनकी हरियाली बरकरार रहे। जलसुरंगों से कुओं को भरने के लिए बकायदा बाॅल्व सिस्टम से आवश्यकतानुसार पानी छोड़ा जाता था।
300 वर्ष पूर्व बना लिये थे बैराज
वर्तमान समय में मौसम की अनिश्चितता और तेजी से बढ़ती आबादी के बीच घटते भू-जल की वैश्विक चिंता के मद्देनजर बारिश की एक-एक बूंद को सहेजने और उसे उपयोग में लाने के लिए जल संसाधन विभाग के माध्यम से बैराजों का निर्माण जिले में प्राथमिकता के साथ कराया जा रहा है। बैराजों से अभिप्राय ऐसे तालाबों की श्रृखंलाओं से है जोकि एक-दूसरे से इस तरह जुड़े रहते है कि एक में पानी अधिक होने पर उसके अतिरिक्त जल से दूसरे सूखे तालाब को भरा जा सके। जलसंरक्षण की इस नायाब इंजीनियरिंग को आज से 300 वर्ष पूर्व पन्ना के बुंदेली शासकों ने जमीन पर उतार दिया था। जल संरक्षण के क्षेत्र में गहरी रूचि रखने वाले पूर्व सांसद एवं पूर्व विधायक लोकेन्द्र सिंह की मानें तो शहर के रमतलैया के अतिरिक्त जल को दहलानताल, दहलानताल के अतिरिक्त जल को पथरया तालाब, पथरया तालाब के अतिरिक्त जल को महाराज सागर व महाराज सागर तालाब के अतिरिक्त जल से शंकरजू की तलैया को भरा जाता था। इन सभी ताल-तलैयों का निर्माण इस तरह कराया गया कि इनका अतिरिक्त जल आसानी से दूसरे तालाबों में पहुंचकर उन्हें लबालब कर सके।
सीमांकन कराकर हटाया जाये अतिक्रमण
शहर की जीवनरेखा कहलाने वाले छोटे-बड़े ताल-तलैयों का संरक्षण और संवर्द्धन समय की मांग है। इनकी उपेक्षा करने का सीधा दुष्प्रभाव भीषण जलसंकट को आमंत्रण देना है। जल प्रबंधन के इन नायाब नमूनों के दीर्घकालीन संरक्षण के लिए यह जरूरी है कि इनसे जनसमुदाय को जोड़ने की पहल करते हुए आर्थिक सहयोग या स्वेच्छा से श्रमदान कराया जाये। ताकि मानव श्रम सच्चे अर्थों में सार्थक साबित हो सके। पिछले कुछ वर्षों से ताल-तलैयों के संरक्षण की घोर उपेक्षा होने के परिणामस्वरूप अधिकांश तालाब बदहाल स्थिति में पहुंच चुके हैं। इनमें जलकुम्भी, कचरे के साथ-साथ अतिक्रमण भी बढ़ा है। जिला प्रशासन व नगरपालिका परिषद को चाहिए कि शहर के सभी प्रमुख ताल-तलैयों का सीमांकन कराकर ईमानदारी से इन्हें अतिक्रमण मुक्त कराते हुए इनका जीर्णोद्धार कराया जाये। क्योंकि जल के बिना जीवन और कल की कल्पना नहीं की जा सकती। शासन का महत्वाकांक्षी जलाभिषेक अभियान भी तभी सफल माना जायेगा जबकि पन्ना नगर सहित आंचलिक ताल-तलैयों को तेजी से निगल रहे अतिक्रमण को सख्ती से हटाकर इन्हें सुरक्षित किया जायेगा।
पन्ना के प्रमुख तालाब व उनका क्षेत्रफल
क्रमांक तालाब का नाम खसरा नम्बर क्षेत्रफल
1 धरम सागर 3256 73.40 एकड़
2 सिंह सागर 3151 14.10 एकड
3 मटया तालाब 2916 9.99 एकड़
4 मिसरतलइया 2914 3.40 एकड़
5 रमतलइया 2966 3.25 एकड़
6 दहलानताल 288 18.13 एकड़
7 महराज सागर 2545 5.75 एकड़
8 मिर्जाराजा की तलईया 2430 0.94 एकड़
9 पथरया तालाब 2799 5.65 एकड़
10 बेनीसागर 00 24 एकड़
11 लोकपाल सागर 00 492 एकड़
12 निरपत सागर 00 335 एकड़
13 सुंदर जू की तलैया 00 00
14 कमलाबाई तालाब 00 00
15 दुबे ताल 00 00
16 शंकरजू की तलैया 00 00
17 चांदमारी तलैया 00 00